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2024 में NDA vs INDIA... देश में कैसे शुरू हुई गठबंधन की राजनीति? नेहरू के विरोध में 70 साल पहले बना था पहला मोर्चा

2024 के लोकसभा चुनाव में अब एक साल से भी कम का वक्त बचा है. ऐसे में अब सत्ताधारी और विपक्षी पार्टियां अपना कुनबा मजबूत करने में जुट गईं हैं. विपक्षी पार्टियों ने मिलकर I.N.D.I.A. नाम से गठबंधन बनाया है. ऐसे में जानते हैं कि गठबंधन की राजनीति भारत में कितनी कामयाब होती है? और इसकी शुरुआत कैसे हुई?

2024 में मुकाबला दो बड़े गठबंधनों के बीच होगा. (प्रतीकात्मक तस्वीर) 2024 में मुकाबला दो बड़े गठबंधनों के बीच होगा. (प्रतीकात्मक तस्वीर)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 19 जुलाई 2023,
  • अपडेटेड 1:32 PM IST

साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में मुकाबला किसके बीच होगा? इसकी तस्वीर साफ हो गई है. कांग्रेस समेत 26 विपक्षी पार्टियों ने बेंगलुरु तो एनडीए की 38 पार्टियों ने दिल्ली में मंगलवार को 2024 की रणनीति पर मंथन किया.

बेंगलुरु में विपक्षी पार्टियों ने दो दिन तक मंत्रणा करने के बाद नया गठबंधन बनाया. इसका नाम रखा- I.N.D.I.A. यानी इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इन्क्लूसिव अलायंस. इस गठबंधन की टैगलाइन 'जीतेगा भारत' रखी गई है. 

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वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एनडीए के 25 साल पूरे होने पर नई परिभाषा दी. उन्होंने कहा, N से न्यू इंडिया, D से डेवलपमेंट और A से एस्पिरेशन. 

इससे साफ हो गया कि अगला लोकसभा चुनाव NDA बनाम I.N.D.I.A में होगा. भारतीय राजनीति में ये पहली बार होगा जब इतनी सारी पार्टियों से मिलकर बने दो गठबंधन आपस में भिड़ेंगे. हालांकि, भारत में गठबंधन की राजनीति का इतिहास आजादी के कुछ साल बाद से ही शुरू हो जाता है. और केंद्र में भी कई बार गठबंधन की सरकारें बन चुकी हैं. 

नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंटः जब केंद्र में बना पहला गठबंधन

 

- आजादी के बाद जब देश में पहली अंतरिम सरकार बनी तो जवाहर लाल नेहरू ने श्यामा प्रसाद मुखर्जी को भी अपनी कैबिनेट में मंत्री बनाया.

- लेकिन पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान के साथ समझौते को लेकर मुखर्जी में नाराजगी थी. नेहरू-लियाकत समझौते को नेहरू की मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति बताते हुए श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 19 अप्रैल 1950 को केंद्रीय उद्योग मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और कांग्रेस के विकल्प के रूप में एक नई राजनीतिक पार्टी खड़ी करने का बीड़ा उठाया.

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- नेहरू सरकार से इस्तीफा देने के बाद डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी RSS के तत्कालीन सरसंघचालक गुरु गोलवलकर से मिले, जहां जनसंघ के गठन की रणनीति बनी. फिर श्यामा प्रसाद मुखर्जी, प्रोफेसर बलराज मधोक और दीनदयाल उपाध्याय ने मिलकर भारतीय जनसंघ की स्थापना की. जनसंघ की स्थापना 21 अक्टूबर 1951 को दिल्ली में एक छोटे से कार्यक्रम में की गई.

श्यामा प्रसाद मुखर्जी (फाइल फोटो)

- 1952 में हुए पहले आम चुनाव में जनसंघ ने सिर्फ तीन सीटें जीतीं. इनमें से एक सीट श्यामा प्रसाद मुखर्जी की थी. संसद में नेहरू की कश्मीर नीतियों का विरोध करने के लिए मुखर्जी ने गैर-कांग्रेसी सांसदों को एकजुट किया और नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट नाम से गठबंधन बनाया.

