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अक्साई चिन से तवांग तक... भारत-चीन में कहां-कहां तनाव, पढ़ें- दुनिया के सबसे लंबे विवादित बॉर्डर की कहानी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में एक इंटरव्यू में कहा है कि भारत और चीन के बीच सीमा विवाद को तुरंत सुलझाने की जरूरत है. भारत और चीन के बीच दशकों से सीमा विवाद है. भारत और चीन दुनिया की सबसे लंबी विवादित सीमा साझा करते हैं. दोनों के बीच जंग भी हो चुकी है और अक्सर झड़पें भी होती रहती हैं. जानते हैं भारत और चीन के सीमा विवाद की पूरी कहानी...

भारत और चीन के बीच साढ़े तीन हजार किमी लंबी सीमा है. (फाइल फोटो) भारत और चीन के बीच साढ़े तीन हजार किमी लंबी सीमा है. (फाइल फोटो)
Priyank Dwivedi
  • नई दिल्ली,
  • 12 अप्रैल 2024,
  • अपडेटेड 12:29 PM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत और चीन के बीच जारी सीमा विवाद पर बात की है. अमेरिकी मैग्जीन न्यूजवीक को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि दोनों देशों को तत्काल सीमा विवाद सुलझा लेना चाहिए.

उन्होंने कहा कि अपनी सीमाओं पर चल रही स्थिति को हमें तुरंत सुलझाने की जरूरत है, ताकि दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय चर्चा में मुश्किल स्थिति को पीछे छोड़ा जा सके.

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पीएम मोदी ने कहा कि स्थायी और शांतिपूर्ण रिश्ते न सिर्फ दोनों मुल्कों के लिए बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए जरूरी है.

प्रधानमंत्री मोदी के इस बयान पर चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने भी प्रतिक्रिया दी है. ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि अगर भारत पीएम मोदी के बयान पर अमल करता है और चीन से सहमति जताता है तो दोनों देशों के संबंध सही दिशा में तेजी से आगे बढ़ेंगे.

दुनिया की सबसे लंबी विवादित सीमा!

भारत और चीन दुनिया की सबसे लंबी विवादित सीमा साझा करते हैं. भारत और चीन के बीच 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा है, जो तीन सेक्टर्स- ईस्टर्न, मिडिल और वेस्टर्न में बंटी हुई है.

ईस्टर्न सेक्टर में अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम की सीमा चीन से लगती है, जिसकी लंबाई 1,346 किमी है. मिडिल सेक्टर में हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड है, जो 545 किमी लंबी है. वहीं, वेस्टर्न सेक्टर में लद्दाख है, जो चीन के साथ 1,597 किमी लंबी सीमा साझा करता है.

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भारत और चीन के बीच कई इलाकों को लेकर सीमा विवाद है. लद्दाख का करीब 38 हजार वर्ग किमी जमीन पर चीन का कब्जा है, जिसे अक्साई चिन कहा जाता है. इसके अलावा, चीन अरुणाचल प्रदेश की 90 हजार वर्ग किमी जमीन पर दावा करता है.

इतना ही नहीं, 2 मार्च 1963 को चीन और पाकिस्तान के बीच एक समझौता हुआ था. इसके तहत, पाकिस्तान ने पीओके की 5,180 वर्ग किमी जमीन चीन को दे दी थी.

प्रतीकात्मक तस्वीर.

सीमा पर विवाद की पूरी कहानी...

लद्दाखः अक्साई चिन पर दावा

1865 में ब्रिटिश सर्वेयर डब्ल्यूएच जॉनसन भारत और तिब्बत के बीच एक सीमा रेखा खींची. इसके बाद 1897 में एक और सीमा रेखा खींची गई. इसमें अक्साई चिन को भारत का हिस्सा दिखाया गया. इसे जॉनसन-आर्डाघ लाइन कहा जाता है. 

इससे पहले 1893 में एक नई बॉर्डर लाइन खींची गई. इसे मैकार्टनी-मैकडोनाल्ड लाइन कहा जाता है. इसमें अक्साई चिन का ज्यादातर हिस्सा चीनी क्षेत्र में दिखाया गया.

