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जेल में बैठकर भी पूर्व पीएम इमरान खान PAK राजनीति में ला चुके भूचाल, क्या करीब है एक और तख्तापलट?

पाकिस्तान में पूर्व पीएम इमरान खान की अपील पर उनके समर्थकों ने सड़कों पर हंगामा मचा रखा है. हिंसा में 6 सुरक्षाकर्मियों की मौत हो चुकी. इस बीच सरकार ने इस्लामाबाद में सेना को शूट-एट-साइट के आदेश दे दिए. लेकिन पूर्व पीएम तो जेल में हैं, फिर कैसे वे राजनैतिक उठापटक की वजह बन रहे हैं? क्यों पाकिस्तानी पॉलिटिक्स में ये नई तस्वीर नहीं?

पूर्व पीएम इमरान खान की रिहाई की मांग तेज हो चुकी. (Photo- PTI) पूर्व पीएम इमरान खान की रिहाई की मांग तेज हो चुकी. (Photo- PTI)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 27 नवंबर 2024,
  • अपडेटेड 8:57 AM IST

पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की पार्टी पीटीआई पाकिस्तान की सड़कों पर हिंसक प्रोटेस्ट कर रही है. यहां तक कि राजधानी में सेना तैनात हो चुकी, जिसे एक्सट्रीम एक्शन के आदेश मिले हुए हैं. पार्टी का प्रदर्शन अपने लीडर के इशारे पर शुरू हुआ, जो जेल में बंद हैं. इस बीच कई सवाल उठ रहे हैं, जैसे हिरासत में रहते हुए वे कैसे समर्थकों से सीधी बातचीत कर पा रहे हैं और किस बात पर ताजा फसाद है. 

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क्यों जेल में हैं खान 

इमरान खान को पाकिस्तानी आम चुनाव से कुछ महीनों पहले तोशखाना मामले में लंबी सजा सुनाई गई. उनपर आरोप था कि उन्होंने पीएम के बतौर अपने पद को मिले तोहफों को टैक्स में घोषित किए बिना चुपचाप बेच दिया, जो कि नियमों के खिलाफ है. इसके अलावा फिलहाल उनपर करीब 150 मामले चल रहे हैं, जिनमें से सैन्य ठिकानों पर हमला भी एक है. मई में हुए हमलों का ये मामला पाकिस्तान मिलिट्री कोर्ट में है. चश्मदीदों के अनुसार इमरान ही इस अटैक के कर्ताधर्ता थे.

गैर इस्लामिक ढंग से शादी का मामला भी काफी गंभीर रहा, जिसपर उन्हें सजा हुई, जबकि अविश्वास प्रस्ताव के जरिए वे 2022 में ही पद से हटाए जा चुके थे.

अब क्या हो रहा है

लंबे समय बाद एकदम से सड़कों पर इमरान के समर्थन में हजारों लोग उतर आए हैं, जो सेना और पुलिस से भी नहीं डर रहे. यहां तक कि पूरा का पूरा इस्लामाबाद छावनी में तब्दील हो चुका है. ये प्रोटेस्ट उस समय शुरू हुआ, जब बेलारूस से एक बहुत अहम डेलीगेशन पाकिस्तान यात्रा पर आया हुआ था. यहां सोचने की बात है कि जेल में रहते हुए भी कैसे इमरान की आवाज पाकिस्तान की राजनैतिक तस्वीर में अलग-अलग रंग भर रही है. 

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कैसे हुई शुरुआत

पाकिस्तानी मीडिया डॉन के मुताबिक, खान ने 13 नवंबर को अपने सपोर्टरों से फाइनल कॉल में शामिल होने की अपील की. उन्होंने समर्थकों से तानाशाही और गलत ढंग से अरेस्ट किए जाने का विरोध करने के लिए कहा. अपने समेत पार्टी के सारे नेताओं को रिहा किए जाने की मांग के साथ खान ने कार्यकर्ताओं से यह अपील भी की कि वे दबाव बनाकर मौजूदा सरकार से इस्तीफा लें. बकौल पार्टी, साल की शुरुआत में हुए चुनाव में धांधली हुई थी. माना जा रहा है कि अब उनकी पत्नी बुशरा बीबी के हाथ में पार्टी की कमान आ चुकी. उन्हें भी जनवरी में खान के साथ जेल भेजा गया था, लेकिन अक्टूबर के आखिर में जमानत मिल गई. 