- मुखर्जी के इस नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट में लोकसभा के 32 और राज्यसभा के 10 सांसद शामिल थे. हालांकि, संसद ने इसे विपक्षी पार्टी की मान्यता नहीं दी थी. इस गठबंधन में ओडिशा (तब उड़ीसा) की गणतंत्र परिषद, पंजाब की अकाली दल, हिंदू महासभा और निर्दलीय सांसदों सहित छोटी-छोटी पार्टियों के सांसद थे.

- इस फ्रंट के नेता श्यामा प्रसाद मुखर्जी चुने गए. फ्रंट का मकसद तत्कालीन नेहरू सरकार की कश्मीर नीतियों का विरोध करना था. मुखर्जी ने धारा 370 का भी विरोध किया. 11 मई 1953 को मुखर्जी को गिरफ्तार कर लिया गया. 23 जून 1953 को हिरासत में ही उनकी मौत हो गई.

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जनता गठबंधनः जब केंद्र में बनी पहली गठबंधन सरकार

 

- इमरजेंसी खत्म होने के बाद 1977 में लोकसभा चुनाव हुए. ये अलग किस्म का चुनाव था. इसमें जनता को अच्छा या बुरा में से किसी एक को नहीं चुनना था. बल्कि ये तय करना था कि आपातकाल का विरोध किसने किया.

- आपातकाल की वजह से जनता गुस्से में थी. इसका असर चुनावी नतीजों पर भी दिखा. इंदिरा गांधी चुनाव हार गईं. संजय गांधी चुनाव हार गए. आमतौर पर वही नेता या लोग जीते, जिन्होंने इमरजेंसी का विरोध किया था या जेल गए थे.

- कई विचारधाराओं और छोटे-बड़े दलों को मिलाकर 'जनता पार्टी' नाम से नई पार्टी बनी. कुछ दिनों तक पार्टी में प्रधानमंत्री उम्मीदवार को लेकर विवाद चलता रहा. उस समय जयप्रकाश नारायण का कद बहुत ऊंचा था, लेकिन उनकी तबियत ठीक नहीं थी.

- उनके अलावा जगजीवन राम, चौधरी चरण सिंह और मोरारजी देसाई का नाम सामने आया. आखिरकार मोरारजी देसाई के नाम पर सहमति बनी. जनता पार्टी में जनसंघ, भारतीय लोकदल, कांग्रेस (ओ), संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी जैसे 10 से ज्यादा दल शामिल थे.

मोरारजी देसाई. (फाइल फोटो)

- 1977 के चुनाव में जनता पार्टी ने बड़ी जीत हासिल की. कांग्रेस 154 सीटों पर सिमट गई. जीत के बाद मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने. 

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- हालांकि, दो साल में ही गठबंधन सरकार में दरार पड़ने लगी. चौधरी चरण सिंह प्रधानमंत्री बनना चाहते थे. 1979 में मोरारजी देसाई ने इस्तीफा दे दिया. उनके बाद चौधरी चरण सिंह प्रधानमंत्री तो बन गए, लेकिन इस पद पर 6 महीने भी नहीं रह सके.

- आखिरकार 1980 में जनता पार्टी की ये सरकार गिर गई. 1980 में लोकसभा चुनाव हुए. जनता पार्टी ने जगजीवन राम को प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनाया. लेकिन इस चुनाव में जनता पार्टी मात्र 31 सीट ही जीत सकी. कांग्रेस ने वापसी करते हुए 350 से ज्यादा सीटें जीतीं.

गठबंधन सरकार में अस्थिरता का दौर

 

- 1980 से 1989 तक सब ठीक रहा. कांग्रेस की सरकार पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में बनी रही. लेकिन 1989 में संयुक्त मोर्चा बना. 

- वीपी सिंह प्रधानमंत्री बने, लेकिन ये सरकार सिर्फ 11 महीने ही चल सकी. वीपी सिंह की सरकार इसलिए गिर गई थी, क्योंकि बीजेपी ने उनसे समर्थन वापस ले लिया था. 

