
पब्लिक फिगर्स के बारे में कहा जाता है कि उनके पास निजी जिंदगी जैसा कुछ नहीं होता. लेकिन ये बात उनके जाने के बाद भी वैसी ही रहती है. खासकर जब मसला उनकी लिखी चिट्ठियों या तस्वीरों का हो. लोग उन्हें पढ़ना-देखना चाहते हैं. यही वजह है कि प्रतिष्ठित लोगों और नेताओं के दस्तावेजों को म्यूजियम में रखा जाता रहा. लेकिन कुछ साल पहले दानकर्ता ने भूतपूर्व पीएम जवाहरलाल नेहरू के निजी कागजातों तक लोगों की पहुंच सीमित कर दी. अब इसपर प्राइम मिनिस्टर्स म्यूजियम एंड लाइब्रेरी (PMML) ने बड़ा फैसला लिया है.
सार्वजनिक हस्तियों के प्राइवेट कलेक्शन कितने निजी होते हैं?
क्या इन्हें सार्वजनिक किया जा सकता है?
इसका अधिकार किसे है?
ऐसे कई सवाल हैं, जिनकी शुरुआत भूतपूर्व पीएम नेहरू के कागजातों से करते हैं.
निजी संग्रह की बात करें तो पीएम म्यूजियम के पास सबसे पहले नेहरू के ही दस्तावेज पहुंचे. ये कागज देश के पहले प्रधानमंत्री की यादगार के तौर पर नेहरू मेमोरियल एंड लाइब्रेरी में रखे गए थे. बाद में इसी का नाम प्रधानमंत्री संग्रहालय हो गया. साल 1971 में इंदिरा गांधी ने इन कागजों को संग्रहालय में सौंपा. उनके देहांत के बाद इन दस्तावेजों का बड़ा हिस्सा सोनिया गांधी ने पीएमएमएल को दे दिया था. बाद में यूपीए के कार्यकाल में उन्होंने इसका एक हिस्सा वापस भी मांग लिया. चिट्ठी वापस लेने का कारण क्या था, इसपर कहीं कोई जानकारी नहीं मिलती.
कौन से कागज वापस लिए थे
इंडियन एक्सप्रेस में पीएमएमएल के हवाले से कहा गया है कि इनमें नेहरू की जयप्रकाश नारायण, एडविना माउंटबेटन, अल्बर्ट आइंस्टाइन, अरुणा आसफ अली और विजय लक्ष्मी पंडित से बातचीत शामिल है, जो उन्होंने खतों के जरिए की. मई 2008 में तत्कालीन यूपीए सरकार के दौरान सोनिया गांधी ने डोनर के बतौर ऐसी चिट्ठियों के 51 बक्से वापस मांग लिए थे.
बाद में इसपर विवाद होने लगा. यहां तक कि खतों के कलेक्शन की फोरेंसिक जांच की भी मांग हुई ताकि समझा जा सके कि क्या कुछ विवादित चीजें गायब कर दी गई हैं. चिट्ठियों के इंडेक्ट बनाकर उन्हें ज्यादा सुरक्षित रखने की बात भी हो रही है.
और किनके दस्तावेज रखे हुए हैं
म्यूजियम में अकेले नेहरू ही नहीं, इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट की मानें तो लगभग 1000 राजनैतिक हस्तियों के दस्तावेज संभाले हुए हैं. इनमें महात्मा गांधी, बीआर अंबेडकर, राजकुमारी अमृत कौर, मौलाना अबुल कलाम आजाद और भीकाजी कामा से लेकर चौधरी चरण सिंह तक शामिल हैं. इसके अलावा हालिया दस्तावेजों में हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार की दरख्वास्त है, जो उन्होंने पीएम नरेंद्र मोदी को लिखा था. म्यूजियम में लेखकों और सोशल वर्करों के भी डॉक्युमेंट्स हैं.
क्यों अहम हैं ये दस्तावेज
अगर गांधीजी ने उस दौर में किसी अहम शख्सियत के साथ पत्राचार किया हो, तो उसमें लिखी बातें आज भी काम की साबित हो सकती हैं. दो पर्सनैलिटीज की आपसी चिट्ठियां उस समय भले निजी हों, लेकिन अब वो देश के इतिहास को समझने का जरिया हो सकती हैं. यही वजह है कि पीएमएमएल ऐसे दस्तावेजों को बहुत सावधानी से रखता है. बेहद निजी पत्राचार या दस्तावेजों को इससे बाहर रखा गया है. इन कागजों को म्यूजियम को देना है, या नहीं, यह फैसला परिवार या कागजात के मालिक का होता है.
मंत्रालय ने किया ये फैसला
डोनर कागज दे तो देते हैं, लेकिन कई बार उसपर रोकटोक भी लगा देते हैं, जैसे कुछ दस्तावेज सार्वजनिक नहीं किए जा सकते, या उनपर रिसर्च नहीं की जा सकती. ऐसे में पीएमएमएल के पास वे दस्तावेज होकर भी किसी काम के नहीं रह जाते. इन्हीं रोकटोक से पार पाने के लिए कल्चर मिनिस्ट्री ने फैसला किया कि वो कागजातों को जनता की पहुंच से ज्यादा से ज्यादा पांच साल के लिए ही दूर रखेगा. रेयर मामलों में ये टाइम लिमिट 10 साल हो सकती है, ताकि गोपनीयता बनी रहे. बता दें कि पीएमएमएल संस्कृति मंत्रालय के अधीन काम करता है.
अब वो भूतपूर्व पीएम नेहरू के उन निजी डॉक्युमेंट्स को भी खोलेगा, जो साल 2008 में उसके पास ही रह गए थे. माना जा रहा है कि ये ये गट्ठर 2.80 लाख पन्नों का है, जिसमें आपसी चिट्ठियों से लेकर कई तरह के कागज होंगे. अब तक ये बंद रखे हुए थे.
और कौन सा संस्थान दस्तावेज रखता है
पीएम म्यूजियम के अलावा नेशनल आर्काइव्स ऑफ इंडिया भी निजी डॉक्युमेंट्स को अपने कलेक्शन में जगह देता रहा, लेकिन वो सिर्फ वही कागज स्वीकारता है, जिनपर कोई रोकटोक न हो.