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श्रद्धा मर्डर केस: अलग होता है कातिल का दिमाग, वो मिसिंग 'जीन' जो बनाता है सीरियल किलर

दिल्ली में हुए Shraddha Murder में रोज नए खुलासे हो रहे हैं. हत्या का आरोप उसके लिव-इन पार्टनर Aftab Ameen पर है, जिसने माना कि कत्ल के बाद उसने बॉडी के ढेरों टुकड़े किए और रोज कुछ कुछ टुकड़ा जंगल में फेंकता रहा. कोल्ड-ब्लडेड मर्डर. न्यूरोसाइंस के मुताबिक बर्बर हत्या करने वालों का दिमाग नॉर्मल इंसानों से अलग होता है.

कातिल के ब्रेन का एक हिस्सा सिकुड़ा हुआ होता है (Getty Image) कातिल के ब्रेन का एक हिस्सा सिकुड़ा हुआ होता है (Getty Image)
मृदुलिका झा
  • नई दिल्ली,
  • 16 नवंबर 2022,
  • अपडेटेड 12:41 PM IST

साल 1870 में इटली के एक डॉक्टर शेजरे लॉम्बोर्सो, जिन्हें फादर ऑफ साइंटिफिक क्रिमिनोलॉजी भी कहा जाता था, ने दावा किया कि कत्ल करने वालों के शरीर की बनावट, आम लोगों से अलग होती है. उनके हाथ ज्यादा लंबे, और कान काफी बड़े होते हैं. उस वक्त जेल में पड़े शातिर अपराधियों से दावे का मिलान हुआ. हत्यारों के कान और हाथ दोनों छोटे दिखे. डॉक्टर लॉम्बोर्सो का जमकर मजाक बना. हालांकि ये अपराधियों, खासकर हत्यारों पर रिसर्च की शुरुआत थी. 

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ब्रेन स्कैनिंग ने दिया इशारा
हाथ-पैर, कान-आंखों से होते हुए न्यूरोसाइंस ब्रेन तक जा पहुंचा. अस्सी के दशक में ब्रेन की स्कैनिंग के बाद वैज्ञानिक समझने लगे कि छोटे-से दिमाग के भीतर क्या-क्या चलता है. कैसे लगभग 3 पाउंड की ये चीज अच्छे-खासे इंसान को पागल बना सकती है. या फिर हंसता-प्यार करता बिल्कुल सामान्य दिखने वाला आदमी अपने ही परिवार या दोस्तों की बर्बर हत्या कर सकता है. ब्रेन इमेज में कई ऐसी बातें दिखीं, जिन्होंने साफ कर दिया कि हत्यारा दिमाग अलग तरीके से काम करता है- क्योंकि वो अलग होता है. 

कैलिफोर्निया में थे ज्यादा बर्बर हत्यारे 
नब्बे की शुरुआत में न्यूरोक्रिमिनोलॉजिस्ट एड्रियन रायन अमेरिकी जेलों में कोल्ड-ब्लडेड मर्डर करने वालों पर स्टडी करने पहुंचे. शुरुआत कैलिफोर्निया से हुई. ये राज्य इस तरह की हत्याओं के लिए बदनाम था. 40 से ज्यादा कैदियों की पीईटी (पोजिट्रॉन इमिशन टोमोग्राफी) हुई, ताकि दिमाग के भीतर बायोकेमिकल फंक्शन को समझा जा सके. आसान भाषा में कहें तो ये पकड़ा जा सके कि दिमाग में क्या खिचड़ी पकती है. 

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सिकुड़ा होता है मस्तिष्क का ये भाग
स्कैन में दिखा कि हत्यारों के ब्रेन के कई हिस्से सिकुड़े हुए हैं. खासकर प्री-फ्रंटल कॉर्टेक्स. बता दें कि ये मस्तिष्क का वो भाग है, जो सेल्फ-कंट्रोल सिखाता है. यानी गुस्सा आने पर दांत भींचकर भले रह जाएं, लेकिन सामने वाले का मुंह नहीं तोड़ना है. यही वो हिस्सा है, जो खतरों का अंदाजा भी देता है. जैसे ऊंची जगह से कूदने पर मौत हो सकती है, या जहर पीने पर जान बच भी जाए तो अंतड़ियां खराब हो सकती हैं. कातिल दिमाग रखने वालों में यही प्री-फ्रंटल काफी छोटा दिख रहा था.

