
नेताजी सुभाष चंद्र बोस... इस नाम का जिक्र होते ही रहस्य नाम का शब्द अपने आप साथ चला आता है. साल 2016 में केंद्र सरकार ने उनसे और उनकी कथित रहस्यमय मृत्यु से जुड़ी 100 फाइलों को सार्वजनिक किया था. इन फाइलों में दर्ज विवरणों के आधार पर मानें तो दस्तावेज तो ये कहते हैं कि नेताजी का निधन 1945 में हुए प्लेन क्रैश में हो गया था, लेकिन अब एक और रहस्य गहरा जाता है कि आखिर उनके निधन की ही बात थी तो इसे इतना संदेहजनक क्यों रखा गया?
आखिर कोई भी किसी अन्य देश के व्यक्ति की मृत्यु को इस तरह छिपाएगा क्यों? सवाल यह भी है कि आखिर उनकी मृत्यु के संदेश को इस तरह संदेहजनक परिस्थितियों में क्यों सार्वजनिक किया गया था?
बहुत से सवालों के अब भी कोई उत्तर नहीं
सवाल बहुत से हैं और नतीजा ये है कि जब देश नेताजी की 128वीं जयंती मना रहा है और सरकार ने इसे पराक्रम दिवस का नाम दिया है तो ऐसे में भी 'रहस्य' शब्द इस शख्सियत के लिए स्थायी भाव सा हो गया है. इन्हीं रहस्यों पर और भी गहराई से और सवालों पर बेहद विस्तारित तरीके से काम किया है, लेखक संजय श्रीवास्तव ने, जिनकी किताब 'सुभाष बोस की अज्ञात यात्रा' उनके जीवन और उनके निधन से जुड़े कई सवाल सामने रखती है. न सिर्फ सवाल, बल्कि उनका हल कैसे निकाला जा सकता है, उसके पहलुओं पर भी बात करती है.
बोस के निधन की सच्चाई को सामने लाने वाला एक पहलू तो है, उनकी अस्थियों का DNA टेस्ट. किताब कहती है कि जापान के रेंकोजी मंदिर में रखी नेताजी की अस्थियां वो कड़ी हैं, जो उनके निधन संबंधी सारे रहस्यों को उजागर कर सकती है. निधन से जुड़े रहस्य की जांच के लिए तीन आयोग बने. दो आयोगों यानी शाहनवाज खान और जस्टिस जीडी खोसला आयोग ने कहा कि नेताजी का निधन तायहोकु में हवाई हादसे में हो गया, लेकिन 1999 में तत्कालीन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा गठित जस्टिस मनोज कुमार मुखर्जी आयोग ने कहा, उनका निधन हवाई हादसे में नहीं हुआ था.
सुभाष के भाई नहीं मानते हादसे में निधन की बात
50 के दशक में बने पहले जांच आयोग के सदस्य रहे सुभाष के बड़े भाई सुरेश चंद्र बोस ने बाद में खुद को आयोग की जांच रिपोर्ट से अलग कर अपनी असहमति रिपोर्ट तैयार की, जिसे उन्होंने अक्टूबर 1956 में जारी किया था. इस रिपोर्ट में उन्होंने सामने रखा था कि, सुभाष किसी हवाई हादसे के शिकार नहीं हुए बल्कि जिंदा बच गए. जापान के उच्च सैन्य अधिकारियों ने खुद उन्हें जापान से सुरक्षित निकालकर सोवियत संघ की सीमा तक पहुंचाया था.
टोकियो के पास रेंकोजी मंदिर में हैं अस्थियां
सुभाष चंद्र बोस के बारे में जानने का सबसे बड़ा जरिया टोकियो के पास स्थित रेंकोजी मंदिर है. यहां पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की अस्थियां 18 सितंबर 1945 से रखी हैं. ये अस्थियां वहां नेताजी के अंतिम संस्कार के लिए ले जाई गईं थीं, जहां अंतिम संस्कार की रस्म तो निभाई गई लेकिन अस्थियां संजोकर रख ली गईं.
बोस की बेटी अनीता भी कर चुकी हैं DNA टेस्ट की मांग
रेंकोजी टोकियो के बाहर बना पुराना छोटा सा मंदिर है. मंदिर 1594 का बना हुआ है. जब अस्थियां इस मंदिर में रखी गईं तब यहां के पुजारी मोचिजुकी थे. सुभाष चंद्र बोस की बेटी अनिता बोस फाफ भी लंबे समय से अस्थियों के DNA जांच की मांग करती रही हैं. बोस की बेटी अनिता बोस ने यही माना कि उनके पिता की मौत 18 अगस्त 1945 को उसी हादसे में हुई थी. उन्होंने यही मांग की कि टोकियो के रेंकोजी मंदिर में रखी बोस की अस्थियों का DNA टेस्ट कराया जाना चाहिए ताकि उन्हें लेकर जो रहस्य बरकरार हैं वे हमेशा के लिए खत्म हो जाए. पिछले कुछ सालों से वह लगातार ये मांग कर रही हैं.
क्या कहता है मुखर्जी आयोग?
