Advertisement

कोर्ट में जाकर दम तोड़ देते हैं रेप के 75% केस, POCSO का भी यही हाल

सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर चिंता जताई है कि सहमति से बने रिश्तों में जब खटास आ जाती है तो रेप केस दर्ज करवा दिया जाता है. सुप्रीम कोर्ट ने इसे चिंता बढ़ाने वाला ट्रेंड बताया है. रेप केसों पर कई बार इस तरह के सवाल उठते रहे हैं.

महिलाओं के खिलाफ अपराध के ज्यादातर मामलों में आरोपी बरी हो जाते हैं. महिलाओं के खिलाफ अपराध के ज्यादातर मामलों में आरोपी बरी हो जाते हैं.
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 28 नवंबर 2024,
  • अपडेटेड 6:53 AM IST

रिश्तों में खटास आने के बाद रेप के मामले दर्ज किए जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताई है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सहमति से बने रिश्तों में जब खटास आ जाती है तो रेप केस दर्ज करवा दिया जाता है, जो चिंता बढ़ाने वाला ट्रेंड है.

कोर्ट ने कहा कि महिला के विरोध के बिना लंबे समय तक बने शारीरिक संबंध इस ओर इशारा करता है कि ये संबंध शादी के झूठे वादे की बजाय सहमति से बनाए गए थे.

Advertisement

जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस एन. कोटिस्वर सिंह की बेंच ने ये टिप्पणी की. बेंच उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें एक शख्स ने अपने खिलाफ दर्ज रेप के मामले को रद्द करने की मांग की थी. बेंच ने कहा कि कई मामलों से साफ होता है कि लंबे समय तक सहमति से चलने वाले रिश्तों में खटास आने पर इसे आपराधिक बनाने की कोशिश की जाती है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक महिला शादी के वादे के बिना भी किसी पुरुष के साथ शारीरिक संबंध बना सकती है, जैसे- व्यक्तिगत लगाव.

हालांकि, ये पहली बार नहीं है जब सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह की टिप्पणी की है. झूठे रेप केस पर अदालतें ऐसी टिप्पणी करती आई हैं. इसी साल मार्च में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में आरोपी के खिलाफ दर्ज रेप के केस को रद्द कर दिया था. इस फैसले में कोर्ट ने आरोपी की पहचान गुप्त रखी थी और उसके नाम की जगह 'Mr. X' का इस्तेमाल किया था. उस व्यक्ति पर एक महिला ने शादी का वादा कर रेप करने का इल्जाम लगाया था.

Advertisement

कानूनन रेप या यौन अपराध की पीड़िता की पहचान गुप्त रखी जाती है. लेकिन अब कोर्ट ने आरोपी की पहचान भी गुप्त रखने का फैसला लिया है. 

क्या रेप के झूठे केस भी दर्ज हो रहे हैं?

रेप के मामलों में कई सालों से राजस्थान टॉप पर है. पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा था कि रेप की एफआईआर दर्ज करना जरूरी होता है, लेकिन बाद में इनमें से आधे से ज्यादा केस झूठे साबित होते हैं.

राजस्थान पुलिस के एडीजीपी (क्राइम) रवि प्रकाश मेहरदा ने भी एक बार बताया था कि रेप के 48% से ज्यादा मामले झूठे थे. उन्होंने कहा था कि रेप के 48% मामलों में फाइनल रिपोर्ट पेश कर दी गई है. फाइनल रिपोर्ट तब पेश की जाती है, जब जांच के बाद सामने आता है कि कोई मामला नहीं बनता. यानी, जितने केस दर्ज होते हैं, उनमें से आधे मामले जांच में झूठे साबित हो जाते हैं.