वजहों का खुलासा अब तक नहीं हो सका
स्टडी सामने आने पर लोगों ने वैज्ञानिक की तारीफ करने की बजाए उसे पागल कहना शुरू कर दिया. काफी बाद में द अनाटॉमी ऑफ वायलेंस नाम से किताब आई, जिसमें डॉक्टर रायन ने क्रिमिनल्स के दिमाग पर अपने 35 साल के तजुर्बे को लिखा था. लेकिन ये अब तक साफ नहीं हो सका कि ब्रेन के प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स में ये सिकुड़न आती क्यों है. वैज्ञानिकों के मुताबिक इसकी कई वजहें हो सकती हैं, जो जेनेटिक भी हैं, और कई बार सिर पर गहरी चोट लगना भी कारण बनता है. बचपन में एब्यूज झेलने वालों के साथ भी ये हो सकता है. 

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शोधकर्ता का खुद का इतिहास साफ-सुथरा नहीं था
वैसे हत्यारों का दिमाग जानने वाले इस डॉक्टर ने जब खुद अपना दिमाग स्कैन किया तो नतीजे बड़े दिलचस्प रहे. रायन का ब्रेन भी संभावित कातिल की तरह था. उनका इतिहास भी मारपीट से भरा हुआ था. वे शराब पिया करते और गुस्सा आने पर सामने वाले का नुकसान भी करते. हालांकि इस स्कैन के बाद वे ज्यादा संभलकर रहने लगे, और खुद पर भरसक कंट्रोल करने लगे.

क्यों हत्या के बाद नहीं होता पछतावा?
ब्रेन पर हुई सबसे नई स्टडी एकेडमिक इनसाइट्स फॉर द थिंकिंग वर्ल्ड में छपी. इसके नतीजे भी डॉक्टर रायन के दावे से अलग नहीं थे. इसके मुताबिक, क्रिमिनल साइकोपैथ के दिमाग में धब्बे-धब्बे नजर आते हैं. ये संकेत है कि उनके दिमाग में फैसला लेने और भावनाओं पर काबू रखने वाले हिस्से अमीग्डेला और प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स, जिसका काम अमीग्डेला के रिस्पॉन्स को समझकर प्रोसेस करना होता है, दोनों में काफी दूरी थी. यानी दोनों ही हिस्से सिकुड़े हुए थे. इससे हत्यारा न केवल हत्या करता है, बल्कि उसके बाद दुख या शर्म भी महसूस नहीं कर पाता है.

सीरियल किलर जीन भी एक वजह
जिन लोगों को ब्रेन की स्कैनिंग पर कम भरोसा हो, उनके लिए एक और जानकारी! एक खास जीन भी है, जिसका मिसिंग होना किसी भी आदमी को हत्यारा बना सकता है. इसे MAOA (मोनोअमीन ऑक्सीडेज ए) कहते हैं. ये न्यूरोट्रांसमीटर मॉलीक्यूल्स जैसे सेरेटोनिन और डोपामिन पर कंट्रोल रखता है. इनका सीधा ताल्लुक मूड, भावनाओं, नींद और भूख से है. अगर ये गड़बड़ाए तो इंसान के गड़बड़ाते देर नहीं लगती. ऐसे में अगर इनपर काबू करने वाला जीन ही गायब हो जाए या कम पड़ जाए तो नतीजा खतरनाक हो सकता है. यही वजह है कि MAOA को वॉरियर जीन या सीरियल किलर जीन भी कहा गया.

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ये लोग हैं दायरे में
वैसे बता दें कि इस मिसिंग जीन का खतरा भी पुरुषों को ज्यादा होता है, जबकि महिलाएं इसके लिए कैरियर का काम करती हैं, यानी एक से दूसरी पीढ़ी तक ले जाने का. ज्यादातर मामलों में इस जीन की कमी परिवार के प्यार, अच्छे खानपान के बीच पता नहीं लग पाती. जिन घरों में माता-पिता एब्यूसिव रिश्ते में हों, जहां मारपीट या गाली गलौज हो, उन घरों के बच्चों में अगर ये जीन कम है, तो गुस्सा कंट्रोल से बाहर हो जाता है. यही बच्चे बड़े होते-होते क्रिमिनल बिहैवियर दिखाने लगते हैं, और आगे चलकर हत्या भी कर सकते हैं. 

न्यूरोसाइंस में अपराधियों के दिमाग पर लगातार शोध हो रहे हैं. मिसिंग जीन और ब्रेन में सिकुड़न जैसी कई बातें निकलकर आई हैं. उम्मीद की जा रही है कि आगे चलकर इन्हीं संकेतों से संभावित किलर को पहले ही पहचान लिया जाए, और उसे ज्यादा संवेदना, ज्यादा प्यार से सही रास्ते रखा जा सके. हालांकि पक्का कुछ भी नहीं. 

 

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