Advertisement

सेम सेक्स मैरिज पर क्या-क्या दलीलें दे रही केंद्र सरकार? SC ने पूछी ये बात... जानें सबकुछ

समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दिए जाने की मांग वाली याचिकाओं पर 18 अप्रैल से सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच सुनवाई कर रही है. शुरुआत से ही केंद्र सरकार समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का विरोध कर रही है. इसे लेकर केंद्र की ओर से कई दलीलें रखीं गई हैं. इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने भी केंद्र को कुछ सुझाव दिए हैं.

समलैंगिक विवाह के विरोध में केंद्र ने कई दलीलें दीं हैं. (फाइल फोटो-PTI) समलैंगिक विवाह के विरोध में केंद्र ने कई दलीलें दीं हैं. (फाइल फोटो-PTI)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 28 अप्रैल 2023,
  • अपडेटेड 1:20 PM IST

समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दी जाए या नहीं? इस पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है. लगातार छह दिन से पांच जजों की संवैधानिक बेंच इस पर सुनवाई कर रही है.

अदालत में समलैंगिकों ने शादी को कानूनी मान्यता दिए जाने की मांग की है. तो वहीं केंद्र इस पर सख्त रुख अख्तियार करते हुए इसके विरोध में है. अब सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि सरकार को इस बात पर भी सोचना चाहिए कि क्या बिना कानूनी मान्यता दिए समलैंगिक विवाह को किसी स्कीम्स का लाभ दिया जा सकता है या नहीं?

Advertisement

अदालत ने ये भी कहा कि केंद्र सरकार समलैंगिकों के साथ रहने को 'शादी' कहे या न कहे, लेकिन कुछ न कुछ 'लेबल' तो होना जरूरी है.

क्या-क्या दलीलें रखीं गईं?

शादी का नाम देना मौलिक अधिकार नहीं

- केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि 'प्यार का अधिकार, साथ रहने का अधिकार, अपना पार्टनर चुनने का अधिकार, अपनी सेक्सुअल ओरिएंटेशन चुनने का अधिकार' ये सभी मौलिक अधिकार हैं. लेकिन उस रिश्ते को शादी या किसी और नाम से मान्यता देने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है. 

- मेहता ने कहा कि सभी तरह के सामाजिक संबंधों को शादी जैसी मान्यता देने का मौलिक अधिकार नहीं है. सभी तरह के निजी संबंधों को मान्यता देने का सरकार का कोई दायित्व नहीं है. समाज में बड़ी संख्या में रिश्ते हैं और सभी को मान्यता देने की जरूरत नहीं है.

Advertisement

बेंच ने कहा- कुछ तो कानूमी मान्यता मिलनी चाहिए

- चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा, 'एक बार जब आप पहचान लेते हैं कि सहवास का अधिकार है. दूसरे शब्दों में, समलैंगिक संबंध असल में किसी व्यक्ति के जीवन में एक बार होने वाली घटना नहीं है. ये किसी व्यक्ति के सामाजिक और भावनात्मक संबंधों में रहने का लक्षण भी हो सकता है.'

- बेंच ने कहा, 'सहवास का अधिकार किसी व्यक्ति का मौलिक अधिकार है, तो ये राज्य (सरकार) का कर्तव्य है कि वो कम से कम इस बात को माने कि सहवास की सामाजिक घटनाओं को कानून में मान्यता मिलनी चाहिए. हम इस समय शादी की बात नहीं कर रहे हैं.'

- सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराधिकारियों के नामांकन, पीएफ, उत्तराधिकार और स्कूलों में पालन-पोषण जैसी समस्याओं का उल्लेख करते हुए कहा कि अलग-अलग मंत्रालय इन मुद्दों पर विचार कर सकते हैं और अदालत को इस बात से अवगत करा सकते हैं जो निवारण के लिए उठाए जा सकते हैं.

सुप्रीम कोर्ट का सरकार को सुझाव

- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार वास्तविक समाधान ढूंढ सकती है और अदालत उसके लिए 'सुविधाकर्ता' के रूप में काम कर सकती है.

- बेंच ने कहा, 'सरकार को ये सुनिश्चित करना चाहिए कि सुरक्षा और सामाजिक कल्याण की स्थिति बनाने के लिए इन सहवास संबंधों को मान्यता दी जानी चाहिए. साथ ही ये भी सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसे रिश्तों को भविष्य में बहिष्कृत न किया जाए.'

Advertisement

- हालांकि, कोर्ट ने ये भी कहा कि अदालत अपनी सीमाओं को समझती है, लेकिन कई मुद्दों को सरकार प्रशासनिक पक्ष में निपटाया जा सकता है.

समलैंगिकों की समस्याओं पर SC ने क्या कहा?

- सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक जोड़ों की समस्याओं का भी जिक्र किया. सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि क्या इनके पास ज्वॉइंट बैंक अकाउंट्स नहीं हो सकते?

- बेंच ने कहा कि समलैंगिक संबंध में किसी एक पार्टनर के बच्चा गोद लेने में कोई रोक नहीं है. ऐसी स्थिति में अगर बच्चा स्कूल जाता है तो क्या ऐसी स्थिति में सरकार ये नहीं कर सकती कि उस बच्चे को सिंगल पैरेंट चाइल्ड के तौर पर ट्रीट किया जाए. कम से कम उस बच्चे को तो लाभ मिलना चाहिए.

- बेंच ने कहा कि ये ब्रिटिश विक्टोरियन का प्रभाव था जिसने भारतीय संस्कृति को त्याग दिया और समलैंगिकता को इतनी बड़ी समस्या बना दिया. 

