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नाथ संप्रदाय क्या है, जिससे राजस्थान के फायरब्रांड नेता बाबा बालकनाथ का है नाता, कितना मुश्किल है इसमें शामिल होना

राजस्थान में भाजपा की जीत के बाद मुख्यमंत्री पद के दावेदारों पर बात हो रही है. इसमें सबसे ज्यादा चर्चा बाबा बालकनाथ की है. वे उसी नाथ संप्रदाय से हैं, जिससे उत्तरप्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ ताल्लुक रखते हैं. हठ योग पर आधारित इस संप्रदाय की कई खास बातें हैं, जैसे इसे मानने वालों का दाह संस्कार नहीं होता, बल्कि वे समाधि लेते हैं.

बाबा बालकनाथ तिजारा सीट से जीते. फोटो (PTI) बाबा बालकनाथ तिजारा सीट से जीते. फोटो (PTI)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 05 दिसंबर 2023,
  • अपडेटेड 4:07 PM IST

सीएम योगी के यूपी की सत्ता संभालने के बाद से नाथ संप्रदाय पर बातचीत होने लगी. अब एक बार फिर बीजेपी के लीडर बाबा बालकनाथ की वजह से ये सुर्खियों में है. आदिनाथ शंकर से जुड़े इस पंथ की जड़ें भारत ही नहीं, नेपाल तक से जुड़ी हैं. बाबा गोरखनाथ को नेपाल का राजवंश भी पहला गुरु मानता रहा. इस देश में कई बड़े आश्रम नाथ संप्रदाय से जुड़े हुए हैं. 

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क्या है नाथ संप्रदाय

हिंदू धर्म में मोटे तौर पर 4 संप्रदाय हैं- वैष्णव, वैदिक, शैव और स्मार्त. नाथ संप्रदाय शैव की एक शाखा है. नाथ यानी स्वामी, यानी जगत के पालनहार. भगवान शंकर को इस संप्रदाय की परंपरा शुरू करने वाला माना जाता है. इसके बाद कई गुरु रहे, जैसे गोरखनाथ और महाराष्ट्र में भगवान दत्तात्रेय. हिंदुओं के बाकी संप्रदायों से इसके रीति-रिवाज काफी अलग हैं. 

कैसे होती है ट्रेनिंग

इसके योगी बनने के लिए लंबा समय एकांतवास में बिताना होता है. इस दौरान खानपान पर गहरा नियंत्रण रहता है. दीक्षा के दौरान लोग योग और अग्नि से खुद को पवित्र बनाते हैं. यही वजह है कि इससे जुड़े लोगों का दाह संस्कार नहीं होता. योगी को बिना सिले और भगवा कपड़े पहनने होते हैं, हालांकि अब सिले हुए वस्त्र भी चलन में हैं. 

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योगी आदित्यनाथ नाथ संप्रदाय से हैं. (Photo- India Today)

कर्ण छेदन की है मान्यता

इस संप्रदाय की एक खास रीति है कर्ण छेदन. ये कान में सामान्य पियर्सिंग की तरह नहीं होती, बल्कि तकलीफ देने वाली होती है. गुरु गोरखनाथ ने अपने शिष्यों के लिए एक तरह से ये परीक्षा ही रखी, जिसमें पास होने पर कोई नाथ संप्रदाय में शामिल कहलाता. लंबी परीक्षा के बाद ही कर्ण छेदन होता है.

इस दौरान कोई इलाज भी नहीं दिया जाता और 40 दिन एकांत में बिताने होते हैं. माना जाता है कि लंबे अकेलेपन और लगातार प्रार्थना के साथ ही योगी का संसार से मोह खत्म हो जाता है. इसके बाद भी कई रस्में होती हैं, जिसके बाद कोई पूरी तरह से संप्रदाय का हिस्सा बन जाता है. 

मृतक का दाह संस्कार नहीं

सबसे खास बात ये है कि हिंदू होने के बावजूद इसमें मृत्यु के बाद दाह संस्कार नहीं होता, बल्कि जीवित या मृत समाधि दे दी जाती है. मृत शरीर को मिट्टी में दफना दिया जाता है. कुछ समय पहले राजस्थान से नाथ संप्रदाय का एक मामला भी आया था, जहां शहरों के चलते जमीन की कमी की वजह से इसे मानने वालों की समाधि में मुश्किल आ रही थी. तब जमीन की मांग की गई थी. 

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बाबा बालकनाथ राजस्थान में मुख्यमंत्री पद के प्रबल उम्मीदवार हैं. (Photo- Facebook)

अभिवादन भी अलग तरह का

इसमें सीधे-सीधे किसी भगवान का नाम लेने की बजाए दो लोग मिलने पर आदेश कहकर अभिवादन करते हैं. आदेश यानी आदि-ईश्वर, जो शिव का ही नाम है. 

इस मत से जुड़े लोग अपनी जीवनकाल में दुनियाभर घूमते हैं, लेकिन जब उन्हें लगता है कि आखिरी समय पास आ चुका, तब वे किसी एक जगह रुककर अखंड धूनी रमा लेते हैं. बहुत बार योगी हिमालय में जाकर कहीं अकेले में रहने लगते हैं. इसके बाद उनका कुछ पता नहीं लगता. मान्यता है कि वे हिमालय पर ही अंतिम प्रयाण करते होंगे. 

गोरखनाथ मंदिर. (Photo- Wikipedia)

इन देशों में है मानने वाले

नाथ संप्रदाय के मठ भारत ही नहीं, बल्कि कई पड़ोसी देशों में हैं, जैसे नेपाल, पाकिस्तान, काबुल तिब्बत और म्यांमार. इसके अलावा बहुत से देशों में इस संप्रदाय के मानने वाले हैं. जर्मनी, अमेरिका और ब्रिटेन में काफी विदेशियों ने इसे अपनाया हुआ है. वे लगातार मठों में आते-जाते रहते हैं. हालांकि इसके खानपान और तौर-तरीके काफी कट्टर हैं. मांस-मदिरा से दूर रहना होता है इसलिए काफी परीक्षा के बाद ही लोग इसका हिस्सा बन पाते हैं.

जाते हुए एक बार बाबा बालकनाथ के बारे में भी जानते चलें. बाबा बालकनाथ अलवर की तिजारा विधानसभा सीट से जीते. इसके पहले से ही उनकी योगी आदित्यनाथ से तुलना होती रही. इसके पीछे उनकी जानदार इमेज है. बालकनाथ रोहतक पीठ के महंत है. इस जगह नाथ संप्रदाय के अनुयायी भारी संख्या में हैं, यहां तक ग्राउंड पर भी इसकी झलक दिखती है.

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नाथ संप्रदाय ने स्कूल और कॉलेज तक बनवा रखे हैं. कई चैरिटी संस्थान चलते हैं. तो अगर बाबा बालकनाथ को सीएम पद मिला तो राजस्थान के साथ-साथ हरियाणा में भी पार्टी की पैठ गहरी हो सकती है.

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