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दलित मुस्लिम और ईसाइयों को क्यों नहीं दे सकते आरक्षण? सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दिए ये तर्क

सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में केंद्र सरकार ने दलित मुस्लिमों और दलित ईसाइयों को अनुसूचित जाति का दर्जा दिए जाने का विरोध किया है. सरकार ने हलफनामा दायर कर कहा कि हिंदू दलित ईसाई या इस्लाम धर्म अपनाते ही इसलिए हैं ताकि उन्हें छुआछूत का सामना न करना पड़े, इसलिए उन्हें अनुसूचित जाति का दर्जा नहीं दिया जा सकता.

सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दलित मुस्लिमों और ईसाइयों का SC का दर्जा देने का विरोध किया है. (फाइल फोटो-PTI) सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दलित मुस्लिमों और ईसाइयों का SC का दर्जा देने का विरोध किया है. (फाइल फोटो-PTI)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 10 नवंबर 2022,
  • अपडेटेड 2:44 PM IST

धर्म परिवर्तन कर मुस्लिम या ईसाई बनने वाले दलितों को अनुसूचित जाति का दर्जा क्यों नहीं दिया जा सकता? इस पर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कई तर्क रखे हैं. एक याचिका के जवाब में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर किया है. 

केंद्र ने तर्क दिया है कि दलित धर्म परिवर्तन कर इस्लाम या ईसाई में इसलिए जाते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि वहां छुआछूत का सामना नहीं करना पड़ेगा. ईसाई और इस्लाम, दोनों ही विदेशी धर्म हैं, इसलिए वहां छुआछूत नहीं होती. लिहाजा धर्म परिवर्तन कर इस्लाम या ईसाई बनने वाले दलितों को अनुसूचित जाति का दर्जा नहीं दिया जा सकता.

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केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने ये हलफनामा दायर किया. ये हलफनामा उस याचिका के जवाब में दायर किया गया है कि जिसमें ईसाई दलितों और मुस्लिम दलितों को भी अनुसूचित जाति की तरह ही आरक्षण समेत दूसरे लाभ देने की मांग की गई थी.

क्या है पूरा मामला?

- सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (CPIL) नाम के एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. 

- इस याचिका में मांग की गई थी कि धर्म परिवर्तन कर ईसाई या मुस्लिम बनने वाले दलितों को भी अनुसूचित जाति का दर्जा दिया जाए और आरक्षण समेत दूसरे लाभ दिए जाएं.

- याचिका में दलील दी गई थी कि संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश 1950 भेदभावपूर्ण और संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन है, क्योंकि ये हिंदू, सिख और बौद्ध धर्मों के अलावा दूसरे धर्मों में परिवर्तित होने वाले दलितों को अनुसूचित जाति का दर्जा नहीं देता है.

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सरकार ने क्या-क्या तर्क रखे?

- सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने अपने हलफनामे में कहा, 'अनुसूचित जातियों के आरक्षण और पहचान का मकसद सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन से परे है. अनुसूचित जातियों की पहचान एक विशिष्ट सामाजिक कलंक के आसपास केंद्रित है. और संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश 1950 में पहचाने गए समुदायों तक सीमित है.'

- सरकार ने तर्क दिया कि 'ये आदेश ऐतिहासिक आंकड़ों पर आधारित था, जिसने साफ किया था कि ईसाई या इस्लामी समाज के लोगों को कभी भी इस तरह के पिछड़ेपन या उत्पीड़न का सामना नहीं करना पड़ा है.'

- केंद्र सरकार ने कहा कि असल में अनुसूचित जाति के लोग ईसाई या इस्लाम धर्म में परिवर्तित ही इसलिए होते हैं, ताकि वो छुआछूत जैसी दमनकारी व्यवस्था से बाहर आ सकें, क्योंकि ईसाई या इस्लाम में ऐसा नहीं होता है.

- हलफनामे में सरकार ने ये भी कहा कि ये आदेश किसी भी तरह से असंवैधानिक नहीं है, क्योंकि छुआछूत जैसी दमनकारी व्यवस्था कुछ हिंदू जातियों को पिछड़ेपन की ओर ले जाती है, जबकि ईसाई और इस्लामी समाज में ऐसी व्यवस्था नहीं है. यही कारण है कि ईसाई और इस्लामी समाज को इससे बाहर रखा गया है.

- वहीं, बौद्ध और सिख धर्म को शामिल करने को सही ठहराते हुए केंद्र ने तर्क दिया कि बौद्ध धर्म में धर्मांतरण की प्रकृति ईसाई धर्म में धर्मांतरण से अलग रही है. 

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जस्टिस रंगनाथ मिश्रा आयोग की रिपोर्ट पर क्या कहा?

- जस्टिस रंगनाथ मिश्रा आयोग ने अपनी रिपोर्ट में सभी धर्मों में दलितों के लिए अनुसूचित जाति का दर्जा देने का समर्थन किया था. सरकार ने इसे खामी भरा बताया है.

- सरकार ने कहा कि ये रिपोर्ट बिना किसी क्षेत्रीय अध्ययन के बनाई गई थी, इसलिए जमीनी स्थिति पर इसकी पुष्टि नहीं होती. इतना ही नहीं, इस रिपोर्ट को बनाते समय ये भी ध्यान नहीं रखा गया कि पहले से सूचीबद्ध जातियों पर क्या असर होगा, इसलिए सरकार ने इस रिपोर्ट को नामंजूर कर दिया था.

 

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