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मिडिल ईस्ट में फैल रही जंग की आग, सबसे ज्यादा चरमपंथी गुट यहीं, क्या इसी क्षेत्र से शुरू होगा तीसरा वर्ल्ड वॉर?

मध्यपूर्व में कई जगहों पर तनाव बढ़ता ही जा रहा है. कहीं दो देशों में फसाद है तो कहीं भीतर ही भीतर लड़ाई चल रही है. हाल में सीरिया में भी तख्तापलट के बाद चरमपंथी समूहों का कब्जा हो गया. इस बीच ये डर गहरा रहा है कि कहीं दुनिया का यही हिस्सा तीसरे वर्ल्ड वॉर की वजह न बन जाए.

मिडिल ईस्ट में एक के बाद एक लड़ाइयां छिड़ रही हैं. (Photo- Getty Images) मिडिल ईस्ट में एक के बाद एक लड़ाइयां छिड़ रही हैं. (Photo- Getty Images)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 10 दिसंबर 2024,
  • अपडेटेड 6:04 PM IST

मध्य पूर्व में इजरायल और हमास के बीच एक साल से ज्यादा समय से लड़ाई चल रही है. इसके बीच लेबनान और ईरान भी आ गए. कई सारे मिलिटेंट गुट हैं, जो आपस में ही हमलावर हैं. एक दशक से ज्यादा समय से सिविल वॉर से जूझते सीरिया में एक और उठापटक हुई. कुल मिलाकर आग एक घर से होते हुए पूरी बस्ती को जलाने को तैयार है. तो क्या दुनिया का यही हिस्सा तीसरे विश्व युद्ध की वजह बनेगा? पहली दो लड़ाइयों में क्या थी मिडिल ईस्ट की भूमिका?

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फिलहाल कहां-कहां चल रहा है संघर्ष

पिछले साल अक्टूबर में चरमपंथी गुट हमास ने इजरायल के नागरिकों पर हमला करते हुए हजारों जानें ले लीं, साथ ही सैकड़ों लोगों को बंधक बना लिया. इसके बाद से इजरायल और हमास के बीच लड़ाई जारी है. हमास को कमजोर पड़ता  देख पड़ोसी देश भी लड़ाई में कूद पड़े. वे सीधे-सीधे नहीं, बल्कि चरमपंथी समूहों के जरिए आग में घी डालने लगे. इनमें हिजबुल्लाह, हैती जैसे मिलिटेंट संगठन टॉप पर हैं. 

सीरिया में पिछले दो हफ्तों में बड़ा भूचाल आया. यहां बशर अल असद सरकार को गिराने के लिए मिलिटेंट समूह एक्टिव हो गए. हाल ही में सरकार गिराने के बाद सीरियाई विद्रोही गुट हयात तहरीर अल शाम (एचटीएस) ने कमान संभाल ली है. ये विद्रोही संगठन एक समय पर अल-कायदा से प्रभावित था. फिलहाल तो वो संभलकर बातें कर रहा है लेकिन समझना मुश्किल नहीं कि एक चरमपंथी समूह अगर देश चलाएगा तो आग सीमाएं पार जरूर करेगी. 

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यमन में सऊदी अरब की अगुआई में गठबंधन और हूथी विद्रोहियों के बीच चल रहे गृहयुद्ध ने देश को हर तरह से कमजोर बनाकर रख दिया है. मानवीय संकट इतना गहरा है कि यहां से लाखों शरणार्थी दूसरे देशों में शरण ले चुके. फिलहाल बाकी देशों की लड़ाई में इसका शोर कुछ दबा हुआ है लेकिन स्थिति अभी भी सुधरी नहीं. 

इराक में लंबे समय से उठापटक जारी है. इसकी शुरुआत दो दशक पहले हुई थी, जब अमेरिकी सेना ने इराक पर हमला किया था. उनका टारगेट सद्दाम हुसैन और उसके खतरनाक इरादे थे. सद्दाम को मौत की सजा मिलने के साथ शांति आ जानी थी, लेकिन एक चूक अमेरिका की तरफ से हो चुकी थी. उन्होंने जिस वेपन ऑफ मास डिस्ट्रक्शन को खत्म करने के मंसूबे बनाए थे, वो कहीं मिला ही नहीं. इसके बाद यूएस आर्मी पर भी वहां के लोग ही नाराज हो उठे. अशांति के समय में अक्सर पावर गेम शुरू हो जाता है. इराक में भी कई चरमपंथी गुट बन गए जो सत्ता के लिए आपस में लड़ने लगे. नतीजा ये हुआ कि देश इतने सालों बाद भी सामान्य नहीं हो सका. 

