
कइयों को गैस चैम्बर में डाल दिया गया... कइयों को गोली मार दी गई... और कइयों को तब तक भूखा रखा गया, जब तक वो मर नहीं गए...
ये सब तब हुआ जब जर्मनी में एडोल्फ हिटलर का शासन था. वैसे तो जर्मनी में हिटलर का शासन 13 साल ही रहा, लेकिन इन सालों में उसकी नाजी सेना ने क्रूरता की सारी हदें पार कर दीं. नाजी सैनिक इतने बेरहम थे कि उनमें इंसानियत बची ही नहीं थी. शायद यही वजह है कि इतने साल बीत जाने के बाद भी दुनिया नाजियों को पसंद नहीं करती.
नाजियों से दुनिया किस हद तक चिढ़ती है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कनाडाई संसद में पूर्व नाजी सैनिक का सम्मान करने पर प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो चौतरफा घिर गए हैं.
दरअसल, यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की कनाडा की संसद गए थे. उनके साथ 98 साल के यारोस्लाव हुन्का भी थे. हुन्का नाजी सैनिक रह चुके हैं. कनाडा के सांसदों ने दो बार हुन्का को स्टैंडिंग ओवेशन देकर सम्मानित किया. इस पर बवाल हो गया. बाद में संसद के स्पीकर को माफी मांगनी पड़ी.
नाजी मतलब क्या?
1914 से 1918 तक पहला विश्व युद्ध हुआ. इसमें जर्मनी और ऑस्ट्रिया-हंगरी ने मिलकर फ्रांस, रूस, ब्रिटेन, अमेरिका और उनके सहयोगियों के साथ लड़ाई लड़ी. इसमें जर्मनी की बुरी हार हुई.
युद्ध की वजह से जर्मनी का अर्थव्यवस्था तबाह हो चुकी थी. 1920 में नेशनल सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना हुई. इसे नाजी पार्टी भी कहा जाता था. 1921 में नाजी पार्टी की कमान हिटलर के हाथ में आ गई.
नाजी पार्टी का मानना था कि एक सच्चा जर्मन, एक आर्य था. एक साफ खून वाला जर्मन, जिसके सुनहरे बाल और नीली आंखें हों. नाजियों का मानना था कि जर्मनी में सिर्फ आर्य ही रह सकते हैं. वो दूसरे लोगों खासकर यहूदियों को हीन मानते थे.
हिटलर की नाजी पार्टी का मानना था कि अगर वो जर्मनी से सभी यहूदियों को मिटा देगी, तो उसे फिर से गौरव हासिल हो जाएगा. जर्मनी से यहूदियों को मिटाने की नाजी योजना को 'आखिरी हल' कहा गया. बाद में उसे 'प्रलय' या 'होलोकॉस्ट' कहा गया.
फिर वो सब हुआ, जो नहीं होना चाहिए था
1933 में हिटलर जर्मनी का चांसलर बन गया. इसके कुछ महीने बाद ही हिटलर ने यहूदियों के बिजनेस के बहिष्कार की घोषणा कर दी. यहूदियों पर तमाम तरह की पाबंदियां लगा दी गईं.
इसके बाद जर्मनी से यहूदियों को खदेड़ा जाने लगा. जर्मनी के शहरों में यातना शिविर बनाए जाने लगे, जहां यहूदियों को गुलामों की तरह रखा जाने लगा. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी ने जिन-जिन देशों पर कब्जा किया, वहां-वहां यातना शिविर बना दिए.
शिविरों में पहुंचने के बाद छोटे बच्चों, बीमारों और बुजुर्गों को गैस चैम्बर में डालकर मार दिया जाता था. क्योंकि नाजी सैनिकों को सिर्फ हट्टे-कट्टे यहूदियों की ही जरूरत थी, जिनसे काम करवाया जा सके.
यातना शिविरों में यहूदियों के साथ जानवरों जैसा सलूक किया जाता था. उन्हें खाने में डबलरोटी और पानी जैसा पतला सूप मिलता था. इन शिविरों से भाग पाना नामुमकिन था. अगर भागते हुए पकड़े गए तो सीधा गोली मार दी जाती थी.
जर्मनी के ऑश्विट्ज में सबसे बड़ा यातना शिविर था. यहां हालात इतने खराब थे कि एक-एक दिन में सैकड़ों लोगों की मौत हो जाती थी. कई मौतें कुपोषण, भुखमरी, गोलीबारी, मार-पीट और बीमारी के कारण होती थीं.
