
सोनाली फोगाट के शरीर पर चोट के कई निशान थे... श्रद्धा वॉल्कर के शव को आफताब ने आरी से काटा था, तुनिशा शर्मा ने फांसी लगाकर आत्महत्या की थी, कंझावला केस की अंजलि के शरीर पर 36 जगहों पर 40 गंभीर चोटें थीं. कैसे पता चला ये सब, किसने किया ये बड़ा खुलासा? जवाब एक है- पोस्टमार्टम रिपोर्ट. मामला बड़ा हो, मामला छोटा हो, एक्सीडेंट हुआ हो, हत्या हुई हो, किसी को जहर दिया गया हो, हर पहलू का खुलासा करती है ये पोस्टमार्टम रिपोर्ट. जुर्म की दुनिया में जितना इस शब्द का इस्तेमाल होता है, रिसर्च करने वाले भी समय-समय पर इसका सहारा लेते रहते हैं.
मेडिकल साइंस में पोस्टमार्टम को लेकर कई लंबे लेख लिखे गए हैं. गूगल कई तरह के कॉम्प्लिकेटेड आर्टिकल से पटा पड़ा है. लेकिन किसी भी मामले की इस सबसे अहम कड़ी को वो आसानी से समझा सकता है जो खुद रोज ये करता हो, जिसने खुद शवों को खोला हो. ऐसे ही दो फॉरेंसिक डॉक्टरों से बात की गई है जिन्होंने परिभाषा से लेकर करने के तरीके तक, अहमियत से लेकर चुनौतियों तक, सबकुछ सरल शब्दों में समझा दिया है.
पोस्टमार्टम का इतिहास, भारत का योगदान
पोस्टमार्टम को ऑटोप्सी भी कहा जाता है. 3500BC में सबसे पहले इराक में एक जानवर का शरीर खोला गया था. तब ऐसी मान्यता थी कि भगवान का संदेश जानने के लिए जानवरों के अंग को एग्जामिन करना जरूरी था. उसके बाद 14वीं शताब्दी में इटली की यूनिवर्सिटियों में डाइसेक्शन को पढ़ाना शुरू किया गया. भारत के इतिहास में माना जाता है कि चाणक्य ने सबसे पहले ऑटोप्सी की अहमियत को समझा था. उन्होंने माना था कि मौत का कारण पता करने में पोस्टमार्टम सबसे जरूरी है. इसी कड़ी में महर्षि सुश्रुत का नाम भी काफी सम्मान के साथ लिया जाता है. उन्हें भारत में फादर ऑफ सर्जरी कहा जाता है. उनकी किताब सुश्रुत संहिता में सर्जरी से जुड़ी वो जानकारियां मौजूद हैं जो आज भी डॉक्टरों को पढ़ाई जाती हैं. अब इस इतिहास की मदद से ही मेडिकल साइंस ने पोस्टमार्टम या कह लीजिए ऑटोप्सी की दिशा में काफी तरक्की की है.
क्या होता है पोस्टमार्टम, कितने प्रकार के?
पोस्टमार्टम को सरल शब्दों में समझाते हुए फॉरेंसिक एक्सपर्ट डॉक्टर आकृति बताती हैं कि अगर किसी की अननेचुरल या कह लीजिए अस्वभाविक मौत होती है, तब पोस्टमार्टम किया जाता है. अगर मौत का कारण जानना हो, शव की पहचान करनी हो, मौत का सही समय जानना हो, तब भी पोस्टमार्टम करना होता है. कई बार शव डीकंपोज (विघटित) हो जाता है, उस स्थिति में भी पोस्टमार्टम मौत का सटीक समय बता सकता है. इसी बात को आगे बढ़ाते हुए लेडी हॉरडिंज मेडिकल कॉलेज के सीनियर रेसिडेंट डॉक्टर सुनील दहिया कहते हैं कि पोस्टमार्टम दो प्रकार के होते हैं. मेडिको लीगल पोस्टमार्टम होता है जहां पर सिर्फ पुलिस या मजिस्ट्रेट के कहने पर ऑटोप्सी की जाती है. जितनी भी संदिग्ध मौते होती हैं या जहां पर पुलिस को शक होता है, तब मेडिको लीगल पोस्टमार्टम किया जाता है. वहीं क्लिनिकल या हॉस्पिटल पोस्टमार्टम शोध के उदेश्य से किया जाता है. जब किसी तरह की रिसर्च करनी होती है, तब क्लिनिकल पोस्टमार्टम होता है. इसमें मृतक के रिश्तेदारों की सहमति जरूरी रहती है.
पुलिस या रिश्तेदार, किसके कहने पर पोस्टमार्टम?