रेप के झूठे मामलों पर दिल्ली महिला आयोग की एक रिपोर्ट भी चौंकाती है. 2014 में दिल्ली महिला आयोग ने एक रिपोर्ट जारी की थी. इसमें अप्रैल 2013 से जुलाई 2014 के बीच दिल्ली में दर्ज हुए रेप के मामलों पर स्टडी की थी. इसके मुताबिक, अप्रैल 2013 से जुलाई 2014 के बीच रेप के 2,753 मामले दर्ज हुए थे, जिनमें से 1,287 ही सही थे और बाकी के 1,464 यानी 53.2% मामले झूठे थे. 

Advertisement

इस रिपोर्ट में कहा गया था कि रेप के ज्यादातर मामले झूठे इसलिए साबित हो जाते हैं, क्योंकि शिकायत करने वाली महिला अपने आरोपों से मुकर जाती है.

सवाल क्यों उठते हैं?

ऐसा नहीं है कि रेप के सभी मामले झूठे होते हैं. लेकिन कई मामले ऐसे आते हैं, जिनकी असल सच्चाई जांच में सामने आती है. कई रेप केसेस पर इसलिए सवाल उठते हैं, क्योंकि इन मामलों में कन्विक्शन रेट यानी दोष सिद्धी बहुत कम है.

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो यानी NCRB के आंकड़े बताते हैं कि रेप के 65% से ज्यादा मामलों में आरोपी बरी हो जाते हैं. रेप के मामलों में कन्विक्शन रेट 30% से भी कम है. 

2022 में रेप के 18,517 मामलों का ट्रायल पूरा हुआ था. इसमें 5,067 मामलों में आरोपी को सजा मिली थी. इसी तरह महिलाओं के खिलाफ अपराध के 1,50 लाख से ज्यादा मामलों का ट्रायल पूरा हुआ था, जिसमें 38,136 मामलों में ही आरोपी दोषी साबित हुआ. महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामलों में कन्विक्शन रेट 25 फीसदी है. यानी हर चार में से तीन आरोपी बरी हो जाते हैं.

आंकड़ों के मुताबिक, 2018 से 2022 के बीच पांच साल में रेप के 74 हजार से ज्यादा मामलों का ट्रायल पूरा हुआ. इनमें से 46,973 मामलों में आरोपी को बरी कर दिया गया. यानी, 5 साल में रेप के 10 में से 6 मामलों में आरोपी बरी हो गए. ये बताता है कि रेप के ज्यादातर मामले या तो अदालत में साबित नहीं हो पाते या फिर ये झूठे होते हैं. 

Advertisement

16 दिसंबर 2012 को हुए निर्भया कांड के बाद देश में रेप का कानून और सख्त कर दिया गया था. इसके बाद रेप के मामलों में अगर आरोपी की उम्र 16 से 18 साल के बीच है तो उसे वयस्क मानकर ही मुकदमा चलाया जाएगा. ये बदलाव इसलिए किया गया था क्योंकि निर्भया कांड का एक आरोपी नाबालिग था और तीन साल में ही छूट गया था.

इसके बाद पॉक्सो यानी प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस एक्ट लाया गया था. ये बच्चों के खिलाफ होने वाले यौन शोषण को अपराध बनाता है. लेकिन इसमें भी कन्विक्शन रेट कम ही है. 2022 में पॉक्सो केस में कन्विक्शन रेट 32% के आसपास था.

रेप के झूठे मामलों का कारण क्या?

2015 में मुंबई की दो सेशन कोर्ट में एक स्टडी हुई थी. इस स्टडी में एक पुलिस अफसर ने बताया था, 'अगर कोई माता-पिता हमारे पास आते हैं और कहते हैं कि उनकी बेटी पड़ोस के किसी लड़के के साथ भाग गई है तो हम अपहरण का केस दर्ज करते हैं. फिर जब वो लड़की कहती है कि संबंध भी बने थे, तो हम रेप की धारा भी जोड़ते हैं. फिर कोर्ट तय करती है कि रेप हुआ था या नहीं?'

इससे पहले 2014 में हुई ऐसी ही एक स्टडी में भी सामने आया था कि रेप के 40% से ज्यादा मामले ऐसे थे, जिनमें संबंध सहमति से बने थे, लेकिन जब बात लड़की के माता-पिता तक पहुंची तो उन्होंने लड़के पर रेप का केस दर्ज करवा दिया. 

