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285 एकड़ में फैला, 59 साल पहले श्रीलंका को मिला... क्या है कच्चातिवु की कहानी, जिसका जिक्र पीएम मोदी ने किया?

प्रधानमंत्री मोदी ने लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के दौरान कच्चातिवु द्वीप का जिक्र किया. ये द्वीप भारत के दक्षिणी छोर पर स्थित है. 59 साल पहले एक समझौते के तहत ये द्वीप श्रीलंका को दे दिया गया था. आइए जानते हैं इस द्वीप की कहानी.

1974 में कच्चातिवु द्वीप श्रीलंका को दे दिया गया था. (प्रतीकात्मक तस्वीर) 1974 में कच्चातिवु द्वीप श्रीलंका को दे दिया गया था. (प्रतीकात्मक तस्वीर)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 11 अगस्त 2023,
  • अपडेटेड 7:25 PM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के दौरान कांग्रेस पर भारत के टुकड़े करने का आरोप लगाया. उन्होंने कच्चातिवु द्वीप का जिक्र किया. ये वो द्वीप है जिसे इंदिरा गांधी की सरकार में श्रीलंका को दे दिया गया था.

पीएम मोदी ने कहा, 'ये जो बाहर गए हैं न, इनसे पूछ लीजिए कि ये कच्चातिवु कहां है? ये डीएमके वाले, उनकी सरकार, उनके मुख्यमंत्री मुझे चिट्ठी लिखते हैं और कहते हैं मोदीजी कच्चातिवु वापस ले आइए. ये किसने किया?'

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उन्होंने बताया कि 'तमिलनाडु से आगे और श्रीलंका से पहले एक टापू है, किसी ने किसी दूसरे देश को दे दिया था. क्या वो मां भारती का अंग नहीं था. ये इंदिरा गांधी के नेतृत्व में तोड़ा गया. कांग्रेस का इतिहास मां भारती को छिन्न-भिन्न करने का है.'

कहां है ये द्वीप?

- ये द्वीप हिंद महासागर में भारत के दक्षिण छोर पर है. ये भारत के रामेश्वरम और श्रीलंका के बीच स्थित है. ये द्वीप 285 एकड़ में फैला है. ये द्वीप 17वीं सदी में मदुरई के राजा रामानंद के अधीन था. 

- ब्रिटिश शासन में ये द्वीप मद्रास प्रेसीडेंसी के पास आया. साल 1921 में भारत और श्रीलंका दोनों ने मछली पकड़ने के लिए इस जगह को लेकर दावा किया. लेकिन इसके बाद इसको लेकर कुछ खास नहीं हुआ. 

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- आजादी के बाद समंदर की सीमा को लेकर साल 1974-76 के बीच चार समझौते हुए. जिसके तहत भारतीय मछुआरों को इस द्वीप पर जाल सुखाने, आराम करने की इजाजत दी गई.

श्रीलंका को क्यों दे दिया गया ये द्वीप?

- साल 1974 में भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और श्रीलंका की राष्ट्रपति श्रीमावो भंडारनायके ने एक समझौता किया था. इसके तहत कच्चातिुव द्वीप को श्रीलंका को सौंप दिया गया था. 

- इसके लिए 26 जून को कोलंबो और 28 जून को दिल्ली में दोनों देशों के बीच बातचीत हुई थी. इसके बाद कुछ शर्तों के साथ इस द्वीप को श्रीलंका को सौंप दिया गया था. 

- इसमें एक शर्त ये थी कि भारतीय मछुआरे जाल सुखाने के लिए इस द्वीप का इस्तेमाल करेंगे. इसके साथ ही इस द्वीप पर बने चर्च में भारतीयों को बिना विजा जाने की इजाजत होगी. हालांकि, भारतीय मछुआरे इस द्वीप पर मछली नहीं पकड़ सकते.

जमकर हुआ था विरोध

- भले ही इस द्वीप को श्रीलंका को सौंप दिया गया. लेकिन तमिलनाडु में इसका जमकर विरोध भी हुआ. उस समय तमिलनाडु के मुख्यमंत्री करुणानिधि ने इसका पुरजोर विरोध किया था. 

- इसके खिलाफ साल 1991 में तमिलनाडु विधानसभा में प्रस्ताव पास किया गया और इस द्वीप को वापस लेने की मांग की गई. इसके बाद ये मामला सुप्रीम कोर्ट में भी पहुंचा. 

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- साल 2008 में तत्कालीन सीएम जयललिता ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी और कच्चातिवु द्वीप को लेकर हुए समझौते को अमान्य घोषित करने की मांग की गई थी. याचिका में कहा गया था कि गिफ्ट में इस द्वीप को श्रीलंका को देना असंवैधानिक है. 

- इस मसले को लेकर तमिलनाडु की सियासत हमेशा से गर्म रही है. साल 2011 में जब जयललिता एक बार फिर तमिलनाडु की सीएम बनीं तो उन्होंने विधानसभा में इसको लेकर प्रस्ताव पास कराया.

 

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