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कभी हिंदू और बौद्ध बहुल रह चुका मालदीव कैसे बना इस्लामिक राष्ट्र?

हफ्तेभर पहले मालदीव में मोहम्मद मुइज्जू नए राष्ट्रपति बने. इसके बाद से वहां भारत विरोधी बयानबाजियां फिर शुरू हो गईं. सुन्नी-बहुल देश में कट्टरता के हाल ये है कि वहां किसी नॉन-मुस्लिम को नागरिकता तक नहीं मिलती, न ही वे अपने धर्म की प्रैक्टिस पब्लिक में कर सकते हैं. इसी देश में किसी समय हिंदू और बौद्ध धर्म के लोगों की बहुलता हुआ करती थी.

मालदीव में नई सरकार के आते ही भारत की चिंता गहराने लगी है. सांकेतिक फोटो (Getty Images) मालदीव में नई सरकार के आते ही भारत की चिंता गहराने लगी है. सांकेतिक फोटो (Getty Images)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 04 अक्टूबर 2023,
  • अपडेटेड 1:53 PM IST

सत्ता में आई प्रोग्रेसिव पार्टी ऑफ मालदीव को उसके भारत-विरोध के लिए जाना जाता है. इसकी झलक भी नए राष्ट्रपति ने आते ही दे दी. उन्होंने कहा कि वे मालदीव से विदेशी सेना को निकाल-बाहर करेंगे. यहां बता दें कि इस पार्टी ने कैंपेन के दौरान भी इंडिया आउट नारा दिया था. ये स्थिति तब है जबकि किसी समय इस बेहद खूबसूरत द्वीप देश में ज्यादातर आबादी हिंदू थी. इतिहासकार ये भी मानते हैं कि यहां के शासक भारत के चोल साम्राज्य से थे. लेकिन तब कैसे ये देश पूरी तरह से इस्लामिक हो गया. आइए, जानते हैं. 

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भारत कैसे पहुंचा वहां?

भारतीय शासक मालदीव तक कैसे पहुंचे, इस बारे में अलग-अलग मत हैं. ज्यादातर स्कॉलर्स का मानना है कि चोल साम्राज्य से भी पहले वहां कलिंग राजा ब्रह्मदित्य का शासन था. ये 9वीं सदी की बात है. इसके बाद राजसी शादियों के जरिए वहां तक चोल वंश पहुंच गया. 11वीं सदी में मालदीप पर महाबर्णा अदितेय का शासन रहा, जिसके प्रमाण वहां आज भी शिलालेखों पर मिलते हैं. 

अरब व्यापारियों का असर बढ़ता गया

इसी दौर में मालदीव तक बौद्ध धर्म भी पहुंच चुका था और अरब व्यापारियों के जरिए इस्लाम भी. हिंदू धर्म को मानने वाले तेजी से बौद्ध धर्म अपनाने लगे, लेकिन ज्यादातर ने इस्लाम अपना लिया. क्यों? इसकी वजह भी साफ नहीं है. 12वीं सदी में आखिरी बौद्ध शासक धोवेमी ने भी इस्लाम धर्म को अपना लिया. उनका नाम अब मुहम्मद इब्न अब्दुल्ला था. इसके बाद से लगभग पूरे देश का इस्लामीकरण हो गया. इस बात का जिक्र 'नोट ऑन द अर्ली हिस्ट्री ऑफ मालदीव्स' नाम की किताब में मिलता है. 

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इस तरह का है धार्मिक माहौल

हिंद महासागर में स्थित ये द्वीप देश अब 98 प्रतिशत मुस्लिम है. बाकी 2 प्रतिशत अन्य धर्म हैं, लेकिन उन्हें अपने धार्मिक प्रतीकों को मानने या पब्लिक में त्योहार मनाने की छूट नहीं. यहां तक कि अगर किसी को मालदीव की नागरिकता चाहिए तो उसे मुस्लिम, वो भी सुन्नी मुस्लिम होना पड़ता है. मिनिस्ट्री ऑफ इस्लामिक अफेयर्स (MIA) यहां धार्मिक मामलों पर नियंत्रण करती है. 

वैसे तो मालदीव पर्यटन का देश है, लेकिन टूरिस्ट को भी यहां अपने धर्म की प्रैक्टिस करने पर मनाही है. वे सार्वजनिक जगहों पर अपने पूजा-पाठ नहीं कर सकते.