कौन-कौन से एक्सट्रीमिस्ट गुट सक्रिय 

- इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया (ISIS) ने इराक और सीरिया से काम शुरू किया. सबसे खतरनाक समूह ने बहुत जल्दी दुनिया में खौफ पैदा कर दिया. साल 2017 में हालांकि अमेरिका और मित्र देशों ने इसे खत्म करने का दावा किया लेकिन खत्म केवल ये हेडक्वार्टर हो सके. इस्लामिक स्टेट अब अफ्रीका से काम कर रहा है. 

- सीरिया, यमन और आसपास के देशों में अलकायदा तेजी से फैला. ये एक अंब्रेला समूह है, जिसके नीचे कई सारे संगठन काम कर रहे हैं. इसका मकसद दुनिया में इस्लामिक राज लाना है, जिसमें मानवाधिकार हनन भी हो रहा है.  

- लेबनान में हिजबुल्लाह है, जिसकी काम ही इजरायल को परेशान रखना है. इस समूह को ईरान से सपोर्ट मिला हुआ है. लेबनान में हाल में सीजफायर हो चुका लेकिन अब भी ये गुट पूरी तरह से शांत नहीं हुआ. 

- हमास वही संगठन है, जिसकी वजह से सालभर पहले इजरायल में नरसंहार हुआ. इजरायल के हमले और धमकियों के बावजूद इसने अब तक बंधकों को नहीं छोड़ा है, जिस कारण लड़ाई थम नहीं पा रही. 

- यमन में हूती विद्रोही हैं, जिन्हें सऊदी अरब से फंडिंग और सपोर्ट मिलता है. इनका काम अपने ही देश की सरकार को अस्थिर बनाना है ताकि नए राज में सऊदी को फायदा हो सके. 

- कई सारे सुन्नी और शिया मिलिशिया गुट भी हैं, जो इराक और सीरिया में सक्रिय हैं. इनकी पालपोस भी ईरान करता है ताकि वो अमेरिका की टक्कर पर खड़ा हो सके. या कम से कम मिडिल ईस्ट में उसकी बराबरी पर कोई न हो. 

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पहले दो युद्धों में कहां था मध्यपूर्व

मिडिल ईस्ट ने पहले और दूसरे वर्ल्ड वॉर में अहम भूमिका निभाई, खासतौर पर रणनीतिक स्थिति के चलते. पहली लड़ाई साल 1914 में शुरू हुई, जिसमें ऑटोमन एंपायर ने जर्मनी और ऑस्ट्रिया-हंगरी जैसी ताकतों के साथ गठबंधन किया. 

इसी दौरान  ब्रिटेन और फ्रांस ने मिडिल ईस्ट के क्षेत्रों को आपस में बांटने की योजना बनाई, जिसके तहत ब्रिटेन ने इजरायल की बात शुरू कर दी. इराक पर भी हमला कर  ब्रिटेन ने बगदाद पर कब्जा कर लिया. लड़ाई के बाद ऑटोमन एंपायर खत्म हुआ और नए देश बने, जैसे सीरिया और लेबनान.

दूसरे विश्व युद्ध के दौरान तेल को लेकर बड़ी ताकतें इन इलाकों पर हमले और कब्जे करती रहीं. युद्ध खत्म होने के बाद भी कोल्ड वॉर के दौरान इस क्षेत्र का महत्व कम नहीं हुआ, बल्कि बढ़ा ही. बाजार बढ़ चुका था और साथ ही भू-राजनैतिक होड़ भी. कुछ देश अमेरिका के करीबी हो चुके थे, जबकि कुछ पर रूस का असर था. अब भी वहां मची हुई उठापटक में कहीं न कहीं ये दोनों देश भी अपने हित साध रहे हैं. 

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