वर्ष 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार ने हवाई हादसे में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के निधन पर बरकरार संदेह को शांत करने के लिए तीसरे जांच आयोग का गठन किया. सुप्रीम कोर्ट के जज मनोज कुमार मुखर्जी को इसकी जिम्मेदारी दी गई थी. जांच के बाद मुखर्जी आयोग ने निष्कर्ष निकाला कि नेताजी का निधन हवाई हादसे में नहीं हुआ था. मुखर्जी आयोग ने जापान समेत कई देशों का दौरा किया, जिसमें रूस, ताइवान शामिल थे. आयोग के सामने कई लोगों ने मौखिक तौर पर यही बताया कि ताइवान में सुभाष चंद्र बोस का विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया था लेकिन आयोग को भरपूर कोशिश के बाद इससे संबंधित कोई दस्तावेज नहीं मिले. यहां तक की सुभाष के निधन से संबंधित अस्पताल या दाह संस्कार के दस्तावेज भी नहीं मिल पाए.
दाह संस्कार सुभाष का नहीं जापानी सैन्य अफसर का हुआ?
लेखक संजय श्रीवास्तव की किताब सुभाष बोस की अज्ञात यात्रा के अनुसार मुखर्जी आयोग का मानना था कि जिस शख्स को सुभाष चंद्र बोस मानकर दाह संस्कार किया गया, वो सुभाष थे ही नहीं बल्कि एक जापानी सैन्य अफसर ओचिरा थे. उसी की अस्थियां जापान के रेंकोजी मंदिर में रखी हैं. मुखर्जी कमीशन ने अपनी रिपोर्ट भारतीय संसद को 17 मई 2006 को सौंपी. तब तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने इसके निष्कर्षों का खारिज कर दिया.
आयोग ने इन पहलुओं पर की थी जांच
मुखर्जी आयोग को मुख्य तौर पर छह अलग सवालों या कह लीजिए कि बिंदुओं पर काम करना था. पहला तो यही था कि क्या नेताजी जीवित हैं या फिर मृत हो चुके हैं, दूसरा ये कि अगर उनकी मृत्यु हो चुकी है तो क्या ये प्लेन क्रैश में हुई. ये आम धारणा बनी कैसे? तीसरा जो जांच का विषय था वह यह था कि, क्या जापान के मंदिर में रखी अस्थियां नेताजी की ही हैं?
इनके अलावा जो बड़े सवाल थे कि अगर प्लेन क्रैश में मृत्यु नहीं हुई है तो कब हुई, कैसे हुई और कहां? फिर यह भी अगर वो जिंदा हैं तो कहां हैं? आयोग ने इस पर भी जांच की थी कि सुभाष चंद्र बोस ने उस दिन कोई उड़ान भरी भी थी या नहीं.
आखिर अंतिम समय की कोई तस्वीर क्यों नहीं?
जब मुखर्जी आयोग ने जांच करनी शुरू की तो उसे न केवल नेताजी के निधन का प्रमाणपत्र मिला और ना ही उनके अंतिम संस्कार का सर्टीफिकेट. आय़ोग ने सवाल उठाया कि अगर नेताजी का निधन हुआ तो उनकी कोई परिस्थितिजन्य फोटो क्यों नहीं खींची गई, जिससे पार्थिव शरीर की पहचान हो पाती और ये एक साक्ष्य होता कि ये नेताजी की ही मृत देह थी.
प्लेन क्रैश हुआ भी था कि नहीं... इसका भी कोई डॉक्यूमेंट नहीं मिला
अगली बात जो इस पूरे मामले को संदिग्ध बनाती है, वो है प्लेन क्रैश का भी कोई दस्तावेज उपलब्ध नहीं होना. ताइपेई 25 अक्टूबर 1945 तक जापानियों के नियंत्रण में था. मुखर्जी आयोग ने विमान हादसे पर दो खास निष्कर्ष निकाले, पहला तो विमान हादसे को साबित करने वाले कोई प्रमाण नहीं है और दूसरा नेताजी का निधन विमान हादसे में साबित नहीं होता. इसके बाद मुखर्जी आयोग ने तमाम अन्य गवाहों से मुलाकात की. हालांकि तब तक काफी गवाहों की मृत्यु हो चुकी थी.
तीन बाबा, जिन्हें कई बार माना गया सुभाष चंद्र बोस
आयोग ने देश में उन तीन बाबाओं के बारे में भी विस्तृत जांच की थी. ये जानने की कोशिश की गई कि क्या वो वाकई सुभाष चंद्र बोस थे. इसमें गुमनामी बाबा सबसे बड़े नाम और दावेदार भी थे. जांच के बाद आयोग ने माना कि तीनों ही बाबा सुभाष नहीं थे. अन्य दो बाबाओं में शॉलीमारी आश्रम के साधू शारदानंद और ग्वालियर के करीब नागदा गांव के बाबा ज्योर्तिमय शामिल थे.
क्या था मुखर्जी आयोग का निष्कर्ष?
इस किताब में पहली बार मुखर्जी आयोग समेत तीनों जांच आयोगों की रिपोर्ट विस्तार से दी गई है. मुखर्जी आयोग ने तमाम साक्ष्यों और जांच के आधार पर साफ कहा, बेशक नेताजी सुभाष चंद्र बोस का निधन हो चुका है लेकिन वो विमान दुर्घटना में नहीं मरे, जैसा कहा जाता है.