
मैरिटल रेप यानी वैवाहिक बलात्कार... बरसों से इस मुद्दे पर बहस होती आ रही है. मगर आज तक भारत में मैरिटल रेप को लेकर कोई कानून नहीं है. इतना ही नहीं, शादी के बाद अगर पति जबरदस्ती पत्नी के साथ संबंध बनाता है, तो भी उसे सजा नहीं हो सकती, क्योंकि कानूनन ये अपराध नहीं है.
पर अब सुप्रीम कोर्ट ने मैरिटल रेप पर चिंता जताई है. सुप्रीम कोर्ट में मैरिटल रेप को अपराध के दायरे में लाने की मांग को लेकर कई याचिकाएं दायर हैं. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब भी मांगा था. हालांकि, केंद्र की ओर से कोई जवाब नहीं दिया गया है. अब सुप्रीम कोर्ट इन याचिकाओं पर सुनवाई करने के लिए राजी हो गया है.
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच केंद्र सरकार की चुप्पी के बावजूद इन याचिकाओं पर सुनवाई करेगी. बेंच ने कहा कि भले ही केंद्र ने कोई राय न दी हो, लेकिन ये कानून का मामला है और सरकार को इस पर बहस करनी होगी.
कोर्ट की ये टिप्पणी तब आई, जब सीनियर एडवोकेट इंदिरा जयसिंह ने अदालत से इस मामले में जल्द से जल्द सुनवाई करने की अपील की. इंदिरा जयसिंह एक याचिकाकर्ता की वकील हैं.
कई सारी याचिकाएं हैं दायर
मई 2022 में मैरिटल रेप पर दिल्ली हाईकोर्ट की दो जजों की बेंच ने अलग-अलग फैसला दिया था. जस्टिस राजीव शकधर ने मैरिटल रेप पर पतियों को छूट देने वाले कानूनी प्रावधान को 'असंवैधानिक' बताया था. जबकि, जस्टिस सी. हरि शंकर ने याचिकाकर्ता को सुप्रीम कोर्ट जाने की अनुमति दी थी.
एक याचिका में मार्च 2022 में आए कर्नाटक हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी गई है, जिसमें अदालत ने मैरिटल रेप के लिए पति पर केस करने का आदेश दिया था. तब हाईकोर्ट ने कहा था, 'एक पुरुष भले ही वो पति ही क्यों न हो, वो एक पुरुष होता है और उसे एक अपवाद के कारण कोई छूट नहीं दी जा सकती. अगर ऐसा होता है तो ये अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) के खिलाफ होगा.'
सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं में आईपीसी की धारा 375 के एक अपवाद की संवैधानिकता को इस आधार पर चुनौती दी गई है कि ये शादीशुदा महिलाओं के साथ भेदभाव करता है.
क्या है वो अपवाद?
भारत में मैरिटल रेप यानी वैवाहिक बलात्कार अपराध नहीं है. अगर कोई पति अपनी पत्नी के साथ उसकी सहमति के बगैर जबरन शारीरिक संबंध बनाता है तो इसे मैरिटल रेप कहा जाता है. लेकिन भारत में इसके लिए कोई सजा नहीं है.
दरअसल, एक अपवाद के कारण ही मैरिटल रेप को अपराध नहीं माना जाता. आईपीसी की धारा 375 में रेप की परिभाषा दी गई है. इसमें एक अपवाद भी था, जो कहता था कि अगर पति अपनी पत्नी के साथ जबरदस्ती या सहमति के बगैर भी शारीरिक संबंध बनाता है तो वो रेप के दायरे में नहीं आएगा. हालांकि, धारा 376 में ये प्रावधान जरूर था कि अगर पत्नी की उम्र 15 साल से कम है तो इसे रेप माना जाएगा.
अब आईपीसी की जगह भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) ने ले ली है. बीएनएस में धारा 63 में रेप की परिभाषा बताई गई है. हालांकि, इसमें भी वो अपवाद जोड़ा गया है. बस फर्क इतना है कि आईपीसी में 15 साल से कम उम्र की पत्नी के साथ बनाए गए जबरन संबंध को रेप माना गया था. जबकि, बीएनएस में 18 साल से कम उम्र की पत्नी के साथ बनाए गए संबंध को रेप के दायरे में रखा गया है.
