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रूस नहीं चीन को बड़ा खतरा मानते हैं अमेरिकी, क्या तीसरे विश्व युद्ध की वजह बन सकती है पुरानी दुश्मनी?

अमेरिका और रूस में सांप-नेवले की जो केमिस्ट्री चली आ रही थी, उसमें एक ट्राएंगल बन रहा है. अमेरिका अब रूस के साथ-साथ चीन से भी बिदकने लगा है. प्यू रिसर्च सेंटर के सर्वे में 80% से ज्यादा अमेरिकियों ने माना कि वे चीन को पसंद नहीं करते. बहुत से ऐसे लोग चाहते थे कि वक्त रहते ही चीन को सबक मिल जाए ताकि वो अमेरिका पर हावी न हो.

अमेरिका और चीन के संबंधों में तनाव बढ़ रहा है. सांकेतिक फोटो (Needpix) अमेरिका और चीन के संबंधों में तनाव बढ़ रहा है. सांकेतिक फोटो (Needpix)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 22 जून 2023,
  • अपडेटेड 5:52 PM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फिलहाल अमेरिका की स्टेट विजिट पर हैं. ये अपनी तरह का सबसे बड़ा सम्मान है, जो अमेरिकी राष्ट्रपति किसी विदेशी लीडर को देता है. पीएम की अमेरिका यात्रा को लेकर बाकी देशों में भी सुगबुगाहट है. माना जा रहा है कि ये दौरा भारत-अमेरिका को और करीब लाएगा. 

इस बीच रूस और चीन भी नए तानेबाने बुन रहे

चीन खुद को रूस का दोस्त बता रहा है. दुनियाभर की पाबंदियां झेल रहे इस देश के साथ वो कई व्यापारिक समझौते कर रहा है. दूसरी तरफ भारत-रूस के रिश्ते कुछ हल्के पड़ते लग रहे हैं. अब अमेरिका से गहराते रिश्तों के बीच ये भी हो सकता है कि एक नया गठबंधन हो. इसमें एक तरफ अमेरिका-भारत होंगे, तो अगली ओर चीन-रूस. कुल मिलाकर, रूस और अमेरिका की पुरानी दुश्मनी नई पैकेजिंग में दिखने लगी है. चूंकि ये सब ही ताकतवर देश हैं, लिहाजा इससे पावर-पॉलिटिक्स का नया समीकरण बन सकता है. 

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क्या है रूस-अमेरिका तनाव का इतिहास?

दूसरे विश्व युद्ध के बाद तत्कालीन सोवियत संघ और अमेरिका के बीच तनाव बढ़ने लगा. इसकी वजह राजनैतिक-आर्थिक विचारधारा थी. अमेरिका पूंजीवाद पर यकीन करता, जबकि सोवियत संघ कम्युनिस्ट विचारधारा वाला था. दोनों को यकीन था कि उनके सिस्टम से दुनिया ज्यादा सही ढंग से चलेगी. धीरे-धीरे ये बात तनाव की वजह बनने लगी.

लगभग सारे अमेरिकी राष्ट्रपति रूस के खिलाफ बोलते रहे. सांकेतिक फोटो (Getty Images)

विचारधाराओं का टकराव बना फसाद की वजह

दोनों को शक होने लगा कि दूसरा देश अपनी ताकत का इस्तेमाल छोटे देश पर असर डालने के लिए कर रहा है. वॉर के बाद सोवियत संघ और अमेरिका सबसे ताकतवर देश बचे थे. दोनों ही बाकी दुनिया को अपनी तरह से चलाने की कोशिश करने लगे. यहां तक कि ब्रिटेन, जिसे दोनों ही देश पहले साम्राज्यवादी मानते, अमेरिका ने उससे हाथ मिला लिया और ब्रिटेन, यूरोप के साथ मिलकर नाटो बना लिया. दूसरी तरफ सोवियत संघ ने ईस्टर्न यूरोप के साथ वॉरसा समझौता कर लिया. इससे दुनिया बिना युद्ध के ही दो खेमों में बंट गई. 

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इस तरह से दिखाने लगे ताकत 

ये तनाव का चरम था. दूसरा युद्ध खत्म होने के चलते कोई भी देश सीधे-सीधे हमला करने की स्थिति में नहीं था, लेकिन वे खुद को ज्यादा ताकतवर बनाने की कोशिश करने लगे. जैसे अंतरिक्ष में सैटेलाइट भेजने की होड़ लग गई. रूस-अमेरिका दोनों ही स्पेस पर कब्जा चाहते. दोनों ही दनादन परमाणु हथियार भी बना रहे थे.

90 के दशक में अंदरुनी असंतोष के चलते सोवियत संघ कई टुकड़ों में बंट गया. इसके बाद रूस को बीते जमाने की बात मान लिया गया. कुछ ही देश थे, जो उसके दोस्त थे, जबकि पूरी दुनिया नए सूरज यानी अमेरिका को सलामी देने लगी.