अमेरिकी रिपोर्ट ने भी लगाई मुहर

यूएस डिपार्टमेंट ऑफ स्टेट ने साल 2022 में मालदीव में रिलीजियस फ्रीडम पर एक रिपोर्ट जारी की. इसमें बताया गया कि वहां के द्वीप पर भगवान की मूर्तियां स्थापित करने के जुर्म में तीन भारतीय पर्यटकों को गिरफ्तार कर लिया गया था. यहां तक कि मालदीव में काम करने वाले NGOs ने इंटरनेशनल योगा डे के खिलाफ अपील की थी कि ऐसे आयोजनों से गैर-इस्लामिक प्रैक्टिस को बढ़ावा मिलता है. वैसे इस देश में लगभग 29 हजार भारतीय रह रहे हैं, लेकिन या तो वे इस्लाम अपना चुके, या फिर अपना आधिकारिक धर्म छिपाते हैं. 

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धर्म बदलने पर कड़ी सजा का नियम

यहां पर इस्लामिक कट्टरपंथ इतना तगड़ा है कि धर्म परिवर्तन की भी इजाजत नहीं. कोई भी मुस्लिम नागरिक अपनी मर्जी से दूसरा धर्म नहीं अपना सकता. मिनिस्ट्री ऑफ इस्लामिक अफेयर्स के तहत इसपर कड़ी सजा मिल सकती है. यूएस स्टेट डिपार्टमेंट की रिपोर्ट यहां तक कहती है कि धर्म परिवर्तन पर शरिया कानून के तहत मौत की सजा भी मिलती है, हालांकि मालदीव सरकार ने कभी इसपर कोई सीधा बयान नहीं दिया. 

टूरिस्ट फ्रैंडली है नीतियां

लगभग 12 सौ द्वीपों के इस समूह देश में कुछ सौ आइलैंड्स पर ही बसाहट है, बाकी द्वीप निर्जन पड़े हुए हैं. इनमें से कई द्वीप पर्यटन के लिए मशहूर हैं. यहां वो सारी सुविधाएं हैं, जो एग्जॉटिक ट्रिप की तलाश कर रहे लोगों को चाहिए. इसे हनीमूनर्स हेवन भी कहते हैं, जहां हर साल करीब 10 लाख टूरिस्ट आते हैं. छोटे द्वीप के लिहाज से ये काफी बड़ा आंकड़ा है. यही वजह है कि कट्टरता के बावजूद ये देश टूरिस्टों के लिए काफी खुला हुआ है, और रिजॉर्ट्स में वे तमाम सुविधाएं मिलती हैं जो सैलानियों को चाहिए. 

नए राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू (दाएं) की पार्टी प्रो-चाइना मानी जाती है. फोटो (AP)

पिछली सरकार की नीति इंडिया फर्स्ट की रही. वो व्यापार-व्यावसाय के लिए भारत को प्राथमिकता देते रहे, लेकिन नए चुनाव के साथ ही मालदीव और भारत के रिश्ते में तनाव दिखने लगा है. राष्ट्रपति मुइज्जू ने नाम लिए बगैर भारतीय सेना को देश से निकालने के संकेत दे दिए हैं. 

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चीन का असर है मौजूदा सरकार पर

मुइज्जू की पार्टी चीन की करीबी मानी जाती है. पिछले कुछ सालों में इस देश पर चीन का असर दिखने भी लगा है. उसने यहां भारी निवेश किया हुआ है. साथ ही साथ यहां के 10 द्वीपों को लीज पर ले रखा है, जहां वो बड़े पैमाने पर अपने जहाजों के रुकने के साथ सैन्य गतिविधियां कर रहा है.

चीन की तरफ से अब मालदीव के साथ फ्री-ट्रेड एग्रीमेंट की बात भी चल रही है. प्रो-चाइन सेंटिमेंट्स के लिए जानी जाती मौजूदा सरकार अगर इसपर हामी भर दे तो बहुत मुमकिन है कि चीन मालदीव पर दबाव बनाकर भारत से उसके रिश्ते बिगाड़ दे. ऐसा ही मामला श्रीलंका और नेपाल के साथ भी दिख चुका, जब उधार के जाल में फंसकर भारत के साथ उनके रिश्ते तनावपूर्ण होने लगे थे. 

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