
रविवार की शाम को मुंबई से सटे मीरा रोड में हुए विवाद के बाद भारी फोर्स की तैनाती हो चुकी है. वहां बनी अवैध दुकानों पर बुलडोजर एक्शन की खबरें भी आ रही हैं. ये सारा फसाद रविवार शाम को शुरू हुआ, जब वहां से रामभक्तों का एक जुलूस गुजर रहा था. जुलूस पर पथराव के बाद दो गुटों में मारपीट होने लगी. ये तनाव मंगलवार तक खिंचता गया, जिसके बाद से प्रशासन अलर्ट मोड पर है. इस सबके बीच मीरा रोड ट्रेंड कर रहा है.
पुर्तगालियों ने किया लंबे समय तक राज
एक समय पर यहां की जमीन दलदली थी और दूर-दूर तक कोई बसाहट नहीं थी. ये 19वीं सदी की बात है. तब देश के बाकी हिस्सों पर तो ब्रिटिश हुकूमत थी, लेकिन मीरा भयंदर और वसई इलाकों पर अब भी पुर्तगालियों का राज था.
सस्ते में लीज पर दे दी गई
19वीं सदी के आखिर-आखिर में अंग्रेजों ने ये जमीन मुंबई के एक शख्स रामचंद्र लक्ष्मणजी को लीज पर दे दी. कुल 999 सालों की इस लीज की शर्त थी कि रामचंद्र को हर साल 6790 रुपए सरकार को देने होंगे.मीरा रोड ही नहीं, इसमें घोडबंदर और भायंदर को मिलाकर साढ़े 3 हजार एकड़ जमीन शामिल थी. व्यापारी का काम जमीन की देखभाल था. इस बेहद सस्ती डील का जिक्र मीरा भायंदर म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन की वेबसाइट पर भी है.
खेतीबाड़ी होने लगी
देश की आजादी के समय मीरा-भायंदर एक ग्राम पंचायत का हिस्सा था. साल 1985 में पांच ग्राम पंचायतों को मिलाकर मीरा-भायंदर म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन बना दिया गया. बाद में इसमें 4 और पंचायतें जुड़ीं, जिससे ये इलाका काफी लंबा-चौड़ा हो गया. दलदली जमीन अब खेती लायक हो चुकी थी. यहां खेत तो थे, लेकिन बसाहट अब भी कम थी. चावल की खेती के लिए जमीनें खरीदी जा रही थीं.
अस्सी के दशक में मुंबई के विस्तार के साथ बिल्डरों ने इस जमीन में भी दिलचस्पी दिखानी शुरू की. मुंबई के हो-हल्ले से थके हुए लोग यहां जमीनें लेकर रहना चाहते थे. इसके बाद भी प्रॉपर्टी में बूम तब आया, जब यहां बिजली-पानी जैसी सारी सुविधाएं आ गईं.
रहने के लिहाज से कैसी जगह है ये
मीरा रोड में वो तमाम खूबियां हैं, जो मुंबई में हैं, साथ ही यहां जगह ज्यादा खुली हुई है. यही वजह है कि यहां ग्लैमर वर्ल्ड से जुड़े लोग भी रहने लगे. यहां तक कि सेट बनाकर फिल्मों, सीरियलों की शूटिंग भी होती रहती है. इसका पश्चिमी हिस्सा ज्यादातर खाली पड़ा है. समुद्र से सटे इलाके में मैंग्रोव उगे हुए हैं. ये वो पेड़ हैं जो नमकीन पानी की वजह से जमीन का कटाव रोकते हैं. बीच में कई बार इनमें भी अतिक्रमण की कोशिश हुई, लेकिन नगर निगम इसे लेकर काफी सख्त रहा. इसकी वजह भी है. अगर यहां से मैंग्रोव हट जाएंगे तो मुंबई के घर और बसाहट खतरे में आ जाएगी.
धार्मिक आबादी कैसी है
मीरा रोड की लगभग 69 प्रतिशत आबादी हिंदू है. इस्लाम दूसरा सबसे बड़ा धर्म है, जिसके मानने वाले करीब 17 प्रतिशत हैं. ये डेटा साल 2011 की जनगणना का है, जिनमें अब तक काफी फर्क आ चुका होगा. अब बात करते हैं मीरा रोड के नया नगर की. ये वही इलाका है, जहां हिंसक झड़प हुई.
इसके बारे में पहले ही चेतावनी आ चुकी थी. दिसंबर में नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (NIA) और एंटी टेररिज्म स्क्वाड (ATS) ने इस इलाके में छापेमारी कर कुछ संदिग्धों को पकड़ा था. वहीं पूरे महाराष्ट्र से 40 से ज्यादा संदिग्ध गिरफ्तार हुए थे. अंदेशा है कि उनके संबंध चरमपंथी गुटों से हो सकते हैं.
इस्लामिक स्टेट के असर की भी बात
साल 2001 में घाटकोपर बम ब्लास्ट के बाद भी ये इलाका चर्चा में आया था. तब स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया से इसके कनेक्शन की बात हुई थी. दरअसल मामले के आरोपी कुर्ला में सिमी से जुड़े हुए थे. वहां इनका ठिकाना खत्म किया गया तो वहां से लोग नया नगर की तरफ आ गए. इसके बाद से मीरा रोड रडार पर है. इस समेत मुंबई के कई क्षेत्रों के बारे में कानाफूसी होती है कि वहां चरमपंथी गतिविधियां बढ़ रही हैं, जो आने वाले समय में खतरनाक रूप ले सकती हैं.
कई मामले लगातार दिख रहे
श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा के दौरान मुंबई में दो ही दिनों के भीतर एक के बाद एक माहौल खराब करने वाली कई झड़पें हुईं. 21 जनवरी यानी रामलला के विराजने से ठीक एक शाम पहले मीरा रोड में फसाद हुई. अगले ही दिन पनवेल में ध्वज यात्रा पर पत्थरबाजी की घटना हुई. इसकी भी वीडियो वायरल है. 23 जनवरी को भी मिलती-जुलती घटनाएं हुईं. इस बीच मुंबई पुलिस ने कम्युनल वायलेंस को लेकर 9 मामले दर्ज किए. शांति बनाए रखने के लिए फिलहाल 6 फरवरी तक जुलूस निकालने पर रोक लगा दी गई है.