इस क्लिनिकल पोस्टमार्टम पर और रोशनी डालते हुए डॉक्टर दहिया बताते हैं कि कई बार घरवालों को ही शक होता है कि उनके रिश्तेदार की मौत किस वजह से हुई. इसी तरह अगर किसी न्यू बॉर्न बच्चे की मौत हो जाए या फिर बच्चा मृत पैदा हो, तब मौत का सही कारण जानने के लिए घरवाले ही पोस्टमार्मट करने के लिए सहमति देते हैं. ये वाली ऑटोप्सी फोरेंसिक पैथोलोजिस्ट करते हैं. सरल शब्दों में समझे तो मेडिको लीगल में तो डॉक्टर कानून के दायरे में रहकर, पुलिस या मजिस्ट्रेट के कहने पर ही पोस्टमार्टम करता है. तब मृतक के रिश्तेदारों से कोई लेना देना नहीं होता है. उनकी सहमति की भी जरूरत नहीं पड़ती है. वहीं अगर क्लिनिकल पोस्टमार्टम है तो जरूर रिश्तेदारों की सहमति के बिना ऑटोप्सी नहीं की जा सकती.
पोस्टमार्टम की प्रक्रिया क्या होती है?
अब एक सवाल उठता है कि पोस्टमार्टम करने की प्रक्रिया कैसे शुरू होती है, कौन शव को फॉरेंसिक डॉक्टरों के पास लेकर आता है? कब तक पोस्टमार्टम की रिपोर्ट देनी होती है. इस बारे में डॉक्टर आकृति ने काफी विस्तार से बताया है. वे कहती हैं कि हम क्योंकि मेडिको लीगल पोस्टमार्टम करते हैं, इसलिए सारे पेपर हमारे पास पुलिस लेकर आती है. पुलिस कहती है कि इस शख्स का पोस्टमार्टम किया जाना है, उसकी ये हिस्ट्री रही है. उन डिटेल के आधार पर ही पोस्टमार्टम किया जाता है. बिना किसी पेपर के पोस्टमार्टम नहीं कर सकते हैं. डॉक्टर आकृति इस बात पर भी जोर देती हैं कि सिर्फ आपराधिक मामलों में ही पोस्टमार्टम नहीं हो रहा है. अगर रोड एक्सीडेंट हुआ है, संदिग्ध स्थिति में मौत हुई हो, या फिर किसी ने फांसी लगाई हो, तब भी पोस्टमार्टम किया जाएगा. यानी कि पुलिस जांच का सबसे अहम सबूत या कड़ी पोस्टमार्टम ही होती है. अब जितना जरूरी पोस्टमार्टम करना होता है, उसकी टाइमिंग भी उतनी ही अहमियत रखती है. समय रहते पोस्टमार्टम होना जरूरी रहता है. इसमें देरी का कोई सवाल ही नहीं.
कब तक देनी होती है पोस्टमार्टम रिपोर्ट?
डॉक्टर सुनील दहिया बताते हैं कि अलग-अलग राज्यों में अलग नियम रहते हैं. अभी हाल ही में पंजाब और हरियाणा को लेकर कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि 24 घंटे के अंदर पोस्टमार्टम रिपोर्ट देनी होगी. इसमें किसी भी तरह की देरी नहीं की जा सकती है. वहीं एक सवाल उठता है कि क्या पोस्टमार्टम में भी कोई शुरुआती रिपोर्ट होती है और क्या कभी बाद में डिटेल वाली रिपोर्ट दी जाती है. इस बात का खंडन करते हुए डॉक्टर दहिया कहते हैं कि ये सब गलत बाते हैं. 'मैं किसी का नाम नहीं लेना चाहता, लेकिन बिल्कुल गलत है. पोस्टमार्टम में शुरुआती रिपोर्ट जैसा कुछ नहीं होता है. हमे समझना पड़ेगा कि पोस्टमार्टम एक मेडिको लीगल डॉक्यूमेंट है, ये बहुत बड़ा सबूत होता है. इसकी रिपोर्ट तो आपको तुरंत ही देनी होती है. आप चार-पांच दिन का कोई गैप नहीं कर सकते हैं. चाहे आप पुलिसवाले को अस्पताल में बैठाकर रखिए, लेकिन रिपोर्ट सीधे उनके हाथ में जानी चाहिए. यहां हमारा मृतक के घरवाले से कोई लेना देना नहीं है. सिर्फ सिस्टम और हमारे बीच की बात है'.
क्या रात में किया जा सकता है पोस्टमार्टम?
अब पहले कहा जाता था कि पोस्टमार्टम सिर्फ दिन में किए जाते हैं, रात में नहीं होते. लेकिन समय के साथ इन नियमों में बदलाव देखने को मिले हैं. लेकिन फिर भी लोगों के बीच कई तरह की गलतफहमियां हैं. उन्हीं गलतफहमियों को दूर करने का काम डॉक्टर दहिया ने किया है. इस बारे में वे बताते हैं कि अब केंद्र सरकार की जो नई पॉलिसी आई है, उसके मुताबिक कुछ मामलों में रात में भी पोस्टमार्टम किया जाता है. लेकिन बड़ी बात ये है कि सिर्फ स्पेशल केस में ऐसा होता है. अगर कोई सोचे कि हर तरह के केस में रात में पोस्टमार्टम हो जाएगा तो ये गलत है. अगर कोई होमीसाइडल (हत्या) वाला मामला है या कोई शरीर पर चोटें हैं, उस स्थिति में रात में पोस्टमार्टम नहीं किया जाता. इसका बड़ा कारण ये रहता है कि रात में आर्टिफिशियल लाइट में जख्म को समझना मुश्किल होता है. असल कारण को जानने के लिए नेचुरल लाइट की जरूरत पड़ती है. सिर्फ हाई प्रोफाइल केस हों या फिर कुछ खास मामलों में ही रात में पोस्टमार्टम होता है.
