
उत्तरी नाइजीरिया में अपहरण, खासकर बच्चों की किडनैपिंग के मामले आम हैं. साल 2009 में यहां आतंकी गुट बोको हराम ने अपनी पैठ बनाई. इसके कुछ ही समय के भीतर यहां स्टूडेंट्स की किडनैपिंग का सिलसिला शुरू हो गया. आतंकी खासकर स्कूली बच्चियों पर हमलावर रहे. ऐसा क्या है जो बोको हराम स्कूलों को टारगेट करता है, और नाइजीरियाई सरकार उसे रोक क्यों नहीं पा रही? समझिए.
क्या है बोको हराम का मतलब
बोको हराम की नींव ही नफरत पर रखी हुई है. साल 2002 में बना ये संगठन एक चरमपंथी समूह है जिसका आधिकारिक नाम जमाते एहली सुन्ना लिदावति वल जिहाद है. नाइजीरिया की भाषा होसा में बोको हराम का मोटा-मोटी अर्थ है- वेस्टर्न सीख हराम है. वैसे बोको का असल मतलब है नकली, लेकिन इसे वेस्ट से जोड़ा गया. नाइजीरिया से किसी भी तरह की चुनी हुई सरकार हटाकर ये लोग अपनी सत्ता लाना चाहते हैं. एक तरह से समझें तो ये ग्रुप नाइजीरिया का तालिबान है, जो मानता है कि एक धर्म विशेष को हर तरह की पश्चिमी चीज से दूर रहना चाहिए.
स्कूल हैं खास टारगेट
उनका इस बात पर खासा जोर है कि लड़कियां घर से बाहर न निकलें और न ही किसी तरह की फॉर्मल शिक्षा पाएं. लड़के भी इसमें शामिल हैं. इसी सोच को लेकर कट्टरपंथी इस्लामिक धर्मगुरु मोहम्मद यूसुफ ने संगठन बनाया. पहले ये गरीब नाइजीरियाई लड़कों को पढ़ाया करता. जल्द ही ये बच्चे उनका सॉफ्ट टारगेट हो गए. पढ़ाते हुए ही उनका ब्रेनवॉश होने लगा और संगठन बढ़ते हुए जिहादी भर्ती सेंटर में बदल गया. यहां लोगों को हथियार चलाने की ट्रेनिंग मिलती ताकि वे इस्लामिक देश की स्थापना कर सकें.
पंद्रह साल पहले हुआ ज्यादा खूंखार
पहले ये इस्लामिक ट्रेनिंग देते थे. लेकिन साल 2009 में संगठन ने बड़ा दांव खेलते हुए नाइजीरियाई शहरों पर हमले शुरू कर दिए. तब पलटवार में वहां की आर्मी ने आतंकियों को मारते हुए उसके हेडक्वॉर्टर पर ही कंट्रोल कर लिया और लीडर मोहम्मद यूसुफ मारा गया. ये एक तरह से आतंक का खात्म हो सकता था, लेकिन हुआ उल्टा. ग्रुप में एक नया लीडर अबू बकर शेखु आया, जिसने नए लड़ाकों की भर्ती की, उन्हें ज्यादा खूंखार और कट्टरपंथी बना दिया.
यहीं से शुरू हुई मास-किडनैपिंग
आतंकी सेना समेत आम लोगों पर भी हमले करने लगे. इसके मिलिटेंट गांवों पर हमला करते और महिलाओं-बच्चों को उठा लेते. महिलाएं-लड़कियां सेक्स स्लेव बना ली जातीं, जबकि लड़कों को लड़ाकों की तरह तैयार किया जाने लगा. साल 2014 में वहां के चिबोक शहर से लगभग 3 सौ बच्चियों को एक बोर्डिंग स्कूल से अगवा कर लिया गया. घटना के बाद हंगामा मच गया. किसी को भी नहीं पता था कि बच्चियां कहां और किन हालातों में हैं.
सरकार को माननी पड़ी थीं शर्तें
इस दौरान एक कैंपेन भी चला- ब्रिंग बैक अवर गर्ल्स. हालांकि कोई फायदा नहीं हुआ. लगभग 4 सालों बाद इनमें से कुछ लड़कियां इस शर्त पर छोड़ी गईं कि बदले में सेना की कैद में रहते चरमपंथी लड़ाके छोड़ दिए जाएं. साथ ही सरकार ने फिरौती भी थी. लौटी हुई लड़कियों को एक तरह से नजरबंदी में रखा गया. वे काफी समय तक अपने पेरेंट्स के साथ नहीं रह सकीं. हालांकि इसकी वजह ये दी गई कि बच्चियां मानसिक तकलीफ के दौर में हैं, और उन्हें साइकोलॉजिकल मदद दी जा रही है.
अब भी बाकी लड़कियां कहां हैं, इसका कुछ पता नहीं. माना जा रहा है कि बोको हराम भी इस्लामिक स्टेट की तरह महिलाओं को सेक्स स्लेव बनाकर रखता है.
क्रिमिनल्स को भी मिला पैसे कमाने का नया तरीका
सरकार ने जब साल 2014 में बोको हराम को फिरौती की थी, तब क्रिमिनल्स को भी तरीका मिल गया. वे भी अपहरण करने लगे. नतीजा ये हुआ कि किडनैपिंग की घटनाएं बढ़ने लगीं. साल 2020 में जब दुनिया कोविड से मर रही थी, तब भी नाइजीरिया में हजार से ज्यादा अपरहरण हुए. ये रिपोर्टेड केस हैं. रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 2011 से अगले एक दशक में नाइजीरिया में किडनैपर्स ने लगभग 130 करोड़ रुपये फिरौती के तौर पर वसूले.
क्यों नहीं रुक पा रहे मामले
बोको हराम ने स्कूली पढ़ाई रोकने के लिए जो किडनैपिंग शुरू की, वो देश के लिए एक तरह का बिजनेस ही बन गई. बेहद गरीबी से जूझ रहे युवा भी इसका हिस्सा बनने लगे. ऐसे में सरकार के लिए आतंकी और आम लोगों में अंतर कर पाना मुश्किल हो जाता है.
नाइजीरिया में दो धर्मों का दबदबा है. वहां लगभग 53 प्रतिशत आबादी इस्लाम, और 46 प्रतिशत के आसपास लोग ईसाई धर्म को मानने वाले हैं. उनके बीच भी संघर्ष चलता आया है. इसका फायदा भी आतंकी और आपराधिक गुट उठा रहे हैं. वे भ्रम की स्थिति पैदा कर देते हैं.
बेरोजगारी से परेशान लोग बोको हराम के लिए काम करने को बेहतर ऑप्शन मानते हैं. अगर युवा अपनी मर्जी से नहीं जाएंगे तो भी फोर्स्ड रिक्रूटमेंट होगा. इसलिए वे पहले ही उसके लिए काम करने जा रहे हैं.
क्या कोई कानून है
साल 2022 में इसे रोकने के लिए सख्त कानून बना. अपहरण के दोषियों के लिए मौत की सजा के साथ फिरौती देने वालों को 15 साल की सजा. लेकिन इसपर भी जनता नाराज हो गई. उसका कहना था कि सरकार अगर खुद किडनैप हुए लोगों को छुड़ा नहीं पा रही तो ऐसे में वो फिरौती देने से रोक नहीं सकती. अपने परिवार की सेफ्टी उनका जिम्मा हो जाती है. सजा से बचने के लिए किडनैपिंग के ज्यादातर मामले रिपोर्ट ही नहीं किए जाते. ये मामला तभी उछलता है, जब मास-किडनैपिंग हो, जो बोको हराम करवाता है.