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चीन का डर या मजबूरी... आखिर मुइज्जू के एंटी-इंडिया रुख की वजह क्या है?

मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू ने एक बार फिर भारतीय सैनिकों की वापसी का जिक्र किया है. उन्होंने संसद में अपने पहले भाषण में कहा कि हम किसी बाहरी दबाव के आगे नहीं झुकेंगे. उन्होंने कहा कि हम ऐसा कोई भी समझौता नहीं करेंगे, जिससे देश की संप्रभुता को खतरा हो.

मोहम्मद मुइज्जू और शी जिनपिंग. मोहम्मद मुइज्जू और शी जिनपिंग.
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 05 फरवरी 2024,
  • अपडेटेड 9:07 PM IST

राष्ट्रपति बनने के बाद मोहम्मद मुइज्जू ने सोमवार को पहली बार मालदीव की संसद को संबोधित किया. मुइज्जू ने कहा कि वो किसी ऐसे बाहरी दबाव के आगे नहीं झुकेंगे, जो मालदीव की आजादी और संप्रभुता को खतरे में डाले.

मुइज्जू ने अपने पहले भाषण में भारत का जिक्र भी किया. मुइज्जू ने बताया कि मालदीव से भारतीय सैनिकों की वापसी को लेकर बातचीत जारी है. उन्होंने बताया कि तीन में से एक एविएशन प्लेटफॉर्म से भारतीय सैनिक 10 मार्च 2024 तक चले जाएंगे. बाकी दो प्लेटफॉर्म के सैनिकों को 10 मई 2024 तक वापस बुला लिया जाएगा.

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संसद में जब मुइज्जू भाषण दे रहे थे, तब विपक्ष की मौजूदगी कम ही थी. भारत विरोधी रुख के कारण मालदीव की दो बड़ी विपक्षी पार्टियां- मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी और डेमोक्रेट्स ने मुइज्जू के भाषण का बहिष्कार करने का फैसला लिया था.

मुइज्जू ने ये भी कहा कि बड़ी आबादी ने हमें इसलिए वोट दिया था कि हम देश से विदेशी सैनिकों को हटाएंगे. उन्होंने कहा कि हम कोई भी ऐसा समझौता नहीं करेंगे, जिससे देश की संप्रभुता को खतरा हो. 

मुइज्जू ने अपना चुनाव 'इंडिया आउट' कैंपेन पर लड़ा था. पिछले साल हुए राष्ट्रपति चुनाव में उन्हें 53% वोट मिले थे. 

सैनिकों की वापसी पर क्यों अड़े हैं मुइज्जू?

राष्ट्रपति पद की शपथ लेने से पहले ही मुइज्जू ने कह दिया था कि जिस दिन वो पद संभालेंगे, उसी दिन से मालदीव से भारतीय सैनिकों को हटाना शुरू कर देंगे.

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चुनाव जीतने के बाद पहली रैली में मुइज्जू ने कहा था, 'मालदीव की संप्रभुता और स्वतंत्रता सबसे ज्यादा मायने रखती है. लोग नहीं चाहते कि भारतीय सैनिक मालदीव में रहें. वो हमारी भावनाओं और इच्छा के खिलाफ यहां नहीं रह सकते.'

मुइज्जू यहीं तक नहीं रुके. लक्षद्वीप को लेकर जब मालदीव और भारत के बीच तनाव चल रहा था, तभी मुइज्जू पांच दिन के लिए चीन की यात्रा पर गए. चीन से लौटने के बाद भारत को लेकर उनका रवैया और आक्रामक हो गया था. उन्होंने भारतीय सैनिकों की वापसी के लिए 15 मार्च की डेडलाइन दे दी थी.

इस समय मालदीव में 88 भारतीय सैनिक हैं. ये सैनिक मालदीव में दो हेलिकॉप्टर और एक एयरक्राफ्ट की देखरेख से लेकर ऑपरेट करने तक का काम संभालते हैं. ये दोनों ही हेलिकॉप्टर और एयरक्राफ्ट भारत ने ही मालदीव को दिए थे. 

इतने कम सैनिकों की मौजूदगी के बावजूद मुइज्जू इसे मालदीव की संप्रभुता के लिए खतरा मानते हैं.

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पर इसकी वजह क्या है?

मुइज्जू को असल में चीन समर्थक माना जाता है. हालांकि, वो खुद को किसी का समर्थक नहीं मानते. 'चीन समर्थक' सवाल पर मुइज्जू ने कहा था, 'मेरी सबसे पहली प्राथमिकता मालदीव और उसकी स्थिति है. हम मालदीव समर्थक हैं. कोई भी देश जो हमारी प्रो-मालदीव नीति का सम्मान करता है और उसका पालन करता है, वो मालदीव का करीबी दोस्त माना जा सकता है.'

