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किन हालात में किसी देश में तैनात होती है UN की शांति सेना, बांग्लादेश में जिसे भेजने की ममता बनर्जी ने की मांग

पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने बांग्लादेश में यूएन पीसकीपिंग फोर्स तैनात करने की मांग की. उनका कहना है कि वहां अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए भारत को दखल देना चाहिए, और अपनी बात यूएन तक पहुंचानी चाहिए. ममता की चिंता तो जायज है लेकिन संयुक्त राष्ट्र की शांति सेना यूं ही किसी देश में नहीं पहुंच जाती.

बांग्लादेश से अल्पसंख्यकों पर हिंसा की खबरें आ रही हैं.  (Photo- AP) बांग्लादेश से अल्पसंख्यकों पर हिंसा की खबरें आ रही हैं. (Photo- AP)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 04 दिसंबर 2024,
  • अपडेटेड 2:07 PM IST

अगस्त में बांग्लादेश की तत्कालीन पीएम शेख हसीना ने भारत में शरण ली. इसके बाद से दोनों देशों के बीच तनाव गहराता ही जा रहा है. लगातार ऐसी खबरें आ रही हैं कि वहां माइनोरिटी, खासकर हिंदू निशाने पर हैं. कुछ दिनों पहले बड़ा एक्शन लेते हुए वहां की सरकार ने इस्कॉन से जुड़े चिन्मय कृष्ण दास समेत कई धार्मिक अधिकारियों को गिरफ्तार कर लिया. इसके बाद से भारत में भी गुस्सा बढ़ चुका है. लोग बांग्लादेशी नीतियों के खिलाफ प्रोटेस्ट कर रहे हैं. इसी कड़ी में वेस्ट बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने वहां यूएन शांति सेना भेजने की मांग कर डाली. 

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क्या है सीएम ममता का तर्क

ममता का कहना है कि बांग्लादेश से जब भी कोई नाव भारतीय सीमा में पहुंचती है, तो हम उनके साथ नरमी बरतते हैं. यहां तक कि कई और मामलों में रियायत देते हैं. वहीं सरकार बदलने पर वहां अल्पसंख्यकों पर हिंसा हो रही है. पीएम को खुद इस मामले को यूनाइटेड नेशन्स मंच पर रखते हुए वहां पीसकीपिंग फोर्स भेजने की बात करनी चाहिए. ममता अब तक बांग्लादेश में माइनोरिटी पर बोलने से बचती रहीं थीं कि ये दूसरे देश का मसला है. अब पहली बार वे खुलकर बोल रही हैं. लेकिन उनकी मांग में तकनीकी कमी है. पीसकीपिंग फोर्स की तैनाती यूं ही नहीं होती, बल्कि इसके लिए पूरा प्रोटोकॉल है. 

क्या है शांति सेना, कैसे करती है काम

जब भी सदस्यों देशों में आपसी या अंदरुनी तनाव होता है, संयुक्त राष्ट्र वहां अपनी शांति सेना भेजता है. इस सेना की नींव साल 1948 में डली थी, जिसका मकसद इजरायल और अरब देशों में शांति लाना था. बाद के समय में इसका दायरा बढ़ता चला गया. फिलहाल इसमें 120 से ज्यादा देशों के सैनिक तैनात हैं, जिनमें भारतीय लोग भी हैं. कुछ समय पहले ही जब इजरायल और हिजबुल्लाह में लड़ाई चल रही थी, जब लेबनान पर इजरायली हमलों के दौरान भारतीय सैनिकों की सुरक्षा पर भी चिंता जताई गई थी. 

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क्या शांति सेना युद्ध भी लड़ती है 

नहीं. पीसकीपिंग के लिए अलग-अलग देशों में काम करते सैनिक अपने देश में असल सैनिक होते हैं, लेकिन शांति सेना का हिस्सा होने के बाद वे लड़ाई में शामिल नहीं होते. उनका काम निष्पक्ष रहते हुए शांति के लिए काम करना है. हालांकि अगर उनपर या नागरिकों पर हमला हो तो उसे रोकने के लिए वे पूरी तरह तैयार रहते हैं. जैसे साठ के दशक में यूएन की शांति सेना ने कांगो में विद्रोही गुटों और विदेशी भाड़े के सैनिकों के खिलाफ सैन्य कार्रवाई की थी. इसी तरह नब्बे में रवांडा नरसंहार के दौरान शांति सेना ने युद्ध लड़ा था. 

