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राजा से लेकर नेता तक- अकाल तख्त क्यों सुना पाता है सबको सजा, किन गलतियों पर घिरे सुखबीर बादल?

पंजाब के पूर्व डिप्टी सीएम सुखबीर सिंह बादल ने आज से अगले दो दिनों के लिए अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में सेवा शुरू कर दी. साथ में उनके गले में तनखैया यानी दोषी होने की तख्ती लटकी हुई थी. धार्मिक कदाचार के लिए अकाल तख्त ने उन्हें ये सजा दी है. इससे पहले कई नेताओं समेत महाराजा रणजीत सिंह को भी अकाल तख्त सजा दे चुका है.

पंजाब के पूर्व डिप्टी CM सुखबीर सिंह बादल सजा भुगतने के लिए गोल्डन टेंपल पहुंचे. पंजाब के पूर्व डिप्टी CM सुखबीर सिंह बादल सजा भुगतने के लिए गोल्डन टेंपल पहुंचे.
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 03 दिसंबर 2024,
  • अपडेटेड 5:41 PM IST

सिखों की सर्वोच्च संस्था अकाल तख्त ने पंजाब के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल को तनखैया करार देते हुए उन्हें शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष पद से हटाने का आदेश दिया, साथ ही गलतियों के प्रायश्चित्त के लिए उन्हें स्वर्ण मंदिर में टॉयलेट की सफाई की सजा दी. हालांकि हाल ही में बादल लगी चोट को ध्यान में रखते हुए सजा में बदलाव किया गया. इसके तहत वे दो दिनों के लिए मंदिर के एंट्री गेट पर सेवादार रहेंगे. जानें, क्या है तनखैया, और धार्मिक संस्था अकाली दल के पास कितनी शक्ति है, जो वो नेताओं को सजा सुना पाता है.  

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बादल को क्यों मिली सजा

लगभग चार महीने पहले अकाल तख्त ने बड़ा फैसला लेते हुए डिप्टी सीएम सुखबीर सिंह बादल को तनखैया करार दे दिया. ये फैसला बादल के उन तथाकथित धार्मिक भूलों के लिए लिया गया जो उन्होंने पद में रहने के दौरान किए थे. फैसला पांच तख्तों के सिंह साहिबान की बैठक के बाद मिलकर लिया गया था.

साल 2007 से अगले 10 सालों के लिए पंजाब के डिप्टी सीएम रहते हुए बादल के कई कामों को धार्मिक तौर पर गलत माना गया. जैसे डेरा सच्चा सौदा के गुरमीत राम रहीम के लिए नरम रुख रखना, कथित तौर पर अकाल तख्त को सुमेध सिंह सैनी को साल 2012 में पंजाब पुलिस महानिदेशक बनाने के लिए राजी करना और बरगड़ी में सिख युवाओं की हत्या और पीड़ितों को न्याय प्रदान करने में ढिलाई देना शामिल है. 

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क्या-क्या शामिल सजा में

तनखैया के तौर पर उन्हें दो दिनों तक अमृतसर के गोल्डन टेंपल में सेवा करनी होगी, जिस दौरान उनके गले में दोषी की तख्ती भी लटकी होगी. द प्रिंट की रिपोर्ट की मानें तो इसके बाद उन्हें पंजाब के कुछ और गुरुद्वारों में भी यही दोहराना है, जिसमें केशगढ़ साहिब और फतेहगढ़ साहिब शामिल हैं. बादल ने आज से अगले दो दिनों के लिए प्रायश्चित्त की शुरुआत भी कर दी. साथ ही पार्टी के सामने अध्यक्ष पद से अपने इस्तीफे की भी पेशकश की. 

तनखैया क्या है, क्या सजा हो सकती है? 