क्या कर रही है सरकार

प्रदर्शनकारियों के गुस्से को देखते हुए सरकार ने इस्लामाबाद को दूसरे शहरों से जोड़ने वाली ज्यादातर सड़कों पर पहरा लगा दिया. जगह-जग पैरामिलिट्री के लोग दंगे कंट्रोल करने वाले उपकरणों और हथियारों के साथ तैनात हैं. दूसरा पक्ष भी उतना ही ताकतवर है. फर्स्टपोस्ट की एक रिपोर्ट में बीबीसी के हवाले से कहा गया कि प्रोटेस्टर बिना नेता के नहीं हैं, बल्कि खुद खान की पत्नी बुशरा बीबी इसमें उनका चेहरा बनी हुई हैं.

क्या हो सकता है

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माना जा रहा है कि प्रदर्शन की आग किसी न किसी बड़े फैसले तक पहुंचने के बाद ही रुकेगी, जैसे खान की रिहाई. प्रोटेस्ट करने वालों की दूसरी मांग सरकार का इस्तीफा है. वैसे तो ऐसा होने की संभावना कम है लेकिन पाकिस्तान के इतिहास को देखते हुए कुछ भी प्रेडिक्टेबल नहीं. जुल्फिकार अली भुट्टो से लेकर नवाज शरीफ और बेनजीर भुट्टो ने भी जेल में समय बिताया लेकिन इससे उनका करिश्मा और जनता पर पकड़ कम नहीं हुई, बल्कि बढ़ी ही. रिहाई के बाद सबने ही राजनीति में वापसी की.

जेल जाकर वापस मजबूत होने वाले इन लीडरों में एक कॉमन बात थी कि देर-सवेर सबको ही सेना का साथ मिला. सेना के बिना वहां की राजनीति में गुजारा नहीं. फिलहाल पाक आर्मी मौजूदा सत्ता के साथ, यानी इमरान खान और उनकी पार्टी के खिलाफ है. जबकि खान के पीएम होने में आर्मी का बड़ा रोल था. अब सेना अगर दोबारा पाला बदल ले, जो कि पाकिस्तान की पॉलिटिक्स में कुछ नया नहीं, तो खान के दिन वापस फिर सकते हैं. फिलहाल सेना की  मौजूदगी के बावजूद भी लोग जिस तरह बेखौफ प्रोटेस्ट कर रहे हैं, वो कहीं न कहीं किसी बदलाव की तरफ इशारा करता है.

पाकिस्तान में सेना की वजह से पहले भी कई तख्तापलट हो चुके. 

- आजादी के लगभग दशकभर बाद ही तत्कालीन राष्ट्रपति इस्कंदर मिर्जा ने खुद जनरल अयूब खान को लीडरशिप सौंप दी. तब देश में पहला मार्शल लॉ लागू हुआ, जो लगभग 10 सालों तक चला. ये पहली बार था, जब आर्मी ने खुद को सत्ता का रखवाला घोषित किया. 

- साल 1977 में प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो पर चुनावी धांधली का आरोप लगा, जिसके बाद प्रोटेस्ट होने लगे. उनपर अपने राजनैतिक कंपीटिटर्स की हत्या के भी आरोप थे. उन्हें फांसी की सजा हुई, और कमान जनरल जिया उल हक के पास चली आई.

- नब्बे के दशक के आखिर में नवाज शरीफ और जनरल परवेज मुशर्रफ के बीच टकराव बढ़ा. पीएम शरीफ ने मुशर्रफ को सैन्य प्रमुख के पद से हटाना चाहा लेकिन पासा उल्टा पड़ गया. मुशर्रफ ने सत्ता पर कब्जा कर लिया. 

- पिछले साल सेना ने कुछ कम औपचारिक ढंग से हस्तक्षेप किया. इमरान खान की सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आने के बीच सेना ने भी पल्ला झाड़ लिया और नई सरकार को सपोर्ट दिया. 

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