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आतंक की दहशत, कॉलर कांड से नोटकांड तक... पुरानी संसद की वो तस्वीरें जो नए भवन में ना ही दिखें तो अच्छा!

पुराना संसद भवन अब इतिहास बन जाएगा. मंगलवार से नए संसद भवन में सदन की कार्यवाही चलेगी. पुराने संसद भवन से कई सारी अच्छी यादें जुड़ी हैं तो कुछ बुरी यादें भी हैं. कभी संसद पर आतंकी हमला हुआ तो कभी संसद सदस्यों ने ही लोकतंत्र को शर्मसार करने वाले काम किए. जानते हैं वो वाकये जब संसद में हुई शर्मसार घटनाएं.

पुराना संसद भवन. (इलस्ट्रेशनः Vani Gupta/aajtak.in) पुराना संसद भवन. (इलस्ट्रेशनः Vani Gupta/aajtak.in)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 18 सितंबर 2023,
  • अपडेटेड 5:47 PM IST

संसद का विशेष सत्र शुरू हो गया है. सत्र का पहला दिन पुराने संसद भवन में हो रहा है. अब मंगलवार से सदन की कार्यवाही नए संसद भवन में होगी. 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद के बाहर मीडिया से बात करते हुए कहा, 'कल गणेश चतुर्थी पर हम नई संसद में जाएंगे. संसद का ये सत्र भले ही छोटा हो, लेकिन इसका दायरा ऐतिहासिक है.'

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इसके बाद लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला ने कहा कि आज के बाद से संसद की कार्यवाही नए भवन से संचालित होगी. उन्होंने ये भी कहा कि पिछले 75 सालों में यहां देशहित में सामूहिकता से निर्णय लिए गए.

लेकिन इस संसद में पिछले 75 सालों में कुछ ऐसी घटनाएं भी हुईं हैं, जिन्होंने लोकतंत्र को शर्मसार कर दिया. इसी संसद में कभी बिल फाड़े गए तो कभी नोटों की गड्डियां उड़ाई गईं. कभी सभापति पर कागज के टुकड़े फेंके गए तो कभी मिर्ची का स्प्रे किया. जानते हैं पुराने संसद भवन में हुई कुछ ऐसी ही शर्मनाक घटनाओं के बारे में और उम्मीद करते हैं कि नए संसद भवन में ये सब देखने को न मिले.

11 अगस्त 2021: रूल बुक फाड़ दी, मार्शल बुलाने पड़े

अगस्त 2021 में हुए संसद के मॉनसून सत्र में जमकर बवाल हुआ था. मोदी सरकार के सात साल में ये पहली बार था जब किसी सत्र में इतना हंगामा हुआ था. हंगामा इतना बढ़ गया था कि राज्यसभा के अंदर मार्शलों को बुलाना पड़ा. इसके बाद 11 सांसदों को निलंबित कर दिया गया था.

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इस हंगामे को लेकर जब रिपोर्ट संसद की रिपोर्ट आई तो सामने आया कि कई सांसदों ने कागज फाड़कर उसके टुकड़े उड़ाए तो किसी ने टीवी स्क्रीन तोड़ दी. 

कुछ महिला सांसदों ने कपड़े या स्कार्फ से एक फांसी का फंदा बनाया और अपनी सहयोगी सांसदों के गले में बांधकर नारेबाजी की. सांसदों ने कागज फाड़कर राज्यसभा के सभापति की ओर फेंक दिए. सांसदों ने मार्शलों के साथ भी बदसलूकी की. केंद्र सरकार ने इस घटना को भारतीय लोकतंत्र के इतिहास का 'काला अध्याय' बताया था.

13 फरवरी 2014: चाकू निकाला, किसी ने मिर्च स्प्रे छिड़का

लोकसभा में तत्कालीन गृहमंत्री सुशील शिंदे ने जैसे ही तेलंगाना को अलग राज्य बनाने का बिल पेश किया, वैसे ही जोरदार हंगामा शुरू हो गया. तेलंगाना को अलग राज्य बनाने का विरोध करने वाले सांसदों ने बवाल कर दिया था.

इसी दौरान कांग्रेस सांसद एल राजगोपाल ने पहले तो गिलास तोड़ दिया और कार्यवाही बाधित करने के लिए काली मिर्च का स्प्रे छिड़क दिया.

हालांकि, मिर्च का स्प्रे छिड़कने के बाद कई सांसदों की तबीयत बिगड़ गई. उस दिन संसद में चार एम्बुलेंस बुलाई गईं और कई सांसदों को अस्पताल में भर्ती करवाया गया. 

हंगामा इतना बढ़ा कि बाकी सांसद भी इसमें शामिल हो गए. टीडीपी सांसद वेणुगोपाल पर चाकू निकालने का आरोप लगा. हालांकि, उन्होंने इन आरोपों का खंडन कर दिया. इस घटना को विदेशी मीडिया ने भी 'संसदीय इतिहास का काला दिन' बताया था.

