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क्या शुरू हो चुका है दूसरा कोल्ड वॉर, रूस की जगह इस बार कौन सा देश देगा अमेरिका को टक्कर?

रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच दुनिया अलग-अलग खांचों में बंट रही है. फिलहाल, जिस भी छोटे-बड़े देश को उठाकर देखें, टेंशन साफ दिखती है. इसे दूसरा कोल्ड वॉर भी कहा जा रहा है. पहले शीत युद्ध में दुश्मन और दोस्त अलग-अलग थे, लेकिन ये युद्ध ज्यादा खतरनाक हो सकता है क्योंकि इसमें कई ताकतों का घालमेल है. कुछ ही देश हैं, जिनके पास तटस्थ रहने की छूट है.

देशों में तनाव शीत युद्ध का संकेत है. सांकेतिक फोटो (Unsplash) देशों में तनाव शीत युद्ध का संकेत है. सांकेतिक फोटो (Unsplash)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 26 जुलाई 2023,
  • अपडेटेड 11:40 PM IST

कुछ रोज पहले मिलिट्री गठबंधन नाटो में स्वीडन और फिनलैंड भी शामिल हो गए. ये वे देश हैं, जो लंबे समय से जंग से दूरी बरतते रहे. इनको हरी झंडी मिलते ही रूस बौखला गया. असल में दोनों ही देशों की सीमाएं रूस से सटी हुई हैं और नाटो पर अमेरिका का दबदबा है. इन हालातों में रूस को लगातार डर बना हुआ है. वहीं अमेरिका भी खतरे से खाली नहीं.

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ताकत के मामले में लगभग बराबर आ चुका चीन जब-तब अमेरिका को ललकारता है. कई और देश भी हैं, जो अपना अलग खेमा बना चुके. कुल मिलाकर देशों का हाल झगड़ालू पड़ोसियों जैसा हो चुका है, जो मौके का इंतजार कर रहे हैं. एक्सपर्ट इसे सेकंड या न्यू कोल्ड वॉर कह रहे हैं. 

क्या था पहले शीत युद्ध का इतिहास

रूस और अमेरिका दूसरे वर्ल्ड वॉर से पहले एक साथ आ तो गए थे, लेकिन तनाव बना हुआ था. लड़ाई खत्म होने के साथ ही अमेरिका ज्यादा ताकतवर दिखने लगा. रूस का सिंहासन हिलने लगा था. उसने खुद को आगे दिखाने के लिए कई जोड़भाग शुरू कर दिए. यहीं से दोनों देशों के बीच जो लड़ाई शुरू हुई तो दुनिया दो खांचों में बंट गई. 

इसमें असली जंग नहीं हुई क्योंकि लगातार दो लड़ाइयों से दुनिया थक चुकी थी, इसकी बजाए देशों को अपने पाले में खींचने की लड़ाई होने लगी. इसी दौरान वियतनाम और कोरिया युद्ध हुआ, जिसमें दोनों तरफ से सैनिकों की जानें गईं. लगभग 40 सालों बाद कोल्ड वॉर खत्म हुआ. लेकिन इतने वक्त में देशों के बीच आपसी तनाव गहरा चुका था. यहां तक कि छोटे देश भी अनचाहे ही इस लड़ाई का हिस्सा बन चुके थे. 

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अब का माहौल भी कुछ वैसा ही है. फर्क ये है कि दुश्मन अब केवल रूस और अमेरिका नहीं, बल्कि खेल में कई और खिलाड़ी भी हैं. इसमें चीन का नाम टॉप पर है, जिसे सबसे ताकतवर और शातिर प्लेयर माना जा रहा है. 

जानिए, क्यों माना जा रहा है ऐसा

- रूस की जीडीपी अमेरिका से काफी कम है, जबकि अगले एक दशक में चीन अमेरिका से आगे निकल जाएगा. ये बात खुद वॉशिंगटन मान रहा है. 