1947 में भारत जब आजाद हुआ तो उसने जॉनसन-आर्डाघ लाइन को सीमा माना. जबकि, 1949 में चीन जब पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना बना, तो वो चाहता तो मैकार्टनी-मैकडोनाल्ड लाइन को सीमा मान सकता था, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया. चीन की इस हरकत की वजह से कन्फ्यूजन बढ़ा और अक्साई चिन में सीमा को 'डिमार्केटेड' यानी 'अचिन्हित' के रूप में दिखाया गया.

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1962 में चीन ने पूर्वी और पश्चिमी, दोनों सीमाओं पर लड़ाई शुरू कर दी. बाद में युद्धविराम के तहत, चीन अरुणाचल से तो पीछे हट गया, लेकिन अक्साई चिन पर कब्जा कर लिया. अब तक अक्साई चिन पर चीन का अवैध कब्जा है.

अरुणाचल प्रदेशः 90,000 वर्ग किमी पर दावा

चीन अरुणाचल प्रदेश की 90 हजार वर्ग किमी जमीन पर दावा करता है. अरुणाचल को लेकर भी सीमा विवाद चीन की तरफ से ही है. 

इस विवाद को समझने के लिए इतिहास में चलते हैं. 1914 में शिमला में एक समझौता हुआ. उस समय ब्रिटिश इंडिया के विदेश सचिव हेनरी मैकमोहन थे. उन्होंने ब्रिटिश इंडिया और तिब्बत के बीच 890 किलोमीटर लंबी सीमा खींची. इसे ही मैकमोहन लाइन कहा जाता गया. इसमें अरुणाचल प्रदेश को भारत का हिस्सा बताया गया था.

आजादी के बाद भारत ने मैकमोहन लाइन को ही सीमा माना. लेकिन 1950 में चीन ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया. चीन ने दावा किया कि अरुणाचल प्रदेश दक्षिणी तिब्बत का का हिस्सा है. और चूंकि तिब्बत पर उसका कब्जा है, इसलिए अरुणाचल भी उसका हुआ. 

चीन मैकमोहन लाइन को नहीं मानता है. वो दावा करता है कि 1914 में जब ब्रिटिश इंडिया और तिब्बत के बीच समझौता हुआ था, तब वो वहां मौजूद नहीं था. उसका कहना है कि तिब्बत उसका हिस्सा रहा है, इसलिए वो खुद से कोई फैसला नहीं ले सकता. 

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पेट्रोलिंग प्वॉइंट्स को लेकर भी है विवाद?

1962 की जंग के बाद 1970 में पूर्वी लद्दाख से लगी एलएसी से भारत ने अपनी सेना हटा ली थी. इससे चीनी सैनिकों की घुसपैठ भी बढ़ गई. लिहाजा, जहां सीमाएं तय नहीं थी, वहां पेट्रोलिंग प्वॉइंट्स बनाए गए, जहां भारतीय सेना गश्त लगा सके.

1976 में भारत ने एलएसी पर 65 पेट्रोलिंग प्वॉइंट्स तय किए. पेट्रोलिंग प्वॉइंट 1 काराकोरम पास में है तो 65 चुमार में है. इन पेट्रोलिंग प्वॉइंट्स को आसानी से पहचाना जा सकता है, लेकिन इन्हें चिन्हित नहीं किया गया है.

पेट्रोलिंग प्वॉइंट्स से सीमा तय नहीं हुई है. लेकिन ये विवादित इलाके हैं. इन पेट्रोलिंग प्वॉइंट्स पर दोनों देशों के सैनिक पेट्रोलिंग करते हैं. इसके लिए कुछ प्रोटोकॉल भी तय हैं.

कहा जाता है कि कभी-कभी दोनों देशों के सैनिक एक ही समय में पेट्रोलिंग के लिए आ जाते हैं. ऐसे में प्रोटोकॉल ये है कि अगर एक पक्ष को दूसरे की पेट्रोलिंग टीम दिख जाए तो वो वहीं रुक जाएगा. 