- अदालत ने कहा, आप हमारे बेहतरीन मंदिरों को देखें कि उनकी वास्तुकला में क्या झलकता है. हमारी संस्कृति असाधारण रूप से समावेशी और व्यापक थी जो विदेशी आक्रमणों के बावजूद हमारा धर्म जीवित रहा.

- बेंच ने प्रिवी काउंसिल के उस सिद्धांत का हवाला भी दिया जो कहता है कि लंबे समय तक साथ रहना भी शादी की धारणा को बढ़ाता है. कोर्ट ने कहा कि लेस्बियन और गे कपल को समाज में 'बुरी तरह कलंकित' किया गया है.

Advertisement

केंद्र ने रखी ये दलील तो SC ने दिया जवाब

- सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने एक और नई दलील दी. उन्होंने कहा कि मान लीजिए एक व्यक्ति अपनी बहन के प्रति आकर्षित है और वो कहें कि हम वयस्क हैं और इस नाते हमें अपनी पसंद और पर्सनल स्पेस में कुछ भी करने के अधिकार का दावा करते हैं.

- उन्होंने कहा, 'इसी दलील के आधार पर मैं खुद एक सवाल कर रहा हूं कि क्या कोई इस परिभाषा को ही चुनौती नहीं दे सकता कि इस पर प्रतिबंध क्यों? आप ये तय करने वाले कौन होते हैं कि मेरा सेक्सुअल ओरिएंटेशन किसके साथ है.' उन्होंने ये भी कहा कि अनाचार दुनिया में असामान्य नहीं है लेकिन इस पर प्रतिबंध है.

- इस पर चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि ये बहुत 'दूर की कौड़ी' हो सकती है. उन्होंने कहा कि 'हमारे सामने बहस करने के लिए ये बहुत दूर की कौड़ी हो सकती है कि ओरिएंटेशन इतना निरपेक्ष है कि मैं अनाचार का काम कर सकता हूं. कोई भी अदालत इसका समर्थन नहीं करेगी.'

अब तक क्या-क्या दलीलें रखी गईं?

- सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील रखते हुए कहा था, विशेष वर्ग में तलाक का कानून भी सभी लोगों के लिए एक बन सकता है? ट्रांस मैरिज में पत्नी कौन होगा? गे मेरिज में कौन पत्नी होगा? इसका दूरगामी प्रभाव होगा. मौजूदा कानून में पत्नी गुजारा भत्ता मांग सकती है, लेकिन समलैंगिक शादियों में क्या होगा?

Advertisement

- मेहता ने दहेज हत्या या घरेलू हिंसा के मामले में गिरफ्तारी का मुद्दा उठाते हुए कहा, 'अगर कानून में पति या पत्नी की जगह सिर्फ स्पाउस या पर्सन कर दिया जाए, तो महिलाओं को सूर्यास्त के बाद गिरफ्तार न करने के प्रावधान कैसे लागू होंगे?'

- एक और दलील देते हुए मेहता ने कहा कि अगर गोद लिए बच्चे की कस्टडी एक मां के पास जाती है, तो देखना होगा कि मां कौन है. मां वो होगी जिसे हम समझते हैं और विधायिका ने भी वही समझा है. लेकिन इन मामलों में ये कैसे तय होगा? 

- मेहता ने कहा कि सभी धर्म विपरीत जेंडर के बीच विवाह को मान्यता देते हैं. अदालत के पास एक ही संवैधानिक विकल्प है कि इस मामले को संसद के ऊपर छोड़ दिया जाए.

क्या है मामला? 

- दरअसल, दिल्ली हाई कोर्ट समेत अलग-अलग अदालतों में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग को लेकर याचिकाएं दायर हुई थीं. इन याचिकाओं में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के निर्देश जारी करने की मांग की गई थी. पिछले साल 14 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट में पेंडिंग दो याचिकाओं को ट्रांसफर करने की मांग पर केंद्र से जवाब मांगा था. 

- इससे पहले 25 नवंबर को भी सुप्रीम कोर्ट दो अलग-अलग समलैंगिक जोड़ों की याचिकाओं पर भी केंद्र को नोटिस जारी की था. इन जोड़ों ने अपनी शादी को स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत रजिस्टर करने के लिए अधिकारियों को निर्देश देने की मांग की थी. इस साल 6 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने इन सभी याचिकाओं को एक कर अपने पास ट्रांसफर कर लिया था.

Advertisement

समलैंगिकों की क्या है मांग? 

- समलैंगिकों की ओर से दाखिल याचिकाओं में स्पेशल मैरिज एक्ट, फॉरेन मैरिज एक्ट समेत विवाह से जुड़े कई कानूनी प्रावधानों को चुनौती देते हुए समलैंगिकों को विवाह की अनुमति देने की मांग की गई है. 

- समलैंगिकों ने ये भी मांग की है कि अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने का अधिकार LGBTQ (लेस्बियन, गे, बायसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर और क्वीर) समुदाय को उनके मौलिक अधिकार के हिस्से के रूप में दिया जाए. 

- एक याचिका में स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 को जेंडर न्यूट्रल बनाने की मांग की गई थी, ताकि किसी व्यक्ति के साथ उसके सेक्सुअल ओरिएंटेशन की वजह से भेदभाव न किया जाए.

कौन कर रहा है इस पर सुनवाई?

- इस मामले पर सीजेआई चंद्रचूड़, जस्टिस एसके कौल, जस्टिस रविंद्र भट, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की बेंच सुनवाई कर रही है.

 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement