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जब आतंकियों ने लाइन से खड़ा कर 24 कश्मीरी पंडितों को मारी थीं गोलियां, नदिमार्ग नरसंहार की दर्दनाक कहानी

23 मार्च 2003 को कश्मीर के नदिमार्ग में हुए नरसंहार के मामले की सुनवाई फिर से होगी. 2011 में शोपियां की सेशन कोर्ट ने इस केस को बंद कर दिया था. अब जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने सेशन कोर्ट को केस फिर से खोलने का आदेश दिया है. 2003 में नदिमार्ग में आतंकियों ने 24 कश्मीरी पंडितों की हत्या कर दी थी.

नदिमार्ग गांव में आतंकियों ने कश्मीरी पंडितों की हत्या कर दी थी. (फाइल फोटो) नदिमार्ग गांव में आतंकियों ने कश्मीरी पंडितों की हत्या कर दी थी. (फाइल फोटो)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 01 नवंबर 2022,
  • अपडेटेड 10:21 AM IST

23 मार्च 2003... ये वो तारीख है जब आतंकियों ने 24 कश्मीरी पंडितों की गोली मारकर हत्या कर दी थी. इसे 'नदिमार्ग नरसंहार' के तौर पर जाना जाता है. लश्कर-ए-तैयबा के आतंकियों ने कश्मीर के नदीमार्ग गांव में इस टारगेट किलिंग को अंजाम दिया था. 2011 में ये केस अदालत में बंद हो गया था. लेकिन अब जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने फिर से इस केस को खोलने का आदेश दिया है.

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नदिमार्ग में हुआ नरसंहार वही है, जिसे 'द कश्मीर फाइल्स' के क्लाइमेक्स सीन में दिखाया गया था. इस नरसंहार को भारतीय सेना को बदनाम करने की साजिश के तौर पर भी देखा जाता है. क्योंकि आतंकियों ने सेना की वर्दी पहनी हुई थी. 

नदिमार्ग नरसंहार का मुकदमा 8 साल तक निचली अदालत में चलता रहा. लेकिन गवाहों के नहीं आने पर इस केस को बंद कर दिया गया था. अब जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने निचली अदालत को इस केस को फिर से खोलने का आदेश दिया है. 

क्या हुआ था नदिमार्ग में?

90 के दशक में कश्मीर घाटी का माहौल बदल गया था. आतंकी चुन-चुनकर कश्मीरी पंडितों को मार रहे थे. इसके बाद बड़ी संख्या में घाटी से कश्मीरी पंडितों का पलायन हो गया था. लेकिन नदिमार्ग गांव में रहने वाले हिंदुओं ने घाटी छोड़ने से इनकार कर दिया था.

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नदिमार्ग से कश्मीरी पंडितों को भगाने के लिए 23 मार्च 2003 की रात को आतंकियों ने इस नरसंहार को अंजाम दिया था. उस रात लश्कर-ए-तैयबा के आतंकियों ने पुलवामा के नदिमार्ग गांव में 24 कश्मीरी पंडितों को लाइन से खड़ा कर गोली मार दी थी.

बताया जाता है कि उस रात 10:30 बजे के आसपास सेना की वर्दी पहनकर आए 7 आतंकियों ने हिंदुओं के नाम पुकारना शुरू किया. लोगों को लगा कि किसी आतंकी हमले की आशंका के चलते उन्हें वहां से निकालने की कोशिश हो रही है. लेकिन थोड़ी देर बाद ही कश्मीरी पंडितों को उनके घर से खींचकर निकाला जाने लगा. सभी को लाइन में खड़ा किया और सिर में गोली मारकर हत्या कर दी.

रोते बच्चे के सीने में मार दी थी गोली

इस नरसंहार में मोहन लाल भट इकलौते जिंदा बचे थे. इस नरसंहार में आतंकियों ने मोहन लाल भट के पूरे परिवार की हत्या कर दी थी. उस रात भट तीसरी मंजिल से गिर गए थे और टीन के नीचे छिप गए. इससे उनकी जान बच गई थी.

इंडिया टुडे से बातचीत में भट ने बताया था, 'रात को करीब साढ़े 10 बजे हम सभी सो रहे थे. तभी बाहर से अचानक शोर सुनाई देने लगा. घरों की खिड़कियां बंद करने की आवाजें आने लगीं. मैंने दरवाजे की ओट लेकर देखा तो सामने सेना की वर्दी में कुछ लोग खड़े थे. मेरी मां ने उनसे हमें जिंदा छोड़ने के लिए कहा, लेकिन उन्होंने कहा कि हम तुम्हें चुप करने ही आए हैं.'

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इस नरसंहार में आतंकियों ने 2 साल के बच्चे को भी नहीं बख्शा था. इतना ही नहीं, एक बच्चा रो रहा था, तो उसे चुप कराने के लिए गोली मार दी थी. भट ने बताया था, 'जब गोलियां बरस रही थीं, तभी एक बच्चा रोया. आतंकियों ने कहा कि ये अभी जिंदा है. और फायरिंग करो. और उस दो साल के मासूम के सीने में गोली उतार दी.'

उस रात आतंकियों ने मोहन लाल भट के पिता राधा कृष्ण भट, मां गीता भट, बहन प्रीतिमा और चाचा लोक नाथ भट को मार डाला था.

अब तक इस मामले में क्या हुआ?

इस नरसंहार के बाद हत्या और आर्म्स एक्ट समेत कई धाराओं में केस दर्ज किया गया था. मामले में 7 आतंकियों को आरोपी बनाया गया था. मुख्य आरोपी जिया मुस्तफा था, जो पाकिस्तान में लश्कर-ए-तैयबा का आतंकी था.

नदिमार्ग उस समय पुलवामा जिले में आता था. इसलिए पुलवामा की सेशन कोर्ट में ये मुकदमा चला. बाद में शोपियां जिला बनने के बाद ये केस वहां की सेशन कोर्ट को ट्रांसफर कर दिया गया.

इस मामले में कुल 38 गवाह थे. लेकिन सुनवाई के दौरान गवाही के लिए सिर्फ 13 गवाह ही सामने आए थे. वो इसलिए क्योंकि नरसंहार के बाद ज्यादातर लोग गांव छोड़कर जम्मू चले गए थे. 

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इसके बाद अभियोजन पक्ष ने अदालत में अपील की थी कि एक कमीशन का गठन किया जाए और बाकी गवाहों के बयान दर्ज किए जाएं. हालांकि, अदालत ने इस अपील को खारिज कर दिया और 9 फरवरी 2011 को केस बंद कर दिया.

नरसंहार के बाद आतंकी जिया मुस्तफा को गिरफ्तार कर लिया गया था. 2018 में उसे जम्मू की कोट भलवल जेल में शिफ्ट किया गया था. उसने जेल में 18 साल काटे थे. आतंकियों के ठिकानों की पहचान के लिए 24 अक्टूबर 2021 को मुस्तफा को 10 दिन की रिमांड पर जेल से बाहर लाया गया था. लेकिन तभी आतंकियों ने फायरिंग कर दी. इसके बाद एनकाउंटर में मुस्तफा मारा गया था. मुस्तफा से पहले नरसंहार के आरोपी तीन आतंकी 18 अप्रैल 2003 को एनकाउंटर में मारे गए थे.

 

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