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डिक्शनरी से ओम और श्री जैसे शब्द हटाना चाहती है नेपाल सरकार, क्यों लग रहा धार्मिक साजिश का आरोप?

कुछ सालों पहले तक जो नेपाल दुनिया का अकेला हिंदू राष्ट्र था, वहां अब नेपाली डिक्शनरी से ओम शब्द को हटाने की कवायद चल रही है. मौजूदा सरकार चाहती है कि ये शब्द हर हाल में हट जाए. वहीं दूसरा खेमा इसे नेपाली संस्कृति और धर्म पर हमला मानते हुए विरोध कर रहा है.

नेपाल साल 2008 तक हिंदू राष्ट्र कहलाता रहा. सांकेतिक फोटो (Pixabay) नेपाल साल 2008 तक हिंदू राष्ट्र कहलाता रहा. सांकेतिक फोटो (Pixabay)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 03 अक्टूबर 2023,
  • अपडेटेड 4:26 PM IST

नेपाल की कुल आबादी में 80 प्रतिशत से भी ज्यादा हिंदू हैं, इसके बाद बौद्ध और बाकी धर्म आते हैं. अब इसी देश में ओम शब्द को हटाने पर बहस गरमाई हुई है. नेपाल के बहुत से लोगों का सोचना है कि ऐसे ही धार्मिक और आध्यात्मिक प्रतीक हटते रहे तो एक दिन नेपाल खत्म हो जाएगा. लेकिन सवाल ये है कि आखिर ओम शब्द से नेपाल सरकार को क्या परेशानी है, किस वजह से वो इसे अपने यहां से हटाना चाहती है?

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करीब एक दशक से चल रही है कोशिश

साल 2012 में पहली बार इस बात पर चर्चा हुई कि डिक्शनरी से ओम शब्द को हटा दिया जाए. तब वहां के एजुकेशन मिनिस्टर दीनानाथ शर्मा थे. ये कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार थी, जिसपर चीन का भारी असर था. इसी बीच ओम को हटाने का प्रस्ताव आया, जिसपर एक कमेटी भी बनी. कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर हलंत वाले सारे शब्दों को हटाने की बात की गई. 

ओम तो शामिल था ही, साथ ही हिंदू धर्म से जुड़े कई और शब्द भी थे, जैसे इंद्र, ब्राह्मण, बुद्ध, युद्ध, इंद्र, द्वंद्व और श्री. इसके तुरंत बाद नेपाल के शिक्षा मंत्रालय ने प्रज्ञा संस्थान से छपने वाले आधिकारिक नेपाली शब्दकोष से ओम शब्द को हटाने का आदेश दिया था. हालांकि कई वजहों से इसमें अड़चन आ गई और मामला टल गया. 

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नेपाली भाषा देवनागरी लिपि से उपजी है. सांकेतिक फोटो (Pixabay)

साल 2016 में इसपर दो लोगों ने कोर्ट में याचिका दायर की. मामला अदालत तक पहुंचने के बाद सरकारी आदेश पर स्टे ऑर्डर लग गया. अब कोर्ट ने इसपर एक और कमेटी बनाने की बात की है ताकि तय हो सके कि ये शब्द डिक्शनरी में शामिल रहें, या हटा दिए जाएं. इसके बाद से ही बवाल मचा हुआ है. कई दलों का कहना है कि नेपाल सरकार पश्चिमी ताकतों के फेर में आकर उनके कल्चर को खत्म करना चाहती है. 

ईसाई धर्म को मानने वाले तेजी से बढ़ रहे

नेपाल में धर्म परिवर्तन तेजी से हो रहा है. खासकर मिशनरीज आकर लोगों को ईसाई धर्म अपनाने की सलाह दे रहे हैं. थिंक टैंक गॉर्डन कॉनवेल थियोलॉजिकल सेमिन्री की दशकभर पुरानी रिपोर्ट साफ कहती है कि नेपाल में चर्च जिस तेजी से बढ़े हैं, वो दुनिया में सबसे ज्यादा है. ये धर्मांतरण दलित समुदाय में ज्यादा दिख रहा है, जो पहले बौद्ध या हिंदू हुआ करते थे. 

क्रिश्चियन कम्युनिटी सर्वे के मुताबिक, कुछ ही सालों में यहां 7,758 चर्च बन गए, और बौद्ध धर्म को मानने वाली बड़ी आबादी ईसाई धर्म अपना चुकी. सत्तर के दशक के बाद से क्रिश्चिएनिटी में सालाना करीब 11 प्रतिशत की बढ़त हुई. देश का बड़ा खेमा इसे लेकर परेशान है, और ओम को हटाने को भी साजिश का हिस्सा मान रहा है. 

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नेपाल में चर्चों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. सांकेतिक फोटो (Unsplash)

हालात ये हैं कि सरकार का सपोर्ट कर रही पार्टियां भी इस बदलाव से नाखुश हैं. फिलहाल नेपाल में प्रधानमंत्री पुष्प कुमार दहल की सरकार है, जो कई पार्टियों के गठबंधन से काम कर रही है. अब गठबंधन में भी कई दल सरकार के खिलाफ आ चुके जो उसपर वेस्ट से साथ साजिश में शामिल होने का आरोप लगा रहे हैं. 

क्यों ओम को हटाना चाहती है सरकार 

फिलहाल इस बात का कोई सीधा कारण नहीं दिख रहा. सरकार का कहना है कि आधे शब्द या हलंत वाले शब्दों से काफी कन्फ्यूजन होता है इसलिए इन्हें हटा दिया जाना चाहिए. 

भाषा के मामले में नेपाल में एकाएक कई चीजें बदल रही हैं. जैसे देवनागरी लिपि की जगह यूनिकोड यानी संख्याओं से बनने वाली स्क्रिप्ट के इस्तेमाल की बात हो रही है. साथ ही मैथ्स और साइंस की पढ़ाई इंग्लिश में ही शुरू होने जा रही है, जबकि अब तक ये सबजेक्ट  नेपाली भाषा में भी पढ़ाए जाते रहे. 

इस सरकारी फैसले का विरोध कर रहे लोगों में हिंदू ही नहीं, बौद्ध भी शामिल हैं. इस धर्म में भी ओम का जप किया जाता है. मान्यता है कि इससे नकारात्मकता खत्म होकर मन और शरीर शुद्ध हो जाता है. 

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