अमेरिका नब्बे के दशक से ही महाशक्ति माना जा रहा है. सांकेतिक फोटो (Unsplash)

दोबारा बन रहा है खतरा

पुतिन के सत्ता में आने के बाद रूस एक बार फिर मजबूत होने लगा. ये बात अमेरिका को भी दिख रही है. यही वजह है कि यूक्रेन को रूस के खिलाफ लड़ाए रखने में उसने पूरी ताकत झोंक दी. इधर रूस भी चुप नहीं बैठा. वो अपनी तरह से गेम प्लेयर बना हुआ है. चीन से बढ़ती दोस्ती इसी बिसात का हिस्सा है. चूंकि चीन पहले से ही अमेरिका से चिढ़ता है, तो ऐसे में अमेरिका के खिलाफ खड़े सारे देशों को वो अपना दोस्त जतलाता रहता है. 

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क्या कहता है सर्वे

बेहद पेचीदा लगती इस पॉलिटिक्स का असर आम लोगों पर भी हो रहा है. प्यू रिसर्च सेंटर ने मार्च 2022 में अमेरिका में एक सर्वे कराया. इसमें 82% अमेरिकियों ने माना कि वे चीन या वहां के लोगों को पसंद नहीं करते. इसमें 40% वे लोग थे, जिन्होंने चीन के खिलाफ अपनी नफरत खुलकर जाहिर की. 

डेडली साबित न हो रूस-चीन का रिश्ता!

एक सवाल के जवाब में 19% लोगों ने माना कि चीन के पास अमेरिका से भी ज्यादा मिलिट्री पावर है. वहीं सिर्फ 9% लोगों ने रूस की सेना को ज्यादा खतरनाक माना. ज्यादातर अमेरिकी मानते हैं कि चीन और रूस का गठजोड़ बहुत खतरनाक साबित हो सकता है, अगर समय रहते कुछ न किया जाए तो. 

भारत और चीन के संबंधों में लंबे समय से तनाव चला आ रहा है. सांकेतिक फोटो (Getty Images)

पार्टी की सोच भी लोगों पर असर कर रही

लोग किस विचारधारा के पक्ष में हैं, इसका असर भी इस पर हो रहा है कि वे चीन या रूस में से किसे बड़ा खतरा मानेंगे. रिपब्लिकन पार्टी के सपोर्टर चीन को रुकावट मानते हैं. ट्रंप भी अपने कार्यकाल के दौरान चीन के खिलाफ लामबंद रहते थे. डेमोक्रेटिक पार्टी को पसंद करने वाले अब भी पुराने ढर्रे पर हैं, और रूस को ही खतरा मानते हैं. ये बात जो बाइडेन के अंदाज में दिखती है. 

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अमेरिका- चीन का यही समीकरण रोनॉल्ड रीगन इंस्टीट्यूट के एक ओपिनियन पोल में दिखा. सर्वे में 40 प्रतिशत से ज्यादा अमेरिकी नागरिकों ने माना कि चीन उनके लिए खतरा बनता जा रहा है, जबकि इसके आधे से भी कम लोगों ने रूस का नाम लिया. बराक ओबामा के राष्ट्रपति रहते हुए भी इस तरह की पोल हुई थी, जिसमें चीन का नाम केवल 20 प्रतिशत लोगों ने लिया था. 

क्या होगा अगर चीन के पास आ जाए ज्यादा ताकत

लोगों ने ये भी माना कि अगर चीन सुपरपावर बन गया तो दुनिया में युद्ध का खतरा तय है. इसी साल अप्रैल में प्यू रिसर्च सेंटर के सर्वे में लगभग 85 प्रतिशत अमेरिकियों ने डर जताया कि चीन के पास ताकत आ जाए तो अव्वल तो वो किसी देश के हित में नहीं सोचेगा. दूसरा, वो देशों में आपसी लड़ाई-भिड़ाई भी चाहेगा, ताकि उसकी ताकत बनी रहे. 

दो ताकतवर देश अलग सीधे-सीधे भिड़े तो पूरी दुनिया जंग में शामिल हो जाएगी. सांकेतिक फोटो (Pixabay)

रूस- अमेरिका की दुश्मनी में चीन के आने से क्या फर्क पड़ेगा!

फिलहाल यूक्रेन में जिस तरह से अमेरिका ने ताकत झोंकी हुई है, उससे साफ है कि वो किसी भी हाल में रूस को जीतता नहीं देख सकता. इधर चीन से भी उसके तनाव बढ़े हैं. इस तनातनी में दुनिया के बाकी देश भी अनचाहे ही जुड़ते चले जाएंगे. तब तीसरे वर्ल्ड वॉर के हालात बनने से इनकार नहीं किया जा सकता. 

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दिसंबर 2022 इंटरनेशनल फर्म Ipsos ने एक सर्वे कराया था, जिसमें शामिल 34 देशों के ज्यादातर लोगों ने माना कि जल्द ही तीसरा विश्व युद्ध हो सकता है. लगभग सभी ने माना कि देशों की आपसी पावर पॉलिटिक्स के चलते ये हालात बनेंगे. 

दशकभर पहले ही मिल चुकी चेतावनी

अमेरिकी लेखक जॉन मियरशाइमर ने साल 2014 में एक किताब लिखी थी- द ट्रेजडी ऑफ ग्रेट पावर पॉलिटिक्स. किताब में खुले शब्दों में कहा गया कि चीन का आगे बढ़ना अमेरिका के लिए बहुत खतरनाक होगा, खासकर अगर वो रूस के साथ हाथ मिला ले.

 

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