एक रिपोर्ट के मुताबिक, ऐसी स्थिति में कुछ बोला नहीं जाता है. बल्कि बैनर दिखाया जाता है. भारत के बैनर में लिखा होता है- 'आप भारत के इलाके में हैं, वापस जाओ.' इसी तरह चीन के बैनर में लिखा होता है- 'आप चीन के इलाके में हैं, वापस जाओ.' 

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हालिया सालों में देखने में आया है कि ऐसी स्थिति में दोनों देशों के सैनिक पीछे हटने की बजाय आपस में भिड़ जाते हैं. यही वजह है कि एलएसी पर कई बार दोनों ओर के सैनिकों के बीच झड़प और धक्का-मुक्की की खबरें आ रहीं हैं.

भारत के किन-किन हिस्सों पर चीन के साथ विवाद है?

1. पैंगोंग त्सो झील (लद्दाख): ये झील 134 किलोमीटर लंबी है, जो हिमालय में करीब 14 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है. इस झील का 44 किमी क्षेत्र भारत और करीब 90 किमी क्षेत्र चीन में पड़ता है. LAC भी इसी झील से गुजरती है. इस वजह से यहां कन्फ्यूजन बना रहता है और दोनों देशों के बीच यहां विवाद है. 

2. गलवान घाटी (लद्दाख): गलवान घाटी लद्दाख और अक्साई चीन के बीच स्थित है. यहां पर LAC अक्साई चीन को भारत से अलग करती है. ये घाटी चीन के दक्षिणी शिन्जियांग और भारत के लद्दाख तक फैली हुई है. जून 2020 में गलवान घाटी में हिंसक झड़प हुई थी. 

3. डोकलाम (भूटान): वैसे तो डोकलाम भूटान और चीन का विवाद है, लेकिन ये सिक्किम सीमा के पास पड़ता है. ये एक तरह से ट्राई-जंक्शन है, जहां से चीन, भूटान और भारत नजदीक है. भूटान और चीन दोनों इस इलाके पर अपना दावा करते हैं. भारत भूटान के दावे का समर्थन करता है. 2017 में करीब ढाई महीने तक डोकलाम पर भारत-चीन के बीच तनाव था.

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4. तवांग (अरुणाचल प्रदेश): अरुणाचल प्रदेश में पड़ने वाले तवांग पर चीन की नजरें हमेशा से रही हैं. तवांग बौद्धों का प्रमुख धर्मस्थल है. इसे एशिया का सबसे बड़ा बौद्ध मठ भी कहा जाता है. चीन तवांग को तिब्बत का हिस्सा बताता रहा है. 1914 में जो समझौता हुआ था, उसमें तवांग को अरुणाचल का हिस्सा बताया गया था. 1962 की जंग में चीन ने तवांग पर कब्जा कर लिया था, लेकिन युद्धविराम के तहत उसे अपना कब्जा छोड़ना पड़ा था.

5. नाथू ला (सिक्किम): नाथू ला हिमालय का एक पहाड़ी दर्रा है. ये भारत के सिक्किम और दक्षिणी तिब्बत की चुम्बी घाटी को जोड़ता है. ये 14,200 फीट की ऊंचाई पर है. भारत के लिए ये इसलिए अहम है क्योंकि यहीं से कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए तीर्थयात्री गुजरते हैं. नाथू ला को लेकर भारत-चीन में कोई विवाद नहीं है. लेकिन यहां भी कभी-कभी भारत-चीन की सेनाओं में झड़पों की खबरें आती रही हैं.

गलवान घाटी में जून 2020 में हिंसक झड़प हुई थी.

LAC क्या है?

भारत और सीमा के बीच कभी भी कोई आधिकारिक सीमा नहीं रही. और इसकी वजह चीन ही है. चीन किसी रेखा को सीमा नहीं मानता है.

1962 की जंग में चीन की सेना लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश के तवांग तक में अंदर घुस आई थी. बाद में जब युद्धविराम हुआ तो तय हुआ कि दोनों देशों की सेनाएं जहां तैनात हैं, उसे ही एलएसी यानी लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल माना जाएगा. ये एक तरह से सीजफायर रेखा है.

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एलएसी जम्मू-कश्मीर में भारत के इलाके और चीन के अवैध कब्जे वाले अक्साई चिन को अलग करती है. एलएसी लद्दाख, कश्मीर, उत्तराखंड, हिमाचल, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश से होकर गुजरती है.

