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हजारों पाबंदियों के बाद भी North Korea कैसे कर रहा गुजर-बसर, रूस या चीन- कौन ज्यादा मददगार?

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन नॉर्थ कोरिया के दौरे पर हैं. इस बीच कहा जा रहा है कि अब किम जोंग को किसी नई पाबंदी से डरने की जरूरत नहीं क्योंकि रूस उसके साथ है. दो हजार से कुछ ज्यादा पाबंदियां झेलता उत्तर कोरिया न तो किसी के साथ खुलकर व्यापार कर सकता है, न ही इंटरनेशनल मदद ले पाता है. फिर वो कौन सा सपोर्ट सिस्टम है, जिससे वो टिका हुआ है?

किम जोंग उन और व्लादिमीर पुतिन की मुलाकात चर्चा में है. (Photo- Reuters) किम जोंग उन और व्लादिमीर पुतिन की मुलाकात चर्चा में है. (Photo- Reuters)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 19 जून 2024,
  • अपडेटेड 5:42 PM IST

दो जिद्दी लेकिन उतने ही ताकतवर नेताओं- रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और उत्तर कोरियाई लीडर किम जोंग उन की दोस्ती लगातार गाढ़ी होती दिख रही है. कुछ समय पहले किम जोंग ने रूस का दौरा किया था. अब पुतिन उनके देश गए हुए हैं. दोनों देशों में कई बातें कॉमन हैं. जैसे दोनों ही अमेरिका से बैर ठाने रहते हैं. साथ ही आक्रामक नीतियों के चलते दोनों कई तरह की ग्लोबल पाबंदियां झेल रहे हैं. रूस तो फिर भी अमीर देश है, लेकिन सवाल ये है कि नॉर्थ कोरिया का काम कैसे चल रहा है! जानिए, बैन में भी कैसे टिका हुआ है उत्तर कोरिया. 

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किन-किन ने लगाया बैन

इसमें यूनाइटेड नेशन्स सिक्योरिटी काउंसिल,  अमेरिका और यूरोपियन यूनियन की तरफ से लगाए गए सेंक्शन्स शामिल हैं. इसमें लोगों के अलावा संस्थाओं के एसेट फ्रीज करना, ट्रैवल बैन और पाबंदी के तहत आने वालों के लिए किसी भी फंड पर रोक लगाना शामिल है. 

क्यों लगे सेंक्शन्स

उत्तर कोरिया ने 2006 से अब तक कई परमाणु परीक्षण किए. साथ ही साथ कोरियाई लीडर कई बार आक्रामक बातें भी करते हैं. यही देखते हुए यूएनएससी ने उसपर कई पाबंदियां लगा दीं. इस देश से मानवाधिकारों को तोड़ने की खबरें भी आती रहीं, जो खुद वहां से भागकर अमेरिका या दक्षिण कोरिया पहुंचे हुए लोग कहते हैं. इंटरनेशनल कम्युनिटी ने इस वजह से भी काफी सारे बैन लगाए. 

कितने बैन हैं देश पर और कैसे हो रहा मैनेज? 

पाबंदियों की वजह से उत्तर कोरिया ज्यादातर देशों के साथ खुलकर व्यापार नहीं कर पाता. इसके बाद भी जब-तब उसके मिसाइल परीक्षण की बात आती रहती है. पैसों के लिए उसके स्त्रोत बाकी देशों से काफी अलग हैं. यूएन की रिपोर्ट कहती है कि अपने लिए पैसे जुटाने के लिए वो क्रिप्टोकरेंसी एक्सचेंज पर साइबर अटैक कर पैसे की उगाही करता है. आय का बड़ा स्त्रोत कथित तौर पर तस्करी भी है. यूएन की एक रिपोर्ट में दावा किया गया कि सालभर में ये देश 370 मिलियन डॉलर कोयले के अवैध व्यापार से कमाता है.

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कोयले की तस्करी के आरोप 

नॉर्थ कोरिया के लिए आय का बड़ा स्त्रोत कथित तौर पर तस्करी भी है. यूएन की एक रिपोर्ट में दावा किया गया कि सालभर में ये देश 370 मिलियन डॉलर कोयले के अवैध व्यापार से कमाता है. साल 2017 में चीन ने यूनाइटेड नेशन्स का साथ देने के नाम पर सालभर के लिए उससे कोयले का करार रोक दिया था, लेकिन तब भी कोल इंडस्ट्री फलती-फूलती रही.

बैन के बावजूद वहां से लेबर एक्सपोर्ट हो रहा है. इस देश के हजारों वर्कर रूस और चीन में काम करते हैं. इससे हो रही कमाई वे देश भेजते हैं. कई नॉर्थ कोरियाई बिजनेस दूसरे मित्र देशों के बैनर तले काम करते हैं. यहां तक कि नॉर्थ कोरिया दूसरे देशों की शिप के बैनर पर अपने उत्पाद सप्लाई करता है. 

