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...तो 2029 में एक साथ होंगे सारे चुनाव, 'वन नेशन-वन इलेक्शन' पर कोविंद कमेटी की रिपोर्ट मंजूर, जानें अब आगे क्या होगा

पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अगुवाई वाली समिति ने कहा था कि देश में दो चरणों में एक साथ चुनाव करवाए जा सकते हैं. पहले चरण में लोकसभा के साथ-साथ सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव करवा दिए जाएं. जबकि, दूसरे चरण में नगर पालिकाओं और पंचायतों के चुनाव करवाए जाएं.

मोदी कैबिनेट ने वन नेशन-वन इलेक्शन पर कोविंद कमेटी की रिपोर्ट को मंजूरी दे दी है. मोदी कैबिनेट ने वन नेशन-वन इलेक्शन पर कोविंद कमेटी की रिपोर्ट को मंजूरी दे दी है.
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 18 सितंबर 2024,
  • अपडेटेड 8:23 PM IST

'एक देश-एक चुनाव' को कानूनी रूप देने के लिए मोदी सरकार ने तैयारियां तेज कर दी हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में हुई कैबिनेट बैठक में 'वन नेशन-वन इलेक्शन' पर आई कमेटी की रिपोर्ट को मंजूरी दे दी है. 

इसे लेकर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अगुवाई में कमेटी बनाई गई थी. इस कमेटी का गठन पिछले साल सितंबर में हुआ था. कमेटी ने इसी साल मार्च में राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी. इस रिपोर्ट में लोकसभा के साथ-साथ राज्यों की विधानसभा और पंचायत चुनाव कैसे करवाए जा सकते हैं, इसे लेकर सुझाव दिए गए थे.

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इस रिपोर्ट को मंजूरी ऐसे समय मिली है, जब हाल ही में खबरें आई थीं कि मोदी सरकार इसी कार्यकाल में एक देश-एक चुनाव को लेकर बिल लाने की तैयारी कर रही है.

क्यों ये बड़ा कदम है?

मोदी सरकार लंबे वक्त से एक देश-एक चुनाव की वकालत करती आई है. 15 अगस्त को लाल किले से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक देश-एक चुनाव के लिए सभी राजनीतिक पार्टियों से आगे आने की अपील की थी. 

इससे पहले 2024 के लोकसभा चुनाव के घोषणापत्र में भी बीजेपी ने एक देश-एक चुनाव का वादा किया था.

कोविंद कमेटी की इस रिपोर्ट को अभी कैबिनेट से मंजूरी मिली है. यानी सरकार ने एक देश-एक चुनाव के प्रस्ताव को मान लिया है. अब इस कमेटी के आधार पर बिल बनाया जाएगा. इस बिल को कैबिनेट से मंजूरी मिलने के बाद संसद में पेश किया जाएगा.

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सूत्रों का कहना है कि मोदी सरकार संसद के अगले शीतकालीन सत्र में इसे लेकर बिल लाया जा सकता है. अगर ये बिल, कानून बनता है तो 2029 में देशभर में लोकसभा के साथ-साथ सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव भी होंगे. इन चुनावों के बाद 100 दिन के भीतर पंचायतों के साथ-साथ नगर पालिकाओं के चुनाव भी कराए जाएंगे.

एक साथ चुनाव पर क्या थी सिफारिश?

पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अगुवाई में बनी कमेटी ने इसी साल 14 मार्च को राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू को रिपोर्ट सौंपी थी. साढ़े 18 हजार पन्नों की इस रिपोर्ट में लोकसभा और विधानसभा चुनावों के साथ-साथ नगर पालिकाओं और पंचायत चुनाव करवाने से जुड़ी सिफारिशें थीं. कमेटी ने दो चरणों में एक साथ चुनाव कराने का सुझाव दिया था.

पहले चरण में लोकसभा के साथ-साथ सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव करवा दिए जाएं. समिति ने सिफारिश की थी कि 2029 में इसकी शुरुआत की जा सकती है, ताकि फिर हर पांच साल में लोकसभा के साथ-साथ विधानसभा चुनाव भी हो सकें.

जबकि, दूसरे चरण में नगर पालिकाओं और पंचायतों के चुनाव करवाए जाएं. नगर पालिकाओं और पंचायतों के चुनाव लोकसभा-विधानसभा चुनाव खत्म होने के 100 दिन के भीतर कराए जाने चाहिए.

यह भी पढ़ें: UP में 2 साल तो बिहार में होगी 4 साल की विधानसभा... 'वन नेशन-वन इलेक्शन' से कैसे बदलेगा राज्यों का चुनावी शेड्यूल

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पर कैसे होगा ये?