Advertisement

2017 में जयपुर के एक सीनियर पुलिस अधिकारी ने बताया था कि रेप के 43% मामले जांच में फर्जी मिले हैं. ये झूठे केस पैसे ऐंठने के लिए दर्ज कराए गए थे. 

दिसंबर 2021 में गुरुग्राम में एक 22 साल की लड़की को गिरफ्तार किया गया था. उस पर आरोप था कि उसने सितंबर 2020 से नवंबर 2021 के बीच 8 लड़कों के खिलाफ रेप का झूठा केस दर्ज करवाया था. आरोप था कि लड़की पहले लड़कों से बात करती थी, फिर मिलने बुलाती थी और फिर रेप के झूठे मामले में फंसाने का डर दिखाकर ब्लैकमेल करके पैसे लेते थी. पैसे नहीं देने पर केस दर्ज करवा देती थी.

इसके अलावा रेप के ज्यादातर मामले ऐसे भी होते हैं, जिनमें लड़का-लड़की पहले तो साथ रहते हैं और जब लड़का शादी से इनकार कर देता है तो उसके खिलाफ रेप का केस दर्ज करवा दिया जाता है. कुछ सालों में ऐसे मामले तेजी से बढ़े हैं. एनसीआरबी से मिले आंकड़े बताते हैं कि 2021 में रेप के 31,516 मामले दर्ज हुए थे, जिनमें से 14,582 यानी 46% से ज्यादा मामले ऐसे थे जिनमें लड़की ने दावा किया था कि उसके साथ शादी का झांसा देकर रेप किया गया था.

2018 में बेंगलुरु की नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी ने एक स्टडी की थी. इसमें सामने आया था कि 16 से 18 साल की ज्यादातर लड़कियां आरोपी के खिलाफ गवाही देने से मुकर जाती हैं.

Advertisement

क्या है इसका हल?

अगस्त 2021 में दिल्ली हाईकोर्ट ने रेप के झूठे मामलों पर चिंता जताते हुए कहा था, 'रेप के झूठे मामले आरोपी व्यक्ति के जीवन और करियर को तबाह कर देते हैं. आरोपी का सम्मान खत्म हो जाता है. वो अपने परिवार का सामना नहीं कर पाता और उसका जीवन कलंकित हो जाता है.'

हाईकोर्ट ने कहा था, 'इस तरह के आरोप इस उम्मीद में लगाए जाते हैं कि दूसरा पक्ष डर या शर्म के मारे उनकी सारे मांगें मान लेगा.' हाईकोर्ट ने उस समय सुझाव दिया था कि जब तक ऐसे काम करने वालों के लिए सजा नहीं होगी, तब तक झूठे केस बंद नहीं होंगे.

इसके अलावा, कई बार अदालतें भी कह चुकी हैं कि अब सहमति से संबंध बनाने की उम्र 18 से घटाकर 16 साल कर देनी चाहिए. 

हालांकि, लॉ कमीशन का कहना है कि सहमति से यौन संबंध बनाने की उम्र 18 से 16 साल नहीं की जानी चाहिए. अगर ऐसा किया गया तो इससे कानून का दुरुपयोग होगा.

आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इस कानून के इस्तेमाल को लेकर कराई गई कई स्टडीज से पता चला है कि लड़कियों के मर्जी से शादी करने के फैसले के खिलाफ माता-पिता इसका इस्तेमाल हथियार की तरह कर रहे हैं. इसका दुरुपयोग रोकने के लिए आयोग ने सिफारिश की है कि सहमति से यौन संबंध बनाने वाले नाबालिगों की उम्र के अंतर पर गौर किया जाना चाहिए. आयोग का कहना है कि अगर उम्र का फासला तीन साल या उससे ज्यादा है तो इसे अपराध माना जाना चाहिए.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement