Advertisement

टुकड़े-टुकड़े होगा पाकिस्तान! जानें किन हिस्सों में चल रही है अलग मुल्क बनाने की मांग

इन दिनों कई देश अपने बॉर्डर के विस्तार में लगे हुए हैं, वहीं भीतर ही भीतर लगभग हर देश में सेपरेटिस्ट मूवमेंट भी चल रहा है. अलग जबान और तौर-तरीकों के आधार पर लोग खुद को अलग राष्ट्र बनाना चाहते हैं. पाकिस्तान में भी अलगाववाद फल-फूल रहा है. उसके अपने ही लोगों ने बगावत छेड़ रखी है. अगर वे कामयाब हुए तो देश एक-दो नहीं, कई टुकड़ों में टूट सकता है.

पाकिस्तान में भी कई अलगाववादी आंदोलन होते रहे. सांकेतिक फोटो (Unsplash) पाकिस्तान में भी कई अलगाववादी आंदोलन होते रहे. सांकेतिक फोटो (Unsplash)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 31 जुलाई 2023,
  • अपडेटेड 11:46 PM IST

पाकिस्तान के टूटने की शुरुआत साल 1971 में हो गई थी, जब भारत की मदद से बांग्लादेश बना. इसके बनने के पीछे भी 24 सालों का असंतोष था. असल में अस्तित्व में आने पर इस देश में पूर्वी पाकिस्तान (जो अब बांग्लादेश है) की आबादी ज्यादा थी. ये बांग्ला बोलने वाले लोग थे. ज्यादा संख्या के चलते वे उम्मीद कर रहे थे कि नए देश में उन्हें ज्यादा तवज्जो भी मिलेगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं.

Advertisement

संसद में बांग्ला बोलने पर मनाही

पाकिस्तानी असेंबली में बांग्ला बोलने पर पाबंदी लगा दी गई, ये कहते हुए कि मुस्लिमों की भाषा उर्दू है. साथ ही, इस्लाम से जोड़ते हुए उर्दू को राजकीय भाषा बना दिया गया. यहां तक भी चल जाता, लेकिन हद ये हुई कि बांग्ला बोलने वालों पर हिंसा होने लगी. 

पूर्वी पाकिस्तान से होने लगा भेदभाव

बंगाली आबादी के साथ असमानता इतनी बढ़ी कि पूरा का पूरा पूर्वी पाकिस्तान ही खुद को अलग-थलग पाने लगा. यहीं से बांग्लादेश की नींव पड़ी. आग में घी डालने का काम सत्तर के दशक में वहां आए साइक्लोन ने किया. भोला साइक्लोन में भारी संख्या में इसी इलाके के लोग मारे गए, लेकिन पाकिस्तान सरकार ने उन्हें राहत देने में काफी हेरफेर की.

इसके तुरंत बाद बांग्लादेश अलग होने के लिए भिड़ गया. खूब खून बहा. पाकिस्तान पर आरोप है कि उसने मानवाधिकार ताक पर रखते हुए जमकर वॉर क्राइम भी किए. आखिरकार भारत के दखल देने पर पाकिस्तानी सेना को सरेंडर करना पड़ा, और बांग्लादेश बना. 

Advertisement

क्यों अलग होना चाहते हैं बलूच

साल 1947 में पाकिस्तान के बनने के साथ ही बलूच मुद्दे ने उसकी नाक में दम कर रखा है. आएदिन बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी की खबरें आती हैं कि उसने अपने यहां कोई धमाका कर दिया, जिसमें पाकिस्तान सरकार या चीन के लोग मारे गए. इसके अलावा भी कई चरमपंथी संगठन हैं, जो बलूच आजादी चाहते हैं.

दरअसल ये पाकिस्तान का वो हिस्सा है, जो कभी भी सरकार के बस में नहीं रहा. इसकी दो वजहें हैं- एक, पाकिस्तान ने धोखे से उसे अपने साथ मिला लिया. और दूसरा, बलूचिस्तान मानता है कि पाकिस्तान उसके साथ सौतेला व्यवहार करता रहा. 

बलूच नेता अपने ही देश से निकाले हुए

पाकिस्तान अधिकृत बलूचिस्तान की लीडर डॉ नायला कादरी हाल ही में हरिद्वार पहुंची. बलूच आजादी की मांग के चलते अपने ही देश से निर्वासित डॉ कादरी ने खुद को बलूचिस्तान की प्रधानमंत्री की तरह पेश करते हुए मां गंगा से अपने देश की आजादी की मांग की. साथ ही उन्होंने बताया कि कैसे पाकिस्तान की सरकार बलूच लोगों पर जुल्म करती है. 