आसान नहीं शरीर खोलना, जानिए चुनौतियां
अब पोस्टमार्टम की एबीसीडी तो समझ ली गई, लेकिन कई चुनौतियां भी होती हैं. इसमें पोस्टमार्टम करने के दौरान वाली चुनौतियां होती हैं, किनके साथ किया जा रहा है, वो भी चुनौती है और किन उपकरणों के साथ इस प्रकिया को पूरा करना है, वो भी एक चुनौती है. इन चुनौतियों पर डॉक्टर आकृति कहती हैं कि अलग-अलग मामलों पर ये निर्भर करता है. कई बार ऐसा होता है कि जो बॉडी हमारे पास आती है वो पूरी तरह डीकंपोज हो जाती है. ऐसा भी देखा गया है कि कुछ शवों को चिड़िया या कोई दूसरे जानवर खा लेते हैं. उस स्थिति में शव की पहचान करना ही सबसे बड़ी चुनौती रहती है. डॉक्टर आकृति के मुताबिक कुछ मामलों में राजनीतिक प्रेशर भी हो सकता है. वे कहती हैं कि मैंने खुद अभी तक इसका अनुभव नहीं किया है. लेकिन हाई प्रोफाइल केस होते हैं, वहां ये भी संभव होता है. इसलिए ये भी एक चुनौती बन सकता है. इसी बात को आगे बढ़ाते हुए डॉक्टर दहिया ने एक दूसरे पहलू पर फोकस किया है. उनके मुताबिक कई बार पोस्टमार्टम में इंटर्न्स भी साथ होते हैं और वे ही बड़ी चुनौती बन जाते हैं.
इस बारे में वे कहते हैं कि MBBS के जो स्टूडेंट होते हैं, उनकी फॉरेंसिक में सिर्फ एक हफ्ते की ट्रेनिंग रहती है. जबकि हम मानते हैं कि ये कम से कम 1 से 2 महीने के बीच में तो होनी ही चाहिए. लेकिन NMC की गाइडलाइन में सिर्फ 7 दिन गए हैं. ऐसे में उन स्टूडेंट को मेडिको लीगल पोस्टमार्टम की तो ज्यादा जानकारी मिलती ही नहीं है. कोई इतने कम समय में कैसे समझ सकता है. बाद में उन्हीं डॉक्टरों को दिक्कतों का भी सामना करना पड़ता है. एक दूसरी समस्या की ओर भी डॉक्टर दहिया ने रोशनी डाली है. उन्होंने अपील की है कि मॉर्चरी में और बेहतर सुविधाएं होनी चाहिए. इक्विपमेंट सारे रहने चाहिए, कोई कमी ना हो, इसका सरकार ध्यान रखे. अब एक चुनौती लोगों के बीच बन रहीं गलत धारणाएं भी हैं. जागरूकता की कमी की वजह से कुछ लोग पोस्टमार्टम को काफी गलत नजरिए से देखते हैं. डॉक्टर दहिया ने खुद इसका अनुभव किया है.
वो गलत धारणाएं जो पूरी तरह फर्जी हैं
वे बताते हैं कि लोगों को पता नहीं क्यों ऐसा लगता है कि पोस्टमार्टम करने के बाद डॉक्टर शरीर से किडनी निकालकर बेच देते हैं. कोरोना के समय भी एक ऐसा ही फर्जी वीडियो वायरल कर दिया गया था. बाद में पता चला कि वो एक फिल्म का सीन था. मैं लोगों को ये समझाना चाहता हूं कि पोस्टमार्टम के बाद कोई ऑर्गन कुछ काम का नहीं रहता है. डॉक्टर उनके साथ कुछ नहीं कर सकता है. अगर मान लीजिए कि किसी की जहर की वजह से मौत हुई है तो सिर्फ उस जहर को समझने के लिए मृतक का विसरा FSL (Forensic Science Laboratory) को भेजा जाता है जिससे उसका केमिकल एनालिसिस हो सके. वहीं अगर केमिकल एनालिसिस में भी कुछ ना निकले तो और डिटेलिंग के लिए ऑर्गन की हिस्ट्रोपेथी (माइक्रोस्कोप से टिशू की जांच) आगे भेजी जाती है. अगर कोई ऐसा शख्स भी हो जिसने मरने से पहले कहा हो कि उसके ऑर्गन को डोनेट कर दिया जाए तो उसकी भी एक अलग टीम होती है. कोई डॉक्टर ऐसे किसी के अंग को नहीं निकाल सकता है.