आखिर चीन किसे मानता है सीमा?

जब भी सीमा विवाद का जिक्र होता है, तो चीन 7 नवंबर 1959 की तारीख को लिखे एक खत की बात उठाने लगता है. 7 नवंबर 1959 को चीन के तब के प्रधानमंत्री झाउ एन-लाई ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को एक खत लिखा था. 

ये खत ऐसे समय लिखा गया था जब चीनी सैनिक कई किलोमीटर तक भारतीय सीमा में घुस आई थी. उस खत में झाऊ एन-लाई ने कहा था कि दोनों देशों की सेनाएं जहां, उसे ही एलएसी माना जाए और वहां पर शांति बनाए रखने के लिए 20-20 किलोमीटर पीछे हट जाएं. हालांकि, एन-लाई के इस प्रस्ताव को नेहरू ने खारिज कर दिया था.

जून 2020 में जब गलवान घाटी में हिंसक झड़प हुई थी, तब चीन ने फिर से 7 नवंबर 1959 की स्थिति को ही एलएसी मानने की बात कही थी. हालांकि, भारत ने साफ कह दिया था कि चीन जबरन सीमा की परिभाषा को न थोपे. भारत ने ये भी कहा था कि 1993 के समझौते में तय हो चुका है कि एलएसी के जिन इलाकों को लेकर विवाद है, उसे बातचीत से सुलझाया जाएगा.

सीमा पर शांति को लेकर अब तक क्या-क्या हुआ?

एलएसी पर शांति बनाए रखने के लिए तीन दशक में भारत और चीन के बीच पांच अहम समझौते हुए हैं. पहला समझौता 1993 में हुआ था. उसके बाद 1996 में दूसरा समझौता हुआ. फिर 2005, 2012 और 2013 में समझौते हुए. 

1962 की जंग के बाद भारत और चीन के रिश्तों में खटास आ गई थी. 1988 में तब के प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने चीन का दौरा किया. इस दौरे ने रिश्तों को बेहतर करने में अहम रोल अदा किया. दोनों देशों के बीच सुधर रहे रिश्तों का ही नतीजा था 1993 और 1996 का समझौता.

1993 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने चीन का दौरा किया. उस समय ली पेंग चीन के प्रधानमंत्री थे. उसी दौरे में ये समझौता हुआ था. इस समझौते में तय हुआ था कि कोई भी देश एक-दूसरे के खिलाफ बल या सेना का इस्तेमाल नहीं करेगा. साथ ही ये भी तय हुआ कि अगर किसी देश का जवान गलती से एलएसी पार कर जाता है तो दूसरा देश उनको बताएगा और जवान फौरन अपनी ओर लौट आएगा. 

इसी समझौते में ये भी कहा गया कि अगर तनाव बढ़ता है तो दोनों देश एलएसी पर जाकर हालत का जायजा लेंगे और बातचीत से हल निकालेंगे. इसके अलावा सैन्य अभ्यास से पहले जानकारी देने की बात भी इस समझौते में थी. इस समझौते पर भारत की ओर से तब के विदेश राज्य मंत्री आरएल भाटिया और चीन की ओर से उप-विदेश मंत्री तांग जियाशुआन ने दस्तखत किए थे.

1996 का सबसे अहम समझौता

1993 के तीन साल बाद 1996 में एक और समझौता हुआ. तब चीन के राष्ट्रपति जियांग जेमिन भारत आए थे. भारत में उस समय एचडी देवेगौड़ा प्रधानमंत्री थे. इस समझौते पर 29 नवंबर 1996 को दोनों देशों ने दस्तखत किए थे. 

समझौते में तय हुआ कि दोनों ही देश एक-दूसरे के खिलाफ न तो किसी तरह की ताकत का इस्तेमाल करेंगे या इस्तेमाल करने की धमकी देंगे. समझौते का पहला अनुच्छेद कहता है- दोनों में से कोई भी देश एक-दूसरे के खिलाफ सैन्य क्षमता का इस्तेमाल नहीं करेंगे और न ही कोई भी सेना हमला करेगी. साथ ही ऐसा कुछ भी नहीं करेगी जिससे सीमा से सटे इलाकों में शांति और स्थिरता को खतरा हो.