कच्चा माल काफी होने के बाद भी गरीबी

गैस, कोयला, तांबा और कोयला जैसे कच्चे माल में बेहद संपन्न होने के बाद भी ये इलाका काफी गरीब है. यहां तक कि स्कूल और अस्पताल जैसी बेसिक जरूरतें भी वहां पूरी नहीं हो पा रहीं. पाकिस्तान ने अपने कर्ज चुकाने के लिए यहां की खदानों को चीन को लीज पर दे दिया. ये बलूच लोगों पर दोहरी मार थी. वे मानने लगे कि उन्हें पाकिस्तान और चीन दोनों मिलकल लूट रहे हैं.

Advertisement

उनके गुस्से को हवा मिली, जब साल 2006 में मौजूदा सरकार उनके कबीलाई सिस्टम को ध्वस्त करने लगी. इसके बाद से बलूच आजादी की मांग हिंसक होने लगी. अब बागी अपने यहां रहते चीनियों को नुकसान पहुंचाकर पाकिस्तान को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं. कई बार चीनियों के ठिकानों पर वे हमला करते रहते हैं. 

अलग सिंधुदेश की मांग 

सिंध प्रांत के लोग खुद को सिंधु घाटी सभ्‍यता के वंशज मानते रहे और आरोप लगाते हैं कि पाकिस्तान उनपर जबरन कब्जा किए हुए है. साठ के दशक में गुलाम मुर्तजा सैय्यद ने इस मूवमेंट की शुरुआत की. वे इस बात पर नाराज थे कि उनपर उर्दू भाषा थोपी जा रही थी. साथ ही वे इसपर भी गुस्सा थे कि बंटवारे के बाद काफी सारे  भारतीय मुस्लिम भी उनके हिस्से में आ गए थे. ये उन्हें मुजाहिर कहते और सिंध से हटाना चाहते थे. 

नहीं रहा उतना आक्रामक

बांग्लादेश के बनने के बाद सिंधुदेश की मांग ने जोर पकड़ा लेकिन ये कभी भी बलूचिस्तान की तरह आक्रामक नहीं हो सका. यहां तक कि खुद लोकल सिंधी भी पाकिस्तान के साथ रहने को ही सपोर्ट करते रहे. साल 2020 में सरकार ने एक साथ कई सेपरेटिस्ट मूवमेंट्स चलाने वाली पार्टियों को बैन किया. सिंधुदेश लिबरेशन आर्मी और सिंधुदेश रिवॉल्यूशनरी आर्मी भी इनमें से एक थे. 

Advertisement
बलूचिस्तान प्राकृतिक संपदा के मामले में काफी समृद्ध है. सांकेतिक फोटो (Wikipedia)

बलवारिस्तान की डिमांड 

गिलगित-बाल्टिस्तान पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) का सबसे उत्तरी इलाका है. यहां पर भी लंबे समय से आजादी की मांग चल रही है. चरमपंथी संगठनों ने अपने देश का नाम भी तय कर रखा है- बलवारिस्तान यानी ऊंचाइयों का देश. ये इसलिए क्योंकि ये पूरा इलाका ही पहाड़ों और वादियों का है.

समय-समय पर यहां आंदोलन होते रहे. यहां के नेताओं का आरोप है कि पाकिस्तान का सबसे शानदार टूरिस्ट स्पॉट होने के बाद भी वो उन्हें ज्यादा प्रमोट नहीं करती. सरकारी योजनाएं भी यहां पूरी तरह से लागू नहीं होतीं. यही देखते हुए गिलगित-बाल्टिस्तान की मांग होती रही. लेकिन सरकार लगातार इसके लीडर्स को खूनी संघर्ष में खत्म करती रही. 

कई दूसरे आंदोलन भी होते रहे

इसके अलावा भी पूरे देश में छिटपुट हिस्सों में अलगाववाद पनपता रहा. यहां तक कि देश के विभाजन के कुछ समय बाद आए मुस्लिमों को भी वहां स्वीकारा नहीं जा रहा. ये लोग मुहाजिर कहलाते और योजनाओं से दूर रखे जाते हैं. ये भी मुहाजिर सूबे की मांग बीच-बीच में कर लेते हैं. वैसे ये उस तरह के एक्सट्रीम नहीं हैं, जिनपर पाकिस्तान परेशान रहे. अफगानिस्तान में तालिबान आने के बाद से पाकिस्तान का डर और बढ़ा क्योंकि यहां मौजूद पश्तून आबादी अफगानिस्तान का हिस्सा बनने की बात करती आई है. अगर ऐसा हुआ तो लगभग पूरा खैबर पख्तूनख्वा अलग हो जाएगा. 

Advertisement

 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement