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दुनियाभर में 7 करोड़ से ज्यादा लोग एक साल के भीतर हुए बेघर, कौन हैं ये लोग, जिनकी हालत रिफ्यूजियों से भी बदतर

युद्ध या किसी डर की वजह से देश छोड़ने वाले लोगों पर तो बात होती रही, लेकिन अब इस श्रेणी में वे लोग भी शामिल हो चुके, जो अपने ही घर में बेघर हो चुके हैं. नॉर्वेजियन रिफ्यूजी काउंसिल और इंटरनल डिसप्लेसमेंट मॉनिटरिंग सेंटर की रिपोर्ट दुनिया में बदलते भयावह हालात को दिखाती है. इसके मुताबिक, केवल साल 2022 में ही 7 करोड़ से ज्यादा लोग अपने देश में विस्थापित हुए.

अंदरुनी और देश के बाहर विस्थापन लगातार बढ़ रहा है. सांकेतिक फोटो (Unsplash) अंदरुनी और देश के बाहर विस्थापन लगातार बढ़ रहा है. सांकेतिक फोटो (Unsplash)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 12 मई 2023,
  • अपडेटेड 2:48 PM IST

अपना देश, अपने लोगों को छोड़कर जाना आसान नहीं होता, खासकर जब ये कदम मजबूरी में उठाना पड़े. लेकिन उन लोगों की स्थिति और खराब होती है, जो अपने मुल्क में रहते हुए भी विस्थापन का दर्द झेल रहे हैं. ये लोग इंटरनली डिसप्लेस्ड पीपल (IDP) कहलाते हैं. ऐसे लोगों पर शोध कर रही संस्थाओं ने माना कि बीते साल ये संख्या सबसे ज्यादा रही. 

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यूनाइटेड नेशन्स ह्यूमन राइट्स ऑफिस ऑफ द हाई कमिश्नर में अपने घर में विस्थापन झेल रहे लोगों के बारे में चेताते हुए कहा गया कि ये वो कैटेगरी है, जिसे पहचानना आसान नहीं. ऐसे में उन्हें कोई सुविधा भी नहीं मिल पाती. यही कारण है कि शरणार्थियों की तुलना में ये लोग ज्यादा तकलीफ झेलते हैं. 

क्या वजह है विस्थापन की

जिन वजहों से शरणार्थी एक से दूसरे देश विस्थापित होते हैं, डिसप्लेस्ड लोगों के भी बिल्कुल वही हालात होते हैं. साल 1951 कन्वेंशन ऑन द स्टेटस ऑफ रिफ्यूजी में माना गया कि युद्ध, कुदरती आपदा, जैसे बाढ़, तूफान या भूकंप, राजनैतिक भूचाल जैसे हालातों में जब लोग अपने देश में जान का खतरा महसूस करते हैं तो वे दो फैसले ले सकते हैं. या तो वे देश छोड़कर दूसरे देश चले जाते हैं, या फिर अपना घर छोड़कर एक से दूसरे राज्य जाते हैं.

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बॉर्डर क्रॉस करने वाले रिफ्यूजी होते हैं, जबकि किसी भी वजह से सीमा पार न कर पाए लोग देश में ही विस्थापित की श्रेणी में आ जाते हैं, जिन्हें इंटरनली डिसप्लेस्ड पर्सन कहते हैं. रिफ्यूजियों से अलग, इंटरनेशनल लॉ में इन सताए हुए लोगों के लिए खास कानून या प्रिविलेज नहीं है. 

बहुत से लोग अपने मुल्क में रहते हुए भी विस्थापन का दर्द झेल रहे हैं. सांकेतिक फोटो (Getty Images)

क्या कहती है हालिया रिपोर्ट

नॉर्वेजियन रिफ्यूजी काउंसिल के अनुसार, साल 2022 में 7 करोड़ से ज्यादा लोग IDP की श्रेणी में आए, यानी अपने ही घर में बेघर हो गए. गुरुवार को जारी रिपोर्ट में दावा किया गया कि बीते साल की तुलना में ये विस्थापन 20 फीसदी ज्यादा है. रूस-यूक्रेन जंग के कारण ही साल 2022 के आखिर तक लगभग 60 लाख लोग यूक्रेन में अपना घर छोड़ने पर मजबूर हुए. इनमें कई लोग एक से ज्यादा बार विस्थापित हुए.