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मिर्च स्प्रे के बाद तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार संसद से निकल गई थीं. (फाइल फोटो)

6 दिसंबर 2012: जब दो सांसदों में हुई धक्का-मुक्की

उस दिन राज्यसभा में एक बिल पेश किया गया. ये बिल सरकारी नौकरियों में प्रमोशन में एससी-एसटी के लिए आरक्षण से जुड़ा था. जैसे ही उपसभापति पीजे कुरियन ने बिल आगे बढ़ाने के लिए कहा, सदन में हंगामा खड़ा हो गया.

यूपीए की सहयोगी समाजवादी पार्टी ने इस बिल का विरोध किया. जब बिल पेश हुआ तो पार्टी के सांसद नरेश अग्रवाल उपसभापति की बेल की ओर जाने लगे. तभी बीएसपी सांसद अवतार सिंह ने उन्हें रोकने के लिए उनका कॉलर पकड़ लिया.

उस दौरान माहौल गर्मा गया और नरेश अग्रवाल और अवतार सिंह के बीच धक्का-मुक्की हो गई. इससे सपा और बसपा सांसद भी हाथापाई पर उतर आए. हालात इतने बिगड़ गए कि मार्शलों को बुलाना पड़ा. 

29 दिसंबर 2011: जब राज्यसभा में फाड़ा गया बिल

साल 2011 के शीतकालीन सत्र में लोकपाल बिल पास होने की उम्मीद थी. तत्कालीन केंद्रीय मंत्री वी. नारायणसामी ने लोकपाल बिल पेश किया. इस पर जोरदार बहस हो रही थी. तभी आरजेडी सांसद राजनीति प्रसादल ने नारायणसामी के हाथ से बिल छीनकर उसकी प्रतियां फाड़ दीं. 

राज्यसभा की कार्यवाही उस दिन आधी रात तक चली. सारा दिन हंगामे और बहस में ही गुजर गया. लेकिन बिल पर वोटिंग नहीं हो पाई. वोटिंग नहीं कराने पर विपक्ष ने सरकार को जमकर घेरा. लेकिन राज्यसभा के तत्कालीन सभापति हामिद अंसारी ने कहा, अप्रत्याशित स्थिति पैदा हो गई है. ऐसी स्थिति में सदन नहीं चल सकता है. बेहतर है कि हम सब घर चले जाएं.

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वहीं, सरकार की ओर से ये तर्क दिया कि संसद का सत्र तीन दिनों के लिए बुलाया गया था और रात 12 बजे के बाद कार्यवाही नहीं चल सकती थी. 

इस घटना के बाद राजनीति प्रसाद को जरा भी पछतावा नहीं था. उन्होंने कहा कि बिल खराब था, इसलिए फाड़ दिया. 

राजनीति प्रसाद ने लोकपाल बिल फाड़ दिया था. (फाइल फोटो)

8 मार्च 2010: महिला आरक्षण बिल पर हंगामा

संसदीय प्रणाली में महिलाओं को आरक्षण देने से जुड़ा बिल तीन दशकों से अटका हुआ है. 8 मार्च 2010 को महिला आरक्षण बिल को राज्यसभा में पेश किया गया. लेकिन इसे लेकर जोरदार हंगामा हुआ.

महिला आरक्षण बिल पर तत्कालीन यूपीए सरकार को अपनी सहयोगी पार्टियों का भी साथ नहीं मिला. राज्यसभा में जब इस बिल को पेश किया तो कुछ सांसदों ने सभापति हामिद अंसारी के आसन तक पहुंचकर नारेबाजी की और बिल की कॉपी फाड़ दी. 

आरजेडी सांसद सुभाष यादव, राजनीति प्रसाद और सपा सांसद कमाल अख्तर ने हामिद अंसारी से छीना-झपटी करते हुए बिल की प्रतियां छीन लीं और उसे फाड़कर सदन में लहरा दिया. 

हालांकि, अगले दिन राज्यसभा में महिला आरक्षण बिल पास हो गया. इसके पक्ष में 186 तो विरोध में सिर्फ एक वोट पड़ा. लेकिन लोकसभा से ये पास नहीं हुआ था. और तब से ये बिल सिर्फ अटका ही पड़ा है.

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नोटों की गड्डियां लेकर पहुंचे थे बीजेपी सांसद. (फाइल फोटो)

22 जुलाई 2008: जब संसद में उछाले गए नोट

अमेरिका के साथ परमाणु समझौते को लेकर वाम दलों ने यूपीए सरकार से समर्थन वापस ले लिया था. उस समय मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे. यूपीए ने विश्वास प्रस्ताव पेश किया. 

