
केरल सरकार द्वारा नियंत्रित दो मंदिर न्यासों ने मंदिरों में ओलिएंडर प्रजाति के फूल यानी कनेर फूल की एक किस्म के चढ़ाए जाने पर पाबंदी लगा दी. ये मंदिर न्यास 2500 से ज्यादा मंदिरों की देखरेख करते हैं. स्थानीय भाषा में अरली कहलाते इन फूलों के बारे में कहा जाता रहा कि ये जहरीले होते हैं. अब एक युवा नर्स की मौत ने मामले को तूल दे दी, और आनन-फानन ही मंदिर कमेटी ने फूलों पर ही बैन लगा दिया.
क्या है नर्स से जुड़ा मामला
ये फैसला 24 साल की नर्स सूर्या सुरेंद्रन की मौत के बाद लिया गया. सुरेंद्रन जो कि यूके में नई नौकरी के लिए जाने के लिए तैयार थी, उन्होंने लापरवाही में घर पर उगे कनेर की कुछ पत्तियां खा लीं. इसके बाद वे एयरपोर्ट के लिए निकल गईं, जहां उनमें पॉइजनिंग के लक्षण दिखे. कोच्चि एयरपोर्ट पर सुरेंद्रन ने बताया कि उन्होंने आखिरी चीज फूल के पत्ते खाए थे. कुछ दिनों के भीतर अस्पताल में उनकी मौत हो गई. पीएम में भी पॉइजनिंग की पुष्टि हुई. दक्षिण केरल में कथित तौर पर ओलिएंडर खाने से ही पशुओं की भी मौत हो चुकी.
इन बोर्ड्स ने लिया फैसला
नर्स की मौत के बाद मामला गरमाया और ये डर बढ़ा कि फूल किसी बड़े हादसे का कारण न बन जाएं. बता दें कि केरल समेत देशभर के मंदिरों में ओलिएंडर के फूल चढ़ाया जाना आम है. अपने यहां की घटना को देखते हुए राज्य सरकार के मंदिर न्यास ने फैसला लिया कि मंदिरों में ये फूल नहीं चढ़ाया जाएगा. जिन दो बोर्ड्स ने ये तय किया, वे त्रावणकोर देवस्वोम बोर्ड (टीडीबी) और मालाबार देवस्वोम बोर्ड (एमडीबी) हैं.
मंदिर बोर्ड ने कहा कि नैवेद्यम और प्रसादम में अरली के फूलों का किसी भी हाल में इस्तेमाल न हो. लेकिन ये फूल इससे पहले काफी मात्रा में चढ़ते रहे. अब इनपर प्रतिबंध के बाद तुलसी, गुलाब और मौसमी फूल चढ़ाए जाएंगे.
क्या है ओलिएंडर फूल
ओलिएंडर का पूरा नाम नेरियम ओलिएंडर है, जिसे रोजबे भी कहा जाता है. आमतौर पर उष्णकटिबंधीय देशों में उगने वाले फूल की खासियत है कि ये सूखे में भी जल्दी नहीं मुरझाता. इसी खूबी की वजह से इसे लैंडस्केपिक सौंदर्य के लिए भी उगाया जाता है. जैसे केरल की ही बात लें तो वहां के हाईवे और बीच के आसपास ओलिएंडर खूब उगाए गए हैं. ये सुंदर भी लगते हैं और पानी के बिना लंबे समय तक जिंदा भी रह जाते हैं, मतलब लो-मेंटेनेंस हैं.
केरल में अरली या कनवीरम कहलाते इस फूल को उत्तर भारत में कनेर भी कहते हैं. लेकिन इसकी कई किस्में होती हैं और हर किस्म का रंग-गंध अलग रहता है, जिस हिसाब से उसका नाम भी बदल जाता है. ये पीले, गुलाबी और सफेद रंग के होते हैं.
क्या है मेडिसिनल इस्तेमाल
आयुर्वेदिक फार्माकोपिया ऑफ इंडिया (API) एक सरकारी डॉक्युमेंट है. इसमें ओलिएंडर से बनने वाली दवाओं के बारे में बताया गया. इंडियन एक्सप्रेस में इसके हवाले से लिखा है कि ओलिएंडर की जड़ और छाल से बनने वाले तेल से स्किन की बीमारियों का इलाज होता है. चरक संहिता समेत कई आयुर्वेदिक ग्रंथों में इसका जिक्र है. कहा गया है कि पुरानी से पुरानी स्किन डिसीज में इससे फायदा होता है. इंटरनेशनल जर्नल ऑफ आयुर्वेद एंड मेडिकल साइंसेज में साल 2016 में इसपर लेख आ चुका है, जो दावा करता है कि कुष्ठ जैसी बीमारी में भी इसे लेने से काफी लाभ होता है.
