
पाकिस्तान के बलूचिस्तान में मस्तुंग शहर की एक मस्जिद के पास शुक्रवार को सुसाइड ब्लास्ट हुआ. हमले के वक्त लोग ईद-ए-मिलाद-उन-नबी के लिए जमा हो रहे थे. आत्मघाती हमले में 50 से ज्यादा मौतें हुईं, जबकि 70 से ज्यादा लोग घायल हो गए. इसके बाद से आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है.
संदेह जताया गया कि ये कारस्तानी आतंकी गुट तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) की है, लेकिन TTP ने इससे साफ इनकार कर दिया. गुट का कहना है कि वे मस्जिदों या भीड़ भरी जगहों को निशाना नहीं बनाते. बलूचिस्तान अकेला प्रांत नहीं, पूरे देश में ही लगातार आतंकी हमले बढ़ रहे हैं. समझिए, क्या है इसकी वजह...
क्या कहता है ताजा आंकड़ा?
PICSS के मुताबिक, पहले 7 महीनों के भीतर देश में 18 सुसाइड अटैक हुए, जिनमें 200 से ज्यादा जानें गईं, और लगभग 500 लोग घायल हुए हैं. ध्यान दें कि ये सुसाइड बॉम्बिंग हैं. इसके अलावा ब्लास्ट की घटनाएं अलग हैं. पाकिस्तान में सुसाइड टैररिज्म के मामले साल 2007 से बढ़े, हालांकि ये नब्बे के दशक से चले आ रहे हैं. 1995 में इस्लामाबाद स्थित इजिप्ट की एंबेसी पर आतंकी गुट ने हमला करवाया, जिसमें 17 लोग मारे गए. इसके बाद से वहां सुसाइड अटैक तेजी से बढ़े.
पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुर्शरफ और पूर्व प्रधानमंत्री शौकत अली पर भी इस तरह के हमले की कोशिश हुई थी. बेनजीर भुट्टो की मौत भी ऐसे ही अटैक में हुई. इसके अगले ही साल पाकिस्तान में आत्मघाती हमलों का आंकड़ा ईरान और अफगानिस्तान से भी ज्यादा हो गया.
कब ऊंचा होने लगा ग्राफ?
पाकिस्तान में बलूचिस्तान की मांग को लेकर कई चरमपंथी गुट खड़े हो गए. उनके पास संसाधन कम थे. ऐसे में लंबी ट्रेनिंग देकर लड़ाकों को मजबूत बनाने का वक्त नहीं था. ये डर भी था कि अगर ब्लास्ट में शामिल लोग पकड़े जाएं तो सरकार गुट के अंदर तक पहुंच सकती है. इसी डर से बचने के लिए सुसाइड बॉम्बिंग को बढ़ावा मिला. TTP के अलावा ISIS-K भी कई ऐसे हमलों में शामिल रहा. अलकायदा से जुड़े कई मिलिटेंट ग्रुप इसकी ट्रेनिंग लेते हैं.
कौन-कौन से आतंकी समूह हैं पाकिस्तान में?
यहां लश्कर-ए-तैयबा, लश्कर-ए-ओमर, जैश-ए-मोहम्मद, हरकतुल मुजाहिद्दीन, सिपाह-ए-सहाबा, हिजबुल मुजाहिदीन, जुंदल्ला, इस्लामिक स्टेट खुरासान प्रोविंस जैसे गुट हैं. इनके अलावा कई विदेशी टैरर ग्रुप भी यहां डेरा डाले हुए हैं, जिनका संबंध इस्लामिक चरमपंथ से है. माना जाता है कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी इंटर सर्विस इंटेलिजेंस की भी इसमें मिलीभगत होती है. वो भी आतंकियों को ट्रेनिंग देने का काम करती है.
आतंकियों को क्यों पसंद आ रहा तरीका
- इसमें मरने वालों की संख्या आतंक के किसी भी और तरीके से ज्यादा रहती है.
- सुसाइड बॉम्बर खुद को स्मार्ट बॉम्ब कहते हैं. ये टारगेट तक सीधे पहुंचते हैं.
- कॉस्ट इफेक्टिव तरीका है. इसी वजह से कमजोर स्थिति वाले आतंकी गुट इसे पसंद करने लगे.
- ये सुसाइड बॉम्बर हैं इसलिए इनके पकड़े जाने, और फिर बाकी ग्रुप के पकड़े जाने का डर नहीं रहता.
बीच में हमलों में आई थी कमी
साल 2014 में पाक सरकार ने जर्ब-ए-अज्ब नाम से एक ऑपरेशन लॉन्च किया, जिसकी कमान आर्मी के पास थी. इसका काम सुसाइड टैररिज्म पर लगाम लगाना था. इसके बाद ही हमले घटे, लेकिन अफगानिस्तान में तालिबान राज आने के बाद से आतंकी गुट एक बार फिर सक्रिय हो गए हैं. इसी जुलाई में यूनाइटेड नेशन्स की सिक्योरिटी रिपोर्ट आई, जो कहती है कि TTP समेत कई आतंकी गुट मिलकर काम कर रहे हैं. इनका मकसद देश समेत पूरी दुनिया का इस्लामीकरण तो है ही, साथ ही पॉलिटिकल हित भी हैं.
किन जगहों पर है फोकस
बॉर्डर पर आत्मघाती हमले ज्यादा हो रहे हैं. ये पोरस होते हैं, जहां से आतंकी आराम से यहां-वहां हो सकते हैं. इसके अलावा सीमा को कमजोर करने पर सरकार पर सीधा असर होता है. शहरी इलाकों में मस्जिद या बाजार सॉफ्ट टारगेट बनते हैं.
इन देशों में भी आत्मघाती हमले
- साल 1983 में बेरुत की अमेरिकन एंबेसी में सुसाइड अटैक हुआ, जिसके बाद वहीं पर फ्रेंच और अमेरिकन एंबेसी पर भी हमले हुए. इसमें 299 लोग मारे गए.
- साल 2005 में लंदन में इसी तरह के हमले के पीछे पाकिस्तानी मूल के ब्रिटिश नागरिक निकले. इसमें 52 मौतें हुईं.
- साल 1991 में श्रीलंकाई आतंकी समूह लिट्टे के आत्मघाती हमले में राजीव गांधी की हत्या हो गई.
- अफगानिस्तान, फिलीस्तीन, इराक, ईरान और यहां तक कि चेचन्या जैसी जगहों पर भी सुसाइड अटैक कॉमन हैं.