
पाकिस्तान में नई सरकार का गठन हो चुका है. शहबाज शरीफ ने नए प्रधानमंत्री के रूप में सोमवार को शपथ ली. शहबाज शरीफ दूसरी बार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री चुने गए हैं.
नए सरकार का गठन होते पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान ने भारत से रिश्ते सुधारने की कोशिश भी शुरू कर दी है. बताया जा रहा है कि पाकिस्तान इस साल अपना 'नेशनल डे' नई दिल्ली में मनाने जा रहा है. इस दिन दिल्ली स्थित पाकिस्तान उच्चायोग में कार्यक्रम किए जाएंगे.
ये चार साल में पहली बार है, जब पाकिस्तान अपना नेशनल डे दिल्ली में मनाएगा. जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने के बाद पाकिस्तान ने अपना राजदूत वापस बुला लिया था.
पाकिस्तान का नेशनल डे 23 मार्च को पड़ता है. ये वही तारीख है जब आजादी से पहले लाहौर में पाकिस्तान बनाने का प्रस्ताव रखा गया था.
क्या हुआ था 23 मार्च को?
पाकिस्तान के इतिहास में 23 मार्च की तारीख बहुत अहम है. ये वही तारीख है, जब 1940 में मुस्लिम लीग ने मुस्लिमों के लिए अलग मुल्क की मांग करते हुए एक प्रस्ताव रखा था.
1940 में 22 से 24 मार्च के लाहौर में मुस्लिम लीग का सेशन हुआ था. इसी सेशन में पूरी तरह स्वायत्त और संप्रभु मुस्लिम मुल्क बनाने का प्रस्ताव रखा गया था. इस प्रस्ताव में पाकिस्तान का जिक्र नहीं था. लेकिन बाद में जब पाकिस्तान बन गया तो इसे 'पाकिस्तान प्रस्ताव' भी कहा जाने लगा.
इस प्रस्ताव में अलग मुल्क या पाकिस्तान का कहीं भी जिक्र नहीं था. इसमें मुस्लिम बहुल इलाकों के लिए स्वायत्तता की मांग की गई थी.
इसमें लिखा था, 'भौगोलिक दृष्टि से सटी हुई ईकाइयों को क्षेत्रों के रूप में चिह्नित किया जाए, जिन्हें बनाने में जरूरत के हिसाब से इलाकों का फिर से ऐसा समायोजन किया जाए कि हिंदुस्तान का उत्तर-पश्चिम और पूर्वी क्षेत्रों जैसे जिन हिस्सों में मुसलमानों की संख्या ज्यादा है, उन्हें इकट्ठा करके 'स्वतंत्र राज्य' बना दिया जाए. इनमें शामिल ईकाइयां स्वाधीन और स्वायत्त होंगी.'
इतना ही नहीं, 23 मार्च 1956 को ही पाकिस्तान का संविधान भी लागू हुआ था. इसी दिन पाकिस्तान ने खुद को इस्लामिक मुल्क घोषित किया था.
जिन्ना का क्या था कहना?
जसवंत सिंह अपनी किताब 'जिन्नाः भारत विभाजन के आईने में' लिखते हैं कि लाहौर अधिवेशन में मोहम्मद अली जिन्ना ने कहा था कि हिंदुओं और मुस्लमानों के बीच इतने व्यापक और तीखे मतभेद हैं कि उनका एक केंद्रीय सरकार के अंतर्गत साथ-साथ रहना गंभीर खतरे उत्पन्न कर सकता है.
किताब के मुताबिक, जिन्ना कहते हैं, 'हिंदू और मुसलमान दो अलग धर्मों, दर्शनों, सामाजिक रीति-रिवाजों और साहित्यों से ताल्लुक रखते हैं. न तो वो आपस में शादियां करते हैं और न ही एक-दूसरे के साथ खाते-पीते हैं. ये दोनों अलग-अलग सभ्यताओं से संबंध रखते हैं जो परपस्पर विरोधी विचारों और मान्यताओं पर आधारित हैं.'
जिन्ना ने कहा था, 'हिंदू और मुसलमान के महाकाव्य अलग हैं, नायक अलग हैं. अक्सर एक का नायक दूसरे का शत्रु होता है और यही हाल उनकी विजयों और पराजयों का है. इस तरह के दो राष्ट्रों- एक को अल्पसंख्यक और दूसरे को बहुसंख्यक के रूप में एक अकेले राज्य के जुए में जोत देने से असंतोष को बढ़ावा मिलेगा और इस प्रकार के राज्य की सरकार के लिए जो बनावटी ढांचा तैयार किया जाएगा, वो अंततः विध्वंसक ही होगा.'
प्रस्ताव का क्या हुआ?
जसवंत सिंह ने अपनी किताब में लाहौर प्रस्ताव के बारे में भी विस्तार से लिखा है. वो लिखते हैं कि इस प्रस्ताव में साफ लिखा था कि मुसलमान किसी भी संवैधानिक योजना पर तब तक अमल नहीं करेंगे या मंजूर नहीं करेंगे, जब तक कि भौगोलिक रूप से जुड़े हुए भागों को क्षेत्रों में नहीं बांटा जाता.
इस प्रस्ताव में एक ऐसा मुस्लिम मुल्क बनाने की सिफारिश की गई थी, जिसके पश्चिमोत्तर में पंजाब, पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत, सिंध, बलूचिस्तान और पूर्वोत्तर में बंगाल और असम शामिल हो.
24 मार्च 1940 को ये प्रस्ताव पास हो गया था. 1941 में इसे मुस्लिम लीग के संविधान का हिस्सा बना दिया. इस प्रस्ताव के आधार पर ही 1946 में मुस्लिम लीग ने मुसलमानों के लिए दो की जगह एक ही मुल्क की मांग करने का फैसला लिया था.