सिख धर्म में इसका मतलब है वो व्यक्ति जिसके धार्मिक गलती की हो. कोई कब तनखैया है, इसका फैसला सिखों की सबसे बड़ी धार्मिक संस्था अकाल तख्त करती है. सिख धर्म से जुड़ा कोई व्यक्ति अगर कोई धार्मिक गलती करे तो उसके पास ये गुंजाइश है कि वो अपने पास के सिख संगत के सामने हाजिर होकर अपनी गलती मान ले. संगत इसके बाद उसकी भूल की पड़ताल करेगी और उसी अनुसार सजा तय होगी. भूल जितनी छोटी या बड़ी हो, सजा भी उसी के मुताबिक होती है. मसलन, गुरुद्वारे में जूते साफ करने से लेकर फर्श धोने या बर्तन धोने की सजा. साथ ही कुछ फाइन भी हो सकता है. लेकिन सजा की तह में गलती सुधारने और सेवा भाव बढ़ाना ही है.

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क्या होता है तनखैया के साथ 

जैसे सामाजिक गलतियों पर कई बार बिरादरी के लोग ही सोशल बायकॉट कर देते हैं, ये उसी तरह का है. तनखैया का हुक्का-पानी बंद कर दिया जाता है. वो समाज के लोगों से मेलमिलाप नहीं कर सकता. शादी-ब्याह में शामिल नहीं हो सकता, न ही तनखैया के घर पर किसी सामाजिक मौके पर लोग आते हैं. यहां तक कि उसे किसी भी गुरुद्वारे में जाने की इजाजत नहीं रहती. ये अपने-आप बेहद बड़ी सजा है.

पहले चेहरे पर कालिख पोतना, या अपने गले में तनखैया लिखा हुआ बोर्ड टांगकर चलने की सजा भी दी जाती थी. महाराजा रणजीत सिंह, जिन्होंने साल 1801 में सिख साम्राज्य की स्थापना की थी, और 1839 तक शासन किया था, अकाल तख्त ने उन्हें भी नहीं बख्शा. एक मुस्लिम डांसर से शादी करने पर उन्हें भी तनखैया घोषित कर दिया गया था.

किन-किनको मिल चुकी सजा

वे पहले नेता नहीं, इससे पहले भी कई बड़े लीडर्स को तनखैया करार दिया जा चुका है. इसमें महाराजा रणजीत सिंह, पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह, पूर्व गृह मंत्री बूटा सिंह, पूर्व मुख्यमंत्री सुरजीत सिंह बरनाला और पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह शामिल हैं. इस सजा को पंजाब की राजनीति में काफी खौफ से देखा जाता रहा. भले ही सजा में कोई शारीरिक तकलीफ या जेल जैसी पनिशमेंट नहीं, लेकिन धार्मिक-सामाजिक बहिष्कार का असर कोर वोटर्स पर होता है. 

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क्या है अकाल तख्त, जिसके पास इतनी ताकत 

यह सिखों की सबसे बड़ी धार्मिक संस्था है. सिखों के छठे गुरु हरगोबिंद साहब ने श्री अकाल तख्त की स्थापना साल 1609 में की थी. इसका फैसला सभी सिखों को मानना होता है, चाहे वो कितने ही बड़े नेता हों. लेकिन इसकी पावर का अंदाजा इससे भी लगा लें कि नेताओं के फैसलों का भी तनखैया के जरिए अकाल तख्त विरोध कर पाता है. यहां तक कि कोई भी सरकार इसका विरोध नहीं कर पाती. हां, लेकिन ये जरूर है कि अकाल तख्त कोई सजा केवल सिख धर्म को मानने वालों को ही दे सकता है.

सजा के दौरान रहना होता है चौकस 

गुरुद्वारे में सेवा के दौरान तनखैया को साफ-सफाई का खासा ध्यान रखना होता है. साथ ही सजा के दौरान उसे निर्धारित जगह पर ही रहना होता है. वो घर या किसी दूसरी जगह नहीं जा सकता. परिवार भले ही उससे मिलने आ सकता है लेकिन इसमें भी कई रेस्ट्रिक्शन होते हैं. सजा ठीक से पूरी होने के बाद शख्स तनखैया नहीं रहता और धार्मिक-सामाजिक जीवन में उसकी वापसी हो जाती है.

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