
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पीएम नरेंद्र मोदी को अपने हाथों से पका खाना खिलाने की पेशकश की. साथ ही ये भी जोड़ दिया कि क्या वो मेरा बनाया हुआ खाना खाने का 'भरोसा' कर सकेंगे. राजनीति पर न जाएं तो भी पुराने समय में राजे-महाराजे के पास एक शख्स होता, जिसका काम ही खाने में जहर चेक करना था. बाद में वर्ल्ड लीडर्स भी यही करने लगे. अब ये प्रैक्टिस या तो बंद हो चुकी, या खुफिया ढंग से चल रही होगी.
क्या है ममता का मामला
टीएमसी प्रमुख और पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए खाना बनाने की पेशकश कर दी. सोमवार को ममता ने कहा कि मैं उनके (मोदी) के लिए कुछ पकाने के लिए तैयार हूं, अगर वे चाहें तो... हालांकि मुझे यकीन नहीं कि मैं जो पकाऊंगी, उसे वो खाएंगे या नहीं.
बीजेपी लोगों के खान-पान में कथित तौर पर हस्तक्षेप कर रही है. इसी बात को निशाना बनाते हुए सीएम ने ये सारी बातें कहीं. साथ ही भरोसे वाली बात भी जोड़ दी.
राजपरिवारों में होती थी खाने की जांच
पुराने समय में रॉयल परिवारों में फूड टेस्टर हुआ करते थे. ये एक पूरा स्टाफ होता था, जिसका काम राजपरिवार के लिए बने खाने को चखकर ये साबित करना होता था कि उसमें किसी तरह का जहर नहीं. आगे चलकर बड़े राजनेताओं के यहां भी यही बात होने लगी. कई मीडिया रिपोर्ट्स दावा करती हैं कि लगभग सारे देशों ने लीडर, जिन्हें दूसरे किसी देश या पॉलिटिशियन से खतरा हो, वे सीक्रेट तौर पर फूड टेस्टर रखते हैं.
विदेशों में कप-बियरर भी होते हैं, जिनका काम शराब या किसी पेय को चखकर ये बताना होता है कि उनमें जहर नहीं. वे चम्मच से ग्लास का पेय लेकर चखते हैं ताकि ग्लास जूठा न हो. आमतौर पर ये काम राजा या नेता के सामने होता है ताकि वे निश्चिंत रहें.
रोमन साम्राज्य से फूड टेस्टर की शुरुआत मानी जाती है. 54 एडी में रोम के राजा क्लॉडिअस के पास एक स्टाफ था, जिसका दिनभर का काम यही था. बाद में राजा की मौत खाने में जहर से ही हुई. पता लगा कि चखने वाले स्टाफ ने ही धोखाधड़ी की थी.
क्या खाने में जहर का पता लगाया जा सकता है
कई सारे जहर हैं, जिन्हें खाने में मिलाया जाता रहा, जैसे आर्सेनिक ट्रायऑक्साइड, सायनाइड और एट्रोपाइन. सारे जहर अलग-अलग ढंग से काम करते हैं, लेकिन एक लक्षण सबमें एक सा है. जहर मिला खाने के कुछ देर बाद ही उल्टियां होना. कई जहर ऐसे भी होते हैं, जो शरीर में जाने के बाद चौबीस या इससे ज्यादा घंटे में असर दिखाते हैं. आर्सेनिक खाने के दो घंटे से लेकर चार दिनों तक समय लेता है. कई बार अच्छी सेहत वाले को इससे पेट में हल्का दर्द होता है. ऐसे में राजा या लीडर को पता नहीं चलेगा कि वो जहर-बुझा खाना खा रहे हैं.
कई स्लो-पॉइजन भी होते हैं, जिनकी हल्की मात्रा धीरे-धीरे दी जाए तो महीनेभर या इससे कुछ ज्यादा समय में टारगेट खत्म हो जाता है. कुल मिलाकर, कोई भी फूड टेस्टर लीडर के जिंदा रहने की गारंटी नहीं ले सकता था.
हिटलर के खाने की जांच के लिए दर्जनभर से ऊपर स्टाफ
अडोल्फ हिटलर के पास फूड टेस्टरों की पूरी फौज थी. वर्ल्ड वॉर के दौरान 15 यहूदी लड़के-लड़कियों को इस काम पर रखा गया कि वे हिटलर के खाने में जहर चेक करें. ये लोग एक निश्चित समय पर अलग-अलग कमरों में खाना चखते और उनपर नजर रखी जाती. अगर घंटेभर के अंदर उन्हें कुछ न हो तो खाना सेफ मान लिया जाता. इसके बाद उसे डिब्बे में पैक करके, सील लगाकर मिलिट्री हेडक्वार्टर या जहां भी हिटलर हो, वहां भेज दिया जाता.
कहा जाता है कि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के पास भी फूड टेस्टर था, हालांकि इस बारे में खास जानकारी नहीं मिलती. ब्रिटिश अखबार द इंडिपेंडेंट ने इसपर रिपोर्ट की थी. क्रेमलिन के इस नेता को कथित तौर पर देश के भीतर-बाहर दोनों ही तरह से डर रहता.
इन नेताओं के भी हो चुके चर्चे
अमेरिका में भी कई राष्ट्रपतियों के पास ऐसा स्टाफ रहा जो खाने में पॉइजन की जांच करता. राष्ट्रपति काल के दौरान बराक ओबामा का फ्रांस दौरा चर्चा में रहा था, जब उन्हें परोसे गए खाने को पहले कोई और चखता था. तुर्की लीडर रेचेप तैयप एर्दोगन ने कुछ सालों पहले एलान किया था कि राष्ट्रपति भवन में एक लैब बनाया जाएगा, जहां राष्ट्रपति, उसके परिवार या मेहमानों के खाने में जहर चेक किया जाएगा.
क्या अब भी हैं फूड टेस्टर
अब जहर तय करने के लिए फूड टेस्टर नहीं रखे जाते, या ऐसा हो भी रहा हो तो खुफिया तौर पर होता होगा ताकि ह्यूमन राइट्स पर बवाल न हो. कई बार ये भी होता है कि फूड टेस्टर को ही विरोधी खेमा साथ मिला ले, इस खतरे से बचने के लिए टेस्टर की पहचान अक्सर गुप्त रखी जाती है.
इसकी बजाए जानवरों को खाना चखाया जा रहा है. जैसे साल 2008 में चीन में ओलंपिक के दौरान खाना पहले चूहों को दिया जाता, उसके बाद बाकियों को मिलता. इसपर एनिमल केयर संस्थानों में काफी हो-हल्ला किया था.
अब खाने के स्वाद की जांच का प्रोफेशन
समय के साथ फूड टेस्टिंग प्रोफेशन अलग रूप ले चुका. अब खाने का स्वाद जांचने के लिए टेस्टर होते हैं. ये पेशेवर लोग होते हैं, जो पढ़ाई-लिखाई करके, पूरी ट्रेनिंग लेकर काम करते हैं. कहीं भी नौकरी से पहले उनकी कई स्क्रीनिंग होती है, जहां खाने को बिना देखे या सूंघकर बताना होता है कि उसमें क्या, कितनी मात्रा में डला है. इसके बाद आता है स्वाद बताने का काम. इसके लिए पैलेट ट्रेनिंग होती है, यानी जीभ के अलग-अलग स्वाद तंतुओं को महीनों या सालभर तक ट्रेन किया जाता है कि वे स्वाद को महसूस कर सकें.