मशरूम से भी कमाई 

उत्तर कोरिया को इसके पाइन मशरूम के लिए भी जाना जाता है. साल 2018 में किम जोंग उन ने दक्षिण कोरियाई सरकार को दो टन मशरूम तोहफे में भेजा था. कुछ देशों से साथ इसका वैध तो कुछ के साथ चुपके-चुपके मशरूम बिजनेस चलता है. ये देश खुद दावा करता है कि उसके पास मशरूम की जितनी किस्में हैं, उतनी दुनिया में कहीं नहीं. मशरूम के साथ इस देश का लगाव इससे भी समझ सकते हैं कि यहां मशरूम से स्पोर्ट ड्रिंक तक तैयार होता है, जिसकी शिप-टू-शिप तस्करी होती है.

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सी-फूड भी यहां की जीडीपी का बड़ा सोर्स 

अकेले साल 2017 में उत्तर कोरिया से 137 मिलियन डॉलर कीमत के घोंघे का एक्सपोर्ट रूस और चीन में हुआ था. उसी साल लगभग 3 मिलियन डॉलर लागत की प्रोसेस्ड मछली चीन में सप्लाई की गई. इंटरनेशनल ट्रेड डेटा पर नजर रखने वाली संस्था ऑब्जर्वेटरी ऑफ इकनॉमिक कॉम्प्लेक्सिटी (OEC) ने ये डेटा निकाला. 

क्या मेड-इन-चाइना असल में कोरिया में बन रहा? 

उत्तर कोरिया में वैसे तो कपड़ों के व्यापार की खास चर्चा नहीं होती, लेकिन बीते कुछ सालों में ये विवाद होने लगा कि मेड-इन-चाइना लिखे हुए कपड़ों और एक्सेसरीज असल में चीन नहीं, बल्कि उत्तर कोरियाई कारखानों में तैयार हो रही हैं. OEC का ये भी कहना है कि चीन और रूस के साथ भले ही उसका ज्यादा व्यापार होता है, लेकिन कई दूसरे देश भी नॉर्थ कोरियाई व्यापार को चलाए हुए हैं. भारत वहां बने प्रोडक्ट्स का 3.5% हिस्सा लेता है, पाकिस्तान को किम जोंग सरकार 1.5% प्रोडक्ट एक्सपोर्ट करती है. बुर्किना फासो और सऊदी अरब का नाम भी इस लिस्ट में है.

चीन और रूस- कौन कर रहा ज्यादा मदद 

कोई ऐसा डेटा नहीं मिलता, जो पक्का बता सके कि कौन ज्यादा सहायता कर रहा है. वैसे चीन इस देश का ज्यादा बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर है. बीजिंग से अक्सर उत्तर कोरिया को मानवीय मदद भी मिलती है, जैसे सूखे, या किसी कुदरती आपदा के बाद एड. चीन इसे पॉलिटिकल शील्ड भी देने की कोशिश करता है. जैसे यूएनएससी के मुख्य सदस्य की तौर पर वो सीधे नॉर्थ कोरिया की वकालत करता रहा. 

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रूस इस देश को ऑइल और गैस सप्लाई करता है. इसके अलावा ट्रेडिंग की बात करें तो रूस के नॉर्थ कोरिया से रिश्ते जरा हल्के हैं. हालांकि राजनैतिक तौर पर वो भी किम जोंग के देश को खुलकर सपोर्ट करता है. दोनों के बीच द्विपक्षीय डिप्लोमेटिक रिश्ते भी हमेशा रहे. 

क्यों नहीं ले रहा इंटरनेशनल सहायता

नॉर्थ कोरिया से वैसे तो खबरें बाहर नहीं निकल पातीं, लेकिन पड़ोसी देश दक्षिण कोरिया की खुफिया एजेंसियां और खुद वहां से भागे हुए लोग अपने देश के हालात बताते रहे. इसके बाद कई देशों ने मदद की पेशकश भी की, लेकिन बाहरी हेल्प को यहां की सरकार 'पॉइजन्ड कैंडी' मानती है. वहां के सरकारी न्यूजपेपर रोडॉन्ग सिनमन ने बाकायदा लेख लिखकर लोगों को ऐसे लालच से दूर रहने को कहा. इसके मुताबिक, विदेशी ताकतें खाने-रहने का बहकावा देकर देश तोड़ देती हैं. 

असल हालात के बारे में किसी को नहीं पता 

दुनिया के लगभग सारे देश वर्ल्ड बैंक और उन संस्थाओं से जुड़े हैं जो कर्ज देती हैं, लेकिन उत्तर कोरिया का इनसे कोई वास्ता नहीं. ये ग्लोबल इकनॉमी का हिस्सा ही नहीं. किसी को नहीं पता कि देश के पास कितने पैसे आते हैं और उनका क्या होता है. सबकुछ केवल अंदाजे से और वहां से भागे हुए लोगों की टेस्टिमोनी के आधार पर माना जा रहा है.

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पारदर्शिता से बचता है 

वर्ल्ड बैंक विकासशील देशों को जमकर फंड देता है, लेकिन किम जोंग का देश इसका भी सदस्य नहीं बना. इससे जुड़ने के लिए उसे इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड (IMF) जॉइन करना होगा. इसके लिए अपने देश में पैसों का सारा लेखाजोखा सामने रखना होता है. साथ ही फॉरेन एक्सचेंज को भी रास्ता देना होता है. फिलहाल इस देश को इस बात पर एतराज है. किम नहीं चाहते कि उनके राज में किसी भी किस्म का विदेशी दखल हो.

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