
नागरिकता कानून की धारा 6A की संवैधानिकता पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुना दिया है. सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने 4:1 से धारा 6A की संवैधानिकता को बरकरार रखा है.
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच में जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस एमएम सुरेश, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल थे. बेंच के एकमात्र जज जस्टिस जेबी पारदीवाला ने ही धारा 6A को असंवैधानिक माना है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि असम अकॉर्ड अवैध प्रवासियों की समस्या का राजनीतिक समाधान था, जबकि धारा 6A एक विधायी समाधान था. कोर्ट ने ये भी कहा कि असम की स्थानीय आबादी को ध्यान में रखते हुए ये प्रावधान करना सही था.
बहुमत से फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, बांग्लादेश के साथ सीमा साझा करने वाले राज्यों में से असम को अलग तरह से देखना सही था, क्योंकि यहां की स्थानीय आबादी में अप्रवासियों का प्रतिशत ज्यादा है. पश्चिम बंगाल में 57 लाख अप्रवासी हैं, जबकि असम में 40 लाख अप्रवासी बसे हैं. फिर भी असम की कम आबादी को देखते हुए ऐसा करना सही था, क्योंकि बंगाल की तुलना में असम का जमीनी इलाका काफी कम है. कोर्ट ने माना कि 25 मार्च 1971 की कट-ऑफ डेट लगाना सही था.
क्या है नागरिकता कानून की धारा 6A?
1979 में असम से अवैध प्रवासियों को बाहर निकालने की मांग को लेकर ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (AASU) ने आंदोलन शुरू किया. लगभग छह साल तक चले आंदोलन के बाद 1985 में एक समझौता हुआ, जिसे 'असम अकॉर्ड' कहा जाता है.
ये समझौता केंद्र सरकार, असम सरकार और आंदोलनकारियों के बीच हुआ था. असम अकॉर्ड का क्लॉज 5 कहता है कि जो भी विदेशी 1 जनवरी 1966 से 24 मार्च 1971 के बीच असम आए होंगे, उनकी पहचान की जाएगी. वहीं, 25 मार्च 1971 के बाद असम में आए विदेशियों की पहचान करने की प्रक्रिया जारी रहेगी और उन्हें वापस भेजा जाएगा.
असम अकॉर्ड के बाद ही 1955 के नागरिकता कानून में संशोधन कर धारा 6A जोड़ी गई. धारा 6A के मुताबिक, 1 जनवरी 1966 से पहले बांग्लादेश से आए भारतीय मूल के व्यक्तियों को ही भारतीय नागरिक माना जाएगा. वहीं, जो लोग 1 जनवरी 1966 से 24 मार्च 1971 के बीच आए होंगे, उन्हें अपना रजिस्ट्रेशन करवाना होगा और कम से कम 10 साल असम में रहने के बाद भारतीय नागरिकता मांग सकेंगे. हालांकि, इस दौरान वो वोट नहीं डाल सकते. जबकि, 25 मार्च 1971 के बाद आए लोगों की पहचान की जाएगी और उन्हें कानूनी रूप से निर्वासित किया जाएगा यानी वापस भेजा जाएगा.
इसकी संवैधानिकता को चुनौती क्यों?
2012 में 'असम संमिलिता महासंघ' नाम के सिविल सोसायटी ग्रुप ने धारा 6A को भेदभावपूर्ण, मनमाना और गैरकानूनी मानते हुए विरोध किया. उन्होंने इसकी संवैधानिकता को चुनौती देते हुए कहा कि अवैध प्रवासियों को नियमित करने के लिए अलग-अलग कट-ऑफ डेट का प्रावधान करना सही नहीं था.
इस धारा को संविधान के अनुच्छेद 6 के आधार पर भी चुनौती दी गई. अनुच्छेद 6 कहता है कि जो कोई भी 19 जुलाई 1948 से पहले पाकिस्तान से भारत आया होगा, उसे नागरिकता दी जाएगी. लेकिन धारा 6A जोड़कर असम के लिए ये कट-ऑफ डेट 1 जनवरी 1966 तय कर दी गई. याचिका में दलील दी गई कि इससे असम में अवैध प्रवासियों को बढ़ावा दिया गया.
उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में इसकी संवैधानिकता को चुनौती देते हुए मांग की कि 24 मार्च 1971 से पहले की वोटिंग लिस्ट की बजाय 1951 की एनआरसी के आधार पर असम की एनआरसी को अपडेट करने का आदेश दिया जाए. इसके बाद धारा 6A को चुनौती देते हुए और भी कई याचिकाएं दायर हुईं.
2014 में जब इस मामले की सुनवाई शुरू हुई तो जस्टिस आरएफ नरीमन ने इसे संवैधानिक बेंच के पास भेज दिया. अप्रैल 2017 में पांच जजों की संवैधानिक बेंच बनी. जजों के रिटायरमेंट की वजह से कई बार बेंच को फिर से गठित किया गया.
आखिरकार चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई में गठित हुई पांच जजों की बेंच ने पिछले साल 5 दिसंबर को सुनवाई शुरू की. 12 दिसंबर को इस पर फैसला सुरक्षित रख लिया.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ समेत जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस एमएम सुरेश और जस्टिस मनोज मिश्रा ने धारा 6A की संवैधानिकता को बरकरार रखा. कोर्ट ने कहा कि जो लोग 25 मार्च 1971 या उसके बाद बांग्लादेश से असम आए हैं, उन सभी की पहचान की जानी चाहिए और निर्वासित किया जाना चाहिए.
इस फैसले का असर क्या?
चूंकि, सुप्रीम कोर्ट ने धारा 6A की संवैधानिकता को बरकरार रखा है, इसलिए बांग्लादेश से आकर असम में बसे लोगों पर इसका असर नहीं होगा. 1 जनवरी 1966 से पहले आए लोग अब भी भारतीय नागरिक ही माने जाएंगे. 1 जनवरी 1966 से 24 मार्च 1971 के बीच बांग्लादेश से आए लोग भारतीय नागरिकता के लिए आवेद कर सकते हैं.
जबकि, 25 मार्च 1971 के बाद आए अप्रवासियों की पहचान करने का काम जारी रहेगा और उन्हें वापस भेजा जाएगा.
हालांकि, अगर धारा 6A को अवैध घोषित कर दिया जाता तो 1966 से पहले बांग्लादेश से आकर असम में बसे लोगों की भारतीय नागरिकता चली जाती और उन्हें विदेशी माना जाता.