
क्या देश में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाने चाहिए? इस पर लंबे समय से बहस हो रही है. लेकिन नतीजा अब तक कुछ नहीं निकला है. अब केंद्र सरकार ने बताया कि अगर देश में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव साथ कराने हैं तो संविधान के पांच अनुच्छेद में संशोधन करना होगा. केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने बताया कि साथ में चुनाव कराने के लिए अनुच्छेद- 83, 85, 172, 174 और 356 में संशोधन करना होगा.
उन्होंने बताया कि साथ चुनाव करवाने के लिए ईवीएम और पेपर ट्रेल मशीनों की जरूरत भी होगी, जिस पर हजारों करोड़ रुपये खर्च होंगे. उन्होंने बताया कि ईवीएम 15 साल तक काम कर सकती है. ऐसे में अगर एक साथ चुनाव होते हैं तो इनका इस्तेमाल तीन या चार बार ही होगा और फिर 15 साल में बदलने पर बहुत खर्च होगा.
संविधान में क्या संशोधन करना होगा?
- अनुच्छेद-83: इसके मुताबिक, लोकसभा का कार्यकाल पांच साल तक रहेगा. अनुच्छेद- 83(2) में प्रावधान है कि इस कार्यकाल को एक बार में सिर्फ एक साल के लिए बढ़ाया जा सकता है.
- अनुच्छेद-85: राष्ट्रपति को समय से पहले लोकसभा भंग करने का अधिकार दिया गया है.
- अनुच्छेद-172: इस अनुच्छेद में विधानसभा का कार्यकाल पांच साल का तय किया गया है. हालांकि, अनुच्छेद-83(2) के तहत, विधानसभा का कार्यकाल भी एक साल के लिए बढ़ाया जा सकता है.
- अनुच्छेद-174: जिस तरह से राष्ट्रपति के पास लोकसभा भंग करने का अधिकार है, उसी तरह से अनुच्छेद-174 में राज्यपाल को विधानसभा भंग करने का अधिकार दिया गया है.
- अनुच्छेद-356: ये किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने का प्रावधान करता है. राज्यपाल की सिफारिश पर किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सकता है.
इन संशोधन की जरूरत क्यों?
- आजादी के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ ही होते थे.
- इसके बाद 1968 और 1969 में कई विधानसभाएं समय से पहले ही भंग कर दी गई. उसके बाद 1970 में लोकसभा भी भंग कर दी गई. इससे एक साथ चुनाव की परंपरा टूट गई.
- अगस्त 2018 में एक देश-एक चुनाव पर लॉ कमीशन की रिपोर्ट आई थी. इस रिपोर्ट में सुझाव दिया गया था कि देश में दो फेज में चुनाव कराए जा सकते हैं.
- पहले फेज में लोकसभा के साथ ही कुछ राज्यों के विधानसभा चुनाव. और दूसरे फेज में बाकी राज्यों के विधानसभा चुनाव. लेकिन इसके लिए कुछ विधानसभाओं का कार्यकाल बढ़ाना होगा तो किसी को समय से पहले भंग करना होगा. और ये सब बगैर संविधान संशोधन के मुमकिन नहीं है.
कैसे हो सकते हैं एक साथ चुनाव?
- विकल्प 1: कुछ राज्यों के चुनाव लोकसभा चुनाव के साथ ही होते हैं. कुछ राज्यों में लोकसभा से कुछ महीने पहले होते हैं. तो वहीं, कुछ राज्यों में लोकसभा चुनाव के कुछ महीनों बाद ही चुनाव होते हैं. ऐसे में कुछ राज्यों में विधानसभा समय से पहले भंग करके और कुछ का कार्यकाल बढ़ाकर लोकसभा चुनाव के साथ ही चुनाव कराए जा सकते हैं.
- विकल्प 2: कई राज्यों में विधानसभा चुनाव लोकसभा चुनाव के दो साल बाद खत्म होती है. ऐसे में दो फेज में चुनाव कराए जा सकते हैं. पहले फेज में लोकसभा के साथ ही कुछ राज्यों के विधानसभा चुनाव हो जाएं. और दूसरे फेज में बाकी बचे राज्यों के चुनाव हो जाएं. ऐसा होता है तो पांच साल में दो बार ही विधानसभा चुनाव होंगे.
- विकल्प 3: लॉ कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में सुझाव दिया था कि अगर एक साथ चुनाव नहीं कराए जा सकते, तो फिर एक साल में होने वाले सभी चुनाव साथ में करा दिए जाएं. इससे साल में बार-बार होने वाले चुनावों से बचा जा सकेगा.
पर सरकार पहले गिर गई तो?
- मान लीजिए कि किसी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया जाता है और वो पास हो जाता है तो ऐसी स्थिति में क्या होगा? क्योंकि इससे तो फिर एक साथ-एक चुनाव वाली स्थिति बिगड़ सकती है.
- ऐसी स्थिति से बचने के लिए भी लॉ कमीशन ने सुझाव दिया था. लॉ कमीशन ने सुझाया था कि अविश्वास प्रस्ताव के जरिए मौजूदा सरकार को तभी हटाया जाना चाहिए, जब दूसरी सरकार पर विश्वास हो. ताकि, लोकसभा या विधानसभा भंग न हो.
लेकिन किसी को बहुमत नहीं मिला, फिर?
- चूंकि, हमारे देश में मल्टी पार्टी सिस्टम है. इसलिए इस बात की बहुत ज्यादा संभावना बनी रहती है कि लोकसभा या विधानसभा में किसी एक पार्टी को बहुमत न मिले. ऐसे में त्रिशंकु सदन की स्थिति बन जाती है.
