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अकबर के दरबारी ने संभल पर ऐसा क्या लिखा था, विवादित मस्जिद मामले में जिसका दिया जा रहा हवाला?

उत्तर प्रदेश के संभल में 16वीं सदी की जामा मस्जिद के सर्वे के आदेश के बाद हिंसक प्रदर्शन भड़क उठा. विवादित मस्जिद को लेकर एक पक्ष का दावा है कि इसे एक हिंदू मंदिर को तोड़कर बनाया गया. विवादों के बीच बार-बार आइन-ए-अकबरी किताब का जिक्र आ रहा है. क्या है ये और संभल का इसमें किस तरह से उल्लेख है?

संभल में जामा मस्जिद पर विवाद हो रहा है. (Photo- PTI) संभल में जामा मस्जिद पर विवाद हो रहा है. (Photo- PTI)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 26 नवंबर 2024,
  • अपडेटेड 5:57 PM IST

संभल मस्जिद पर सर्वे के दौरान भड़की हिंसा में चार मौतें हो चुकीं. विवादित मस्जिद पर एक पक्ष का कहना है कि उसे मंदिर को ध्वस्त कर बनाया गया. अब इसी के लिए सर्वेक्षण के बीच लगातार आइन-ए-अकबरी किताब का भी उल्लेख हो रहा है. अकबर के दरबारी इतिहासकार अबुल फजल की लिखी किताब में 16वीं सदी का लेखा-जोखा है. तो क्या इसमें संभल की इस विवादित जगह का भी जिक्र है, और किस तरह से है?

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संभल मस्जिद विवाद में आइन-ए-अकबरी का रेफरेंस दिया जा रहा है. किताब में अकबर के दौर की स्थापत्य कला का जमकर जिक्र है. साथ ही इसमें बताया गया है कि उस समय कितनी धार्मिक इमारतें बन रही थीं. संभल उस काल में एक मुख्य सांस्कृतिक और प्रशासनिक केंद्र था, जिसे उसी तरह से विकसित करने के लिए कई मस्जिदों का निर्माण हुआ या पहले से ही बने हुए धार्मिक स्ट्रक्चर को नए स्थलों में बदला गया. चूंकि किताब में केवल मजहबी स्ट्रक्चर ही नहीं बल्कि संभल क्षेत्र की संस्कृति पर भी बात है, लिहाजा किताब एक तरह के रेफरेंस की तरह काम कर रही है. 

सबसे पहले समझते हैं ताजा मामले को . संभल के जिला कोर्ट में एक याचिका लगी, जिसमें कहा गया कि वहां स्थित जामा मस्जिद का निर्माण काफी प्राचीन श्री हरि मंदिर की नींव पर किया गया. दावा है कि इसे मुगल काल के दौरान मंदिर को तोड़कर मस्जिद में बदल दिया गया.

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हाल ही में मस्जिद का सर्वे हुआ. आरोप है कि सर्वे खत्म कर जैसे ही टीम बाहर निकली, भीड़ ने उसे घेरकर हंगामा शुरू कर दिया. इस बीच उपद्रवियों ने कथित तौर पर पुलिस और सर्वे टीम पर पथराव भी शुरू कर दिया. भीड़ को संभालने की कोशिश में पुलिस ने भी हवाई फायर किए और आंसू गैस के गोले दागे. इस सारी अफरातफरी में कई जानें चली गईं. अब विवादों के सिलसिले में एक विवाद ये भी है कि आखिर जानें गईं कैसे. फिलहाल हम आइन-ए-अकबरी की बात करते हैं. 

फारसी में लिखी किताब अबुल फजल के अकबरनामा का ही हिस्सा है. अकबरनामा के तीन हिस्से थे. 

- पहले में शासक के पूर्वजों और उनके कामकाज का उल्लेख है.

 दूसरा खंड अकबर के दौर से जुड़ा हुआ है, जो हथियारों, अधिकारियों और शाही तौर-तरीकों की बात करता है. 

- तीसरी किताब यानी आइन-ए-अकबरी में शासन-व्यवस्था से जुड़ी घटनाएं और नियम-कायदे हैं. इसका अंग्रेजी ट्रांसलेशन 20वीं सदी में हेनरी बेवरिज ने किया था. 

इसमें संभल के उल्लेख के साथ लिखा है कि शहर अहम सांस्कृतिक केंद्र है, जिसे मुगल साम्राज्य के बड़े सूबों में गिना जाता है. इसके रणनीतिक महत्व पर भी बात है क्योंकि उस दौर में यह उत्तर भारत के प्रमुख रास्तों और व्यापारिक केंद्रों में से रहा होगा. यही वजह है कि राजस्व का भी प्रमुख स्त्रोत था. यहां अपनी जड़ें मजबूत करने के लिए कई धार्मिक या सांस्कृतिक बदलाव किए गए होंगे, ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है. 

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हालांकि किताब में खुले तौर पर मंदिर ध्वस्त कर मस्जिद बनाने का जिक्र नहीं मिलता लेकिन इससे संबंधित बाकी पुस्तकों में कथित तौर पर ये बातें हैं. जैसे बाबरनामा में लिखा हुआ है कि बाबर के सेनापति ने मंदिर को आंशिक तौर पर तोड़ा और 16वीं सदी के मध्य में इसे मस्जिद में बदल दिया गया. इसी तरह आइन-ए-अकबरी के पेज नंबर 281 में संभल शहर के हरिमंडल मंदिर का उल्लेख है. इसके अलावा संभल के मामले में ज्यादातर बातें वहां के आर्थिक पहलू से जुड़ी हैं. किताब में संभल में तब तैनात अधिकारियों और वहां की प्रशासनिक व्यवस्था की भी बात होती है. इतिहासकार ने सूबे में टैक्स सिस्टम और खानपान, त्योहारों जैसी भी बातें लिखी हैं. 

फिलहाल क्या हो रहा है

याचिकाकर्ताओं ने विवादित मस्जिद में एएसआई कंट्रोल को लेकर भी सवाल उठाए. बता दें कि स्थल अब संरक्षित स्मारकों में शामिल हो चुकी है, जिसकी देखरेख और नियंत्रण का पूरा जिम्मा एएसआई के पास है. इसके नियमों के मुताबिक, संरक्षण के अलावा यहां आम लोगों के आने-जाने की इजाजत भी होनी चाहिए. हालांकि ऐसा नहीं हो पा रहा. अब ये मांग की जा रही है कि यहां  हिंदुओं का भी आना-जाना हो सके, ऐसी व्यवस्था की जाए. 

इसका दूसरा पक्ष भी है. मुस्लिम समुदाय, जिसमें मस्जिद प्रबंधन कमेटी भी शामिल है, सर्वे का विरोध कर रहे हैं. इसके लिए उन्होंने साल 1991 के पूजा स्थल अधिनियम का हवाला दिया, जो आजादी के समय से पहले बने किसी भी धार्मिक स्थल की स्थिति के बदलने पर रोक लगाता है. 

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