ममता बनर्जी की मांग में क्या पेंच था 

ममता का कहना है कि भारत को यूएन से दरख्वास्त करनी चाहिए कि वो बांग्लादेश में शांतिसेना भेजे. इस बात में तकनीकी कमी है. पीसकीपिंग फोर्स वैसे तो हर अस्थिर देश में रहती है लेकिन वो अपनी मर्जी से वहां नहीं जा सकती. इसके लिए उसे होस्ट देश की इजाजत चाहिए होती है. 

जब शांति सेना को किसी देश में भेजा जाता है, तो मेजबान और संयुक्त राष्ट्र के बीच स्टेटस ऑफ फोर्सेस एग्रीमेंट होता है. इसमें शांति सैनिकों की कानूनी स्थिति, उनकी जिम्मेदारी और उन्हें कितनी छूट रहेगी, ये सब तय होता है. अगर किसी भी समय मेजबान देश को लगे कि शांति सेना उसके देश में हस्तक्षेप कर रही है तो यूएन को फोर्स वापस बुलानी पड़ती है. ताजा मामले में केवल बांग्लादेश के चाहने पर ही सेना उनके यहां जा सकेगी, न कि पड़ोसी देशों के दखल पर. इसमें एक बात ये भी है कि किसी देश के घरेलू मामलों में सेना तब तक दखल नहीं देती, जब तक कि देश भरभराकर गिरने की कगार पर न पहुंच चुका हो. 

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तो क्या बांग्लादेश में तैनाती असंभव

नहीं. शांति सेना वहां भी जा सकती है लेकिन तभी जब संघर्ष में शामिल दोनों पार्टियां इसकी रजामंदी दें. भारत-बांग्लादेश मामले में दोनों देशों की सरकारों की मंजूरी चाहिए. अगर एक देश की सहमति के बगैर सेना चली जाए तो उसकी निष्पक्षता पर सवाल खड़ा हो जाता है. 

कई बार देश पीसकीपिंग फोर्स को अपने यहां आने की इजाजत नहीं भी देते हैं. 

- सीरिया में सिविल वॉर के दौरान यूएन चाहकर भी अपनी सेना वहां नहीं भेज सका क्योंकि सीरियाई सरकार ने इसकी अनुमति नहीं दी. 

- सूडान की सरकार ने साल 2019 में यूएन से फोर्स को वापस हटाने को कह दिया था क्योंकि उसे लग रहा था कि इससे उसके देश की संप्रभुता को खतरा है.

शांति सेना पर भी रह चुका है विवाद

यूएन की शांति सेना पर कई बार ऐसे आरोप लगते रहे कि वो अमेरिका या यूएन सुरक्षा परिषद के बाकी देशों के लिए जासूसी करती है. कई बार इसपर राजनीतिक हस्तक्षेप के आरोप भी लगे. साल 2000 में इजरायल ने यूनिफिल के बारे में दावा किया था कि उसके सैनिक हिजबुल्लाह के लिए जासूसी कर रहे और इजरायली आर्मी के मूवमेंट की जानकारी दे रहे हैं. साल 2004 में हैती में संयुक्त राष्ट्र मिशन पर जासूसी के आरोप लग चुके. संयुक्त राष्ट्र वैसे इनका खंडन करता रहा लेकिन इन दावों ने उसकी साख पर सवाल तो उठा ही दिए.

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कांगो में तैनात शांति सैनिकों पर यौन शोषण और दुर्व्यवहार जैसे गंभीर आरोप तक लग चुके. कई सैनिकों ने वहां की महिलाओं और बच्चों का शोषण किया. हल्ला मचने पर खुद यूएन ने माना कि कुछ शांति सैनिकों ने अपने अधिकारों का गलत इस्तेमाल किया. 

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