यहां ऐसे गैस चैम्बर बनाए गए थे, जहां जहरीली गैस से एक बार में सैकड़ों लोगों को मारा जा सकता था. लाशों को जलाने के लिए पास में ही भट्टियां बनाई गई थीं.
यहूदियों का अंतिम हल
1941 में हिटलर ने यहूदियों की सामूहिक हत्या का आदेश दे दिया. नाजी सेना के प्रमुख हेनरिक हिमलर ने अपने सैनिकों से कहा, 'फ्यूहरर (नेता) ने यहूदियों के अंतिम हल का आदेश दिया है. हमारी फौज इस आदेश को पूरा करेगी. हमने इस मकसद को पूरा करने के लिए ऑशविट्ज को चुना है.'
ज्यादा से ज्यादा यहूदी मारे जा सकें, इसलिए बिरकेनौ, बेल्सन और सोबिबोर में भी यातना शिविर बनाए गए. बिरकेनौ में चार गैस चैम्बर थे, जहां एक दिन में आठ हजार लोगों को मारा जा सकता था.
1941 की शुरुआत में ही नाजी सैनिकों ने यहूदियों को खुली खाइयों के सामने खड़ा किया और फिर मशीनगनों से भून डाला. बाद में उनकी लाशों को सामूहिक कब्र में दफना दिया गया.
नाजी इन शिविरों में मारे जाने वाले एक-एक यहूदी का रिकॉर्ड रखते थे. अकेले बेल्सन शिविर में छह लाख यहूदियों की हत्या कर दी गई थी. शिविरों में सालभर के अंदर ही दस लाख यहूदियों को मार दिया गया था. आंकड़ों के मुताबिक, 1939 से 1945 तक छह सालों में 60 लाख यहूदियों की हत्या कर दी गई थी. इनमें बच्चे भी शामिल थे.
औरतों के साथ बर्बरता
हिटलर के शासन में नाजी सैनिकों ने महिलाओं के साथ भी बर्बरता की हदें पार कीं. यहूदी महिलाओं के साथ नाजी सैनिक बलात्कार करते थे.
यातना शिविर में जब महिलाओं को लाया जाता था, तो नाजी सैनिक उनके प्राइवेट पार्ट्स को छूते थे. महिलाओं को गंजा कर दिया जाता था. नाजी सैनिक महिलाओं पर इस तरह के जुल्म सिर्फ सेक्सुअल प्लेजर के लिए नहीं करते थे, बल्कि उन्हें नीचा दिखाने के लिए भी ऐसा करते थे.
यहूदी महिलाओं पर नाजी सैनिकों ने इंसानियत की सारी हदें पार कर दीं. कई महिलाओं के साथ तो तब तक बलात्कार किया गया, जब तक उनकी मौत नहीं हो गई.
नाजी सैनिक गर्भवती महिलाओं पर भी रहम नहीं खाते थे. एक पीड़िता ने एक बार इंटरव्यू में बताया था कि नाजी सैनिक गर्भवती महिलाओं को लाठी-डंडों और चाबुक से पीटते थे. उनके पेट पर लात मारते थे. गर्भवती महिलाओं को जिंदा ही श्मशान घाट में फेंक दिया जाता था.
जो देखा, वो बता पाना मुश्किल
जुलाई 1944 से यातना-शिविरों से लोगों को छुड़ाना शुरू कर दिया गया था. इन शिविरों में अमेरिकी जनरल ड्वाइट डी. आइजनहॉवर ने जो कुछ देखा था, उसे उन्होंने अपने नेताओं को बताया.
आइजनहॉवर ने चिट्ठी में लिखा, 'जो कुछ मैंने देखा, उसे बता पाना मुश्किल था. वहां पर भुखमरी, क्ररूता और पशुता का बोलबाला था. लोग इतने समय से भूखे थे कि उन लोगों के लिए सामान्य भोजन पचा पाना भी मुश्किल था. कुछ लोग तो तेज खाने के चक्कर में मर गए. उनका शरीर भोजन को संभाल नहीं सकता था.'
ब्रिटिश सैनिकों ने भी यातना शिविरों के बारे में लिखा, 'हजारों भूखे लोगों की मौत इसलिए हो गई, क्योंकि हमने उन्हें सिर्फ वही भोजन खिलाया जो हमारे पास था. लेकिन इस बारे में पहले से सोच पाना बड़ा मुश्किल था.'