
द्वारका पीठ शंकाराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का आज सोमवार को अंतिम संस्कार कर दिया. शंकराचार्य को संत परंपरा के अनुसार भूसमाधि दी गई. मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले में स्थित गोटेगांव में परमहंसी आश्रम में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ मौजूद रही. यहां शंकराचार्य स्वरूपनंद सरस्वती को आश्रम में राजकीय सम्मान के साथ भी समाधि दी गई. शंकराचार्य ने रविवार को आश्रम में 99 वर्ष की उम्र में अंतिम सांस ली थी.
स्वामी स्वरूपानंद लंबे समय से बीमार चल रहे थे. उनके निधन की वजह कार्डियेक अरेस्ट को बताई जा रही है. स्वामी स्वरूपानंद ने 30 अगस्त को ही अपना 99वां जन्मदिन मनाया था. स्वामी स्वरूपानंद द्वारका-शारदा पीठ (गुजरात) और ज्योतिष पीठ (उत्तराखंड) के शंकराचार्य थे. बताया जा रहा है कि लगभग एक साल से वो बीमार थे. बीमारी के चलते ही इस बार उनके जन्मदिन पर कुछ खास कार्यक्रम भी नहीं हुआ था.
द्वारका पीठ के स्वामी सदानंद महाराज ने न्यूज एजेंसी को बताया कि मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर स्थित आश्रम में उन्होंने रविवार को 3.30 बजे आखिरी सांस ली. आश्रम के मुताबिक, उन्हें कार्डियेक अरेस्ट आया था.
स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का आज अंतिम संस्कार कर दिया गया. नरसिंहपुर के गोटेगांव में ज्योतेश्वर स्थित परमहंसी गंगा आश्रम में 'भू समाधि' दी गई. दोपहर 3 से 4 बजे के बीच भू समाधि दी गई. स्वामी स्वरूपानंद के अंतिम संस्कार की पूरी रस्में लगभग दो घंटे तक चलीं.
भू समाधि क्यों?
हिंदू मान्यताओं के अनुसार, अमूमन जब किसी व्यक्ति की मौत हो जाती है तो उसे जलाया जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि माना जाता है कि लंबे समय तक आत्मा शरीर से जुड़ी रहती है और मरने के बाद आत्मा शरीर छोड़ने से मना कर देती है. माना जाता है कि जब तक अंतिम संस्कार नहीं होता है, तब तक आत्मा आसपास ही घूमती रहती है.
लेकिन, साधु-संतों के मामले में अंतिम संस्कार की प्रक्रिया अलग है. उन्हें जलाया नहीं जाता है. बल्कि भू समाधि दी जाती है. इसके पीछे मान्यता ये है कि संन्यासी बनने से पहले व्यक्ति खुद का पिंडदान कर देता है, इसलिए उनकी आत्मा शरीर से दूर हो जाती है, इसलिए उन्हें जलाने की जरूरत नहीं होती.
इसी तरह, अगर 5 साल से कम उम्र के बच्चे की मौत हो जाती है, तो उसे भी जलाने की जगह दफनाया जाता है. क्योंकि माना जाता है कि उनकी आत्मा शरीर में इतनी देर नहीं रही कि कोई लगाव हो सके.
साधु-संतों को जल या भू समाधि दी जाती है. हालांकि, अब भू समाधि ही दी जाती है. इस प्रक्रिया में साधु या संत को बैठाकर जमीन में दफनाया जाता है. माना जाता है कि ये परंपरा 1200 साल से भी ज्यादा पुरानी है. आदिगुरु शंकराचार्य ने भी भू समाधि ली थी और केदारनाथ में उनकी समाधि आज भी मौजूद है.
भू समाधि की प्रक्रिया क्या है?
माना जाता है कि संन्यासी परोपकार की भावना रखते हैं. ऐसे में शरीर का इस्तेमाल परोपकार के लिए किया जाता है. समाधि के बाद जीव शरीर से अपना पेट भर लेते हैं. भू समाधि की पूरी प्रक्रिया 7 चरण में होती है.
- शरीर को गंगाजल से स्नान कराया जाता है.
- शरीर को आसन पर बैठाया जाता है.
- फिर शरीर पर विभूति लगाई जाती है.
- समाधि स्थल पर बैठाया जाता है.
- वस्त्र पहनाए जाते हैं. चंदन, माला और फूल अर्पित किए जाते हैं.
- छठवें चरण में शरीर को ढक दिया जाता है.
- आखिर में समाधि के ऊपर गाय के गोबर से लेपन किया जाता है.
कैसे दी जाएगी भू समाधि?
स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के पार्थिव शरीर को शैव, नाथ, दशनामी, अघोर और शाक्त परम्परा के मुताबिक भू समाधि दी जाएगी. साधु-संतों और संन्यासियों को भू समाधि दी जाती है.
भू समाधि में पद्मासन या सिद्ध आसन की मुद्रा में बैठाकर भूमि में समाधिस्थ किया जाता है. अक्सर ये समाधि संतों को उनके गुरु की समाधि के पास या उनके मठ में दी जाती है. शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को भी भू समाधि उनके आश्रम में ही दी जाएगी.
शंकराचार्य के शिष्य ब्रह्म विद्यानंद ने बताया कि स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को शाम 5 बजे के आसपास गोधूलि बेला में समाधि दी जाएगी. समाधि के लिए अनुष्ठान और रस्में तीन बजे से शुरू हो जाएंगी.
भू समाधि के बाद आगे क्या?
समाधि के 16 दिन बाद सोरठी होती है. इस दिन भंडारे का आयोजन किया जाता है. इससे पहले स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के उत्तराधिकारी को चुना जाएगा.
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंदर और स्वामी सदानंद सरस्वती को उनका उत्तराधिकारी बताया जा रहा है. हालांकि, स्वामी स्वरूपानंद ने इसकी घोषणा नहीं की थी. अगर उन्होंने कोई वसीयत लिखी होगी तो जल्द ही उनका उत्तराधिकारी नियुक्त किया जाएगा.
कौन थे स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती?
स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म 1924 में मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के दिघोरी गांव में हुआ था. उनका नाम पोथीराम उपाध्याय था.
9 साल की उम्र में उन्होंने आध्यात्म के लिए घर छोड़ दिया था. आजादी की लड़ाई में भी उनका अहम योगदान था. वो दो बार जेल भी गए थे. एक बार 9 महीने और एक बार 6 महीने के लिए.
1981 में उन्हें शंकराचार्य की उपाधि मिली थी. उन्हें द्वारका पीठ का शंकराचार्य नियुक्त किया गया था.