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सी-फूड या कपड़े ही नहीं, नॉर्थ कोरिया की एक्सपोर्ट लिस्ट में हैं गुलाम भी, इन देशों को सप्लाई किए जा रहे बंधुआ मजदूर

उत्तर कोरिया अपने नागरिकों को न केवल देश में गुलाम बनाकर रखता है, बल्कि किसी सामान की तरह कथित तौर उनका एक्सपोर्ट भी करता है. ये गुलाम विदेशों में काम करते हैं, जिसके बदले मिलने वाली सैलरी का बड़ा हिस्सा किम जोंग सरकार को चला जाता है. हाल में आए ग्लोबल स्लेवरी इंडेक्स की रिपोर्ट भी इसी तरफ इशारा करती है, जिसके मुताबिक इस देश में सबसे ज्यादा गुलाम हैं.

नॉर्थ कोरिया से जबरन मजदूर एक्सपोर्ट किए जाने की खबरें कई बार आ चुकीं. सांकेतिक फोटो (Getty Images) नॉर्थ कोरिया से जबरन मजदूर एक्सपोर्ट किए जाने की खबरें कई बार आ चुकीं. सांकेतिक फोटो (Getty Images)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 05 जून 2023,
  • अपडेटेड 4:34 PM IST

ग्लोबल स्लेवरी इंडेक्स 2023 में उन देशों की लिस्ट बनाई गई, जहां मॉडर्न गुलाम रहते हैं. ये ऐसे लोग हैं, जिनके काम के कोई घंटे नहीं होते, न ही कोई पक्की तनख्वाह होती है. इंडेक्स की मानें तो दुनियाभर में लगभग 5 करोड़ लोग फिलहाल स्लेव की तरह जी रहे हैं. इसमें नॉर्थ कोरिया टॉप पर है, जहां हजार में से 104.6 लोग गुलाम हैं, यानी हर 10 में से एक शख्स गुलामी कर रहा है. 

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इन देशों में भी हैं मॉडर्न स्लेव

उत्तर कोरिया के बाद एरिट्रिया और मॉरीतानिया का नंबर है. मॉरीतानिया अफ्रीकी देश है, जहां अस्सी के दशक में ही स्लेवरी को गैरकानूनी माना गया. इनके बाद यूएई, कुवैत और सऊदी अरब का भी नंबर है. बेहद धनवान इन देशों के अपने नागरिक बढ़िया हालातों में रह रहे हैं, लेकिन बाहर से जा रहे मजदूरों को यहां गुलाम की तरह रखा जाता है. 

मजदूरों को निर्यात कर रहा देश

नॉर्थ कोरिया में स्लेवरी की हालत ऐसी है कि वो अपने देश में ही लोगों का शोषण नहीं करता, बल्कि सस्ते मजदूर बनाकर उनका एक्सपोर्ट भी करता है. सबसे पहले साल 2016 में डेटाबेस सेंटर फॉर नॉर्थ कोरियन ह्यूमन राइट्स ने इसका खुलासा किया. इससे पहले कई देशों में मजदूरों की अमानवीय हालातों में मौत हुई थी, जिसके बाद जांच हुई. उसने बताया कि 50 हजार से ज्यादा कोरियाई मजदूर रूस भेजे गए, जहां से वे भारी रकम कमाकर सरकारी खजाना भर रहे हैं. 

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किम जोंग उन सरकार पर नागरिकों से अतिरिक्त सख्ती का आरोप लगता ही रहा. फोटो (Pixabay)

नागरिक बनाए जा रहे कमोडिटी

इसके अलावा वे पोलैंड, कतर, यहां तक कि यूरोपियन यूनियन के देशों में भी भेजे जा रहे हैं. साल 2012 में किम जोंग उन के सत्ता में आने के बाद से ये चलन शुरू हुआ. नॉर्थ कोरिया पर चूंकि काफी सारी पाबंदियां लगी हुई हैं, ऐसे में उसके पास पैसे कमाने के ज्यादा रास्ते नहीं हैं. इसी के तोड़ की तरह इस देश के तानाशाह ने अपने ही लोगों को कमोडिटी बना दिया. 

किन्हें गुलाम बनाया जाता है?

भयंकर गरीबी और सख्ती में जी रहे इस देश से अक्सर लोगों के भागने की खबर आती है. वे सीमा पार करके दक्षिण कोरिया, अमेरिका या किसी ऐसे देश पहुंच जाते हैं, जहां वे चैन से रह सकें. भागने वाले तो बच जाते हैं, लेकिन पीछे छूटा उनका परिवार मुसीबत में आ जाता है. असल में किम सरकार ऐसे ही लोगों को टारगेट करती है. वो उन्हें सजा के तौर पर बंधक बना लेती है और जल्दी ही गुलाम बनाकर अपने देश में रखती है या विदेशों में एक्सपोर्ट कर देती है. 

