
सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार में एक बार फिर टकराव हो गया है. मामला जजों की नियुक्ति से जुड़ा है. हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति में हो रही देरी पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जाहिर की है.
जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एएस ओका ने कहा कि तीन जजों की बेंच ने जजों की नियुक्ति की टाइमलाइन तय की थी और उसका पालन होना चाहिए. जस्टिस कौल ने कहा कि ऐसा लग रहा है कि सरकार नेशनल ज्यूडिशियल अपॉइंटमेंट कमिशन (NJAC) का कानून रद्द होने से नाखुश है, लेकिन ये कानून का पालन नहीं करने का कारण नहीं हो सकता.
सोमवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी से कहा कि जमीनी हकीकत ये है कि कॉलेजियम की ओर से भेजे गए नामों को सरकार मंजूर नहीं कर रही है. सिस्टम कैसे काम करता है? हम अपनी चिंता पहले ही जता चुके हैं.
हालांकि, ये पहली बार नहीं है जब सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार के बीच जजों की नियुक्ति को लेकर टकराव हो रहा है. इससे पहले भी न्यायिक नियुक्ति आयोग और जस्टिस केएम जोसेफ की नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट और सरकार आमने-सामने आ चुके हैं.
इस बार का क्या है पूरा मामला?
- जस्टिस कौल और जस्टिस ओका की बेंच जिस याचिका पर सुनवाई कर रही है, वो बेंगलुरु एडवोकेट एसोसिएशन की ओर से दायर की गई है.
- ये याचिका पिछले साल दाखिल की गई थी. इस याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की सिफारिशों के बावजूद 11 नामों को केंद्र सरकार ने मंजूरी नहीं दी है.
- इस याचिका में केंद्र सरकार पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश की 'जानबूझकर अवज्ञा' करने का आरोप लगाया गया है. इसमें ये भी कहा गया है कि कुछ नाम सरकार के पास डेढ़ साल से लंबित हैं.
- इसमें कहा गया है कि कॉलेजियम ने 11 नामों की सिफारिश की थी और इन नामों को दोहराया भी गया था, बावजूद इसके केंद्र सरकार ने इन्हें मंजूरी नहीं दी.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
- सुप्रीम कोर्ट ने जजों की नियुक्ति के लिए नामों को मंजूरी देने में देरी होने पर नाराजगी जाहिर की है. इससे पहले 11 नवंबर को कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस भी जारी किया था और कहा था कि मंजूरी देने में देरी करना 'स्वीकार्य' नहीं है.
- जस्टिस कौल ने कहा, 'सिस्टम कैसे काम करता है? हम अपना रोष पहले ही जता चुके हैं. मुझे ऐसा लग रहा है कि NJAC रद्द किए जाने से सरकार नाखुश है, लेकिन कानून का पालन करने का ये कारण नहीं हो सकता.'
- सरकार की ओर से पेश हुए अटॉर्नी जनरल वेंकटरमणी ने बताया कि 11 नवंबर को जारी नोटिस पर केंद्र सरकार ने सचिव स्तर के अधिकारियों से चर्चा की है और इस पर जवाब जल्द ही दिया जाएगा.
- इस मामले में सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट ने अगली तारीख 8 दिसंबर तय की है.
किरन रिजिजू के बयान पर क्या कहा?
- केंद्रीय कानून मंत्री किरन रिजिजू ने कॉलेजियम पर सवाल उठाए हैं. इन बयानों को सुप्रीम कोर्ट के सामने भी रखा गया था.
- इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'हम आमतौर पर मीडिया रिपोर्ट्स को नजरअंदाज करते हैं, लेकिन ये बयान उच्च स्तर पर बैठे व्यक्ति ने दिए हैं और ऐसा नहीं होना चाहिए था.'
रिजिजू ने क्या कहा था?
- हाल ही में एक कार्यक्रम में किरन रिजिजू ने कहा था कि कॉलेजियम सिस्टम विदेश से आया है और ये हमारे संविधान से अलग है. उन्होंने कहा था कि बताएं कि किस प्रावधान के तहत कॉलेजियम सिस्टम बनाया गया है.
- रिजिजू ने कहा था, 'अगर आप उम्मीद करते हैं कि सरकार सिर्फ इसलिए जज के रूप में सुझाए नामों को मंजूर कर देगी, क्योंकि उनकी सिफारिश कॉलेजियम ने की है, तो इसमें सरकार की भूमिका क्या है?'
- उन्होंने ये भी कहा, 'ऐसा न कहें कि सरकार फाइलें दबाकर बैठी है या फिर फाइलें भेजी ही न. आप खुद ही नियुक्त कर लें. आप ही सब कर लें. व्यवस्था इस तरह नहीं चलती. न्यायपालिका और कार्यपालिका को मिलकर काम करना होगा.'
- इससे पहले पिछले महीने भी एक कार्यक्रम में रिजिजू ने कहा था कि कॉलेजियम सिस्टम से लोग खुश नहीं है और संविधान के तहत जजों की नियुक्ति करना सरकार का काम है.
- इस दौरान उन्होंने कहा था, '1993 तक कानून मंत्रालय ही चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की सलाह पर सभी जजों की नियुक्ति करता था. उस समय हमारे पास बहुत प्रतिष्ठित जज थे. संविधान में साफ है कि राष्ट्रपति जजों की नियुक्ति करेंगे और इसका मतलब है कि चीफ जस्टिस की सलाह पर कानून मंत्रालय ये काम करेगा.'