- इसके बाद 10 नवंबर 1990 में कांग्रेस से समर्थन लेकर चंद्रशेखर सिंह प्रधानमंत्री बने. चंद्रशेखर सिंह 21 जून 1991 तक ही प्रधानमंत्री रह सके. फिर पीवी नरसिम्हा राव की अगुवाई में स्थायी सरकार बनी, जिसने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया.

यूनाइटेड फ्रंटः गठबंधन तो बना लेकिन सरकार नहीं चली

 

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- मई 1996 में चुनाव हुए. इसमें किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला. बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनी. अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री तो बन गए, लेकिन 13 दिन में ही इस्तीफा देना पड़ा.

- इन चुनावों में जनता दल ने 46 सीटें जीती थीं. कई पार्टियों ने मिलकर यूनाइटेड फ्रंट नाम से गठबंधन बनाया. इसे कांग्रेस ने भी समर्थन दिया. एचडी देवेगौड़ा प्रधानमंत्री बने लेकिन कांग्रेस के समर्थन वापस लेने के कारण 10 महीने में ये सरकार गिर गई.

- उनके बाद इंद्र कुमार गुजराल जनता दल के नेता चुने गए और कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बने. लेकिन वो भी एक साल पूरा नहीं कर पाए और ये सरकार भी गिर गई.

अटल बिहारी वाजपेयी. (फाइल फोटो)

एनडीएः कांग्रेस की काट के लिए बीजेपी ने बनाया गठबंधन

 

- 1998 के चुनाव से पहले बीजेपी की अगुवाई में एनडीए यानी नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस बना. शुरुआत में इसमें 13 पार्टियां शामिल थीं.

- 1998 के लोकसभा चुनाव में इन पार्टियों ने 258 सीटों पर जीत हासिल की. इस सरकार में अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने. ये सरकार सिर्फ 13 महीने ही चल सकी, क्योंकि जयललिता की अन्नाद्रमुक ने समर्थन वापस ले लिया था.

- फिर 1999 में आम चुनाव हुए. इसमें एक बार फिर एनडीए की सरकार बनी. इस सरकार में 24 पार्टियां शामिल थीं. अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने. भारत में ये पहली गठबंधन सरकार थी, जिसने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया था.

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यूपीएः एनडीए के जवाब में कांग्रेस ने बनाया गठबंधन

 

- 2004 में लोकसभा चुनाव से पहले यूपीए यानी यूनाइटेड प्रोग्रेसिव अलायंस बना. इसकी अगुवाई कांग्रेस कर रही थी.

- उस साल हुए चुनाव में यूपीए ने 222 सीटें जीती थीं. समाजवादी पार्टी और लेफ्ट पार्टियों ने इस सरकार को बाहर से समर्थन दिया था. 2008 में लेफ्ट पार्टियों ने समर्थन वापस ले लिया था, तब सपा ने ही इस सरकार को गिरने से बचाया था.

- 2009 में फिर मुकाबला एनडीए बनाम यूपीए में हुआ. ये वो समय था जब राजनीतिक पार्टियां दो खेमों- यूपीए और एनडीए में बंट गई थी. उस चुनाव में भी यूपीए की जीत हुई. यूपीए की दोनों सरकारों में मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री रहे.

अब कितना मजबूत है एनडीए?

 

- गठबंधन की सरकार इस कदर भारतीय राजनीति पर हावी हो गई कि उसके बिना सरकार नहीं बनती है. 2014 में भी एनडीए और यूपीए के मुकाबला हुआ.

- हालांकि, 2014 में नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बीजेपी ने 282 सीटें जीतीं. ये बहुमत के 272 के आंकड़े से 10 ज्यादा थीं. इस सरकार में भी करीब 15 पार्टियों का गठबंधन था.

- 2019 के लोकसभा चुनाव में भी एनडीए को लगभग दो तिहाई बहुमत मिला. अकेले बीजेपी ने ही 543 में से 303 सीटें जीतीं. 

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- 2019 के चुनाव के बाद से कई क्षेत्रीय पार्टियां सरकार से अपना समर्थन वापस ले चुकी हैं. लेकिन बीजेपी का अपना बहुमत होने के कारण सरकार स्थायी रूप से चल रही है.

 

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