
चीन है कि मानता नहीं. लाख समझाने पर भी... एक बार फिर उसने अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा ठोक दिया है. हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अरुणाचल दौरे पर चीन ने आपत्ति जताई है.
पीएम मोदी के अरुणाचल दौरे पर चीन ने भारत के सामने राजनयिक विरोध दर्ज कराया है. चीन के विदेश मंत्रालय वांग वेनबिन ने कहा कि इससे भारत-चीन का सीमा विवाद और बढ़ेगा. वेनबिन ने कहा कि चीन के जंगनान को डेवलप करने का भारत का कोई अधिकार नहीं है.
चीन अरुणाचल प्रदेश को अपना बताता है. वो अरुणाचल प्रदेश के लिए जंगनान नाम का इस्तेमाल करता है.
चीन के इस विरोध पर भारत ने भी कड़ा जवाब दिया है. भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न और अविभाज्य हिस्सा था, है और रहेगा.
चीन अक्सर भारतीय नेताओं के अरुणाचल दौरे पर विरोध जताता रहा है. हालांकि, भारत कई बार साफ-साफ कह चुका है कि अरुणाचल प्रदेश देश का अभिन्न हिस्सा है. भारत का कहना है कि एक नया नाम दे देने से वास्तविकता नहीं बदल जाएगी.
पीएम मोदी ने कब किया था दौरा?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 9 मार्च को अरुणाचल प्रदेश का दौरा किया था. यहां उन्होंने कई परियोजनाओं का उद्घाटन किया था. इनमें से एक 13,700 फीट की ऊंचाई पर बनी सेला टनल भी थी.
सेला टनल असम के तेजपुर को अरुणाचल के तवांग से जोड़ने वाली सड़क पर बनाई गई है. 825 करोड़ की लागत से बनी ये सुरंग दुनिया की सबसे लंबी डबल-लेन टनल है.
इस प्रोजेक्ट के तहत दो सुरंग बनाई गई हैं. इसमें पहली सिंगल-ट्यूब टनल है, जो 980 मीटर लंबी है. जबकि, दूसरी डबल-ट्यूब टनल है, जो 1.5 किलोमीटर लंबी है. डबल-ट्यूब टनल में ट्रैफिक के लिए दो लेन हैं. एक सामान्य ट्रैफिक के लिए. जबकि, दूसरी से इमरजेंसी की स्थिति में बाहर निकलने की सुविधा है.
चीन के चिढ़ने की एक वजह ये भी है. क्योंकि इस सुरंग के बनने से चीन सीमा तक भारतीय सेना की पहुंच पहले से भी ज्यादा आसान हो जाएगी. भारतीय सेना कम समय से और किसी भी मौसम में एलएसी तक पहुंच जाएगी.
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अब बात कि चीन को क्या दिक्कत है?
अरुणाचल प्रदेश को लेकर चीन के साथ लंबे समय से विवाद है. भारतीय विदेश मंत्रालय के मुताबिक, चीन अरुणाचल प्रदेश की करीब 90 हजार वर्ग किलोमीटर पर अपना दावा करता है.
पूरा विवाद समझने के लिए थोड़ा इतिहास में चलते हैं. दरअसल, चीन और भारत के बीच मैकमोहन लाइन को अंतर्राष्ट्रीय सीमा माना जाता है. पूरी दुनिया भी यही मानती है. चीन को छोड़कर.
मैकमोहन लाइन क्या है?
1914 में शिमला में एक समझौता हुआ था. इसमें तीन पार्टियां थीं- ब्रिटेन, चीन और तिब्बत. इस दौरान सीमा को लेकर अहम समझौता हुआ. जिस वक्त ये समझौता हुआ, उस वक्त तिब्बत एक आजाद मुल्क हुआ करता था.
उस समय ब्रिटिश इंडिया के विदेश सचिव हेनरी मैकमोहन थे. उन्होंने ब्रिटिश इंडिया और तिब्बत के बीच 890 किलोमीटर लंबी सीमा खींची. इसे ही मैकमोहन लाइन कहा जाता गया. इसमें अरुणाचल प्रदेश को भारत का हिस्सा बताया गया था.
आजादी के बाद भारत ने मैकमोहन लाइन को ही सीमा माना. लेकिन 1950 में चीन ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया. चीन ने दावा किया कि अरुणाचल प्रदेश दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा है. और चूंकि तिब्बत पर उसका कब्जा है, इसलिए अरुणाचल भी उसका हुआ.
चीन क्यों नहीं मानता इसे?
चीन मैकमोहन लाइन को नहीं मानता है. वो दावा करता है कि 1914 में जब ब्रिटिश इंडिया और तिब्बत के बीच समझौता हुआ था, तब वो वहां मौजूद नहीं था. उसका कहना है कि तिब्बत उसका हिस्सा रहा है, इसलिए वो खुद से कोई फैसला नहीं ले सकता.
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जब तवांग पर कर लिया था चीन ने कब्जा
अरुणाचल में पड़ने वाले तवांग पर चीन की बुरी नजरें हमेशा से रही हैं. तवांग बौद्धों का प्रमुख धर्मस्थल भी है. इसे एशिया का सबसे बड़ा बौद्ध मठ भी कहा जाता है.
1914 में जो समझौता हुआ था, उसमें तवांग को अरुणाचल का हिस्सा बताया था, लेकिन चीन इसे तिब्बत का हिस्सा बताता है.
1962 की जंग के दौरान तवांग पर एक महीने तक चीनी सेना का कब्जा रहा था. बाद में युद्धविराम के तहत उसे अपना अवैध कब्जा छोड़ना पड़ा था. तवांग में अक्सर भारत और चीन की सेना में टकराव होता रहा है. आखिरी बार दिसंबर 2022 में दोनों देशों की सेनाओं के बीच झड़प हुई थी.