इसका अनुच्छेद 6 सबसे अहम है. ये अनुच्छेद ही है जो सीमा पर गोली चलने से रोकता है. अनुच्छेद 6 कहता है- एलएसी के दो किलोमीटर के दायरे में कोई भी देश गोलीबारी नहीं करेगा, जैविक हथियार या हानिकारक केमिकल का इस्तेमाल नहीं करेगा, ब्लास्ट ऑपरेशन या बंदूकों और विस्फोटकों से हमला नहीं करेगा.

1993 और 1996 में हुए समझौतों ने ही 2005, 2012 और 2013 के समझौतों की नींव रखी. इन समझौतों में तय हुआ कि एलएसी के जिन इलाकों को लेकर सहमति नहीं बनी है, वहां पेट्रोलिंग नहीं होगी और सीमा पर दोनों देशों की जो स्थिति है, वही रहेगी.

सीमा पर कब-कब भिड़े दोनों मुल्क?

- 1962: चीन ने 20 अक्टूबर को भारत पर चौतरफा हमला कर दिया था और लद्दाख से लेकर अरुणाचल तक कई किलोमीटर तक चीनी सैनिक घुस गए. 21 नवंबर 1962 को चीन ने एकतरफा संघर्षविराम की घोषणा कर दी. पर तब तक अक्साई चीन उसने कब्जा लिया था. अरुणाचल में भी तवांग तक चीनी सेना घुस आई थी, लेकिन वो वहां से वापस लौट गई थी.

- 1967: सिक्किम के नाथू-ला दर्रा के पास दोनों देशों की सेनाओं में झड़प हुई थी. ये भारत का सबसे ऊंचा पर्वतीय दर्रा है, जो भूटान, चीन, तिब्बत और नेपाल के बीच स्थित है. अक्टूबर 1967 में चीनी सेना ने मशीनगन से भारतीय सेना पर हमला कर दिया था. इसमें भारतीय सेना के 80 जवान शहीद हो गए थे. जबकि, चीन के 300 से 400 सैनिक मारे गए थे.

- 1975: अरुणाचल प्रदेश के तुलुंग ला में चीन की सेना ने असम राइफल्स की पेट्रोलिंग टीम पर हमला कर दिया था. चीन की सेना ने घात लगाकर ये हमला किया था. इस हमले में भारत के चार जवान शहीद हो गए थे. भारत ने चीन पर सीमा पार करने का आरोप लगाया था, हालांकि चीन ने इसे खारिज कर दिया था.

- 2017: जून 2017 में चीन की सेना ने भूटान में पड़ने वाले डोकलाम में सड़क बनाने का काम शुरू किया तो भारतीय सेना ने रोक दिया. डोकलाम में सड़क निर्माण को लेकर हुए विवाद के बाद भारत और चीन की सेनाएं 73 दिनों तक आमने-सामने डटी रही थीं. हालांकि, कोई हिंसा नहीं हुई थी. दो महीने तक टकराव जैसी स्थिति होने के बाद चीन ने घुटने टेक दिए और डोकलाम से सैनिकों के पीछे हटाने की बात कही. 

- 2020: पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में 15 जून 2020 को भारत-चीन के सैनिकों में खूनी संघर्ष हुआ. चार दशकों का ये सबसे गंभीर संघर्ष माना गया था. 15-16 जून 2020 की रात को ये संघर्ष हिंसक हो गया. इस झड़प में भारतीय सेना के 20 जवान शहीद हो गए थे. हालांकि, चीन ने आधिकारिक तौर पर अब तक सिर्फ अपने चार जवानों के मारे जाने की बात ही कबूल की है.

- 2022: दिसंबर में अरुणाचल में एलएसी के पास तवांग सेक्टर में दोनों देशों के सैनिकों में झड़प हो गई थी. चीन की सेना ने तवांग सेक्टर में घुसपैठ करने की कोशिश की थी, जिसे भारतीय सैनिकों ने मजबूती से जवाब दिया था. झड़प में भारतीय सेना के कम से कम 6 जवान जख्मी हो गए थे.

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