- तकनीक के मामले में रूस अमेरिका से पीछे ही रहा, जबकि चीन इसमें भी बाजी मारता दिख रहा है. 

- चीन की आबादी अमेरिका से लगभग चौगुनी है. ये भी एक तरह का पॉजिटिव है क्योंकि ये युवा आबादी है, जो काम कर सकेगी. 

- फिलहाल दुनिया के बहुत से देश चीन के कर्ज में डूबे हुए हैं. जंग की स्थिति में दबाव में सही, ये देश चाइना के साथ आ सकते हैं. 

- चीन के पास परमाणु ताकत भी है, जो उस समय नहीं थी. कई थिंक टैंक ये तक दावा करते हैं कि चीन की आर्मी इस वक्त दुनिया में सबसे ज्यादा शक्तिशाली है. 

दोस्त और दुश्मन साफ नहीं दिख रहे 

जॉन हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी में इतिहासकार विल्सन ई शमिड्त और कोल्ड वॉर इतिहासकार सर्गेई रडचेंको ने मौजूदा हालातों पर शोध करने के बाद माना कि पहला शीत युद्ध अब के तनाव के आगे कुछ नहीं. अब ये भी साफ नहीं कि कौन सा देश, किसका दोस्त है, या दुश्मन. रेखाएं साफ-साफ नहीं खिंची हैं. चीन-रूस-अमेरिका तीनों के पास ही न्यूक्लियर ताकत है. यहां तक कि नॉर्थ कोरिया जैसा छोटा देश भी कमजोर नहीं.

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गरीब देशों में छद्म युद्ध शुरू हो चुका

सूडान में लड़ाई के पीछे इन तीनों ही देशों का हाथ बताया जा रहा है. तीनों ही गोल्ड माइन्स पर कब्जा चाहते हैं. कर्ज देकर कब्जा करने की नीति के तहत चीन बहुत से देशों के भीतर तक घुस चुका है. अमेरिका भी सबके अंदरुनी मामले में दखल देता रहता है. वहीं रूस यूक्रेन पर कब्जा करके यूरोप का नक्शा बदलने को तैयार है. बीच में अरब देश भी हैं, जिनके पास अकूत पैसे हैं, लेकिन जो बार-बार पाला बदलते रहते हैं. 

गरीब और कर्जदार देश इस लड़ाई में मोहरा बन सकते हैं. सांकेतिक फोटो (Unsplash)

पिछले कोल्ड वॉर से क्या अलग?

- मई 2022 में अमेरिकी पब्लिक पॉलिसी थिंक टैंक हूवर इंस्टीट्यूशन ने कह दिया था कि दूसरा शीत युद्ध शुरू हो चुका है, जो चीन और वेस्ट के बीच है. रूस इसमें सिर्फ चीन का जूनियर पार्टनर की तरह काम कर रहा है. 

- चीन ने साउथ चाइना सी में छोटे-छोटे द्वीप बनाकर खुद को मजबूत कर लिया. ये वैसा ही है, जैसा अमेरिका ने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अटलांटिक महासागर पर कब्जा जमाकर किया था. 

- युद्ध आइडियोलॉजी के लिए नहीं, बल्कि ट्रेड और टेक्नोलॉजी के लिए हो रहा है. 

- ये करेंसी युद्ध भी है, जिसमें चीन अपनी मुद्रा को डॉलर से ऊपर लाना चाहता था. जिन देशों से चीन के अच्छे संबंध हैं, या जो उसके कर्जदार हैं, उनके साथ ये देश अपनी मुद्रा में लेनदेन शुरू भी कर चुका. 

- बाई-पोलर की बजाए मल्टी-पोलर होगा. इसमें कुछ देश तो खुले तौर पर आमने-सामने होंगे. लेकिन  कुछ देश जैसे भारत और जापान स्विंग स्टेट की तरह काम करेंगे, यानी इनके पास चुनने की गुंजाइश होगी कि वे किसी तरफ जाना चाहते हैं, या तटस्थ रहना चाहते हैं. 

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