
साल 1928 में सबसे पहले क्रिमिनल माइंड शब्द लिखा गया. जर्नल ऑफ एबनॉर्मल एंड सोशल साइकोलॉजी में इसका जिक्र करते हुए लिखा गया कि क्रिमिनल माइंड लोग सबसे खतरनाक होते हैं. ये एक या दो इंसानों नहीं, पूरी की पूरी इंसानियत के लिए खतरा होते हैं. इस टर्म को आए लगभग 100 साल हो चुके, लेकिन अब भी ये बात न्यूरोसाइंटिस्ट्स से लेकर मनोवैज्ञानिकों के लिए चुनौती बनी हुई है. तमाम तरक्की के बाद भी साइंस इसपर उलझा हुआ है कि क्या आदतन हत्यारों को पहले से समझा जा सकता है.
एक्सपर्ट्स के मुताबिक, एकाध लक्षण को देखकर ये कतई पता नहीं लगता कि कौन आगे चलकर खूंखार हत्यारा बन सकता है. कई बार इंसान स्पर ऑफ द मुमेंट, मतलब क्षणिक आवेग में आकर कुछ गलत कर जाता है. बाद में उसे छिपाने की कोशिश में और गलत करता जाता है. ये कोल्ड ब्लडेड मर्डर नहीं. ऐसे लोगों को पहचानने के लिए दिमाग के स्कैन के साथ साइकोलॉजिकल थ्योरीज को भी खंगाला गया.
नब्बे की शुरुआत में न्यूरोक्रिमिनोलॉजिस्ट एड्रियन रायन अमेरिकी जेलों में कोल्ड-ब्लडेड मर्डर करने वालों पर स्टडी करने पहुंचे. शुरुआत कैलिफोर्निया से हुई. ये राज्य इस तरह की हत्याओं के लिए बदनाम था. 40 से ज्यादा कैदियों की पीईटी (पोजिट्रॉन इमिशन टोमोग्राफी) हुई, ताकि दिमाग के भीतर बायोकेमिकल फंक्शन को समझा जा सके.
स्कैन में दिखा कि हत्यारों के ब्रेन के कई हिस्से सिकुड़े हुए हैं. खासकर प्री-फ्रंटल कॉर्टेक्स. बता दें कि ये मस्तिष्क का वो भाग है, जो सेल्फ-कंट्रोल सिखाता है. कातिल दिमाग रखने वालों में यही प्री-फ्रंटल काफी छोटा दिख रहा था.
स्टडी सामने आने पर लोगों ने वैज्ञानिक की तारीफ करने की बजाए उसे पागल कहना शुरू कर दिया. काफी बाद में द अनाटॉमी ऑफ वायलेंस नाम से किताब आई, जिसमें डॉक्टर रायन ने क्रिमिनल्स के दिमाग पर अपने 35 साल के तजुर्बे को लिखा था.
ये अब तक साफ नहीं हो सका कि ब्रेन के प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स में ये सिकुड़न आती क्यों है. वैज्ञानिकों के मुताबिक इसकी कई वजहें हो सकती हैं, जो जेनेटिक भी हैं, और कई बार सिर पर गहरी चोट लगना भी कारण बनता है. बचपन में एब्यूज झेलने वालों के साथ भी ये हो सकता है. अक्सर देखा गया है कि मुश्किलों वाली जिंदगी जी चुके, खासकर रिश्तों में उलझन देख चुके लोग अलग दिमाग रखते हैं. हालांकि वैज्ञानिक ये भी मानते हैं कि जरूरी नहीं कि सिकड़े हुए कॉर्टेक्स वाले लोग क्रिमिनल ही हों.
कुछ साइकोलॉजिकल लक्षण भी हैं, जो ऐसे लोगों को अलग बनाते हैं. जैसे ये लोग आमतौर पर बुरी तरह से सेल्फ-ऑब्सेस्ड होते हैं. वे अपने अलावा किसी की चिंता नहीं करते. ऐसे लोगों आहत होने पर बाकायदा पूरी प्लानिंग के साथ कत्ल कर सकते हैं. इनमें गिल्ट भी नहीं होता. अमूनन किसी जुर्म के बाद अपराधी भी सहम जाते हैं, लेकिन कोल्ड ब्लडेड मर्डरर बड़ी शांति से अपराध कुबूल करता है.
