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श्रद्धा हत्याकांडः लिव-इन रिलेशनशिप में रहना अपराध नहीं, बच्चे से लेकर संपत्ति तक... महिलाओं को मिले हैं ये अधिकार

दिल्ली में श्रद्धा हत्याकांड के बाद लिव-इन रिलेशनशिप चर्चा में है. श्रद्धा की हत्या का आरोप उसके ही लिव-इन पार्टनर आफताब अमीन पूनावाला पर लगा है. लिव-इन रिलेशनशिप में रहना कोई अपराध नहीं है. लेकिन ऐसे रिश्तों में रहने वाली महिलाओं को कई बार परेशानियों का सामना करना पड़ता है. ऐसे में जानना जरूरी है कि लिव-इन में रहने वाली महिलाओं को क्या-क्या अधिकार हैं?

सुप्रीम कोर्ट ने कई फैसलों में साफ किया है कि लिव-इन रिलेशनशिप में रहना अपराध नहीं है. (प्रतीकात्मक तस्वीर-Getty Images) सुप्रीम कोर्ट ने कई फैसलों में साफ किया है कि लिव-इन रिलेशनशिप में रहना अपराध नहीं है. (प्रतीकात्मक तस्वीर-Getty Images)
Priyank Dwivedi
  • नई दिल्ली,
  • 21 नवंबर 2022,
  • अपडेटेड 6:38 PM IST

लिव-इन रिलेशनशिप, यानी जब लड़का और लड़की बगैर शादी के लंबे समय तक एक ही घर में एक साथ रहें. आज के दौर में लिव-इन रिलेशनशिप आम होती जा रही है. खासकर बड़े शहरों में. 

लेकिन यही लिव-इन रिलेशनशिप आजकल चर्चा में है. कारण है दिल्ली का श्रद्धा हत्याकांड. श्रद्धा की हत्या का आरोप उसके ही बॉयफ्रेंड आफताब अमीन पूनावाला पर लगा है. आफताब और श्रद्धा लिव-इन में रहते थे. दोनों अक्सर झगड़ते भी रहते थे. 18 मई को शादी की बात पर दोनों में झगड़ा हुआ, जिसके बाद आफताब ने श्रद्धा की हत्या कर दी. बाद में श्रद्धा के शव के 35 टुकड़े कर दिए और उन टुकड़ों को अलग-अलग जगह फेंक दिया, ताकि पकड़ा न जा सके. हत्याकांड के लगभग 6 महीने बाद आफताब पकड़ा गया और पुलिस जांच कर रही है.

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भारत में लिव-इन रिलेशनशिप का कल्चर भी बढ़ रहा है. 2018 में एक सर्वे हुआ था. इस सर्वे में शामिल 80% लोगों ने लिव-इन रिलेशनशिप को सपोर्ट किया था. इनमें से 26% ने कहा था कि अगर मौका मिला तो वो भी लिव-इन रिलेशन में रहेंगे.

हमारे देश में लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर कोई कानून नहीं हैं. लेकिन लिव-इन रिलेशनशिप में रहना अपराध नहीं है. सुप्रीम कोर्ट और अदालतों के फैसलों ने लिव-इन रिलेशनशिप को कानूनी मान्यता दे रखी है. 

अब श्रद्धा हत्याकांड में सबसे बड़ी बात ये निकलकर आ रही है कि श्रद्धा के साथ लंबे समय तक आफताब मारपीट कर रहा था, लेकिन उसने इसकी शिकायत नहीं की. उसके दोस्तों का दावा है कि कई बार बात इतनी बढ़ गई थी कि बात पुलिस के पास जाने तक पहुंच गई थी. हालांकि, श्रद्धा के मना करने पर पुलिस तक मामला नहीं पहुंचा. अगर श्रद्धा वक्त रहते पुलिस तक पहुंच जाती या शिकायत करती तो उसकी जान बच सकती थी. इसलिए, अगर आप लिव-इन में रह रहे हैं तो आपको अपने अधिकार पता होने चाहिए.

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श्रद्धा और आफताब महरौली में फ्लैट लेकर लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे थे.

लिव-इन में रहना अपराध क्यों नहीं?

अभी भी समाज में लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले लोगों को अच्छी नजरों से नहीं देखा जाता है. ऐसे रिलेशन में रहने वाली लड़कियों के चरित्र पर जहां सवाल उठाए जाते हैं, वहीं लड़कों को लेकर भी तरह-तरह की बातें होतीं हैं.

16 साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में साफ किया था कि 'बालिग होने के बाद व्यक्ति किसी के साथ भी रहने या शादी करने के लिए आजाद है.'

सुप्रीम कोर्ट के इसी फैसले से लिव-इन रिलेशनशिप को कानूनी मान्यता मिल गई थी. इस फैसले में कोर्ट ने ये भी कहा था, 'कुछ लोगों की नजर में ये अनैतिक हो सकता है, लेकिन ऐसे रिलेशन में रहना अपराध के दायरे में नहीं आता.'

हालांकि, अगर कोई शादीशुदा व्यक्ति बिना तलाक लिए किसी के साथ लिव-इन में रहे तो ये गैर-कानूनी माना जाता है. लेकिन पिछले साल पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने एक मामले में फैसला दिया था, 'शादीशुदा होने के बावजूद लिव-इन में रहना कोई जुर्म नहीं है और इससे भी फर्क नहीं पड़ता कि पुरुष ने तलाक की प्रक्रिया शुरू की है या नहीं.'