- रिजिजू का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले से कॉलेजियम बनाया था. उन्होंने कहा कि कॉलेजियम सिस्टम में कई सारी खामियां हैं और लोग सवाल उठा रहे हैं कि इसमें पारदर्शिता नहीं है. इसके अलावा इसकी कोई जवाबदेही भी नहीं है.
- कॉलेजियम सिस्टम पर सवाल उठाते हुए किरन रिजिजू ने सबसे तीखी टिप्पणी ये कि थी भारत को छोड़कर दुनिया का कोई भी देश ऐसा नहीं है, जहां जज अपने भाई को जज बना सके.
क्या है कॉलेजियम?
- कॉलेजियम का गठन 1993 में हुआ था. ये सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की एक कमेटी है. इसके अध्यक्ष चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया होते हैं.
- कॉलेजियम जजों की नियुक्ति और प्रमोशन से जुड़े मामलों पर फैसला लेती है. हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जज की नियुक्ति कॉलेजियम की सिफारिश पर ही होती है.
- इसके लिए कॉलेजियम केंद्र सरकार को नाम भेजती है, जिसे सरकार राष्ट्रपति के पास भेजती है. राष्ट्रपति से मंजूरी मिलने के बाद नोटिफिकेश जारी होता है और जज की नियुक्ति होती है.
- आमतौर पर सरकार कॉलेजियम की सिफारिशों को मान लेती है. लेकिन कई बार कुछ नामों को दोबारा विचार करने को कहती है. हालांकि, अगर फिर से कॉलेजियम वही नाम सुझाती है तो सरकार उसे मंजूर करने के लिए बाध्य है.
- इससे पहले मई 2018 में केंद्र सरकार ने जस्टिस केएम जोसेफ की नियुक्ति के नाम पर दोबारा विचार करने को कहा था. उस समय जस्टिस केएम जोसेफ उत्तराखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस थे और कॉलेजियम ने सिफारिश की थी कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त किया जाए.
NJAC क्या है?
- कॉलेजियम सिस्टम को हटाने के लिए केंद्र सरकार एक कानून लेकर आई थी. इस कानून के तहत राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) का गठन किया गया, जिसका काम जजों की नियुक्ति करना था.
- कानून के तहत, इस आयोग के अध्यक्ष देश के चीफ जस्टिस होते. उनके अलावा इसमें सुप्रीम कोर्ट के दो सीनियर जज, कानून मंत्री और दो जानी-मानी हस्तियां होनी थीं.
- इन दो हस्तियों का चयन तीन सदस्यों की समिति को करना था, जिसमें प्रधानमंत्री, चीफ जस्टिस और लोकसभा में नेता विपक्ष शामिल थे.
- इसमें दिलचस्प बात ये थी कि किसी जज के नाम की सिफारिश तभी की जा सकती थी, जब आयोग के 5 सदस्य इस पर सहमत हों. अगर दो सदस्य किसी की नियुक्ति पर सहमत नहीं हुए तो फिर उस नाम की सिफारिश नहीं होगी.
- अक्टूबर 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून को रद्द कर दिया था और न्यायिक नियुक्ति आयोग को असंवैधानिक बताया था. उस समय सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ये आयोग न्यायपालिका के कामकाज में दखल देता है.
सरकार और सुप्रीम कोर्ट में टकराव कब-कब?
- नवंबर 2022: केंद्र सरकार ने कॉलेजियम से हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति से जुड़ी 20 फाइलों पर दोबारा विचार करने को कहा है. ये फाइलें 25 नवंबर को लौटाई गईं हैं. इनमें 11 नए मामले हैं और 9 मामलों को दोहराया है. इन मामलों में एक नाम एडवोकेट सौरभ किरपाल का भी है, जिन्हें दिल्ली हाईकोर्ट में जज नियुक्त करने की सिफारिश की गई है. एडवोकेट किरपाल पूर्व सीजेआई बीएन किरपाल के बेटे हैं.
- मई-जून 2018: जनवरी में कॉलेजियम ने इंदु मल्होत्रा और केएम जोसेफ को सुप्रीम कोर्ट में जज बनाने की सिफारिश की थी. सरकार ने इनके नाम पर भी दोबारा विचार करने को कहा था. मई में सरकार ने इंदु मल्होत्रा के नाम को तो मंजूरी दे दी, लेकिन जस्टिस जोसेफ के नाम पर फिर सोचने को कहा. हालांकि, बाद में सरकार ने जस्टिस केएम जोसेफ के नाम को भी मंजूर कर दिया था.
- अगस्त 2016: फरवरी 2015 में सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने 74 जजों की नियुक्ति के लिए नामों की सिफारिश की थी, लेकिन डेढ़ साल से ज्यादा समय बीतने के बाद भी केंद्र सरकार ने इन्हें मंजूरी नहीं दी थी. अगस्त 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने साफ कह दिया था कि अगर सरकार ने मजबूर किया तो अदालत उससे टकराव लेने से नहीं हिचकेगी.
- अक्टूबर 2015: केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद जजों की नियुक्ति के लिए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) बनाया गया. इसकी संवैधानिकता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक बताया और आयोग को निरस्त कर दिया. सरकार का तर्क था कि इसे संसद ने पास किया है और 20 विधानसभाओं ने भी पास किया है, इसलिए अदालत दखल नहीं दे सकती.