यहां तक कि हाल में शुरू हुए सूडान गृह युद्ध के चलते भी लगभग 7 लाख लोगों ने अपना घर छोड़ा और उन राज्यों की तरफ गए जहां थोड़ा कम खतरा हो. 

गिनती के देशों में हैं सबसे ज्यादा विस्थापित

दुनियाभर के देशों में से सिर्फ 10 देशों में तीन-चौथाई से भी ज्यादा लोग IDP की श्रेणी में आ चुके हैं. इनमें सबसे ऊपर है सीरिया, जो लंबे समय से अस्थिरता झेल रहा है. इसके बाद अफगानिस्तान, कांगो, यूक्रेन, कोलंबिया, इथियोपिया, यमन, नाइजीरिया, सोमालिया और सूडान हैं. राजनैतिक या इकनॉमिक भूचाल ही लोगों को यहां से वहां नहीं पटक रहे, बल्कि कुदरती आपदाओं के चलते भी लोग भटकने पर मजबूर हैं. बीते दशकभर में ग्लोबल वार्मिंग के चलते सूखा, बाढ़ जैसी घटनाएं बढ़ीं. इनकी वजह से भी लोग अपना घर छोड़ रहे हैं. 

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बाढ़ या सूखा जैसे हालातों में भी लोग बसा-बसाया घर और काम छोड़ने पर मजबूर हो जाते हैं. सांकेतिक फोटो (Unsplash)

कुदरती आपदा के चलते डिसप्लेसमेंट बढ़ा

इंटरनल डिसप्लेसमेंट मॉनिटरिंग सेंटर का डेटा कहता है कि साल 2021 में लगभग 24 मिलियन लोग विस्थापित हुए. इसमें पाकिस्तान भी शामिल है, जहां बाढ़ की वजह से लगभग साढ़े 8 लोग एक साल में घर छोड़ने पर मजबूर हुए. इसके अलावा सोमालिया, इथियोपिया और नाइजर के लोग सूखे की वजह से घर छोड़कर गए. भारत भी इस लिस्ट में शामिल है. साल 2022 में हमारे यहां मौसम से जुड़ी आपदाओं की वजह से 25 लाख लोग विस्थापित हुए. 

इनके पास क्या हक हैं?

गाइडिंग प्रिंसिपल्स ऑन इंटरनल डिसप्लेसमेंट 1998 के मुताबिक IDP के पास बिल्कुल वही हक हैं, जो किसी देश के नागरिक के पास होती हैं. लेकिन परेशानी ये है कि इसे मॉनिटर करने के लिए अलग से कोई इंटरनेशनल संस्था या एजेंसी नहीं है. यूएन ह्यूमन राइट्स के अनुसार, इसके लिए लोकल संस्थाएं काम कर रही हैं लेकिन अलग से कोई नियम न होने के कारण उनका खास असर नहीं दिखता. यही वजह है कि प्रभावित लोग एक से ज्यादा बार भी विस्थापित होते हैं और गरीबी रेखा के नीचे पहुंच जाते हैं. 

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हमारे देश में खूब आ रहे रिफ्यूजी

जहां एक तरफ लोग अपने ही घरों में बेघर हो चुके, वहीं रिपोर्ट्स मानती हैं कि भारत शरणार्थियों को खूब पसंद आता है. साल 2020 में वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन ने एक ग्लोबल रिपोर्ट जारी की, जिसमें भारत को शरणार्थियों की टॉप पसंद बताया गया. हमारा देश दक्षिण-पूर्वी एशिया में सबसे ऊपर है, जिसने उसी एक साल में सबसे ज्यादा शरणार्थियों को शरण दी. इसमें बांग्लादेश, अफगानिस्तान और श्रीलंका से आए लोग ज्यादा थे. ये सभी देश महंगाई, पॉलिटिकल उठापटक और कट्टरपंथ का शिकार रह चुके हैं. 

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