
सप्ताह के शुरुआती दो दिन दक्षिण कोरिया के लिए काफी उठापटक वाले रहे. देशविरोधी ताकतों का हवाला देते हुए वहां के राष्ट्रपति यून सुक-योल ने मार्शल लॉ लगा दिया. ये वो फैसला है, जिसके तहत संसद से लेकर सड़क तक पर पहरेदारी हो सकती है. सेना हर जगह फैलती, इससे पहले ही विपक्ष समेत खुद प्रेसिडेंट के साथियों ने फैसले के खिलाफ वोट कर डाला. मार्शल लॉ तो हट गया, लेकिन अब विपक्ष राष्ट्रपति को भी हटाना चाह रहा है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, विपक्ष 7 दिसंबर को महाभियोग प्रस्ताव ला सकता है.
क्यों घटी लोकप्रियता
प्रेसिडेंट यून जनता से लेकर नेताओं के बीच भी धाक कम हो चुकी, जबकि उसकी जगह अलोकप्रियता ने ली. उन्होंने कुछ ही समय में कई ऐसे फैसले लिए, जो साउथ कोरियाई लोगों के लिए धक्का था. मिसाल के तौर पर वे अपने महिला-विरोधी रवैए के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने महिला एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को बेकार कहते हुए उसे खत्म करने की बात की थी.
उनकी फॉरेन पॉलिसी भी खासी विवादित रही. खासकर जापान के साथ दोस्ताना संबंध. इन्हें वहां के लोग धोखे की तरह देखते हैं. यहां बता दें कि इस देश पर पहले जापान का ही कब्जा था. उस दौर में दक्षिण कोरियाई जनता ने बहुत कुछ झेला और आज भी वे जापान से दूरी ही रखना चाहते हैं.
क्यों लगाया मार्शल लॉ
विपक्ष आरोप लगा रहा है कि अपनी कमियों को छिपाने के लिए राष्ट्रपति ने मार्शल लॉ लगाने का निर्णय लिया. वहीं देश को संबोधित करते हुए प्रेसिडेंट ने कहा कि वे देश विरोधी ताकतों को कुचलने के लिए मार्शल लॉ का एलान करते हैं. राष्ट्रपति के मुताबिक, उनके अपने ही लोग उत्तर कोरिया को लेकर ज्यादा ही उदार हो रहे हैं जो कि देश के लिए खतरनाक है. लगभग छह घंटों के भीतर लॉ वापस ले लिया गया. अब विपक्ष राष्ट्रपति से इस्तीफा मांग रहा है.
महाभियोग लाने की बात हो रही
दक्षिण कोरियाई मीडिया के हवाले से फर्स्ट पोस्ट लिखता है कि शनिवार को महाभियोग प्रस्ताव लाया जा सकता है. लिबरल डेमोक्रेट्स इसके लिए तैयार हो रहे हैं. वहीं राष्ट्रपति को बचाने के लिए रूलिंग पार्टी भी अपनी तैयारियां कर रही हैं. हालांकि मामला कमजोर ही लगता है क्योंकि मार्शल लॉ हटाने के बाद से भारी बेचैनी के बीच भी वे सार्वजनिक तौर पर दिखाई नहीं दिए.
राष्ट्रपति अगर इस्तीफा दें या किसी विद्रोह के तहत उन्हें हटाया जाए तो इस देश की सत्ता कौन संभालेगा?
क्या यहां भी तय समय के लिए कार्यवाहक सरकार का चलन है?
हां. राष्ट्रपति इस देश का सुप्रीम लीडर है. अगर वो अचानक पद छोड़ दे, या उसके साथ कोई बड़ा हादसा हो जाए तो पीएम एक्टिंग प्रेसिडेंट के तौर पर काम संभालता है. अगर वे भी उपलब्ध न हों, तो यह जिम्मा कैबिनेट के सीनियर सदस्य का होता है. लेकिन कार्यवाहक राष्ट्रपति का टर्म निश्चित समय के लिए होता है, जिसके बाद लगभग 60 दिनों के अंदर चुनाव होने चाहिए. इसमें जनता ही राष्ट्रपति चुनती है.
पहले भी हो चुकी हैं ऐसी घटनाएं
साल 2017 में राष्ट्रपति पार्क ग्यून-हे पर महाभियोग चला, जिसके बाद उन्हें पद छोड़ना पड़ा और उनकी जगह तत्कालीन पीएम ह्वांग क्यो-आन ने ली. दो महीनों में इलेक्शन हुए और मून जे-इन नए लीडर बन गए. इसी तरह से अभी अगर यून इस्तीफा दें तो उनकी जगह हान डक-सू एक्टिंग प्रेसिडेंट बनेंगे.
जल्द इलेक्शन कराने का रहेगा दबाव
हान का पीएम बतौर ये दूसरा टर्म है. इससे पहले वे लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता राष्ट्रपति रोह मू-ह्यून के तौर पर शपथ ले चुके थे, वहीं मौजूदा राष्ट्रपति कंजर्वेटिव पार्टी से हैं. भड़का हुआ विपक्ष राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाने की बात कर रहा है. अगर ऐसा होगा तो हान को तुरंत और अनिश्चित समय के लिए एक्टिंग प्रेसिडेंट की तरह काम करना होगा. हालांकि कोशिश रहेगी कि जल्द से जल्द चुनाव हो और नए राष्ट्रपति आ जाएं क्योंकि इसमें देर पड़ोसी देश नॉर्थ कोरिया के लिए साजिश का मौका बन सकती है.
पड़ोसी उठा सकते हैं कमजोर पड़ने का फायदा
दोनों देशों की दुश्मनी पचास के दशक से चली आ रही है. कोरियाई युद्ध के बाद दोनों ने शांति समझौते तक पर दस्तखत नहीं किए. ऐसे में अगर एक भी देश राजनैतिक तौर पर कमजोर पड़े तो उसका सीधा फायदा दूसरे को मिलेगा. राजनीतिक अस्थिरता के समय, उत्तर कोरिया अक्सर सीमा पर सैन्य गतिविधियां तेज कर देता है, ये बात कई मौकों पर दिख चुकी. सबसे बड़ा उदाहरण साल 1950 है, जब साउथ कोरिया की कमजोर के वक्त नॉर्थ कोरिया ने उसपर हमला बोल दिया था, और कोरियाई युद्ध छिड़ गया.
फिलहाल मामला ज्यादा संवेदनशील है. साउथ के पास न तो परमाणु हथियार हैं, न ही बड़ी भारी फौज. वो इस मामले में अमेरिका और यूरोप के भरोसे है. वहीं बीते सालों में किम जोंग की लीडरशिप में नॉर्थ कोरिया ने न केवल सैन्य ताकत जुटाई, बल्कि माना ये भी जा रहा है कि वो न्यूक्लियर जखीरा भी बना चुका. कई बार इस बात को लेकर अमेरिका उसे धमकाता रहा.