
पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर हिंसा की आग में जल रहा है. तीन मई से शुरू हुई जातीय हिंसा में अब तक 80 लोग मारे जा चुके हैं.
मणिपुर में ये हिंसा नगा-कुकी और मैतेई समुदाय के बीच हो रही है. हिंसा को रोकने और कानून व्यवस्था को बनाए रखने के लिए राज्य में सेना और असम राइफल्स के भी 10 हजार से ज्यादा जवान तैनात हैं.
ये सारा बवाल तीन मई को उस समय शुरू हुआ, जब ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर (ATSUM) ने 'आदिवासी एकता मार्च' निकाला. इसी रैली में आदिवासी और गैर-आदिवासी समुदाय के बीच झड़प हो गई, जो बाद में हिंसा में तब्दील हो गई. ये रैली मैतेई समुदाय की ओर से जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग के विरोध में निकाली गई थी.
इस हिंसा के पीछे मैतेई समुदाय की ओर से की जा रही आरक्षण की मांग और नगा-कुकी की तरफ से इसके विरोध को तो माना ही जा रहा है. साथ ही साथ ये लड़ाई ड्रग्स और जमीन से भी जुड़ी है.
ड्रग्स की लड़ाई...?
- मणिपुर में अफीम की अवैध खेती जबरदस्त तरीके से होती है. मणिपुर में लगभग साढ़े 15 हजार एकड़ की जमीन पर अफीम की खेती होती है.
- इसमें से 13 हजार एकड़ से ज्यादा जमीन पर कुकी-चिन समुदाय के लोग अफीम की खेती करते हैं. करीब 2300 एकड़ जमीन पर नगा खेती करते हैं. बाकी 35 एकड़ जमीन पर दूसरे समुदाय के लोग अफीम की खेती करते हैं.
- सरकार ने 2017 में इसके खिलाफ क्रैकडाउन शुरू किया था. इसी महीने कुछ आंकड़े सामने आए थे. इसमें बताया गया था कि 2017 से 2023 के बीच ड्रग्स के सिलसिले में किस समुदाय के कितने लोगों को गिरफ्तार किया गया है.
- सामने आया कि राज्य में एनडीपीएस एक्ट के तहत ढाई हजार से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया है. इनमें से 873 लोग कुकी-चिन समुदाय के थे. एक हजार से ज्यादा मुस्लिम थे और 381 लोग मैतेई समुदाय से जुड़े थे. 181 लोग दूसरे समुदायों के थे.
- मणिपुर यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अंगोम दिलीप कुमार सिंह ने न्यूज एजेंसी को बताया कि कुकी समुदाय लंबे समय से अफीम की खेती करते आ रहे हैं, जिसकी वजह से मणिपुर में बड़ा ड्रग कल्चर खड़ा हुआ है. लेकिन जब सरकार ने उसे नष्ट कर दिया तो समुदाय में आक्रोश पैदा हो गया और हिंसा शुरू हो गई.
जमीन की लड़ाई कैसे?
- पूरा मणिपुर 22,327 वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैला हुआ है. इसका 2,238 वर्ग किमी यानी 10.02% इलाका ही घाटी है. जबकि 20,089 वर्ग किमी यानी 89% से ज्यादा इलाका पहाड़ी है.
- यहां मुख्य रूप से तीन समुदाय हैं. पहला- मैतेई, दूसरा- नागा और तीसरा- कुकी. इनमें नागा और कुकी आदिवासी समुदाय हैं. जबकि, मैतेई गैर-आदिवासी हैं.
- मणिपुर में अभी जो हिंसा हो रही है, उसे 'कब्जे की जंग' भी माना जा रहा है. इसे ऐसे समझिए कि मैतेई समुदाय की आबादी यहां 53 फीसदी से ज्यादा है, लेकिन वो सिर्फ घाटी में बस सकते हैं. वहीं, नागा और कुकी समुदाय की आबादी 40 फीसदी के आसपास है और वो पहाड़ी इलाकों में बसे हैं.
- मणिपुर में एक कानून है, जिसके तहत आदिवासियों के लिए कुछ खास प्रावधान किए गए हैं. इसके तहत, पहाड़ी इलाकों में सिर्फ आदिवासी ही बस सकते हैं. चूंकि, मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा नहीं मिला है, इसलिए वो पहाड़ी इलाकों में नहीं बस सकते. जबकि, नागा और कुकी जैसे आदिवासी समुदाय चाहें तो घाटी वाले इलाकों में जाकर रह सकते हैं.