क्या जहरीला भी है कनेर
ये ठीक है कि आयुर्वेद में इसका उपयोग होता आया लेकिन इसके पॉइजनस होने की बात भी दोहराई जाती रही. ओलिएंडर के टॉक्सिक होने पर अमेरिकी टॉक्सिकोलॉजिस्ट शैनन डी लैंगफोर्ड ने टॉक्सिकोलॉजी मैग्जीन में लिखा था कि इलाज में इसका उपयोग सबको पता है लेकिन अब इसका इस्तेमाल खुदकुशी में हो रहा है. इसे सीधा खाने के अलावा जलने पर इसका सांस में जाना भी जहर का कारण बन सकता है.
क्यों है ऐसा
ओलिएंडर में कार्डियक ग्लाइकोसाइड होता है. फूल से लेकर पत्तियों और छाल में भी मिलता ये कंपाउंड वैसे तो दिल की बीमारियों के इलाज में काम आता है, लेकिन इसका ओवरडोज जानलेवा हो सकता है. इसका असर दिल समेत सभी ऑर्गन्स पर होता है.
क्या हैं ओलिएंडर टॉक्सिसिटी के लक्षण
इनके फूल या पत्तियों को खाने से मितली, दस्त, उल्टियां, सिरदर्द जैसे लक्षण दिखते हैं. कई बार शरीर पर लाल चकत्ते दिखते हैं और दिल की धड़कन अनियमित हो जाती है. मामूली साइड इफेक्ट 1 से 3 दिन तक रहते हैं और इलाज पर ठीक हो जाते हैं. वहीं एक्सट्रीम मामलों में मौत भी हो सकती है, जैसा केरल में हुआ.
ये है दुनिया का सबसे जहरीला पौधा
ये तो हुई केरल के मंदिरों में ओलिएंडर पर पाबंदी लगने की बात, लेकिन दुनिया में कई और भी बेहद खतरनाक पौधे हैं, जिन्हें छूते ही जान जा सकती है. इसमें ऑस्ट्रेलियाई मूल का जिम्पई पौधा टॉप पर है. हालात ये हैं कि क्वींसलैंड में अनजाने में इसके संपर्क में आए लोगों ने दर्द से बेहाल होकर खुदकुशी कर ली. बाद में क्वींसलैंड पार्क्स एंड वाइल्डलाइफ सर्विस ने जंगल में जाने-आने वालों के लिए गाइडलाइन जारी की ताकि वे खतरे से दूर रह सकें.
जानें, सुसाइड प्लांट पर सबकुछ
इसका बायोलॉजिकल नाम है, डेंड्रोक्नाइड मोरोइड्स, जो ऑस्ट्रेलिया के उत्तर-पूर्वी रेनफॉरेस्ट में मिलता है. जिम्पई-जिम्पई इसका कॉमन नेम है, लेकिन इसे कई और नामों से भी जाना जाता है, जैसे सुसाइड प्लांट, जिम्पई स्टिंगर, स्टिंगिंग ब्रश और मूनलाइटर. दिखने में ये बिल्कुल सामान्य पौधे जैसा है, जिसकी पत्तियां हार्ट के आकार की होती हैं और ऊंचाई 3 से 15 फीट तक हो सकती है.
सेंट्रल नर्वस सिस्टम पर करता है असर
रोएं की तरह बारीक लगने वाले कांटों से भरे इस पौधे में न्यूरोटॉक्सिन जहर होता है, जो कांटों के जरिए शरीर के भीतर पहुंच जाता है. न्यूरोटॉक्सिन सीधे सेंट्रल नर्वस सिस्टम पर असर डालता है. इससे मौत भी हो सकती है. कांटा लगने के लगभग आधे घंटे बाद दर्द की तीव्रता बढ़ने लगती है. जल्दी इलाज न मिले तो दर्द से बेहाल इंसान खुद को ही नुकसान पहुंचा सकता है.