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इसे ऐसे समझिए कि मालदीव की नया राष्ट्रपति पहला विदेशी दौरा भारत का करता था. लेकिन मुइज्जू ने ऐसा नहीं किया. राष्ट्रपति बनने के बाद मुइज्जू पहले तुर्की गए, फिर यूएई और बाद में चीन का दौरा किया. 

चीन से लौटने के बाद तो वो भारत के प्रति और आक्रामक हो गए. चीन से लौटते ही मुइज्जू ने कहा, 'भले ही हम छोटे देश हैं, लेकिन इससे किसी को हमें धमकाने का लाइसेंस नहीं मिल जाता.' मुइज्जू ने ये भी कहा था, 'हम किसी के बैकयार्ड में मौजूद देश नहीं हैं, हम एक स्वतंत्र और संप्रभु देश हैं.'

मुइज्जू का ये बयान ऐसे समय आया था, जब भारत और मालदीव के बीच तनाव चरम पर था. उन्होंने अपने बयान में भारत का नाम तो नहीं लिया, लेकिन इसे भारत की ओर इशारा ही समझा गया. 

जानकार मानते हैं कि चीन के साथ की वजह से ही मुइज्जू इतने ज्यादा आक्रामक हो रहे हैं. उनकी यात्रा के दौरान चीन और मालदीव के बीच 20 समझौते भी हुए थे. इसमें चीन ने मालदीव को हर मदद देने का वादा भी किया था.

मुइज्जू के रवैये के पीछे चीन!

मालदीव में पांच साल बाद चीन समर्थक सरकार आई है. इससे पहले 2018 से 2023 तक इब्राहिम सोलिह राष्ट्रपति थे, तब मालदीव और भारत की करीबियां बढ़ीं. उनसे पहले 2013 से 2018 तक अब्दुल्लाह यामीन की सरकार थी, तब चीन से मालदीव की दोस्ती बढ़ी. यामीन की सरकार में ही मालदीव बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) का हिस्सा बना.

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अब मुइज्जू के सत्ता में आने के बाद एक बार फिर मालदीव की करीबी चीन से बढ़ने लगी है. मालदीव पर पहले ही चीन का 1.37 अरब डॉलर का कर्ज है. वर्ल्ड बैंक के मुताबिक, मालदीव के कुल कर्ज का 20 फीसदी हिस्सा चीन का है. 

हाल ही में जब मुइज्जू चीन के दौरे पर गए थे, तो चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने उनसे लोन को रीस्ट्रक्चर करने का वादा किया है. इसके अलावा चीन ने मालदीव को 13 करोड़ डॉलर की आर्थिक मदद देने का भी वादा किया है. 

इतना ही नहीं, मालदीव की एयरलाइन मालदीवियन चीन में घरेलू उड़ान भी शुरू कर सकेगी. हुलहुमाले में पर्यटन क्षेत्र को विकसित करने के लिए चीन 5 करोड़ डॉलर देगा. 

अभी मालदीव अपनी कई सारी जरूरतों के लिए भारत पर निर्भर है. लेकिन मुइज्जू इस निर्भरता को कम करना चाहते हैं. यही वजह है कि चीन से लौटते ही मुइज्जू ने ऐलान किया कि अब मालदीव के मरीजों को यूएई और मलेशिया भी भेजा जाएगा. जबकि, अब तक मालदीव के ज्यादातर मरीज भारत ही आते थे. 

इसके अलावा, मालदीव की अर्थव्यवस्था महज 5 अरब डॉलर की है. उसे अपनी अर्थव्यवस्था मजबूत करने के लिए बुनियादी ढांचे को मजबूत करना है और चीन इसमें मदद कर रहा है. 

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चीन के जाल में फंस रहा है मालदीव?

मालदीव हिंद महासागर में है. इस वजह से वो भारत और चीन, दोनों के लिए ही इसकी स्ट्रैटजिक अहमियत है. मालदीव में 1200 से ज्यादा छोटे-बड़े द्वीप हैं, जो हिंद महासागर में दक्षिण से पश्चिम तक फैले हुए हैं. बताया जाता है कि इनमें से 16 द्वीप को चीन लीज पर ले चुका है.

सेंटर फॉर लैंड वारफेयर स्टडीज के मुताबिक, चीन और मालदीव के बीच 1972 से राजनयिक संबंध हैं और तब से ही चीन उसकी मदद करता आ रहा है. लेकिन दिलचस्प बात ये है कि 1982 से 2002 के बीच दोनों के बीच कोई खास कारोबार नहीं होता था. 2002 में दोनों के बीच 29 लाख डॉलर का कारोबार हुआ था, 2010 में बढ़कर 6.4 करोड़ डॉलर हो गया. 2019 में दोनों के बीच 47 करोड़ डॉलर का कारोबार हुआ था.