- अब नगा-कुकी समुदाय को इस बात की चिंता है कि अगर मैतेई को भी जनजाति का दर्जा मिल जाता है तो उन्हें पहाड़ी इलाकों में रहने और बसने की कानूनी इजाजत मिल जाएगी. ऐसे में उन्हें अपनी जमीनें छिनने का डर है.
आरक्षण पर क्या है तकरार?
- मैतेई यहां का सबसे बड़ा समुदाय है. राज्य के 60 में से 40 विधायक मैतेई समुदाय से ही आते हैं. मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह भी मैतेई समुदाय से आते हैं.
- मैतेई समुदाय का तर्क है कि इतनी बड़ी आबादी होने के बावजूद उनका दबदबा सिर्फ 10 फीसदी इलाके पर है. जबकि, 40 फीसदी जनजाति समुदाय का कब्जा 90 फीसदी इलाके पर है.
- मैतेई समुदाय की ओर से मणिपुर हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई थी. इसमें अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने का मुद्दा उठाया गया था. याचिका में दलील दी गई थी कि 1949 में मणिपुर भारत का हिस्सा बना था. उससे पहले तक मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा हासिल था. लेकिन बाद में उसे एसटी लिस्ट से बाहर कर दिया गया.
- इसी पर 20 अप्रैल को मणिपुर हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया था कि वो चार हफ्तों के अंदर मैतेई समुदाय की ओर से एसटी का दर्जा दिए जाने की मांग पर विचार करे.
- अतिक्रमण हटाओ अभियान और मैतेई समुदाय की ओर से एसटी का दर्जा दिए जाने की मांग की वजह से काफी तनाव था. बाद में हाई कोर्ट के आदेश से आदिवासी समुदाय और ज्यादा भड़क गया.
- मैतेई की जनजाति के दर्जे की मांग के विरोध में 3 मई को रैली निकाली गई. 'आदिवासी एकता मार्च' के नाम से ये रैली ऑल ट्राइबल स्टूडेंट यूनियन मणिपुर (ATSUM) की ओर से निकाली गई थी. इसमें कुकी और नगा समुदाय से जुड़े लोग शामिल थे.
- आदिवासी संगठन ने जब इस रैली का ऐलान किया था, तब भी इस बात की आशंका थी कि इससे तनाव बढ़ सकता है. और हुआ भी ऐसा ही. इस रैली में आदिवासी और गैर-आदिवासी समुदाय भिड़ गए. पुलिस को आंसू गैस के गोले दागने पड़े. हालात इतने बेकाबू हो गए कि सेना और पैरामिलिट्री फोर्स के जवानों को भी उतारना पड़ गया.
मैतेई और कुकी समुदाय के क्या हैं तर्क?
- मैतेई समुदायः एसटी का दर्जा की मांग करने वाले संगठन का कहना है कि ये सिर्फ नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण का मुद्दा नहीं है, बल्कि ये पैतृक जमीन, संस्कृति और पहचान का मसला है. संगठन का कहना है कि मैतेई समुदाय को म्यांमार और आसपास के पड़ोसी राज्यों से आने वाले अवैध प्रवासियों से खतरा है. ऑल मैतेई काउंसिल के सदस्य चांद मीतेई पोशांगबाम का दावा है कि कुकी म्यांमार की सीमा पार कर यहां आए हैं और मणिपुर के जंगलों पर कब्जा कर रहे हैं. उन्हें हटाने के लिए राज्य सरकार अभियान चला रही है.
- कुकी समुदायः ऑल मणिपुर ट्राइबल यूनियन के महासचिव केल्विन नेहिसियाल ने बताया था, 'इस पूरे विरोध की वजह ये थी कि मैतेई अनुसूचित जनजाति का दर्जा चाहते थे. उन्हें एसटी का दर्जा कैसे दिया जा सकता है? अगर उन्हें एसटी का दर्जा मिला तो वो हमारी सारी जमीन हथिया लेंगे.' केल्विन का दावा था कि कुकी समुदाय को संरक्षण की जरूरत थी क्योंकि वो बहुत गरीब थे, उनके पास न स्कूल नहीं थे और वो सिर्फ झूम की खेती पर ही जिंदा थे.