
वन नेशन, वन इलेक्शन बिल संसद में पेश होने के बाद अब जॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी (जेपीसी) के पास पहुंच चुका है. कमेटी को अगले सत्र के आखिरी हफ्ते तक अपनी रिपोर्ट देनी होगी. इसमें लोकसभा और राज्यसभा दोनों से ही सांसद होंगे, जो सभी प्रमुख पार्टियों को रिप्रेजेंट करते हैं. बिल पेश किए जाने पर विपक्ष के विरोध को देखते हुए कमेटी बनाई गई. अब आगे क्या होगा? क्या ये समिति जो भी कह दे, बिल के साथ वही होने वाला है या इसकी कुछ सीमाएं हैं?
जेपीसी क्या है और उसकी भूमिका क्या रहेगी
सरकार ने एक देश- एक चुनाव बिल को सदन के बाद संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी के पास भेजा है. यह एक विशेष कमेटी है, जिसे राष्ट्रीय महत्व के मामलों की जांच के लिए खुद संसद ही बनाती है. जेसीपी खासतौर पर विधेयकों या पैसों की बड़ी गड़बड़ी के आरोप को देखती, उनकी जांच करती है. जेपीसी में दोनों ही सदनों के सदस्य होते हैं, जो लगभग सभी बड़ी पार्टियों को रिप्रेजेंट करें. ये कमेटी एक तरह से उन मुद्दों पर रिसर्च करती और रिपोर्ट बनाती है, जिसका आगे चलकर देश पर लंबा असर होने वाला हो.
आमतौर पर कब बनती है जेपीसी
ये अमूमन उन विधेयकों, नीतियों या मुद्दों की जांच के तैयार की जाती है, जिनकी जांच सामान्य संसदीय प्रोसेस से मुमकिन नहीं. फाइनेंशियल अनियमितता के अलावा ये सरकारी कामकाज में बड़ी गड़बड़ी की भी जांच कर सकती है. लेकिन हर बार कमेटी एक खास एजेंडा के साथ तैयार होती है, और उसे उसी की जांच तक सीमित रहना होता है. फिलहाल एक देश- एक चुनाव पर जांच कमेटी बनी, इससे भी मामले के महत्व का पता लगता है.
कैसे काम करती समिति
जेपीसी के गठन की प्रोसेस तब शुरू होती है जब संसद के एक सदन में इस तरह का प्रस्ताव पेश किया जाए, और दूसरा सदन हामी भरे. जेपीसी के सदस्यों का चयन लोकसभा और राज्यसभा दोनों से होता है. एक पार्टी से कितने सदस्य होंगे, ये उसकी कुल सदस्य संख्या पर तय करता है. लेकिन एक नियम ये भी है कि लोकसभा सदस्यों की संख्या हमेशा राज्यसभा सदस्यों की संख्या से दोगुनी होगी. फिलहाल सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते भाजपा को समिति की अध्यक्षता मिलेगी.
कमेटी अस्थाई बॉडी है, जो मकसद पूरा होते ही खत्म कर दी जाती है. इनवेस्टिगेशन के दौरान ये मौखिक और लिखित दोनों ही तरह से दस्तावेज सदन से मांग सकती है. इसके अलावा, जरूरत पड़े तो यह संस्थान या लोगों को जांच के लिए बुला भी सकती है. अगर कोई संस्था या शख्स इससे इनकार करे तो इसे संसद की अवमानना माना जाता है.
कितनी ताकतवर है ये
जेपीसी को अपनी जांच के दौरान काफी सारी शक्तियां मिली होती हैं. यह गवाहों को तलब कर सकती है. सबूत मांग सकती है. साथ ही मामले से जुड़े किसी भी तरह के दस्तावेज भी डिमांड कर सकती है. ये सरकारी अधिकारियों समेत किसी भी ऐसे शख्स को जांच के लिए बुला सकता है, जो इससे संबंधित माना जाए. अगर कोई जांच का हिस्सा बनने से इनकार करे तो उसे गंभीर नतीजे मिल सकते हैं.
लेकिन जेपीसी की सबसे बड़ी ताकत ये है कि वो एक नतीजे तक पहुंच सकती है. सबूतों को लेकर या किसी भी तरह के विवाद के हालात में समिति के अध्यक्ष का फैसला आखिरी होता है. वैसे तो कमेटी का फैसला गोपनीय होता है लेकिन अगर वो चाहे तो इसे सार्वजनिक करने का ऑप्शन भी चुन सकती है. खासकर अगर वे पब्लिक इंट्रेस्ट के हों.
कुछ मामलों में, सरकार को जेपीसी की रिपोर्ट को रोकने का हक है, अगर उसे लगे कि ये राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सही नहीं है. वन नेशन- वन इलेक्शन की बात करें तो अगर यह विधेयक कमेटी से मंजूरी पा जाए तो लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होने का रास्ता साफ हो जाएगा.
देश में अब तक कई मौकों पर जेपीसी बनाई जा चुकी
- बोफोर्स तोपों की खरीद में करप्शन और दलाली के आरोपों की जांच के लिए. लेकिन विपक्ष में रिपोर्ट को खारिज कर दिया.
- हर्षद मेहता के शेयर बाजार में की गई धोखाधड़ी और बैंकों के रोल की जांच. कमेटी ने वित्तीय सिस्टम में सुधार की सिफारिश की.
- साल 2003 में कोल्ड ड्रिंक्स में कीटनाशक होने के आरोपों की जांच.
- 2G स्पेक्ट्रम घोटाले में गड़बड़ी की जांच. रिपोर्ट में कम्युनिकेशन नीति में ट्रांसपरेंसी की बात की गई.