- इस पर लॉ कमीशन ने सुझाव दिया था कि ऐसी स्थिति पर चुनाव के बाद राष्ट्रपति या राज्यपाल सबसे बड़ी पार्टी या गठबंधन को सरकार बनाने का न्योता दें. अगर फिर भी सरकार नहीं बन पाती है तो मध्यावधि चुनाव कराए जाएं. लेकिन चुनाव के बाद जो सरकार तब तक के लिए ही बनेगी, जितना कार्यकाल बचा होगा. ऐसी सरकार का कार्यकाल पांच साल नहीं होगा.
लेकिन इससे होगा क्या?
- लॉ कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि अगर एक साथ चुनाव कराए जाते हैं तो इससे करोड़ों रुपये बचाए जा सकते हैं. इसके साथ ही बार-बार आचार संहिता न लगने की वजह से डेवलपमेंट वर्क पर भी असर नहीं पड़ेगा.
- कानूनन लोकसभा चुनाव का खर्च केंद्र सरकार उठाती है. वहीं, विधानसभा चुनाव का खर्च वहां की राज्य सरकार पर आता है. अगर किसी राज्य में लोकसभा के साथ-साथ विधानसभा चुनाव भी हों तो फिर केंद्र और राज्य मिलकर खर्चा उठाते हैं.
- एक साथ-एक चुनाव कराने के पीछे तर्क दिया जाता है कि इससे करोड़ों रुपये भी बचेंगे. लॉ कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में 2014 के लोकसभा चुनाव के आसपास हुए कुछ राज्यों के विधानसभा चुनावों के खर्च की तुलना की थी.
- रिपोर्ट में बताया था कि लोकसभा चुनाव के आसपास पांच राज्यों- हरियाणा, झारखंड, मध्य प्रदेश, दिल्ली और महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव हुए थे. इन राज्यों में लोकसभा चुनाव के वक्त जितना खर्च हुआ था, लगभग उतना ही विधानसभा चुनाव में भी हुआ था.
- उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव के वक्त 487 करोड़ रुपये खर्च हुए थे, जबकि विधानसभा चुनाव में 462 करोड़ रुपये का खर्चा आया था. लॉ कमीशन का कहना था कि अगर साथ चुनाव होते तो इस खर्च को कम किया जा सकता था.
- इतना ही नहीं, 2018 में आई इस रिपोर्ट में ये भी कहा गया था कि अगर 2019 में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाते हैं तो 4,500 करोड़ का खर्चा बढ़ेगा. ये खर्चा ईवीएम की खरीद पर होगा. लेकिन 2024 में साथ चुनाव कराने पर 1,751 करोड़ का खर्चा बढ़ेगा. यानी, धीरे-धीरे ये एक्स्ट्रा खर्च भी कम हो जाएगा.
क्या ऐसा मुमकिन है?
- फिलहाल, तो इसकी गुंजाइश नहीं है. ऐसा इसलिए भी क्योंकि कई राजनीतिक पार्टियां इसके विरोध में है.
- विरोध के पीछे कई तर्क दिए जाते हैं. मसलन, साथ चुनाव होते हैं तो क्षेत्रीय मुद्दों की बजाय राष्ट्रीय मुद्दों को तरजीह मिल सकती है या इसका उल्टा हो सकता है. इससे राष्ट्रीय पार्टियां बढ़ेंगी और क्षेत्रीय पार्टियां खत्म हो जाएंगी.
- इतना ही नहीं, हमारे देश में हर साल औसतन पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव होते हैं. इसी साल के आखिर में चार राज्यों- मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और तेलंगाना में विधानसभा चुनाव हैं. जबकि, इसी साल त्रिपुरा, मेघालय, नागालैंड और कर्नाटक में चुनाव हो चुके हैं.
और किसी देश में होते हैं साथ में चुनाव?
- दुनिया में कई ऐसे देश हैं जहां पर सारे चुनाव एक साथ ही कराए जाते हैं. साउथ अफ्रीका में संसद, प्रांतीय विधानसभा और नगर पालिकाओं के चुनाव एक साथ होते हैं. यहां हर पांच साल में चुनाव कराए जाते हैं.
- स्वीडन में भी एक साथ ही चुनाव होते हैं. यहां हर चार साल में आम चुनाव के साथ-साथ काउंटी और म्यूनिसिपल काउंसिल के चुनाव होते हैं.
- बेल्जियम में पांच तरह के चुनाव होते हैं. ये हर पांच साल के अंतर पर होते हैं. और सारे चुनाव साथ कराए जाते हैं.
- यूके में हाउस ऑफ कॉमन्स, स्थानीय चुनाव और मेयर चुनाव साथ में होते हैं. यहां पर मई के पहले हफ्ते में सारे चुनाव कराए जाते हैं. यूके के संविधान के तहत, समय से पहले चुनाव तभी हो सकते हैं जब सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पास हो जाए और कोई दूसरी पार्टी सरकार न बना सके.
- इंडोनेशिया में राष्ट्रपति और लेजिस्लेटिव इलेक्शन साथ में होते हैं. इनके अलावा जर्मनी, फिलिपींस, ब्राजील, बोलीविया, कोलंबिया, कोस्टा रिका, ग्वाटेमाला, गुआना, होंडुरस जैसे देशों में भी एक साथ ही सारे चुनाव होते हैं.