2013 में शी जिनपिंग के राष्ट्रपति बनने के बाद चीन का इंट्रेस्ट मालदीव में ज्यादा बढ़ा है. मालदीव के आसपास का हिंद महासागर का क्षेत्र जिनपिंग के फोकस में रहा है. 2013 के बाद से बीआरआई के सदस्य देशों में चीन भारी भरकम निवेश कर रहा है. इसमें मालदीव भी शामिल है. 

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2018 में जब अब्दुल्लाह यामीन की सरकार में विपक्षी नेताओं को जेल में डाला जा रहा था, तब भारत ने इस पर आपत्ति जताई. उस वक्त चीन ने चेतावनी देते हुए कहा कि भारत को मालदीव की घरेलू राजनीति में दखल नहीं देना चाहिए.

अब्दुल्लाह यामीन अपनी सरकार में चीन के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (एफटीए) करना चाहते थे, लेकिन बात नहीं बन सकी. बाद में इब्राहिम सोलिह सत्ता में आ गए, जो भारत के ज्यादा करीब थे. लेकिन अब मुइज्जू की सरकार में मालदीव एक बार फिर चीन के साथ एफटीए को लेकर बात शुरू करना चाहता है. हालांकि, माना जा रहा है कि अगर ऐसा होता है तो मालदीव चीन के कर्ज के जाल में फंस सकता है. और जैसा पाकिस्तान और श्रीलंका की अर्थव्यवस्था के साथ हुआ, वैसा ही मालदीव के साथ भी होने का खतरा है.

इसलिए खास है मालदीव

मालदीव को अगर कुछ चीज खास बनाती है, तो वो है हिंद महासागर में बसा होना. मालदीव के छोटे-बड़े द्वीप उस शिपिंग लेन के बगल में है, जहां से चीन, जापान और भारत को एनर्जी सप्लाई होती है.

मालदीव हिंद महासागर में 90 हजार वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. हालांकि, इसका 300 वर्ग किलोमीटर से भी कम इलाका जमीनी है. इसके 1200 से ज्यादा छोटे-छोटे द्वीप समंदर में फैले हुए हैं. मालदीव और भारत के बीच लगभग दो हजार किलोमीटर की दूरी है. भारत ही है जो मालदीव का सबसे करीबी पड़ोसी है.

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लगभग डेढ़ दशक पहले चीन ने हिंद महासागर में नौसैनिक जहाज भेजने शुरू कर दिए थे. इसके बाद ग्लोबल जियोपॉलिटिक्स में मालदीव और भी अहम हो गया. यामीन की सरकार में मालदीव चीन के काफी करीब पहुंच गया था. यामीन की सरकार में मालदीव की आर्थिक स्थिति भी काफी बिगड़ गई थी. मानवाधिकारों के हनन के आरोपों के कारण भारत और पश्चिमी देशों ने मालदीव को कर्ज देने से इनकार कर दिया. आखिरकार चीन ने उसकी मदद की. 

चीन फंसाएगा, भारत बचाएगा!

यामीन की सरकार में चीन से भारी भरकम कर्ज लिया. एक वक्त तो ऐसा आया कि ये तक कहा जाने लगा कि जैसा राजपक्षे ने श्रीलंका के साथ किया था, वैसा ही यामीन ने मालदीव के साथ किया. 2018 के आखिर तक मालदीव के कुल बाहरी कर्ज में 70 फीसदी से ज्यादा अकेले चीन का था. आज के समय में भी मालदीव पर सबसे ज्यादा कर्ज चीन का ही है. 

जानकार मानते हैं कि मुइज्जू भले ही चीन से नजदीकियां बढ़ाएं, लेकिन उसकी काफी सारी जरूरत भारत पर ही टिकी हैं. मालदीव का बुनियादी ढांचा विकसित करने में भी भारत ने काफी मदद की है. भारत ने वहां अस्पताल से लेकर क्रिकेट स्टेडियम, ब्रिज, रोड, मस्जिद और कॉलेज तक बनाया है. 

बजट दस्तावेजों के मुताबिक, 2019-20 से 2023-24 के बीच पांच साल में भारत ने मालदीव को 1 हजार 669 करोड़ रुपये की मदद दी है. अब अगले सालभर में 600 करोड़ रुपये की मदद और देगा. 

मालदीव की अर्थव्यवस्था पर्यटन पर टिकी है. बड़ी संख्या में भारतीय मालदीव घूमने जाते हैं. इतना ही नहीं, मालदीव और भारत के बीच सालाना 50 करोड़ रुपये से ज्यादा का कारोबार भी होता है.

वहीं, मालदीव के दो बड़े प्रोजेक्ट- माले में वेलाना इंटरनेशनल एयरपोर्ट का विस्तार और शिनामाले ब्रिज के निर्माण में चीन मदद कर रहा है. चीन के इंपोर्ट-एक्सपोर्ट बैंक से फंडिंग मिल रही है. इतना ही नहीं, मालदीव ने चीन को अपने यहां और निवेश करने का मौका भी दिया है, जिससे उसके 'डेट ट्रैप' में फंसने का खतरा है.

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