समिति ने सुझाव दिया था कि इसके लिए संविधान में अनुच्छेद 82A जोड़ा जाए. अनुच्छेद 82A अगर जुड़ता है तो लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ हो सकते हैं.

अगर संविधान में अनुच्छेद 82A जोड़ता है और इसे लागू किया जाता है तो सभी राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल लोकसभा के कार्यकाल के साथ ही खत्म हो जाएगा. यानी, अगर अगर ये अनुच्छेद 2029 से पहले लागू हो जाता है तो सभी विधानसभाओं का कार्यकाल 2029 तक होगा.

इसका मतलब ये होगा कि सभी राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल लोकसभा के कार्यकाल के साथ ही खत्म हो जाएगा. यानी कि अगर किसी राज्य में विधानसभा चुनाव 2027 में होते हैं तब भी उसका कार्यकाल जून 2029 तक ही होगा. इस हिसाब से सभी राज्यों में लोकसभा के साथ-साथ विधानसभा के चुनाव भी कराए जा सकेंगे.

इसके लिए क्या करना होगा?

इसके लिए संविधान में संशोधन करना होगा. पूर्व राष्ट्रपति कोविंद की समिति ने सिफारिश की थी कि इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 83 और 172 में संशोधन करने के साथ-साथ एक नया अनुच्छेद 82A जोड़ना होगा. अनुच्छेद 83 में लोकसभा का कार्यकाल और 172 में विधानसभा का कार्यकाल 5 साल तय किया गया है.

समिति की रिपोर्ट के मुताबिक, इस संवैधानिक संशोधन को मंजूरी के लिए राज्यों की विधानसभाओं से अनुमोदन की जरूरत भी नहीं होगी. यानी, केंद्र सरकार सीधे ही ये संशोधन कर सकती है.

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हालांकि, नगर पालिकाओं और पंचायतों को पांच साल से पहले भंग करने के लिए अनुच्छेद 325 में संशोधन करना होगा. ये संशोधन तभी लागू होगा, जब इसे कम से कम 15 राज्यों की विधानसभाओं से मंजूरी मिलेगी.

यह भी पढ़ें: 'एक देश-एक चुनाव' पर क्या मोदी सरकार को मिलेगा नीतीश-नायडू का साथ? जानिए पूरा संवैधानिक प्रोसेस

क्या होगा अगर किसी को बहुमत नहीं मिला तो?

हमारे देश में मल्टी पार्टी सिस्टम है, इसलिए इस बात की संभावना भी बहुत ज्यादा है कि किसी एक पार्टी या गठबंधन को बहुमत न मिले. 

ऐसी स्थिति में सबसे बड़ी पार्टी या गठबंधन को सरकार बनाने का न्योता दिया सकता है. अगर फिर भी सरकार नहीं बनती है तो मध्यावधि चुनाव करवाए जा सकते हैं. लेकिन चुनाव के बाद जो भी सरकार बनेगी, उसका कार्यकाल पांच साल नहीं होगा.

मसलन, 2029 के लोकसभा चुनाव में कोई एक पार्टी या गठबंधन अपने दम पर सरकार नहीं बना पाता है और मध्यावधि चुनाव होते हैं. इसके बाद अगर कोई सरकार बनेगी तो उसका कार्यकाल जून 2034 तक ही रहेगा. यही फॉर्मूला विधानसभा में भी लागू होगा.

इसी तरह अगर कोई सरकार पांच साल से पहले गिर जाती है, तो भी मध्यावधि चुनाव ही करवाए जाएंगे और उसका कार्यकाल भी जून 2034 तक ही रहेगा. ऐसा इसलिए ताकि एक देश-एक चुनाव की परंपरा न टूटे.

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अब आगे क्या? 

एक देश-एक चुनाव के लिए सबसे पहले सरकार को बिल लाना होगा. चूंकि ये बिल संविधान संशोधन करेंगे, इसके लिए ये तभी पास होंगे, जब इन्हें संसद के दो तिहाई सदस्यों का समर्थन मिलेगा. 

यानी, लोकसभा में इस बिल को पास कराने के लिए कम से कम 362 और राज्यसभा के लिए 163 सदस्यों का समर्थन जरूरी होगा. 

संसद से पास होने के बाद इस बिल को कम से कम 15 राज्यों की विधानसभा का अनुमोदन भी जरूरी होगा. यानी, 15 राज्यों की विधानसभा से भी इस बिल को पास करवाना जरूरी है. इसके बाद राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद ही ये बिल कानून बन सकेंगे.

पहले एक साथ ही होते थे चुनाव

आजादी के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ ही होते थे. इसके बाद 1968 और 1969 में कई विधानसभाएं समय से पहले ही भंग कर दी गई. उसके बाद 1970 में लोकसभा भी भंग कर दी गई. इससे एक साथ चुनाव की परंपरा टूट गई.

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