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कभी जंग तो कभी बना हिंसा का मैदान... आजादी के दो साल बाद भारत में शामिल हुए मणिपुर की कहानी

मणिपुर एक रियासत हुआ करती थी. 1947 में मणिपुर के महाराजा को कार्यकारी प्रमुख बनाते हुए यहां एक लोकतांत्रिक सरकार का गठन किया गया. 1949 में मणिपुर का भारत में विलय हो गया.

मणिपुर में तीन मई से हिंसा जारी है. (फाइल फोटो-PTI) मणिपुर में तीन मई से हिंसा जारी है. (फाइल फोटो-PTI)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 10 अगस्त 2023,
  • अपडेटेड 1:15 PM IST

पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर को जातीय हिंसा की आग में जलते हुए तीन महीने से ज्यादा हो गए हैं. समाधान अभी तक कुछ निकला नहीं है. शांति बहाली की कोशिशें हो रहीं हैं, लेकिन बात नहीं बन पा रही.

संसद में मणिपुर हिंसा को लेकर हंगामा जारी है. कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने बुधवार को लोकसभा में केंद्र सरकार को घेरते हुए कहा कि इन्होंने सिर्फ मणिपुर का नहीं, बल्कि हिंदुस्तान का कत्ल किया है. 

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इस पर केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने जवाब देते हुए कहा कि मणिपुर भारत का अभिन्न हिस्सा है, था और रहेगा. आज देश देख रहा है कि जब भारत मां की हत्या की बात हुई, तब कांग्रेस ताली बजा रही थी. 

वहीं, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जवाब देते हुए कहा कि मणिपुर में जो घटनाएं हुईं, वो शर्मनाक हैं, लेकिन उसपर राजनीति करना और भी ज्यादा शर्मनाक है. 

मणिपुर में तीन मई से मैतेई और कुकी समुदाय के बीच जातीय हिंसा जारी है. मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग के खिलाफ हिंसा भड़क गई थी. गृह मंत्री अमित शाह के मुताबिक, तब से इस हिंसा में अब तक 156 लोगों की मौत हो चुकी है.

मणिपुर एक ऐसा राज्य रहा है जहां हिंसा का एक लंबा इतिहास रहा है. दूसरे विश्व युद्ध के समय जापानी सैनिकों ने लगातार दो साल तक बमबारी भी की थी. 60 के दशक में मैतेई समुदाय ने यहां एक बड़ा विद्रोह किया था और दावा किया था कि 1949 में मणिपुर को भारत में धोखे से शामिल किया गया था.

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अंग्रेजों के शासन में मणिपुर एक रियासत हुआ करती थी. 1947 में मणिपुर के महाराजा को कार्यकारी प्रमुख बनाते हुए यहां एक लोकतांत्रिक सरकार का गठन किया गया. 1949 में मणिपुर का भारत में विलय हो गया. और 21 जनवरी 1972 को इसे पूर्ण राज्य का दर्जा मिल गया.

क्या है मणिपुर का इतिहास?

एक ऐतिहासिक ग्रंथ है- चेथारोल कुंबाबा. इसमें मणिपुर के इतिहास के बारे में कई दावे किए गए हैं. इस ग्रंथ में लिखा है कि इतिहास में मणिपुर के कई कबीलों के बीच लड़ाई हुई. इसमें 'निंगथोउजा' कबीले की जीत हुई. इन्होंने एक साम्राज्य की स्थापना की.

नोंगदा लैरेन पाखम्बा इस कबीले से मणिपुर के पहले राजा हुए. इन्होंने 'सनमाही' नाम से एक धर्म की शुरुआत की. इनकी अपनी परंपराएं थीं. अपने रीति-रिवात थे. और अपने देवता भी थे.

इन्हीं में से एक देवता 'पाखम्बा' को स्टेट एम्ब्लेम बनाया गया. वहीं, दूसरे देवता 'कांगला शा' के नाम पर राजधानी का नाम कांगला रखा. आगे जाकर इस राज्य का नाम 'कांगलेइपाक' पड़ गया.

इतिहासकारों के मुताबिक, 17वीं सदी में मणिपुर पूर्वोत्तर के सबसे ताकतवर राज्यों में से था. तब यहां के राजा हुआ करते थे- खागेम्बा. 

कहा जाता है कि साल 1631 में चीन के मिंग वंश के राजा चोंग झेन ने भारतीय उपमहाद्वीप पर हमला कर दिया. इससे पहल उसने बर्मा को जीत लिया था. खागेम्बा ने चीनी फौज को हरा दिया. चीनी सैनिकों को युद्धबंदी बना लिया गया और उनसे काम करवाया गया. 

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खागेम्बा का एक भाई था शालुंग्बा. उसने अपने भाई खागेम्बा ने बंगाल के मुस्लिम शासकों के साथ मिलकर कांगलेइपाक पर हमला कर दिया. इसमें खागेम्बा की हार हुई. लेकिन कई मुस्लिम सैनिकों को युद्धबंदी बना लिया गया. 

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कांगलेइपाक के मणिपुर बनने की कहानी

कांगलेइपाक के मणिपुर बनने की कहानी शुरू होती है 17वीं सदी से. इतिहासकार ज्योतिर्मय राय अपनी किताब 'मणिपुर का इतिहास' के मुताबिक, मैतेई महाराजा पामहेयीबा ने इसका नाम कांगलेइपाक से मणिपुर रखा था.