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लिव-इन में रहने वालीं महिलाओं के अधिकार क्या?

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 (NFHS-5) में सामने आया था कि देश में 16 फीसदी से ज्यादा महिलाएं ऐसी हैं, जिन्होंने अपने बॉयफ्रेंड या एक्स की यौन हिंसा का सामना किया है. 

यौन हिंसा तब मानी जाती है, जब महिला के इच्छा और सहमति के खिलाफ संबंध बनाने के लिए मजबूर किया जाता है.

इसी सर्वे में ये भी सामने आया था कि 0.2 फीसदी महिलाओं ने मौजूदा बॉयफ्रेंड और 0.1 फीसदी ने एक्स की शारीरिक हिंसा का सामना किया था. शारीरिक हिंसा यानी मारपीट. 

ये आंकड़े बताते हैं कि रिलेशन में रहने वाली महिलाओं को भी शारीरिक या यौन हिंसा का सामना करना पड़ता है. अदालतों ने इस बात को माना है कि अगर बगैर शादी किए कपल पति-पत्नी की तरह साथ रह रहा है तो पुरुष क्रूर हो सकता है. इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिलाओं को घरेलू हिंसा कानून से संरक्षण दिया है. अगर लिव-इन में रहने वाली महिला के साथ किसी भी तरह की हिंसा होती है तो अदालत या पुलिस का दरवाजा खटखटा सकती है.

इतना ही नहीं, लिव-इन में रहने वाली महिला को भी शादीशुदा औरत की तरह ही गुजारा भत्ता पाने का हक है. अगर महिला को उसका पार्टनर उसकी सहमति के बगैर छोड़ देता है तो वो कानून गुजारा भत्ता पाने का अधिकार रखती है. 

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2011 में एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिला को सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण पोषण पाने का अधिकार है. और महिला को ये कहकर मना नहीं किया जा सकता कि उसने कोई वैध शादी नहीं की थी.

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बच्चे को भी पैतृक संपत्ति में अधिकार

लिव-इन रिलेशनशिप में जन्मे बच्चे का पिता की पैतृक संपत्ति में भी अधिकार है. इसी साल एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया था कि अगर एक महिला और पुरुष सालों तक पति-पत्नी की तरह साथ रह रहे हैं, तो माना जा सकता है कि दोनों में शादी हुई होगी और इस आधार पर उनके बच्चे का पैतृक संपत्ति पर भी अधिकार होगा.

ये मामला केरल हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था. केरल हाईकोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे कपल के बेटे को पैतृक संपत्ति में अधिकार देने से मना कर दिया था. इस पर हाईकोर्ट का फैसला पलटते हुए इसी साल जून में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, 'अगर महिला और पुरुष लंबे समय तक पति-पत्नी की तरह रह रहे हों, तो माना जा सकता है कि दोनों में शादी हुई होगी.'

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हालांकि, कोर्ट ने ये भी साफ किया था कि इस अनुमान का खंडन तभी किया जा सकता है जब ये साबित हो जाए कि महिला और पुरुष भले ही लंबे समय तक साथ रह रहे हों, लेकिन दोनों की शादी नहीं हुई थी.

लेकिन लिव-इन में जन्मे बच्चे को पैतृक संपत्ति में अधिकार लंबे समय से है. 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में कहा था कि लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे कपल से अगर कोई संतान पैदा होती है तो पैतृक संपत्ति पर उसका भी उतना ही अधिकार होगा, जितना वैध शादी से पैदा हुई संतान का होता है.

लिव-इन रिलेशनशिप कब मानी जाएगी?

2013 के इंदिरा शर्मा बनाम बीवी शर्मा के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप से जुड़ी गाइडलाइंस दी थी. इसमें बताया था कि लिव-इन रिलेशनशिप तभी कहलाएगा जब एक महिला और पुरुष लगातार लंबे समय तक साथ रहे हों. 

मतलब ये नहीं कि एक या दो दिन साथ में रहे और फिर अलग-अलग रहने लगे, फिर कुछ महीनों या सालों बाद साथ रहने लगे और फिर अलग हो गए. हालांकि, इसकी कोई समयसीमा तय नहीं है. 

इसके अलावा, लिव-इन रिलेशनशिप तब माना जाएगा जब महिला और पुरुष एक ही घर में रह रहे हों, एक ही घर की चीजों का इस्तेमाल कर रहे हों, दोनों बालिग हों. इसका मतलब हुआ कि अगर लड़की की उम्र 18 साल और लड़के की 21 साल से ज्यादा है तो वो लिव-इन रिलेशन में रह सकते हैं.
 
इससे पहले 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने डी वेलूसामी बनाम डी पतचईअम्मल के मामले में लिव-इन रिलेशनशिप की शर्तें बताई थीं. कोर्ट ने कहा था कि ऐसे रिश्तों में रहने वालों को कपल के तौर पर पेश आना चाहिए और उनकी उम्र शादी के लिहाज से कानूनी तौर पर वैध होनी चाहिए.

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सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा था कि अगर एक पुरुष किसी महिला को नौकर के तौर पर रखता है, उसे हर महीने तय रकम देता है और दोनों के बीच सेक्सुअल रिलेशन भी होते हैं, तो उसे लिव-इन रिलेशनशिप नहीं माना जाएगा और ऐसे मामले में घरेलू हिंसा कानून 2005 भी लागू नहीं होगा.

 

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