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Partition Horrors Remembrance Day: बंटवारे के बाद पाकिस्तान में रह गए हिंदू किन हालातों में जी रहे हैं? पढ़िए, भागकर हिंदुस्तान आए लोगों की कहानियां

आज 14 अगस्त को विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस मनाया जा रहा है. साल 1947 में इसी दिन देश के बंटवारे के दौरान करोड़ों लोग घर-जमीनें छोड़कर भागे. मजहब के नाम पर भारी कत्लेआम मचा. दशकों बाद भी बंटवारे का नासूर रिस रहा है. पाकिस्तान में बसे हिंदुओं के हालात सबसे खराब हैं. वे लगातार हिंदुस्तान लौट रहे हैं, लेकिन यहां भी न छत है, न अपनापन.

पाकिस्तान में रहती माइनोरिटी पर बहुत कम ही बात होती है. पाकिस्तान में रहती माइनोरिटी पर बहुत कम ही बात होती है.
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 14 अगस्त 2023,
  • अपडेटेड 6:32 PM IST

कहने को तो बंटवारा देश या घरों का होता है, लेकिन इसके बाद जिंदगियां भी दो-फांक हो जाती हैं. भारत का विभाजन भी इससे अलग नहीं था. मजहब के नाम पर जब देश बंटा तो लगभग पाकिस्तान वाले हिस्से से लोग भागकर भारत की तरफ आने लगे. यही दूसरी तरफ भी हुआ. कहा जाता है कि पाकिस्तान की तरफ से आने वाली ट्रेनों में लाशें भरकर आ रही थीं. इसके बाद भी बड़ी आबादी पाकिस्तान में रह गई. फिलहाल उसके हालात इतने खराब हैं कि हिंदू भागकर हिंदुस्तान आ रहे हैं. 

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Aaj Tak डिजिटल ने पाक से भागकर आए ऐसे ही कुछ शरणार्थियों को टटोलकर ये समझना चाहा कि कैसा होता है एक हिंदू का पाकिस्तान में रहना. 5 कहानियों की शक्ल में उनका स्याह तजुर्बा यहां पढ़िए.

पहली कहानी, उस मां की, जिसे दुधमुंह बच्चे को दूर के रिश्तेदारों के भरोसे छोड़कर भागना पड़ा. फिलहाल ये मां जोधपुर में है. शहर से बाहर उस जगह, जहां छत के नाम पर पॉलिथीन की फरफराहट है, और फर्श के नाम तपते पत्थर. आखिरी याद क्या है उसकी? इस सवाल पर जवाब आता है- ‘उसकी गंध. दूध में भीगी हुई.’ बोलते-बोलते एकदम से भभककर रो देती हैं. 'मेरा बच्चा दिला दो. छाती भर-भरके दूध आता है, वहां वो भूख से तड़पता है.' 

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दूसरी कहानी, ऐसे माता-पिता की, जिनकी नाबालिग बेटी को अगवा कर धर्म बदला गया और 70 पार के मुस्लिम से ब्याह दिया गया. पाकिस्तान में माइनॉरिटी पर काम करने वाली संस्था ऑल पार्टी पार्लियामेंट्री ग्रुप (APPG) ने एक रिपोर्ट में बताया था कि हर साल कम से कम 1,000 हिंदू लड़कियों का धर्म बदलकर उनकी शादी करा दी जाती है. 12 से 25 साल की ये बच्चियां-औरतें अक्सर अपने से दोगुने-तिगुने उम्र के आदमियों से जबरन ब्याह दी जाती हैं. न मानने पर धमकी, रेप और मारपीट आम बात है. 

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अगली कहानी, पाकिस्तान के मीरपुर खास में रहकर आए ऐसे शख्स की, जिसकी तीन पीढ़ियां वहां बंधुआ मजदूरी करती रहीं. वे कहते हैं- महीनाभर काम करते तो पंद्रह दिनों की तनखा मिलती. किसी न किसी बात पर कटौती हो ही जाती. देर से आए, पैसे काटो. रुककर बीड़ी पी ली, पैसे काटो. बारिश नहीं हुई, तनखा रोक लो. फसल गल गई, पैसे नहीं मिलेंगे. 

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चौथी कहानी, किशन की. 40 की उम्र के किशन पाकिस्तान से रातोरात अपना सबकुछ छोड़कर भाग आए ताकि हिंदू बने रह सकें. वे भारत को अपना मुल्क कहते हैं. हालांकि इस अपने मुल्क ने भी उन्हें अपनाया नहीं, बल्कि पाकिस्तानी होने का पुछल्ला जोड़ दिया. वे कहते हैं- यहां आए तो सोचा कि राम के देश, अपने पुरखों के देश लौट आए हैं. पता नहीं था कि यहां भी हमें जानवर ही माना जाएगा. 

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आखिरी कहानी, उस बस्ती की, जहां पाकिस्तान से आए हिंदू बसते हैं. बसाहट के नाम पर यहां टूटी हुई छतें और खत्म होती उम्मीदें हैं. बस्ती में रहती एक मां चलते हुए वो जगह दिखाती है, जहां बच्चे पानी पीते हैं. पहाड़ी के पास जमा गंदा पानी, जिसमें कोई हलचल नहीं, सिवाय कीड़ों के रेंगने के.

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ये पांच कहानियां सिर्फ एक झलक हैं, उस दर्द की, जो पाकिस्तान से आए हिंदू झेलकर आए, और यहां भी जिससे उन्हें छुटकारा नहीं मिल सका. बंटवारे की ज्यादातर स्याह कहानियां वो हैं, जो हमेशा अनकही रह जाएंगी. 

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