उसी दिन बीजेपी के तीन सांसद- अशोक अर्गल, फग्गन सिंह कुलस्ते और महावीर भगौरा लोकसभा में एक करोड़ रुपये के नोटों की गड्डियां लेकर पहुंच गए. वहां उन्होंने नोट उछाल दिए. तीनों ने आरोप लगाया कि समाजवादी पार्टी के तत्कालीन महासचिव अमर सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल ने उन्हें विश्वास प्रस्ताव के समर्थन में वोट देने के लिए रुपये की पेशकश की थी. हालांकि, दोनों ने इन आरोपों को नकार दिया था.

उस समय लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने दावा किया था कि सांसदों को तीन-तीन करोड़ रुपये का लालच दिया था. एक करोड़ रुपये पहले दिए गए थे और बाकी की रकम बाद में देने का आश्वासन दिया गया था. 

ये पहला मौका था जब सदन में इस तरह से खुलेआम नोटों की गड्डियां उड़ाई गई थीं. इस घटना पर तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी की शिकायत पर दिल्ली पुलिस ने केस दर्ज कर लिया था.

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22 साल पहले संसद पर आतंकी हमला हुआ था. (फाइल फोटो)

13 दिसंबर 2001: जब संसद पर हुआ आतंकी हमला

13 दिसंबर 2001 को संसद पर आतंकी हमला हुआ था. उस दिन सफेद एम्बेसडर कार में सवार पांच आतंकी गेट नंबर-12 से अंदर घुस आए थे. आतंकियों ने अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी. उनके पास AK-47 और हैंड ग्रेनेड थे. सिक्योरिटी गार्ड निहत्थे थे.

ये हमला जैश-ए-मोहम्मद के आतंकियों ने किया था. आतंकियों ने संसद भवन के अंदर घुसने की कोशिश की, लेकिन सभी पांचों को बाहर ही मार दिया गया. सुबह साढ़े 11 बजे से शुरू हुई ये मुठभेड़ शाम 4 बजे खत्म हुई. 

इस हमले का मास्टरमाइंड अफजल गुरु था. संसद हमले के दो दिन बाद ही 15 दिसंबर को अफजल गुरु को गिरफ्तार कर लिया गया. उसे मौत की सजा सुनाई गई थी. 9 फरवरी 2013 को अफजल गुरु को दिल्ली की तिहाड़ जेल में सुबह 8 बजे फांसी पर लटका दिया गया.

फरवरी 1997: ममता बनर्जी ने पासवान पर फेंका था शॉल

फरवरी 1997 में लोकसभा में रेल बजट पेश किया जा रहा था. ये बजट वित्त मंत्री रामविलास पासवान पेश कर रहे थे. 

जिस समय पासवान बजट पेश कर रहे थे, उसी समय ममता बनर्जी ने अपना शॉल उनके ऊपर फेंक दिया. बनर्जी ने पश्चिम बंगाल को नजरअंदाज करने का आरोप लगाया था. इसके बाद स्पीकर पीए संगमा ने उनसे माफी मांगने या फिर सदन से बाहर जाने को कहा, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ.

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इतना ही नहीं, साल 2005 में जब ममता बनर्जी ने लोकसभा में स्थगन प्रस्ताव पेश किया तो स्पीकर ने इसे खारिज कर दिया. इसके बाद उन्होंने स्पीकर चरणजीत सिंह अटवाल पर अपना इस्तीफा फेंक दिया था.

गोहत्या को लेकर नवंबर 1971 में इंदिरा गांधी ने साधु-संतों से मुलाकात की थी. (फाइल फोटो)

7 नवंबर 1966: साधुओं ने की संसद में घुसने की कोशिश
 
देश में गोहत्या पर रोक लगाने के लिए कानून बनाने की मांग जोर पकड़ रही थी. तभी हरियाणा और आसपास के जिलों के हजारों साधु-संत अपनी गायों को लेकर दिल्ली चले आए. उन्होंने मंत्रालयों के बाहर तोड़फोड़ शुरू कर दी. संसद में भी घुसने की कोशिश की.

इस घटना को संसद पर पहला हमला माना जाता है. प्रदर्शनकारियों को संसद में घुसने से रोकने के लिए सुरक्षाबलों को गोलीबारी करनी पड़ी. इस गोलीबारी में सात लोगों की मौत हो गई.

इस घटना के बाद तत्कालीन गृहमंत्री गुलजारी लाल नंदा को इस्तीफा देना पड़ा था. आरएसएस और हिंदूवादी संगठनों ने इसे हिंदू हत्याकांड बताया था.

बाद में इंदिरा गांधी ने साधु-संतों के नाम एक चिट्ठी लिखी. इसमें उन्होंने लिखा कि कानून बनाने के लिए शांति से भी बात की जा सकती है.

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