
जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटने के चार साल बाद सरकार एक और बड़ा कदम उठाने जा रही है. मोदी सरकार संसद में एक नया बिल लाने जा रही है, जिसके बाद जम्मू-कश्मीर में तीन विधानसभा सीटें आरक्षित हो जाएंगी.
दरअसल, केंद्र सरकार मौजूदा संसद सत्र में जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) बिल 2023 लाने जा रही है. बिल में प्रावधान किया गया है कि विधानसभा की एक सीट विस्थापित नागरिक और दो सीट कश्मीरी पंडितों के लिए आरक्षित होंगी.
विस्थापित नागरिक पीओके से आए जम्मू-कश्मीर नागरिकों को माना जाएगा. यानी, 1947 के समय जम्मू-कश्मीर के नागरिक थे, लेकिन पाकिस्तान के कश्मीर पर अवैध कब्जे के बाद वहां से लौटकर यहां आ बसे.
इसी तरह जो दो सीटें कश्मीरी पंडितों के लिए रिजर्व होंगी, उनमें से एक सीट महिला के लिए आरक्षित होगी. जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल की ओर से इन तीनों सीटों पर प्रतिनिधि मनोनीत किए जाएंगे.
ऐसा क्यों?
- 5 अगस्त 2019 को केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर को खास दर्जा देने वाले आर्टिकल 370 को खत्म कर दिया था. साथ ही जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश बना दिया था.
- चूंकि, जम्मू-कश्मीर में विधानसभा भी है, इसलिए यहां चुनाव के लिए सुप्रीम कोर्ट की रिटायर्ड जज रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में परिसीमन आयोग का गठन किया था.
- आयोग ने 2011 की जनगणना के आधार पर परिसीमन पर किया. 2011 की जनगणना के मुताबिक, जम्मू की आबादी 53.72 लाख और कश्मीर की 68.83 लाख थी.
- इस आयोग ने पिछले साल अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंप दी थी. इस रिपोर्ट में आयोग ने दो सीटें कश्मीरी पंडितों के लिए रिजर्व रखने की सिफारिश की थी. साथ ही पाक अधिकृत कश्मीर से विस्थापित लोगों के लिए भी सीट आरक्षित की जाए.
इससे होगा क्या?
- जम्मू-कश्मीर में वही फॉर्मूला अपनाया जा सकता है, जो पुडुचेरी में है. पुडुचेरी भी विधानसभा वाला केंद्र शासित प्रदेश है. यहां 30 विधानसभा सीटें हैं. जबकि तीन सदस्यों को केंद्र सरकार में मनोनीत करती है.
- जम्मू-कश्मीर में भी ऐसा ही होगा. बिल में प्रावधान है कि दो कश्मीरी पंडितों (इनमें एक महिला) और एक पीओके से विस्थापित सदस्य को उपराज्यपाल मनोनीत करेंगे.
अब कितनी विधानसभा सीटें होंगी?
- जम्मू-कश्मीर में 5 अगस्त 2019 से पहले 111 विधानसभा सीटें होती थीं. इनमें से 24 सीटें पीओके में थीं. वहां चुनाव नहीं कराए जा सकते. इस तरह कुल 87 सीटें होती थीं, लेकिन लद्दाख के अलग होने के बाद 83 सीटें ही बची थीं.
- परिसीमन आयोग ने जम्मू में 6 तो कश्मीर में एक विधानसभा सीट बढ़ाने की सिफारिश की है. सिफारिशें मानी गईं तो जम्मू में कुल 43 और कश्मीर में 47 सीटें हो जाएंगी. यानी, कुल 90 विधानसभा सीटें.
- कश्मीरी पंडितों की दो और पीओके से विस्थापित एक सदस्य की सीट इन 90 सीटों से अलग होगी. इस हिसाब से जम्मू-कश्मीर में 93 सीटें हो जाएंगी.
लोकसभा सीटें भी बदलेंगी?
- जम्मू-कश्मीर में कुल 5 लोकसभा सीटें हैं. अब तक 2 सीटें जम्मू और 3 सीटें कश्मीर में थीं. अब भी 5 ही सीटें रहेंगी, लेकिन एक सीट में जम्मू और कश्मीर दोनों के इलाके शामिल करने की सिफारिश की गई है.
- जम्मू में जम्मू और उधमपुर जबकि कश्मीर में बारामूला और श्रीनगर लोकसभा सीट होगी. एक अनंतनाग-राजौरी सीट भी होगी, जिसमें जम्मू और कश्मीर दोनों रीजन के इलाकों को शामिल किया गया है.
सियासी गणित कैसे बदलेगा?
- विधानसभा मेंः जम्मू में 6 और कश्मीर में एक सीट बढ़ाई गई है. जम्मू हिंदू बहुल तो कश्मीर मुस्लिम बहुल इलाका है. जम्मू में 6 सीटें बढ़ने से बीजेपी को फायदा मिलने की उम्मीद है. 2014 के चुनाव में बीजेपी ने यहां 25 सीटें (37 में से) जीती थीं. इसके अलावा, अब तक के चुनावों में देखा गया है कि कश्मीर घाटी में बेहतर प्रदर्शन करके भी सरकार बन जाती थी, लेकिन अब जम्मू में भी ज्यादा सीटें जीतना जरूरी हो गया है.
- लोकसभा मेंः अनंतनाग-राजौरी में जम्मू और कश्मीर के जिलों को शामिल करने से गुजर-बक्करवाल वोटों का गणित है. पुंछ और राजौरी पीर पंजाल के दक्षिण में पड़ते हैं जो जम्मू का हिस्सा है. यहां गुजर-बक्करवाल की आबादी ज्यादा है. इन्हें अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया है. पुंछ और राजौरी की अनुमानित 11.19 लाख आबादी में 5 लाख गुजर-बक्करवाल हैं. इनके आने से मुस्लिम बहुल अनंतनाग सीट में करीब 20 फीसदी आबादी गुजर और बक्करवाल की हो जाएगी.
चुनाव कब होंगे?
- जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव को लेकर अब तक कुछ साफ नहीं हो पाया है. पहले माना जा रहा था कि आयोग की सिफारिशें मंजूर होने के 6 से 8 महीनों के भीतर चुनाव हो सकते हैं.
- जम्मू-कश्मीर में आखिरी बार 2014 में विधानसभा चुनाव हुए थे. तब पीडीपी (28) और बीजेपी (25) ने मिलकर सरकार बनाई थी. हालांकि, ये गठबंधन ज्यादा नहीं चला और जून 2018 में बीजेपी ने अपना समर्थन वापस ले लिया.
- बीजेपी के समर्थन वापस लेते ही सरकार गिर गई और बाद में विधानसभा को भंग कर राज्यपाल शासन लागू कर दिया गया. अगस्त 2019 में इसे केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया, जिसके बाद से यहां उपराज्यपाल शासन चला रहे हैं.