आफताब के मामले में भी दिखा था कि श्रद्धा के कत्ल के बाद कस्टडी में कथित तौर पर उसने आराम से अपने जुर्म पर बात की थी. तस्वीरों में भी उसके चेहरे पर कोई पछतावा या डर नहीं था.
हत्या करते हुए दिमाग में क्या चलता है?
जब कोई गुस्से में आकर एकदम से ऐसा जुर्म करता है, तब उस मिनट उसे कोई डर नहीं होता. इसकी बजाए वो खुद को ताकतवर और कंट्रोल में महसूस करता है. उसके ब्रेन में हैप्पीनेस हार्मोन्स डोपामिन और एड्रेनेलिन बढ़ जाते हैं. ये उसे हत्या करने के लिए उकसाते हैं. लेकिन ये उफान थोड़ी ही देर में उतर जाता है. फिर इसकी जगह डर और शर्म ले लेते हैं.
कुकर में उबालना या छोटे टुकड़ों में काटना क्यों?
मनोवैज्ञानिक इसे डिसमेंबरमेंट कहते हैं. इसमें अपराधी लाश के साथ कुछ ऐसा करता है, जो सामान्य इंसान सोच भी नहीं सकता. वो मुर्दा शरीर को काटता, उबालता या कुत्तों को खिलाने तक पर उतर आता है. इसकी भी 2 वजहें हो सकती हैं. एक होता है- ऑफेंसिव डिसमेंबरमेंट. ये कोल्ड ब्लडेड कातिल ही करते हैं. इस दौरान उनका अकेला मकसद मरे हुए को भी ज्यादा से ज्यादा तकलीफ देना होता है. इसमें उन्हें किसी एडवेंचर स्पोर्ट जैसा मजा आता है.
दूसरी श्रेणी में डिफेंसिव डिसमेंबरमेंट आता है. ये गलती को छिपाने की कोशिश है, जो डरे हुए लोग करते हैं. इसमें अपराधी गुस्से में आकर गलत कर तो जाता है, लेकिन फिर डर से सबूत खत्म करने में जुट जाता है.
एक खास जीन भी है, जिसका मिसिंग होना किसी भी आदमी को हत्यारा बना सकता है. इसे MAOA (मोनोअमीन ऑक्सीडेज ए) कहते हैं. ये न्यूरोट्रांसमीटर मॉलीक्यूल्स जैसे सेरेटोनिन और डोपामिन पर कंट्रोल रखता है. इनका सीधा ताल्लुक मूड, भावनाओं, नींद और भूख से है. अगर ये गड़बड़ाए तो इंसान के गड़बड़ाते देर नहीं लगती. ऐसे में अगर इनपर काबू करने वाला जीन ही गायब हो जाए या कम पड़ जाए तो नतीजा खतरनाक हो सकता है. यही वजह है कि MAOA को वॉरियर जीन या सीरियल किलर जीन भी कहा गया.
इस मिसिंग जीन का खतरा भी पुरुषों को ज्यादा होता है, जबकि महिलाएं इसके लिए कैरियर का काम करती हैं, यानी एक से दूसरी पीढ़ी तक ले जाने का. ज्यादातर मामलों में इस जीन की कमी परिवार के प्यार, अच्छे खानपान के बीच पता नहीं लग पाती. जिन घरों में माता-पिता एब्यूसिव रिश्ते में हों, जहां मारपीट या गाली गलौज हो, उन घरों के बच्चों में अगर ये जीन कम है, तो गुस्सा कंट्रोल से बाहर हो जाता है. यही बच्चे बड़े होते-होते क्रिमिनल बिहैवियर दिखाने लगते हैं, और आगे चलकर हत्या भी कर सकते हैं.