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पोप फ्रांसिस की हालत गंभीर, क्या एशिया या अफ्रीका से हो सकता है अगला वेटिकन लीडर?

पोप फ्रांसिस की नाजुक सेहत के बीच चर्चाएं चल रही हैं कि रोमन कैथोलिक चर्च का अगला लीडर कौन हो सकता है. वेटिकन सिटी में अब तक एशियाई या अफ्रीकी मूल के पोप नहीं पहुंचे, जबकि दोनों ही कॉन्टिनेंट्स में ग्लोबल कैथोलिक आबादी का 31 फीसदी हिस्सा बसा हुआ है, वो भी तब जबकि चीन के कैथोलिक्स इसमें शामिल नहीं.

वेटिकन में भावी पोप पर चर्चाएं शुरू हो चुकीं. (Photo- Getty Images) वेटिकन में भावी पोप पर चर्चाएं शुरू हो चुकीं. (Photo- Getty Images)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 26 फरवरी 2025,
  • अपडेटेड 3:06 PM IST

पोप फ्रांसिस लंबे समय से व्हीलचेयर पर काम कर रहे थे. हाल में वे वेटिकन सिटी से लगभग तीस हजार किलोमीटर की यात्रा पर गए थे. तभी से बात होने लगी कि क्या इस उम्र में पोप इतनी सारी जिम्मेदारियों के लिए फिट रह सकेंगे. अब वे लगभग 10 दिनों से अस्पताल में हैं. इस बीच नए पोप के चेहरे और देश पर कयास लगने लगे. क्या इस बार एशिया या अफ्रीका से भी कोई वेटिकन पहुंच सकता है?

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पोप फ्रांसिस से साथ टूटी परंपरा 

वर्तमान पोप पहले साउथ अमेरिकन पोप होने के साथ ही जेसुइट समुदाय से जुड़े पहले वेटिकन लीडर हैं. अर्जेंटिना में जन्मे पोप को बाकियों से अलग काफी उदारवादी माना जाता है. उन्होंने कैथोलिक चर्च की सोच से अलग समलैंगिक लोगों का सपोर्ट किया था. वे चर्चों में होने वाले बाल यौन शोषण के खिलाफ भी लगातार बोलते रहे. 

पोप की मौत हो जाए तब क्या होता है

अस्पताल में डॉक्टरों का कहना ही काफी नहीं, पोप की मृत्यु के बाद वेटिकन में कई नियम पालने होते हैं. जैसे, चर्च का कोषाध्यक्ष (कैमरलेंगो) पोप के बपतिस्मा नाम को लगातार तीन बार रुक-रुककर पुकारेगा. अगर कोई प्रतिक्रिया न आए तो पोप को आधिकारिक तौर पर मृत मान लिया जाता है. इसके बाद पोप का अपार्टमेंट सील कर दिया जाता है और शव को अंतिम दर्शन के लिए रखा जाता है. 

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इस तरह होता है नए पोप का चुनाव 

कैमरलेंगो एक बैठक बुलाते हैं, जिसमें 80 साल से कम उम्र के सभी कार्डिनल्स जमा होते हैं. ये सारी प्रोसेस काफी खुफिया तरीके से की जाती है और वोट करने वाले कार्डिनल्स से सीक्रेसी की शपथ भी दिलवाई जाती है. उनका बाहरी दुनिया से संपर्क खत्म कर दिया जाता है ताकि इलेक्शन में कोई दखल न रहे. कार्डिनल्स वोट करते हैं और दो-तिहाई बहुमत पाने वाले को पोप का दर्जा मिल जाता है. कार्डिनल चैपल यानी वो इमारत जहां मतदान चल रहा हो, वोटिंग के दौरान वहां से काला धुआं निकलता रहता है, जो चुनाव के बाद सफेद धुएं में बदल जाता है. यही आधिकारिक एलान है कि नए पोप का चयन हो चुका. 