सुप्रीम कोर्ट को क्या फैसला करना है?
सुप्रीम कोर्ट को दो चीजें तय करनी हैं. पहला- क्या मैरिटल रेप पर कोई नियम या कानून बनना चाहिए या नहीं? और दूसरा- मैरिटल रेप के मामलों में पति को छूट मिलना चाहिए या नहीं?
मैरिटल रेप पर अदालतों ने कब-कब टिप्पणी की?
मैरिटल रेप को लंबे वक्त से अपराध बनाने की मांग की जा रही है. 29 सितंबर 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने अबॉर्शन पर एक अहम फैसला दिया था. तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि महिला शादीशुदा हो या न हो, उसे अबॉर्शन करवाने का हक है. इसी फैसले के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने मैरिटल रेप का भी जिक्र किया था.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट में मैरिटल रेप को भी शामिल किया जाए. कोर्ट ने कहा था कि मैरिटल रेप से हुई प्रेग्नेंसी को भी महिलाओं पर यौन हमला माना जाएगा.
इससे पहले, 11 अक्टूबर 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में फैसला देते हुए कहा था कि 18 साल से कम उम्र की पत्नी के साथ शारीरिक संबंध बनाना अपराध है और इसे रेप माना जा सकता है. कोर्ट ने कहा था कि इसके लिए नाबालिग पत्नी एक साल के अंदर शिकायत दर्ज करा सकती है.
अगस्त 2021 में केरल हाईकोर्ट ने अहम टिप्पणी करते हुए कहा था, 'भारत में मैरिटल रेप के लिए सजा का प्रावधान नहीं है, लेकिन इसके बावजूद ये तलाक का आधार हो सकता है.' हालांकि, हाईकोर्ट ने भी मैरिटल रेप को अपराध मानने से इनकार कर दिया.
23 मार्च 2022 को कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा था, 'पतियों के पत्नियों पर ऐसे यौन हमलों का महिला पर मनोवैज्ञानिक और शारीरिक दोनों प्रभाव पड़ता है. पतियों की ऐसी हरकतें पत्नियों की आत्माएं झकझोर कर रख देती हैं और अब संसद को इन 'चुप्पियों' को सुनने की जरूरत है.' हाईकोर्ट ने ये भी कहा था कि 'सदियों से माना जाता है कि पत्नी पति की गुलाम होती है. उसके मन, आत्मा और हर चीज पर पति का हक होता है. पति जैसा चाहे वैसा बर्ताव कर सकता है. इस तरह के मामले अब देश में बढ़ रहे हैं और इस मान्यता को बदलने की जरूरत है.'
मैरिटल रेप पर सरकार का क्या है रुख?
सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने अब तक अपना रुख साफ नहीं किया है. पिछले साल केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि मैरिटल रेप को अपराध बनाने के कई सामाजिक प्रभाव पड़ेंगे.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट में कहा था, 'इस मुद्दे को सिर्फ कानूनी सिद्धांतों के चश्मे से नहीं देखा जा सकता. इसके सामाजिक परिणामों पर भी विचार करना चाहिए.'
हालांकि, केंद्र सरकार मैरिटल रेप को अपराध के दायरे में लाने के खिलाफ है. 2017 में मैरिटल रेप को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में केंद्र सरकार ने कहा था, 'मैरिटल रेप को अपराध करार नहीं दिया जा सकता है और अगर ऐसा होता है तो इससे शादी जैसी पवित्र संस्था अस्थिर हो जाएगी.' ये तर्क भी दिया गया कि ये पतियों को सताने के लिए आसान हथियार हो सकता है.
मैरिटल रेप पर क्या कहते हैं आंकड़े?
मैरिटल रेप को भले ही अपराध नहीं माना जाता, लेकिन अब भी कई सारी भारतीय महिलाएं इसका सामना करती हैं. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS-5) के मुताबिक, देश में अब भी 29 फीसदी से ज्यादा ऐसी महिलाएं हैं जो पति की शारीरिक या यौन हिंसा का सामना करती हैं. ग्रामीण और शहरी इलाकों में अंतर और भी ज्यादा है. गांवों में 32% और शहरों में 24% ऐसी महिलाएं हैं.