ऐसे काम करता है ट्रैप

यूरोपियन अलायंस फॉर ह्यूमन राइट्स इन नॉर्थ कोरिया की मानें तो विदेश भेजने के लिए उन लोगों को चुना जाता है, जो शादीशुदा हों और जिनके बच्चे भी हों. इन लोगों के भागने का डर कम होता है क्योंकि ये रिस्क नहीं ले पाते. दूसरा, पुरुष और महिलाओं दोनों को अलग-अलग कामों में लगाया जाता है. पुरुषों को अक्सर कंस्ट्रक्शन साइट पर भेज दिया जाता है, जबकि महिलाएं सिलाई-बुनाई, खिलौने बनाने जैसे काम में लगाई जाती हैं. सी-फूड के काम के लिए भी इनका इस्तेमाल होता है. 

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देश से भागे हुए लोगों का परिवार गुलामी की जिंदगी जीने पर मजबूर हो जाता है. सांकेतिक फोटो (Reuters)

गल्फ देशों में 6 हजार से ज्यादा नॉर्थ कोरियाई मजदूर गुलामी की हालत में रह रहे हैं. कतर में वर्ल्ड कप के दौरान स्टेडियम में कंस्ट्रक्शन का काम भी इन्हीं मजदूरों ने किया था. तब ये खबर मीडिया में आई थी, जिसपर नॉर्थ कोरिया का जवाब था कि वे लोग अपनी मर्जी से कतर में काम करने गए हैं. इसके बाद भी इंटरनेशनल दबाव बना, जिसके बाद खुद कतर उत्तर कोरियाई लोगों को गुलाम बनाने से बचने लगा. 

कितनी कमाई हो रही

अलग-अलग देशों में रहते ये गुलाम लगभग सवा बिलियन डॉलर से लेकर ढाई बिलियन डॉलर तक कमाकर देश को देते रहे. खुद यूनाइटेड नेशन्स ये बात मानता है. हालांकि इतनी भारी रकम पर कई संस्थानों को ऐतराज है. वे कहती हैं कि गुलामी हो तो रही है, लेकिन इससे इतने ज्यादा पैसे नहीं आते. 

किन हालातों में रहते हैं लोग

इन लोगों से रोज 14 से 16 घंटों तक काम करवाया जाता है. नॉर्थ कोरिया में रहते गुलामों को किसी तरह का कॉन्ट्रैक्ट या पे-स्लिप नहीं मिलती. उनका पासपोर्ट और सारे पहचान पत्र ले लिए जाते हैं. चूंकि उनकी फैमिली का कोई सदस्य देश छोड़कर भाग चुका है तो उनपर हर समय सरकार की नजरें रहती हैं. यहां तक कि उन्हें आइडियोलॉजिकल स्टडी सेशन भी दिया जाता है, जिसमें किम जोंग से वफादारी की शपथ लेनी होती है. 

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रूस और चीन के अलावा खाड़ी देशों में भी मजदूर भेजे जाते रहे. सांकेतिक फोटो (AFP)

तनख्वाह का 80 से 90 फीसदी सरकार के पास जा रहा 

जो मजदूर दूसरे देशों में आयात किए जाते हैं, उनकी हालत और खराब रहती है. काम के ज्यादा घंटों के अलावा उनके पास न तो रहने को ठीक घर होता है, न ही भरपेट खाने को मिलता है. इसके अलावा उन्हें सैलरी का 10 से 20 प्रतिशत ही दिया जाता है, बाकी पैसे सीधे नॉर्थ कोरियाई सरकार को भेज दिए जाते हैं. कई बार देश उतनी कीमत के हथियार या दूसरी चीजें किम को भेजते हैं. 

अमेरिका ने बनाया नियम

उत्तर कोरिया वैसे तो अमेरिका से खुन्नस खाए रहता है, लेकिन तब भी अमेरिका को डर है कि ये देश कहीं चुपके से उसके यहां भी अपने गुलाम न भेज दे. इससे बचने के लिए उसने पहले ही सावधानी बरत डाली. काउंटरिंग अमेरिका एडवर्सरीज थ्रू सेंक्शन्स एक्ट (CAATSA) उन तमाम कंपनियों को बैन कर देता है, जहां नॉर्थ कोरियाई लोग बंधुवा मजदूर की तरह लगते हैं, या इस तरह की कोई खबर भी आए. 

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