क्या नॉन-वाइट पोप भी हो सकते हैं

पोप के लिए होने वाले इलेक्शन में इस बार कुल 138 कार्डिनल्स शामिल होंगे, जिनमें से 4 भारतीय हैं. बीते कुछ सालों में ये बात भी उठने लगी कि भारत समेत एशिया या अफ्रीका के किसी शख्स को रोम का सर्वोच्च पद क्यों नहीं मिल सकता? दोनों ही जगहों पर कैथोलिक धर्म को मानने वाली आबादी दुनिया में सबसे ज्यादा है. वो भी तब, जबकि गणना में चीन को छोड़ रखा गया है. साल 2022 में ये 1.4 बिलियन थी. वहीं यूरोप या अमेरिका में जनसंख्या न केवल कम है, बल्कि लोग तेजी से धर्म से दूर भी हो रहे हैं. 

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लगभग दशकभर से पोप ऑफ कलर की सुगबुगाहट है. हालांकि ये कई वजहों से फिलहाल संभव नहीं दिखता. पोप के लिए कार्डिनल्स ही वोटिंग करते हैं. ये कार्डिनल्स दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से हैं. इसमें भी यूरोप से सबसे ज्यादा लोग हैं. ऐसे में जाहिर तौर पर यूरोप का पलड़ा भारी रह सकता है. वहीं भारत से केवल 4 कार्डिनल हैं. यही हाल अफ्रीका का है. मतदान ही चूंकि नए पोप को तय करता है, लिहाजा जब तक बाकी देशों से भी कार्डिनल्स न बढ़ें, ये मुमकिन नहीं. 

एक वजह ये भी है कि एशिया या अफ्रीका के कार्डिनल्स का दायरा जरा सीमित है अगर यूरोप या अमेरिका से तुलना करें. पोप बनने में व्यक्तित्व के साथ-साथ इंटरनेशनल बेस भी कहीं न कहीं मायने रखता है. 

क्या पोप इंटरनेशनल मुद्दों पर भी असर डाल सकता है 

हां. चूंकि वे कैथोलिक चर्च के सुप्रीम लीडर होते हैं तो दुनियाभर में उनकी बात सुनने और मानने वाले होते हैं. यही वजह है कि पोप के कहे का ग्लोबल स्तर पर असर होता है. सामाजिक और राजनैतिक दोनों ही मामलों में पोप की सोच मायने रखती है. पोप से मिलने के लिए बहुत से देशों के लीडर पहुंचते रहते हैं और अलग-अलग मामलों में उनसे सलाह भी लेते हैं. वेटिकन इसी वजह से कई मामलों में मध्यस्थ की भूमिका में भी रहता आया है. ये भी एक कारण है कि ताकतवर देश अपने ही क्षेत्रों से पोप चाहते हैं, भले ही चुनाव में उनका सीधा दखल न हो. 

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क्यों एशिया या अफ्रीका के कार्डिनल्स कम हैं

इसका चुनाव योग्यता के आधार पर पोप करते हैं. मौजूदा पोप 8वीं सदी के बाद से पहले नॉन-यूरोपियन लीडर हैं. उनके कार्यकाल में यूरोप से बाहर कार्डिनल्स बढ़े भी लेकिन यूरोप से अब भी सबसे ज्यादा लोग हैं. वेटिकन का हेडक्वार्टर रोम में है, इस वजह से भी यूरोप का यहां दबदबा रहा. 

अनुमान लगाए जाते रहे कि एशिया और अफ्रीका में यूरोप से भी ज्यादा कैथोलिक्स हैं और उन्हें ज्यादा कार्डिनल्स मिलने चाहिए ताकि उनके देशों का सही रिप्रेजेंटेशन हो सके. हालांकि ये मसला थोड़ा कॉम्प्लिकेटेड रहा. वेटिकन चीन के कैथोलिक्स को नहीं गिनता है. दरअसल चीन में धर्म पर सरकार का कंट्रोल है और वो पोप को स्वीकार नहीं करती. वहीं सरकारी दखल से बचने के लिए यहां गुप्त चर्च भी चल रहे हैं, जो सीधे वेटिकन से जुड़े हैं और रोम केवल उन्हें ही काउंट कर पाता है. इसके अलावा चीन और वेटिकन के बीच कूटनीतिक मसला भी है. वेटिकन दुनिया का इकलौता यूरोपीय देश है जो ताइवान को मान्यता देता है, जिसपर चीन हमेशा नाराज रहा. 

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