पामहेयीबा यहां के पहले हिंदू राजा थे. वो चराइरोंग्बा की सबसे छोटी रानी नंगशेल छाइबे के बेटे थे. पामहेयीबा ने मैतेई धर्म त्यागकर हिंदू धर्म अपना लिया था. 

पामहेयीबा को 'गरीब नवाज' के नाम से जाना जाता था. इन्होंने ही इस इलाके में हिंदू धर्म की स्थापना की थी. पामहेयीबा ने 1709 से 1751 तक मणिपुर पर शासन किया. 

मणिपुर में हिंदू धर्म काफी पहले ही पहुंच गया था. साल 1470 में यहां के राजा क्याम्बा को बर्मा के राजा ने भगवान विष्णु की एक मूर्ति भेंट की थी. उन्होंने बिष्णुपुर नाम की जगह पर इस मूर्ति का एक मंदिर बनवाया. उनके शासनकाल में भी हिंदू धर्म को बढ़ावा मिला. लेकिन पामहेयीबा के दौर में हिंदू को राज धर्म का दर्जा दे दिया गया.

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फिर हुआ अंग्रेजों का हमला

साल 1758 में बर्मा की फौज इम्फाल तक पहुंच गई थी. इसके बाद कई सालों तक बर्मा और मणिपुर में जंग चलती रही. 1819 में बर्मा ने मणिपुर पर जोरदार हमला किया. और चाहे खारेट तुनगपा ने मणिपुर का शासन संभाल लिया.

छह साल बाद ही 1825 में गंबीर सिंह की अगुवाई में मणिपुरियों ने विद्रोह कर दिया और बर्मा के शासन को उखाड़ फेंका. गंबीर सिंह यहां के राजा बने. उनके निधन के बाद उनके बेटे चंद्रकीर्त राजा बने. उनके निधन के बाद 1886 में सूरजचंद को मणिपुर की गद्दी मिली. सूरजचंद 1890 तक ही गद्दी पर रहे. क्योंकि उनके भाइयों ने बगावत कर दी. आखिरकार कुल्लाचंद्र को सिंहासन मिल गया.

लेकिन अप्रैल 1891 में अंग्रेजों ने मणिपुर पर हमला कर दिया. इस युद्ध में अंग्रेजों की जीत हुई. अंग्रेजों ने पांच साल के चुराचंद को गद्दी सौंप दी. चुराचंद का शासन 1891 से 1941 तक चला. इसके बाद महाराजा बुधाचंद्र सिंह को मणिपुर की गद्दी मिल गई. 

दूसरे विश्व युद्ध के समय मणिपुर के एक बड़े हिस्से पर जापान की सेना का कब्जा रहा. इस दौरान लगातार दो सालों तक मणिपुर पर जमकर बमबारी हुई. इससे इम्फाल में बना राजा का महल भी क्षतिग्रस्त हो गया. आखिरकार 1947 में ब्रिटिशर्स ने मणिपुर की कमान पूरी तरह से बुधाचंद्र को सौंप दी.

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भारत में कैसे मिला मणिपुर?

भारत को 15 अगस्त 1947 को आजाद हो गया था. लेकिन मणिपुर में 28 अगस्त को आजादी का दिन मनाया जाता है. इसी दिन मणिपुर के महाराज बुधाचंद्र कांगला पहुंचे थे. 

आजादी के बाद मणिपुर के महाराजा बुधाचंद्र यहां के कार्यकारी प्रमुख बन गए. और इस तरह यहां से लोकतांत्रिक सरकार का गठन हुआ. लेकिन अब तक मणिपुर भारत का हिस्सा नहीं बना था.

मणिपुर के महाराजा ने 21 सितंबर 1949 को भारत में विलय के दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए. उसी साल अक्टूबर में मणिपुर भारत का अभिन्न हिस्सा बन गया. 

1955 में महाराजा बुधाचंद्र का निधन हो गया. फिर 1956 से 1972 तक मणिपुर केंद्र शासित प्रदेश बना रहा. लेकिन इस बीच मणिपुर में न सिर्फ उग्रवादी आंदोलन बढ़ा, बल्कि अलग राज्य की मांग भी होने लगी. 21 जनवरी 1972 को मणिपुर को पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया गया.

मणिपुर की डेमोग्राफी

पूरा मणिपुर 22,327 वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैला हुआ है. इसका 2,238 वर्ग किमी यानी 10.02% इलाका ही घाटी है. जबकि 20,089 वर्ग किमी यानी 89% से ज्यादा इलाका पहाड़ी है.

यहां मुख्य रूप से तीन समुदाय हैं. पहला- मैतेई, दूसरा- नागा और तीसरा- कुकी. इनमें नागा और कुकी आदिवासी समुदाय हैं. जबकि, मैतेई गैर-आदिवासी हैं.

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मैतेई हिंदू हैं. जबकि नागा और कुकी से आने वाले ज्यादातर लोग ईसाई हैं. नागा और कुकी को राज्य में अनुसूचित जनजाति का दर्जा हासिल है.

इन तीनों के अलावा यहां मुस्लिम आबादी भी है. साथ ही यहां गैर-आदिवासी समुदाय से आने वाले मयांग भी हैं जो देश के अलग-अलग हिस्सों से आकर यहां बसे हैं.

 

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